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बांग्लादेश की आजादी में जेपी ने निभाई थी 'चाणक्य' की भूमिका, आज के हालात पर बुद्धिजीवियों ने जतायी चिंता - BANGLADESH FOUNDATION DAY

हमारा पड़ोसी देश बांग्लादेश में राजनीतिक उथलपुथल मची है. आज बांग्लादेश का स्थापना दिवस है. इसके स्थापना से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें जानिये.

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इंदिरा गांधी और जेपी. (ETV Bharat.)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Dec 16, 2024, 8:03 PM IST

पटनाः 16 दिसंबर 1971 को अस्तित्व में आए बांग्लादेश ने आजादी के 52 साल पूरे कर लिए हैं. इस ऐतिहासिक दिन ने भारतीय उपमहाद्वीप का भूगोल बदला और एक नई पहचान दी. लेकिन आज, बांग्लादेश एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक चुनौतियों और लोकतांत्रिक मूल्यों पर बढ़ते संकट का सामना कर रहा है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि बांग्लादेश को स्वतंत्र देश के रूप में स्थापित करने में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 'चाणक्य' वाली भूमिका रही थी.

जेपी और इंदिरा में नहीं थे मतभेदः आमतौर पर यह माना जाता है कि इंदिरा गांधी और जयप्रकाश नारायण के बीच टकराव था. लेकिन यह भी सत्य है कि 1966 से लेकर 1974 तक दोनों के बीच अच्छे रिश्ते थे. जयप्रकाश नारायण आवश्यक मुद्दों पर इंदिरा गांधी का सहयोग करते थे. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जयप्रकाश नारायण राष्ट्रीय हितों का ख्याल रखते थे. बांग्लादेश संकट के समय इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण से सहयोग मांगा था और जेपी ने भारत सरकार की मदद की थी.

बांग्लादेश की आजादी में जेपी की भूमिका. (ETV Bharat.)

क्या कहते हैं जेपी को जाननेवालेः समाजवादी चिंतक और लेखक राघव शरण शर्मा बताते हैं कि पश्चिमी पाकिस्तान के लोग बांग्लादेश के लोगों पर अत्याचार करने लगे थे. पाकिस्तान सेना ने जुल्म ढाना शुरू कर दिया. बांग्लादेशियों पर उर्दू भाषा थोपी जाने लगी, तब जाकर वहां विद्रोह जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई. शेख मुजीबुर्रहमान ने विद्रोह का नेतृत्व किया. तब जेपी ने इंदिरा गांधी से कहा था कि बीपी कोइराला के पास जो 1100 राइफल है वह बांग्लादेश पहुंचा दीजिए. जब काम हो जाए तो फिर से वापस बीपी कोइराला को लौटा देंगे.

तब दोहरी भूमिका में थे जेपीः राघव शरण बताते हैं कि इस बीच नेपाल के राजा से इंदिरा गांधी के संबंध अच्छे हो गये. बकौल राघव शरण तब इंदिरा गांधी ने राइफल लौटने से मना कर दिया. जिसके चलते इंदिरा गांधी और जेपी के बीच विवाद हो गया. राघव शरण बताते हैं कि "इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण को पूरा धन दिया जिससे वो विदेश में जाकर भारत के पक्ष में माहौल तैयार किया." जयप्रकाश नारायण ने विश्व जनमत को भारत के अनुकूल करने में उसे दौर में कड़ी मेहनत की थी. भारत की ओर से जयप्रकाश नारायण को विशेष दूत बनाकर भेजा गया था.

