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फसलों पर कहर बन टूटा तापमान, बड़वानी में सैकड़ों एकड़ फसल बर्बाद, किसान उठा रहे कड़ा कदम - BARWANI TEMPERATURE INCREASED

बड़वानी में तापमान बढ़ने से चना और गेहूं की फसल प्रभावित. फसलों में फैल रहा उकठा रोग. जानें कैसे कर सकते हैं फसल का बचाव.

INCREASE TEMPERATURE LOSS GRAM CROP
तापमान बढ़ने से चने में वायरस और अफलन का खतरा (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 12, 2025, 7:27 PM IST

बड़वानी: मौसम तेजी से करवट ले रहा है. सुबह-शाम छोड़ दिया जाए तो जिले में ठंड खत्म हो गई है. शुरुआती फरवरी में ही दिन में पारा 30 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच जा रहा है, जिससे लोगों को आने वाले महीनों में भीषण गर्मी का डर सताने लगा है. बड़वानी मौसम विभाग के अनुसार 5 फरवरी से पारा 30 डिग्री के या उससे अधिक पारा पहुंचा जा रहा है. इसका असर रबी की प्रमुख फसल गेहूं और चना की पैदावार पर भी पड़ रहा है. फसलों में तेजी से रोग लगने लगा है, जिससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है.

चने में वायरस और अफलन का खतरा

फरवरी महीने में ही तेजी से बढ़ते तापमान से चने में वायरस और अफलन का खतरा बढ़ गया है. चने की पत्तियां पीली पड़ने लगी है. उसमें उकठा रोग लगने लगा है. बड़वानी कृषि विज्ञान केंद्र के रविंद्र सिंह सिकरवार ने बताया कि "बीते वर्षों के मुकाबले इस बार जनवरी-फरवरी में तापमान अधिक दर्ज किया गया है. तापमान तेजी से बढ़ रहा है. ऐसे में गेहूं और चने में उकठा वायरस का भी खतरा बढ़ जाता है. फसलों पर कीट का प्रकोप भी बढ़ जाता है.

बड़वानी में तापमान बढ़ने से फसलों में लग रहा उकठा रोग (ETV Bharat)

मृदा तथा बीज जनित बीमारी है उकठा

रविंद्र सिंह सिकरवार ने बताया "उकठा रोग मुख्यतः: फ्यूजेरियम ऑक्सिस्पोरम नामक फफूंद के कारण होता है. यह मृदा तथा बीज जनित बीमारी है. यह पौधे में फली लगने तक किसी भी अवस्था में हो सकती है. फसल चक्र का पालन नहीं करने से भी यह समस्या आती है. किसानों को फसल चक्र का पालन करना चाहिए. बोनी के समय ही ट्राइकोडर्मा जैविक का इस्तेमाल करना चाहिए, इससे कीटों का प्रकोप कम होता है."

किसान चने की फसल पर चला रहे ट्रैक्टर

अंजड़ के किसान देवेंद्र यादव का कहना है कि "फरवरी महीने में ही मौसम अत्यधिक शुष्क होने से चना और गेहूं की फसल प्रभावित हो रही है. 3 एकड़ में चने की खेती की थी. 15 हजार लागत आई थी, लेकिन मौसम अनुकूल नहीं होने से फसल खराब होने लगी. नुकसान होता देख पूरी फसल पर रोटावेटर चलवा दिया." इसी तरह सीताराम पाटीदार ने 4 एकड़ में चना बोया था, लेकिन गर्मी बढ़ने से अफलन की स्थिति बन गई थी. इसलिए उन्होंने भी फसल पर ट्रैक्टर चलवा दिया और उस खेत में खरबूजा बो दिया.

इस तरह कर सकते हैं फसल का बचाव

रविंद्र सिंह सिकरवार ने बताया कि अगली बार किसान बुआई के समय इन चीजों का ध्यान रखकर काफी हद तक अपनी फसल का बचाव कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि "किसान भाईयों को प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए. उन्हें फसल चक्र अपनाना चाहिए. साथ ही बुआई से पहले ट्राइकोडर्मा पाउडर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करें.

