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देश की राजनीति से आरा का गहरा संबंध, बाबू जगजीवन राम का पैतृक गांव, 1 रुपये चंदा लेकर लड़ते थे चुनाव - Babu Jagjivan Ram death anniversary

देश के पहले उप प्रधानमंत्री रहे बाबू जगजीवन राम की आज पुण्यतिथि है. 5 अप्रैल 1908 को आरा के चंदवा गांव में जन्मे जगजीवन राम को बाबूजी के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने बिहार के लिए कई ऐसे काम किए जिसे आज भी याद किया जाता है. बाबू जी ने ही शाहबाद को धान का कटोरा बनाया. वहीं रोहतास और कैमूर में सिंचाई की समस्या का हल भी निकाला.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jul 6, 2024, 6:51 PM IST

बाबू जगजीवन राम की पुण्यतिथि
बाबू जगजीवन राम की पुण्यतिथि (Etv Bharat)
बाबू जगजीवन राम की पुण्यतिथि (ETV Bharat)

पटना: आज बाबू जगजीवन राम की पुण्यतिथि के मौके पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है. बाबू जगजीवन राम को शाहाबाद टू का सांसद बनने का गौरव प्राप्त हुआ. जगजीवन राम आजीवन सांसद रहे और पहले उप प्रधानमंत्री बनने का गौरव हासिल किया. 1966 के भीषण अकाल में स्थिति भयावह हो गई. लोगों को अपने बच्चों और मवेशियों को रिश्तेदारों के यहां भेजना पड़ा. ऐसे हालात पर जगजीवन बाबू द्रवित हो गए. बाबूजी के वजह से शाहाबाद आज धान का कटोरा कहा जाता है.

शाहाबाद टू के पहले सांसद बने जगजीवन राम: देश में ऐसे नेता कम हुए जिन्होंने अपने संसदीय जीवन में चुनाव नहीं हारा. स्वतंत्रता आंदोलन के नायक और शाहाबाद क्षेत्र के प्रखर नेता बाबू जगजीवन राम एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जिन्होंने कभी हार का स्वाद नहीं चखा. सासाराम लोकसभा सीट से बाबू जगजीवन राम आठ बार सांसद रहे और सासाराम लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया. 1952 में जब पहला चुनाव हुआ तो शाहाबाद क्षेत्र में दो लोकसभा सीट थे शाहाबाद वन का प्रतिनिधित्व रामशोभक सिंह ने किया तो शाहाबाद टू का प्रतिनिधित्व जगजीवन राम ने किया.

ईटीवी भारत GFX
ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

प्रधानमंत्री बनने से चूके: जगजीवन राम का राजनीतिक जीवन 50 साल से ज्यादा का रहा. प्रधानमंत्री पद को छोड़कर वह कैबिनेट के सभी अहम पदों पर रहे. बाबू जगजीवन राम को उप प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ. 1977 और 1979 में वह प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचते पहुंचते रह गए.

जगजीवन राम संविधान सभा के सदस्य भी रहे: 5 अप्रैल 1908 को आरा के चंदवा गांव में जन्मे जगजीवन राम को बाबूजी के नाम से भी जाना जाता है. जगजीवन राम ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़कर भूमिका निभाई थी. वह संविधान सभा के सदस्य भी थे जिन्होंने संविधान का मसौदा तैयार किया था. 1946 के अंतरिम राष्ट्रीय सरकार में भी उन्हें कार्य करने का गौरव प्राप्त हुआ. जवाहरलाल नेहरू के कैबिनेट में जगजीवन बाबू सबसे कम उम्र के मंत्री थे.

हरित क्रांति का सफलतापूर्वक नेतृत्व: बाबू जगजीवन राम को प्रथम भारतीय मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री बनाया गया श्रम मंत्री रहते हुए उन्होंने भारत में कई श्रम कल्याण नीतियों की नींव रखी इंदिरा गांधी की सरकार में उन्होंने श्रम रोजगार और पुनर्वास मंत्री के अलावा केंद्रीय खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में काम किया. हरित क्रांति का सफलतापूर्वक नेतृत्व करने के लिए भी जगजीवन राम को याद किया जाता है.