Raghav Sharan Sharma
लेखक राघव शरण शर्मा. (ETV Bharat)

जेपी ने 16 देशों की यात्रा की थीः 1971 के गर्मी के महीने में जयप्रकाश नारायण ने 6 हफ्तों तक 16 देश की यात्रा की और भारत के पक्ष में माहौल बनाया. जयप्रकाश नारायण ने सोवियत संघ का दौरा किया और उन्हें समझाया कि भारत और सोवियत संघ की मैत्री कितनी महत्वपूर्ण है. जीपी के दौरे का नतीजा रहा कि सोवियत संघ मजबूती से भारत के साथ खड़ा हुआ. मॉस्को के बाद जेपी लंदन गए और वहां उन्होंने भारतीय नजरिए से पूर्वी पाकिस्तान के लोगों का पक्ष रखा. रोम में उन्होंने पोप से भी मुलाकात की.

जेपी ने विश्व को अपने पक्ष में कियाः 18 से 20 सितंबर 1971 के बीच जयप्रकाश नारायण ने दिल्ली में पूर्वी पाकिस्तान के मुद्दे पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया. सम्मेलन में 24 देश के प्रतिनिधि आमंत्रित किए गए. बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि दुनिया को बांग्लादेश को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देनी चाहिए. 7.50 करोड़ लोगों का दुख दूर होना चाहिए. भारत को शरणार्थी समस्या से मुक्ति मिलनी चाहिए. अब यह मामला पाकिस्तान का आंतरिक मामला नहीं रह गया.

Anish Ankur.
अनीश अंकुर, राजनीति के जानकार (ETV Bharat)

बांग्लादेश की हालत पर चिंताः समाजसेवी और राजनीति के जानकार अनीश अंकुर बांग्लादेश में उपजे हालात को लेकर चिंतित हैं. जिस तरीके से वहां जाति और धर्म के आधार पर लड़ाई हो रही है उसे लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है. 20% बांग्लादेश के फंडामेंटलिस्ट माहौल खराब कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि "जयप्रकाश नारायण के प्रयासों से जिस लोकतांत्रिक बांग्लादेश का निर्माण हुआ था आज वह रास्ते से भटक गया है." जरूरत इस बात की है कि बांग्लादेश में शांति स्थापित करने के लिए निष्पक्ष चुनाव कराए जाएं.

इसे भी पढ़ेंः 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध: बांग्लादेश की आजादी की गाथा, जानें कैसे 14 दिन में मानेकशॉ की प्लानिंग के आगे 93000 पाक फौजियों ने टेके घुटने - आरएन काव

इसे भी पढ़ेंः संपूर्ण क्रांति के नायक जेपी ने दिनकर की कविता को हथियार बनाया, 75 साल की उम्र में दी थी इंदिरा गांधी को चुनौती

पटनाः 16 दिसंबर 1971 को अस्तित्व में आए बांग्लादेश ने आजादी के 52 साल पूरे कर लिए हैं. इस ऐतिहासिक दिन ने भारतीय उपमहाद्वीप का भूगोल बदला और एक नई पहचान दी. लेकिन आज, बांग्लादेश एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक चुनौतियों और लोकतांत्रिक मूल्यों पर बढ़ते संकट का सामना कर रहा है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि बांग्लादेश को स्वतंत्र देश के रूप में स्थापित करने में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 'चाणक्य' वाली भूमिका रही थी.

जेपी और इंदिरा में नहीं थे मतभेदः आमतौर पर यह माना जाता है कि इंदिरा गांधी और जयप्रकाश नारायण के बीच टकराव था. लेकिन यह भी सत्य है कि 1966 से लेकर 1974 तक दोनों के बीच अच्छे रिश्ते थे. जयप्रकाश नारायण आवश्यक मुद्दों पर इंदिरा गांधी का सहयोग करते थे. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जयप्रकाश नारायण राष्ट्रीय हितों का ख्याल रखते थे. बांग्लादेश संकट के समय इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण से सहयोग मांगा था और जेपी ने भारत सरकार की मदद की थी.

बांग्लादेश की आजादी में जेपी की भूमिका. (ETV Bharat.)

