Diabetes increasing during pregnancy: महिलाओं को यदि प्यास अधिक लगती है, उन्हें यूरिन अधिक आती है साथ ही धुंधली दृष्टि और थकान का एहसास होता है तो उन्हें शुगर लेवल की जांच अवश्य कराना चाहिए. वो भी तब, जब महिलाएं गर्भधारण करने की योजना बना रहीं होती हैं क्योंकि यह गर्भधारण के दौरान नवजात शिशु के लिए भी परेशानी का कारण बन सकता है.
गर्भावस्था के दौरान होती हैं ये समस्याएं
गर्भावस्था में डायबिटीज होने से गर्भस्थ शिशु को मस्तिष्क, हृदय और तंत्रिका-तंत्र से संबंधित बीमारियां होने का खतरा रहता है. कई महिलाओं को इस बीमारी की जानकारी गर्भावस्था के दौरान मिलती है. इसकी वजह उनके द्वारा गर्भावस्था से पहले डायबिटीज की जांच न कराना है. गर्भावस्था के दौरान ब्लड में शुगर लेवल बढ़ने से कुछ महिलाओं की बच्चेदानी में पानी बढ़ जाता है. इस कारण सीजर डिलीवरी की नौबत आती है. डाक्टरों की मानें तो इसमें बच्चों की मृत्यु का खतरा भी बना रहता है.
माता-पिता के डायबिटिक होने से खतरा
गर्भधारण से पहले माता ही नहीं बल्कि पिता को भी शुगर लेवल की जांच करानी चाहिए. यदि माता-पिता दोनों ही डायबिटिक हैं तो उनके बच्चों में डायबिटीज होने का 25 प्रतिशत खतरा अधिक होता है. सिर्फ मां के डायबिटिक होने पर तीन प्रतिशत और पिता के डायबिटिक होने पर नौ प्रतिशत तक बच्चों को जन्म के बाद यह बीमारी हो सकती है.
बढ़ रही गर्भकालीन मधुमेह की समस्या
गर्भकालीन मधुमेह के मामले में देश का औसत करीब 17 प्रतिशत है लेकिन एमपी की बात करें, तो यहां तेजी से गर्भकालीन मधुमेह के मामले बढ़ रहे हैं. ताजा आंकड़ो के अनुसार एमपी के शहरों में 22 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 10 प्रतिशत महिलाओं को गर्भकालीन मधुमेह की समस्या पाई गई है.
12 जिलों में चलाया जा रहा अभियान
गर्भधारण के दौरान एमपी में तेजी से बढ़ते शुगर के मामले से सरकार चिंतित है. इसके लिए एनएचम द्वारा प्रदेश के 12 जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के तहत जेस्टेशनल डायबिटीज मेलाइट्स (जीडीएम) अभियान चलाया जा रहा है. हालांकि गंभीर आकड़ों के बाद एनएचएम ने पूरे प्रदेश के जिलों में जीडीएम अभियान शुरू करने के लिए निर्देश दिए हैं.
जीडीएम के लिए बनाई टीम
जीडीएम अभियान के तहत सीएचओ, वीडीएचडी स्तर पर ओजीटीटी जांच और प्रबंधन करेंगे. संस्था स्तर पर एएनसी क्लिनिक में सभी गर्भवती महिलाओं की ओरल ग्लूकोज टालरेंस टेस्ट (ओजीटीटी) जांच की जाएगी. अगर जांच पॉजिटिव आती है तो महिला का एक माह तक फॉलोअप किया जाएगा. यदि शुगर की रीडिंग 120 एमजी या उससे अधिक होती है तो सीएचओ द्वारा उच्च स्वास्थ्य केंद्र पर रेफर किया जाएगा. इसके लिए जीडीएम टेस्टिंग, जीडीएम प्रबंधन और चिकित्सीय प्रबंधन की अलग-अलग टीमें बनाई जाएंगी. इस टीम में नर्सिंग ऑफिसर, सीएचओ, एएनएम, मेडिकल ऑफिसर या विशेषज्ञ शामिल होंगे.
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शहरों मे तेजी से बढ़ रहे मामले
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल में स्त्री रोग व प्रसूति विभाग के अध्यक्ष प्रो. डा. अजय हलदार ने बताया कि मप्र में गर्भकालीन मधुमेह की समस्या लगातार बढ़ रही है. गांव की दुबली पतली महिलाओं की तुलना में शहरी महिलाओं को गर्भकालीन मधुमेह की समस्या ज्यादा है. इसमें 50 प्रतिशत महिलाओं को आगे चलकर मधुमेह की समस्या होती है. गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को आवश्यक रूप से एनेमिया, एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और डायबिटीज की जांच करवानी चाहिए.