शाहबाद को बनाया धान का कटोरा: सासाराम संसदीय क्षेत्र की जनता आज भी बाबू जगजीवन राम को याद करती है. सासाराम जिले के पत्रकार विनोद तिवारी बताते हैं कि 1967 68 में हमारे इलाके में भीषण अकाल पड़ा और स्थिति इतनी भयावह हो गई कि लोगों को अपने मवेशी और बच्चों को अपने रिश्तेदारों के यहां भेजना पड़ा. भोजन के लिए लोगों के घर में कुछ भी नहीं था. तब बाबू जगजीवन राम द्रवित हो गए और शाहाबाद लोकसभा क्षेत्र में नहरो का जाल बिछा दिया. अगर शाहबाद को धान का कटोरा कहा जाता है तो इसकी पटकथा बाबू जगजीवन राम ने लिखी थी.

ईटीवी भारत GFX
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इंद्रपुरी डैम का करवाया निर्माण : आपको बता दें कि रोहतास और कैमूर में सिंचाई की समस्या थी. बाबू जगजीवन राम जब कृषि मंत्री थे तब उन्होंने अपने प्रयासों से इंद्रपुरी डैम का निर्माण करवाया. इस डैम के कारण सोन नदी से कई नहर निकल गई और इंद्रपुरी डैम से सासाराम, डेहरी ,रोहतास और औरंगाबाद के कई इलाकों में नहरों का जाल बिछा दिया गया. इसी तरह से दुर्गावती जलाशय परियोजना से कैमूर की खेती किसानी में सिंचाई की समस्या खत्म हुई.

चुनाव लड़ने के लिए 1 रुपये का लेते थे चंदा: बाबू जगजीवन राम बड़े ही सादगी से जीवन जीते थे और कम खर्चे में चुनाव लड़ते थे. चुनाव के दौरान वह लोगों से सिर्फ ₹1 चंदा मांगते थे. कोई अगर ज्यादा भी देना चाहता था तो लोगों से अनुरोध करते थे कि सिर्फ ₹1 ही चंदा दीजिए. जहां वह जाते थे चंदे के लिए एक घड़ा रख दिया जाता था. लोग उसी में एक रुपए का सिक्का डालते थे.

आपातकाल को लेकर इंदिरा गांधी से थे नाराज: देश के अंदर 1975 से लेकर 1977 तक आपातकाल रहा और आपातकाल के दौरान जगजीवन राम ने इंदिरा गांधी का समर्थन किया, लेकिन 1977 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का फैसला कर लिया. जगजीवन राम शोध संस्थान के निदेशक डॉक्टर नरेंद्र पाठक से जब ईटीवी भारत संवाददाता ने बात की और सवाल पूछा कि जगजीवन राम ने आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी का समर्थन किया लेकिन आपातकाल खत्म होते ही अलग क्यों हो गए तो नरेंद्र पाठक का कहना था कि इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है.

"ना ही बाबूजी ने कभी कुछ इसको लेकर कहा था लेकिन समकालीन लोग यह बताते हैं कि बाबू जगजीवन राम आपातकाल लगाने को लेकर सहमत नहीं थे. उनका कहना था कि इंदिरा गांधी बहुत कमजोर हो गई हैं. इस वजह से उनको मेरा समर्थन मिलना जरूरी है. आपातकाल के बाद जगजीवन राम की अपेक्षा थी कि इंदिरा गांधी उन्हें नेता के तौर पर आगे करें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ."- नरेंद्र पाठक, निदेशक, जगजीवन राम शोध संस्थान

1977 में कांग्रेस पार्टी डेमोक्रेसी का गठन: ऐसा भी कहा जाता है कि इंदिरा गांधी तो मौन रहीं पर संजय गांधी ने जगजीवन राम को अपमानित करने का काम किया. इस दौरान जगजीवन राम ने कांग्रेस छोड़ने का मन बना लिया और उन्होंने 1977 में कांग्रेस पार्टी डेमोक्रेसी का गठन किया और जनता पार्टी गठबंधन में शामिल हो गए. 1977 से 1979 के रूप बीच उन्होंने उप प्रधानमंत्री के रूप में काम किया.

'बाबूजी लोगों के दिलों में बसते थे': सासाराम क्षेत्र के निवासी और प्रोफेसर गुरचरण सिंह कहते हैं कि बाबू जगजीवन राम लोगों के दिल में बसते थे. वह नामांकन करने के बाद क्षेत्र भ्रमण नहीं करते थे और वह आसानी से चुनाव जीत जाते थे.

