जयपुर: छोटी काशी में शुक्रवार को महिलाओं ने बछ बारस मनाई. शहर की महिलाओं ने पारंपरिक परिधान धारण कर गाय बछड़े का पूजन किया और अपने संतान की लंबी उम्र की कामना की. साथ ही बछ बारस की कहानी भी सुनी. मान्यता है कि बछ बारस पर पूजा करने के साथ व्रत करने से दोगुना फल मिलता है और निःसंतान को संतान की प्राप्ति भी होती है.
हिंदू पंचांग के अनुसार जन्माष्टमी के चार दिन बाद भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को बछ बारस मनाई जाती है. जिसे गोवत्स द्वादशी भी कहते हैं. क्योंकि भगवान श्री कृष्ण को गाय और बछड़ों से प्रेम था और मान्यता भी है कि गाय में सैकड़ों देवी-देवता निवास करते हैं, ऐसे में उनका पूजन करने से घर में खुशहाली और संपन्नता आए, इसके लिए राजस्थान में ये पर्व मनाया जाता है. ये पर्व खास करके महिलाओं के बीच काफी लोकप्रिय है. शुक्रवार को जयपुर में ऐसा ही नजारा देखने को मिला. जहां महिलाएं गली मोहल्लों से टोली बनाकर गौशाला या उन घरों में पहुंची जहां गाय बछड़े पाले जाते हैं. यहां उन्होंने गाय और बछड़े की पूजा की उनके रोली का टीका लगाकर, मोटे अनाज (चना, मोठ, मूंग, बाजरे) का भोग लगाया.
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जयपुर के परकोटा क्षेत्र में रहने वाली पिंकी शर्मा ने बताया कि उनके घर की बड़ी बुजुर्ग भी इस पर्व को मानते आए हैं. उन्हीं से प्रेरणा लेकर आस-पड़ोस की महिलाओं के साथ मिलकर गाय बछड़े की पूजा की. मान्यता है कि इस पूजा को महिलाएं संतान प्राप्ति और संतान की दीर्घायु के लिए करती है. हाथ में मोटा अनाज लेकर कहानी सुनती है. वहीं इस दिन महिलाएं घरों में ना तो चाकू, कैची आदि का इस्तेमाल करती हैं और ना ही खाने में तड़का या झोंकन लगाती हैं. दिव्या जाकड़ ने बताया कि वो पहले गंगापुर सिटी में रहती थी, जहां बछ बारस पूजने का इतना चलन नहीं था, लेकिन जयपुर में इसकी खासी मान्यता है और इस परंपरा का निर्वहन करते हुए उन्होंने भी आज बच्चों की दीर्घायु के लिए गाय बछड़े की पूजा की है.