क्या कहते हैं जेपी को जाननेवालेः समाजवादी चिंतक और लेखक राघव शरण शर्मा बताते हैं कि पश्चिमी पाकिस्तान के लोग बांग्लादेश के लोगों पर अत्याचार करने लगे थे. पाकिस्तान सेना ने जुल्म ढाना शुरू कर दिया. बांग्लादेशियों पर उर्दू भाषा थोपी जाने लगी, तब जाकर वहां विद्रोह जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई. शेख मुजीबुर्रहमान ने विद्रोह का नेतृत्व किया. तब जेपी ने इंदिरा गांधी से कहा था कि बीपी कोइराला के पास जो 1100 राइफल है वह बांग्लादेश पहुंचा दीजिए. जब काम हो जाए तो फिर से वापस बीपी कोइराला को लौटा देंगे.

तब दोहरी भूमिका में थे जेपीः राघव शरण बताते हैं कि इस बीच नेपाल के राजा से इंदिरा गांधी के संबंध अच्छे हो गये. बकौल राघव शरण तब इंदिरा गांधी ने राइफल लौटने से मना कर दिया. जिसके चलते इंदिरा गांधी और जेपी के बीच विवाद हो गया. राघव शरण बताते हैं कि "इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण को पूरा धन दिया जिससे वो विदेश में जाकर भारत के पक्ष में माहौल तैयार किया." जयप्रकाश नारायण ने विश्व जनमत को भारत के अनुकूल करने में उसे दौर में कड़ी मेहनत की थी. भारत की ओर से जयप्रकाश नारायण को विशेष दूत बनाकर भेजा गया था.

Raghav Sharan Sharma
लेखक राघव शरण शर्मा. (ETV Bharat)

जेपी ने 16 देशों की यात्रा की थीः 1971 के गर्मी के महीने में जयप्रकाश नारायण ने 6 हफ्तों तक 16 देश की यात्रा की और भारत के पक्ष में माहौल बनाया. जयप्रकाश नारायण ने सोवियत संघ का दौरा किया और उन्हें समझाया कि भारत और सोवियत संघ की मैत्री कितनी महत्वपूर्ण है. जीपी के दौरे का नतीजा रहा कि सोवियत संघ मजबूती से भारत के साथ खड़ा हुआ. मॉस्को के बाद जेपी लंदन गए और वहां उन्होंने भारतीय नजरिए से पूर्वी पाकिस्तान के लोगों का पक्ष रखा. रोम में उन्होंने पोप से भी मुलाकात की.

जेपी ने विश्व को अपने पक्ष में कियाः 18 से 20 सितंबर 1971 के बीच जयप्रकाश नारायण ने दिल्ली में पूर्वी पाकिस्तान के मुद्दे पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया. सम्मेलन में 24 देश के प्रतिनिधि आमंत्रित किए गए. बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि दुनिया को बांग्लादेश को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देनी चाहिए. 7.50 करोड़ लोगों का दुख दूर होना चाहिए. भारत को शरणार्थी समस्या से मुक्ति मिलनी चाहिए. अब यह मामला पाकिस्तान का आंतरिक मामला नहीं रह गया.

Anish Ankur.
अनीश अंकुर, राजनीति के जानकार (ETV Bharat)

बांग्लादेश की हालत पर चिंताः समाजसेवी और राजनीति के जानकार अनीश अंकुर बांग्लादेश में उपजे हालात को लेकर चिंतित हैं. जिस तरीके से वहां जाति और धर्म के आधार पर लड़ाई हो रही है उसे लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है. 20% बांग्लादेश के फंडामेंटलिस्ट माहौल खराब कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि "जयप्रकाश नारायण के प्रयासों से जिस लोकतांत्रिक बांग्लादेश का निर्माण हुआ था आज वह रास्ते से भटक गया है." जरूरत इस बात की है कि बांग्लादेश में शांति स्थापित करने के लिए निष्पक्ष चुनाव कराए जाएं.

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