"आम जनता चुनाव लड़ती थी. जब जगजीवन राम रक्षा मंत्री थे तब भारत पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध लड़ा गया था और 96000 पाकिस्तानी सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा था."- गुरचरण सिंह, प्रोफेसर

यह भी पढ़ें- CM नीतीश कुमार ने पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम की जयंती पर दी श्रद्धांजलि

बाबू जगजीवन राम की पुण्यतिथि (ETV Bharat)

पटना: आज बाबू जगजीवन राम की पुण्यतिथि के मौके पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है. बाबू जगजीवन राम को शाहाबाद टू का सांसद बनने का गौरव प्राप्त हुआ. जगजीवन राम आजीवन सांसद रहे और पहले उप प्रधानमंत्री बनने का गौरव हासिल किया. 1966 के भीषण अकाल में स्थिति भयावह हो गई. लोगों को अपने बच्चों और मवेशियों को रिश्तेदारों के यहां भेजना पड़ा. ऐसे हालात पर जगजीवन बाबू द्रवित हो गए. बाबूजी के वजह से शाहाबाद आज धान का कटोरा कहा जाता है.

शाहाबाद टू के पहले सांसद बने जगजीवन राम: देश में ऐसे नेता कम हुए जिन्होंने अपने संसदीय जीवन में चुनाव नहीं हारा. स्वतंत्रता आंदोलन के नायक और शाहाबाद क्षेत्र के प्रखर नेता बाबू जगजीवन राम एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जिन्होंने कभी हार का स्वाद नहीं चखा. सासाराम लोकसभा सीट से बाबू जगजीवन राम आठ बार सांसद रहे और सासाराम लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया. 1952 में जब पहला चुनाव हुआ तो शाहाबाद क्षेत्र में दो लोकसभा सीट थे शाहाबाद वन का प्रतिनिधित्व रामशोभक सिंह ने किया तो शाहाबाद टू का प्रतिनिधित्व जगजीवन राम ने किया.

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प्रधानमंत्री बनने से चूके: जगजीवन राम का राजनीतिक जीवन 50 साल से ज्यादा का रहा. प्रधानमंत्री पद को छोड़कर वह कैबिनेट के सभी अहम पदों पर रहे. बाबू जगजीवन राम को उप प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ. 1977 और 1979 में वह प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचते पहुंचते रह गए.

जगजीवन राम संविधान सभा के सदस्य भी रहे: 5 अप्रैल 1908 को आरा के चंदवा गांव में जन्मे जगजीवन राम को बाबूजी के नाम से भी जाना जाता है. जगजीवन राम ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़कर भूमिका निभाई थी. वह संविधान सभा के सदस्य भी थे जिन्होंने संविधान का मसौदा तैयार किया था. 1946 के अंतरिम राष्ट्रीय सरकार में भी उन्हें कार्य करने का गौरव प्राप्त हुआ. जवाहरलाल नेहरू के कैबिनेट में जगजीवन बाबू सबसे कम उम्र के मंत्री थे.

हरित क्रांति का सफलतापूर्वक नेतृत्व: बाबू जगजीवन राम को प्रथम भारतीय मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री बनाया गया श्रम मंत्री रहते हुए उन्होंने भारत में कई श्रम कल्याण नीतियों की नींव रखी इंदिरा गांधी की सरकार में उन्होंने श्रम रोजगार और पुनर्वास मंत्री के अलावा केंद्रीय खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में काम किया. हरित क्रांति का सफलतापूर्वक नेतृत्व करने के लिए भी जगजीवन राम को याद किया जाता है.

शाहबाद को बनाया धान का कटोरा: सासाराम संसदीय क्षेत्र की जनता आज भी बाबू जगजीवन राम को याद करती है. सासाराम जिले के पत्रकार विनोद तिवारी बताते हैं कि 1967 68 में हमारे इलाके में भीषण अकाल पड़ा और स्थिति इतनी भयावह हो गई कि लोगों को अपने मवेशी और बच्चों को अपने रिश्तेदारों के यहां भेजना पड़ा. भोजन के लिए लोगों के घर में कुछ भी नहीं था. तब बाबू जगजीवन राम द्रवित हो गए और शाहाबाद लोकसभा क्षेत्र में नहरो का जाल बिछा दिया. अगर शाहबाद को धान का कटोरा कहा जाता है तो इसकी पटकथा बाबू जगजीवन राम ने लिखी थी.

