रायपुर : रायपुर की यदि बात करें तो यहां फायर सेफ्टी के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति होती है. जब तक दुकान,मकान या सामान जलकर राख नहीं हो जाता तब तक फायर ब्रिगेड की टीम मौके पर नहीं पहुंचती. चाहे ट्रांसफार्मर गोदाम में आग लगने की बात हो, या फिर फर्नीचर फैक्ट्री में या फोम फैक्ट्री में हर जगह फायर ब्रिगेड की टीम देर से पहुंची.यदि टीमें वक्त पर पहुंचती तो बड़ी हानि होने से रुक जाती.
बस आगजनी के चश्मदीद से हुई बात : अभनपुर चलती बस में लगी आग की एक प्रत्यक्षदर्शी से मुलाकात हुई उन्होंने नाम नहीं देने की शर्त पर बताया कि बस में आग लगी अफरा तफरी मच गई. पास से गुजरने वाली गाड़ियों की रफ्तार बस के पास तेज हो जा रही थी.लगातार ये प्रयास किया जा रहा था कि पुलिस या दूसरे अधिकारियों का फोन लग जाए. हालांकि बस वाले ने सबसे पहले अपने मालिक को सूचना दी. उसके बाद सूचना किस माध्यम से प्रशासन को गई ये नहीं कहा जा सकता. लेकिन जब तक टीम आई तब तक सब जल चुका था.इन सब बातों से एक बात साफ है कि कोई अनहोनी यदि रायपुर में हो जाए ,तो बचाव के लिए सिर्फ एक ही सहारा है और वो है भगवान का.क्योंकि फायर ब्रिगेड के पास क्या व्यवस्था है ये कोई नहीं जानता.
आग को लेकर क्या है तैयारी : 25 मार्च 2024 को रायपुर में एक फर्नीचर फैक्ट्री में आग लग गई. फायर ब्रिगेड को सूचना दी गई फायर ब्रिगेड पहुंचा, जब सब कुछ जलकर खाक हो गया. 5 अप्रैल को रायपुर में सरकारी ट्रांसफार्मर के गोदाम में आग लगा. आग इतनी भयावह थी कि पूरे रायपुर में धुंए का गुबार कुछ ऐसा बना मानो सावन के महीने में घनघोर घटा छा गई हो. आग इतनी जबरदस्त थी कि दो दिनों तक आग बुझाया ही जाता रहा.गाड़ियां दूसरे जिले से मंगाई गई. तमाम बड़े अधिकारी मोर्चा संभाल लिए, उसके बाद भी हालत जस के तस रहे.आग तभी बुझी जब सब कुछ जलकर खाक हो गया.सरकार जागी तो मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दे दिए गए, कहा गया पता करिए आग लगने की वजह क्या थी. लेकिन अगर ऐसी स्थिति बने तो आग कैसे बुझेगी इसकी तैयारी शायद आज भी सांय सांय सरकार के पास फाइलों में ही है.
आग पर मुआवजे का मरहम : रायपुर में महज 15 दिनों के भीतर दो बड़ी आग लगी.25 मार्च को फर्नीचर फैक्ट्री में आग लगी और 5 अप्रैल को ट्रांसफार्मर गोदाम में. लेकिन उसके बाद भी फायर ब्रिगेड के लोग गहरी नींद में सोते रहे. क्योंकि सरकार तो सही-सही चल रही है. आम आदमी जल के मर जाए या फिर आम आदमी की उम्मीदें जल के खत्म हो जाए, इससे राजनेताओं को क्या फर्क पड़ता है.और हुआ भी यही 29 मार्च को रायपुर के फोम फैक्ट्री में आग लगी ,तो दो मजदूर जलकर मर गईं. कई हताहत हुए ,फैक्ट्री खाक हो गई, लेकिन मुआवजे का मरहम लगा करके सरकार फिर अपनी चाल से चल रही है और सरकार की चाल क्या है यह विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ने बताना शुरू कर दिए हैं.
आग से डरना क्यों जरूरी है : ये घटनाएं राजधानी में हुई तो रायपुर का तापमान 40 डिग्री के आसपास था. सरकार ने इस बात की समीक्षा भी नहीं कि अगर पारा ऊपर चढ़ता है और इस तरह की घटनाएं बढ़ती है तो उसके लिए उपाय क्या होगा. सबसे बड़ी बात ये है कि सभी बड़ी घटनाएं रायपुर में ही हुई हैं और रायपुर में आग बुझाने के लिए दूसरे जिलों से भी फायर ब्रिगेड की गाड़ियां मंगवानी पड़ी है. बस में लगी आग एक बड़ा संकेत है, जिसमें कम से कम प्रशासनिक अधिकारियों को यह बात समझनी चाहिए. गलती चाहे जहां रही हो , लेकिन जान माल का बड़ा नुकसान तो हो सकता है. इसके लिए एक नियम की जरूरत है, क्योंकि रायपुर में 2024 में लगी आग लोगों की भीतर डर भी पैदा किया है और डरावनी भी रही है.
