चाकसू (जयपुर). प्रत्येक धर्म और संस्कृति को संजोए धार्मिक नगरी चम्पावती के लिए सोमवार का दिन विशेष रहा. यहां शीतलाष्टमी के पावन पर्व पर घर-घर में बनाए शीतल व्यंजनों से माता शीतला की पूजा व आराधना की गई. साथ ही चाकसू स्थित शील की डूंगरी में परंपरागत मेला भरा. शील डूंगरी (पहाड़ी) स्थित मंदिर में मां शीतला विराजमान हैं. राजधानी जयपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर व चाकसू से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर मता का मंदिर है. शीतलाष्टमी पर बास्योड़ा के मौके पर आयोजित इस दो दिवसीय मेले में शहरी और ग्रामीण परिवेश की फिजां में मानों हरेक समाज घुल-मिल गया हो. हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी शील की डूंगरी का मेला पूरे परवान रहा.
भक्तों के सिर चढ़कर बोली आस्था : इस पावन दिन न तो कोई अमीर, न ही कोई गरीब होता है, बल्कि सभी मां शीतला के दर्शन के अभिलाषी होते हैं. हाथों में श्रद्धा के फूल और प्रसाद लिए लाखों भक्तों ने करीब तीन सौ मीटर दूरी तक सीढ़ियां चढ़कर माता के दरबार में हाजिरी दी. पूरा वातावरण शीतला माता के जयकारों से गुंजयमान था. वैसे तो हर दिन यहां दर्शनार्थियों का आना लगा रहा है. गौरतलब है कि कोरोना के बाद कुछ महिनों पहले गौवंश में फैले लंपी बीमारी से हर कोई परेशान था, लेकिन ग्रामीणों की इस मंदिर के प्रति अटूट आस्था और विश्वास ने चाकसू सहित आसपास इस गंभीर रोग को फैलने नहीं दिया. उसके बाद से ही यहां मन्नतें लेकर भक्त पैदल माता रानी के दरबार तक आ रहे हैं. वहीं, अन्य दिनों में वीरान सी नजर आने वाली शील की डूंगरी का आसपास का करीब पांच किलोमीटर का दायरा हर वर्ग के लोगों की खुशियां बटोर रहा है. पूरे साल मंदिर में बड़ी चहल पहल रहने लगी.
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भक्तों ने माता से मन्नतें मांगी : मंदिर में माता के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था के साथ मेले की रौनक अष्टमी के इस पर्व पर चार चांद लगा रही थी. दो दिवसीय इस मेले में रविवार देर रात से ही माता के दर्शनों की लंबी कतारें लगना शुरू हो गई थीं. मंदिर ट्रस्ट की माने तो यहां आरोग्य और सुख की कामना से दूर-दूर से आए लाखों भक्तों ने माता के समक्ष मन्नतें मांगी. गेहूं, जौ व बाजरे का दान किया. वहीं माता को नारियल, चुनरी भेंट की और मालपुए विभिन्न पकवानो का भोग लगाया.
घूंघट में झांकती संस्कृति : मेला परिक्षेत्र में शहरी परिवेश के अलावा यहां संस्कृति का हर रंग नजरा देखने को मिला. घूंघट से झांकती व ट्रैक्टर, ऊंट गाड़ी व जीप कारे अन्य गाड़ी में बैठी महिलाएं इस परंपरागत मेले का आनंद उठाती नजर आ रही थीं. यह मेला प्रेदशभर का सबसे बड़ा मेला माना जाता है. जहां लाखों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचे हैं.
बच्चों को मिलता है चेचक से छुटकारा : मान्यता है कि बच्चों में होने वाले रोग चेचक, फोड़ा, फुंसी आदि से छुटकारा मिलता है. इस मेले की खास बात यह रहती है कि इस दिन घरों में खाना नहीं बनाया जाता और अगले दिन बनाए गए ठंडे पकवानों का ही माता को भोग लगाया जाता है. घर के सभी सदस्य बासे ठंडे भोजन को ही ग्रहण करते हैं. जिससे माता की कृपा सदैव बनी रहती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस लक्खी मेले के पीछे श्रद्धालुओं का मानना है कि जो भी बच्चा जन्म लेता है उसकों मातारानी के पास लाने से चेचक का रोग नहीं होता है. अगर किसी के चेचक हो जाता है तो मातारानी की शरण में यह रोग हमेशा के लिए मिट जाता है. इस कारण राजस्थान के दूर दराज क्षेत्रों से भी परिजन अपने नन्हें-मुन्ने बच्चों के साथ मेले में अपने परिवार की खुशहाली की दुआ मांगने आते हैं.
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सुरक्षा के रहें विशेष इंतजाम : चाकसू एसीपी सुरेंद्र सिंह व थानाप्रभारी कैलाश दान ने बताया कि सुरक्षा की दृष्टी से मेला परिक्षेत्र में 80 क्लोजेस्ट सीक्रेट कैमरे लगाए गए जिससे हर गतिविधि पर पूरी नजर थी और चप्पे-चप्पे पर 350 से ज्यादा पुलिस जवान तैनात रहे. मेले में छुटपुट घटनाओं को छोड़कर शांतिप्रिय माहौल रहा. इधर, नगरपालिका अधिशाषी अधिकारी शंभूलाल मीणा ने बताया मेले में छोटी बड़ी दुकाने, प्रसाद और बच्चों के खिलौना से सजे बाजार व नगर प्रशासन की व्यवस्थाएं लोगों को भा रही थी.
हालांकि मनोरंजन के संसाधन झूले-चकरी, मौत का कुआ इस बार मेले में नजर नहीं आए. इके-दुक्के मनोरंजन के संसाधन से ही बच्चों ने मेले का आनंद उठाया. मेले में विधायक रामावतार बैरवा, पूर्व कृषि मंडी अध्यक्ष कैलाश शर्मा, पालिका चेयरमैन कमलेश बैरवा, कांग्रेस नेता गंगाराम मीणा, भरतलाल मीणा सहित कईयों ने माता के दर्शन कर मेला व्यवस्थाओं में सहयोग किया. सामाजिक कार्यकर्ता मोहित अग्रवाल व पार्षद दिनेश शर्मा ने बताया कि मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सेवा के लिए चाकसू सहित आसपास मे विभिन्न समाजसेवी लोगों द्वारा छाया पानी, नीबू पानी, छाछ राबड़ी की व्यवस्था की गई, ताकि मेले मे आने वाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो. मेला सोमवार देर शाम तक भरा.
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मंदिर का इतिहास: बुजुर्गों के कथानुसार और यहां बनी बारहदरी में लगे शिलालेख व पोथीखाने में उपलब्ध इतिहास के अनुसार संवत सन् 1912 में जयपुर के महाराजा माधोसिंह के पुत्र गंगासिंह और गोपाल सिंह को चेचक निकली थी. उस समय शीतला माता की मनुहार करने से उनका यह रोग ठीक हो गया था. उसके बाद शील की डूंगरी पर मंदिर व बारहदरी का निर्माण करवाकर पूजा-अर्चना की गई. बारहदरी पर लगे शिलालेख में संवत 1973 एवं लागत 11 हजार एक सौ दो रुपए और निर्माण जयपुर महाराजा की ओर से कराया जाना अंकित है. उसी समय से यहां मेला लगता रहा है. मेले में जयपुर जिले के अलावा दौसा, टोंक, गंगापुर, सवाई माधोपुर सहित अन्य जगहों से लोग भारी तादाद में यहां मेला स्थल पहुंचते हैं. मेले के दूसरे दिन चाकसू व चंदलाई कस्बों में गुदरी का मेला भरता है.