पश्चिम चंपारण (बेतिया) : 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर सभी सियासी दलों ने कमर कस ली है. जनता-जनार्दन को लुभाने के लिए सियासतदानों ने दावों-वादों का पिटारा खोल दिया है. इसके साथ ही एक-एक सीट के सियासी समीकरणों पर भी मंथन होने लगा है. तो चलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं, बेतिया लोकसभा सीट का इतिहास और ताजा सियासी समीकरणः
बेतिया सीट का इतिहासः 1977 से पहले तक बेतिया कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था लेकिन बदली सियासी परिस्थितियों में अब ये बीजेपी का अभेद्य किला बन गया है. पिछले तीन चुनाव के नतीजे तो यही बता रहे हैं. 2009, 2014 और 2019- हर बार बीजेपी के संजय प्रसाद जायसवाल ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को धूल चटाई है.
NDA Vs INDI गठबंधन में मुकाबला: इस बार लोकसभा चुनाव में बेतिया सीट पर भी NDA और INDI गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला होने के आसार हैं. हालांकि अभी दोनों गठबंधनों ने प्रत्याशियों को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. जहां तक NDA की बात है माना जा रहा है कि इस बार भी सबसे तगड़ी दावेदारी बीजेपी के संजय प्रसाद जायसवाल की ही बन रही है. INDI गठबंधन की बात करें तो फिलहाल किसी नाम की चर्चा सुनाई नहीं दे रही है.
जायसवाल परिवार की परंपरागत सीट : बेतिया सीट को वर्तमान सांसद संजय प्रसाद जायसवाल के परिवार की परंपरागत सीट भी कहा जा सकता है. ऐसा इसलिए कि लगातार तीन चुनावों से जीत का परचम लहरा रहे संजय जायसवाल के पिता मदन प्रसाद जायसवाल ने भी इस सीट पर 1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में लगातार जीत हासिल की थी. 2004 में जरूर आरजेडी के रघुनाथ झा बीजेपी के किले में सेंध लगाने में कामयाब रहे लेकिन 2009 में फिर बाजी पलट गयी और बीजेपी के संजय प्रसाद जायसवाल ने अपने पिताजी की सियासी विरासत वापस लाने में सफलता हासिल की और तब से वो लगातार इस सीट से जीत का सेहरा पहन रहे हैं. इसलिए माना जा रहा है कि इस बार भी NDA के उम्मीदवार संजय प्रसाद जायसवाल ही होंगे.
बेतिया लोकसभा सीट : 2009 से अब तक इस सीट पर 2009 में हुए चुनाव में NDA प्रत्याशी के तौर पर बीजेपी के संजय प्रसाद जायसवाल ने निर्दलीय प्रकाश झा को हराकर जीत दर्ज की. 2014 में बीजेपी और जेडीयू ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, जिसमें बाजी बीजेपी के हाथ लगी. पार्टी के उम्मीदवार संजय प्रसाद जायसवाल ने जेडीयू के प्रकाश झा को पटखनी दी. 2019 में एक बार NDA प्रत्याशी के तौर पर बीजेपी के संजय प्रसाद जायसवाल ने बाजी मारी और जीत की हैट्रिक लगाई. हां, इस बार हारनेवाला चेहरा दूसरा था. इस बार थे बृजेश कुशवाहा जिन्होंने आरएलएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था.
बेतियाः मिनी चंबलः बेतिया लोकसभा सीट में 6 विधानसभा सीटें आती हैं.इसमें 3 सीटें पश्चिमी चंपारण जिले से और 3 पूर्वी चंपारण जिले से आती हैं. पश्चिमी चंपारण के चनपटिया, नौतन और बेतिया. वहीं पूर्वी चंपारण के सुगौली, रक्सौल और नरकटियागंज विधानसभा क्षेत्र इसमें शामिल हैं. जिले का नौतन और बैरिया का दियारा क्षेत्र कभी मिनी चंबल के नाम से जाना जाता था. बेंत के जंगल के कारण ही इस इसका नाम बेतिया पड़ा. इलाके के 80 फीसदी से ज्यादा लोग अभी भी खेती पर निर्भर हैं. संसदीय क्षेत्र में आनेवाली सुगौली और मझौलिया चीन मिल चालू हैं, लेकिन सालों से बंद पड़ी चनपटिया मिल के चालू होने का इंतजार बरकरार है. वहीं इलाके में स्थानीय स्तर पर विकास के कई कार्य हुए हैं और बड़ी संख्या में सड़क और पुल-पुलियों का निर्माण हुआ है.
बेतिया में जातिगत समीकरण : बेतिया में मतदाताओं की कुल संख्या 17 लाख 41 हजार से ज्यादा है. जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 9 लाख 27 हजार 745 और महिला मतदाताओं की संख्या 8 लाख 13 हजार 310 है. जातिगत समीकरण की बात करें तो इस इलाके में सबसे बड़ी संख्या वैश्य मतदाताओं की है. इसके बाद ब्राह्मण वोटर्स और फिर मुस्लिम वोटर्स हैं. इसके अलावा यादव और कोइरी-कुर्मी वोटर्स भी किसी भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं.
क्या जीत का चौका लगा पाएंगे संजय जायसवाल ?:-ये लोकसभा सीट कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी, लेकिन पहली बार 1977 में ये सीट कांग्रेस से छिन गई. बाद में 1980 और फिर 1984 में कांग्रेस ने ये सीट जीती. लेकिन उसके बाद कांग्रेस कभी भी अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा सकी. 1996 से तो ये सीट बीजेपी का किला बन गया. सिर्फ 2004 में एक बार आरजेडी के रघुनाथ झा ने इस किले में सेंध लगाने में सफलता हासिल की थी.
फिलहाल लगातार तीन चुनावों से जीत का परचम लहरा रहे संजय प्रसाद जायसवाल जीत का चौका लगा सकते हैं. आज की तारीख में बीजेपी को रोकना INDI गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती है. सांसद के कामकाज को लेकर लोगों में मिली जुली राय है. कई लोगों का कहना है कि संजय प्रसाद जायसवाल के रहते इलाके में विकास के कई बड़े काम हुए हैं, वहीं कई लोग इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं और कहते है कि सियासी दलों को जमीन से जुड़े नेताओं को टिकट देना चाहिए ताकि वो इलाके की जरूरतों को समझ सकें.
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