क्या होने चाहिए इंतजाम : कुछ लोगों का तो यह भी सुझाव था कि फायर स्टेशन में एक साथ सभी गाड़ी खड़ी करने के बजाए यदि कुछ गाड़ियां भीड़ भाड़ व्यस्ततम वाले इलाकों में खड़ी कर दी जाए , तो बढ़े तापमान के बीच हो रही आग की घटनाओं को रोकने में मदद मिल सकती है. रायपुर की बात की जाए तो यहां गाड़ियां सुभाष स्टेडियम ,कोतवाली के आसपास खड़ी की जा सकती है, क्योंकि यह शहर की सबसे व्यस्ततम क्षेत्र है. यहां आए दिन अग्नि दुर्घटनाएं होती है. इसके अलावा इंडस्ट्रियल एरिया में भी कुछ गाड़ियों को खड़ा किया जा सकता है. जिससे अग्नि दुर्घटनाओं पर काबू करने में मदद मिल सकती है. यह व्यवस्था भले ही परमानेंट ना की जाए ,लेकिन जब तापमान बढ़ रहा हो गर्मी तेज पड़ रही तो उस दौरान की जा सकती है.
नहीं हो सकती अलग-अलग गाड़ियों की व्यवस्था : फायर ब्रिगेड से संबंधित अधिकारी इस तरह की व्यवस्थाओं को सिरे से खारिज कर रहे हैं. नगर सेना की संभागीय सेनानी अनिमा एस कुजूर का कहना है कि इस तरह की व्यवस्था कर पाना संभव नहीं है.सभी गाड़ियों की एंट्री करनी होती है, उसका रखरखाव करना होता है. साथ ही कई तरह की फॉर्मेलिटी होती है. जिस वजह से इन गाड़ियों को शहर की अलग-अलग जगह पर खड़ा नहीं किया जा सकता है.अनिमा एस कुजूर ने बताया कि वर्तमान में रायपुर के टिकरापारा में फायर स्टेशन है और आग लगने की सूचना के बाद यहां से गाड़ी को रवाना किया जाता है. मौके पर पहुंचने के बाद आग की स्थिति को देखकर अन्य गाड़ियों सहित जरूरी संसाधन मुहैया कराए जाते हैं.
'' एक गाड़ी के लिए कम से कम 4 से 6 कर्मियों की जरूरत होती है. इनकी 8 घंटे की शिफ्ट होती है. ऐसे में एक गाड़ी के लिए 24 घंटे में 12 से 18 लोगों की जरूरत होती है.आगामी दिनों में नया रायपुर और उरला में भी फायर सब स्टेशन बनाए जाने का प्रस्ताव है.'' अनिमा एस कुजूर, संभागीय सेनानी, नगर सेना, रायपुर
दूसरे शहरों में भी होती हैं घटनाएं : वही रायपुर में अग्नि दुर्घटनाएं और उससे निपटने के किए गए इंतजाम को लेकर वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा का कहना है कि इस तरह की समस्या सिर्फ रायपुर ही नहीं, बल्कि अन्य जगहों पर भी देखने को मिलती है. इस साल काफी टेंपरेचर बढ़ा है. कई साल पुराने रिकॉर्ड टूटे हैं. शासन प्रशासन के पास सामान्य अग्नि दुर्घटनाओं से निपटने के लिए तैयारी होती है, लेकिन जब आपदा जैसी स्थिति निर्मित होती है, तो उससे निपटने इनके इंतजाम ना काफी होते हैं.
आग पर काबू न पाने की कई वजह हो सकती है. जिसमें पहले संसाधनों की कमी , दूसरा फायर स्टेशन से घटनास्थल की दूरी, तीसरा कर्मचारियों की कमी, चौथ सुनियोजित योजना का अभाव. इन कर्मियों की वजह से ही आग दुर्घटनाओं में काफी जान और माल का नुकसान उठाना पड़ रहा है. बात ये भी सामने आ रही है कि राजधानी रायपुर में एक फायर ब्रिगेड स्टेशन टिकरापारा में है. जहां फायर ब्रिगेड की सभी गाड़ियां खड़ी रहती है.आग लगने के बाद उन गाड़ियों को यहां से रवाना किया जाता है. ऐसे में घटना स्थल और फायर स्टेशन की दूरी के कारण भी आग विकराल रूप लेती है. उसे काबू पाना संभव नहीं होता है.यदि इस दिशा में काम किया जाए तो शायद बड़ी आगजनी की घटनाएं बड़े शहरों में ना हो.