साथ ही 4 किलोग्राम ट्राइकोड्रर्मा को 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर बुवाई से पहले प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाएं. खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 0.2 प्रतिशत घोल का पौधों के जड़ क्षेत्र में छिड़काव पर्याप्त नमी होने पर करें."

बड़वानी: मौसम तेजी से करवट ले रहा है. सुबह-शाम छोड़ दिया जाए तो जिले में ठंड खत्म हो गई है. शुरुआती फरवरी में ही दिन में पारा 30 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच जा रहा है, जिससे लोगों को आने वाले महीनों में भीषण गर्मी का डर सताने लगा है. बड़वानी मौसम विभाग के अनुसार 5 फरवरी से पारा 30 डिग्री के या उससे अधिक पारा पहुंचा जा रहा है. इसका असर रबी की प्रमुख फसल गेहूं और चना की पैदावार पर भी पड़ रहा है. फसलों में तेजी से रोग लगने लगा है, जिससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है.

चने में वायरस और अफलन का खतरा

फरवरी महीने में ही तेजी से बढ़ते तापमान से चने में वायरस और अफलन का खतरा बढ़ गया है. चने की पत्तियां पीली पड़ने लगी है. उसमें उकठा रोग लगने लगा है. बड़वानी कृषि विज्ञान केंद्र के रविंद्र सिंह सिकरवार ने बताया कि "बीते वर्षों के मुकाबले इस बार जनवरी-फरवरी में तापमान अधिक दर्ज किया गया है. तापमान तेजी से बढ़ रहा है. ऐसे में गेहूं और चने में उकठा वायरस का भी खतरा बढ़ जाता है. फसलों पर कीट का प्रकोप भी बढ़ जाता है.

बड़वानी में तापमान बढ़ने से फसलों में लग रहा उकठा रोग (ETV Bharat)

मृदा तथा बीज जनित बीमारी है उकठा

रविंद्र सिंह सिकरवार ने बताया "उकठा रोग मुख्यतः: फ्यूजेरियम ऑक्सिस्पोरम नामक फफूंद के कारण होता है. यह मृदा तथा बीज जनित बीमारी है. यह पौधे में फली लगने तक किसी भी अवस्था में हो सकती है. फसल चक्र का पालन नहीं करने से भी यह समस्या आती है. किसानों को फसल चक्र का पालन करना चाहिए. बोनी के समय ही ट्राइकोडर्मा जैविक का इस्तेमाल करना चाहिए, इससे कीटों का प्रकोप कम होता है."

किसान चने की फसल पर चला रहे ट्रैक्टर

अंजड़ के किसान देवेंद्र यादव का कहना है कि "फरवरी महीने में ही मौसम अत्यधिक शुष्क होने से चना और गेहूं की फसल प्रभावित हो रही है. 3 एकड़ में चने की खेती की थी. 15 हजार लागत आई थी, लेकिन मौसम अनुकूल नहीं होने से फसल खराब होने लगी. नुकसान होता देख पूरी फसल पर रोटावेटर चलवा दिया." इसी तरह सीताराम पाटीदार ने 4 एकड़ में चना बोया था, लेकिन गर्मी बढ़ने से अफलन की स्थिति बन गई थी. इसलिए उन्होंने भी फसल पर ट्रैक्टर चलवा दिया और उस खेत में खरबूजा बो दिया.

इस तरह कर सकते हैं फसल का बचाव

रविंद्र सिंह सिकरवार ने बताया कि अगली बार किसान बुआई के समय इन चीजों का ध्यान रखकर काफी हद तक अपनी फसल का बचाव कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि "किसान भाईयों को प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए. उन्हें फसल चक्र अपनाना चाहिए. साथ ही बुआई से पहले ट्राइकोडर्मा पाउडर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करें.

साथ ही 4 किलोग्राम ट्राइकोड्रर्मा को 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर बुवाई से पहले प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाएं. खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 0.2 प्रतिशत घोल का पौधों के जड़ क्षेत्र में छिड़काव पर्याप्त नमी होने पर करें."

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