ईटीवी भारत GFX
ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

इंद्रपुरी डैम का करवाया निर्माण : आपको बता दें कि रोहतास और कैमूर में सिंचाई की समस्या थी. बाबू जगजीवन राम जब कृषि मंत्री थे तब उन्होंने अपने प्रयासों से इंद्रपुरी डैम का निर्माण करवाया. इस डैम के कारण सोन नदी से कई नहर निकल गई और इंद्रपुरी डैम से सासाराम, डेहरी ,रोहतास और औरंगाबाद के कई इलाकों में नहरों का जाल बिछा दिया गया. इसी तरह से दुर्गावती जलाशय परियोजना से कैमूर की खेती किसानी में सिंचाई की समस्या खत्म हुई.

चुनाव लड़ने के लिए 1 रुपये का लेते थे चंदा: बाबू जगजीवन राम बड़े ही सादगी से जीवन जीते थे और कम खर्चे में चुनाव लड़ते थे. चुनाव के दौरान वह लोगों से सिर्फ ₹1 चंदा मांगते थे. कोई अगर ज्यादा भी देना चाहता था तो लोगों से अनुरोध करते थे कि सिर्फ ₹1 ही चंदा दीजिए. जहां वह जाते थे चंदे के लिए एक घड़ा रख दिया जाता था. लोग उसी में एक रुपए का सिक्का डालते थे.

आपातकाल को लेकर इंदिरा गांधी से थे नाराज: देश के अंदर 1975 से लेकर 1977 तक आपातकाल रहा और आपातकाल के दौरान जगजीवन राम ने इंदिरा गांधी का समर्थन किया, लेकिन 1977 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का फैसला कर लिया. जगजीवन राम शोध संस्थान के निदेशक डॉक्टर नरेंद्र पाठक से जब ईटीवी भारत संवाददाता ने बात की और सवाल पूछा कि जगजीवन राम ने आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी का समर्थन किया लेकिन आपातकाल खत्म होते ही अलग क्यों हो गए तो नरेंद्र पाठक का कहना था कि इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है.

"ना ही बाबूजी ने कभी कुछ इसको लेकर कहा था लेकिन समकालीन लोग यह बताते हैं कि बाबू जगजीवन राम आपातकाल लगाने को लेकर सहमत नहीं थे. उनका कहना था कि इंदिरा गांधी बहुत कमजोर हो गई हैं. इस वजह से उनको मेरा समर्थन मिलना जरूरी है. आपातकाल के बाद जगजीवन राम की अपेक्षा थी कि इंदिरा गांधी उन्हें नेता के तौर पर आगे करें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ."- नरेंद्र पाठक, निदेशक, जगजीवन राम शोध संस्थान

1977 में कांग्रेस पार्टी डेमोक्रेसी का गठन: ऐसा भी कहा जाता है कि इंदिरा गांधी तो मौन रहीं पर संजय गांधी ने जगजीवन राम को अपमानित करने का काम किया. इस दौरान जगजीवन राम ने कांग्रेस छोड़ने का मन बना लिया और उन्होंने 1977 में कांग्रेस पार्टी डेमोक्रेसी का गठन किया और जनता पार्टी गठबंधन में शामिल हो गए. 1977 से 1979 के रूप बीच उन्होंने उप प्रधानमंत्री के रूप में काम किया.

'बाबूजी लोगों के दिलों में बसते थे': सासाराम क्षेत्र के निवासी और प्रोफेसर गुरचरण सिंह कहते हैं कि बाबू जगजीवन राम लोगों के दिल में बसते थे. वह नामांकन करने के बाद क्षेत्र भ्रमण नहीं करते थे और वह आसानी से चुनाव जीत जाते थे.

"आम जनता चुनाव लड़ती थी. जब जगजीवन राम रक्षा मंत्री थे तब भारत पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध लड़ा गया था और 96000 पाकिस्तानी सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा था."- गुरचरण सिंह, प्रोफेसर

यह भी पढ़ें- CM नीतीश कुमार ने पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम की जयंती पर दी श्रद्धांजलि

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