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ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन से मिलेगी आसमानी 'आफत' की सटीक जानकारी, बादल फटने पर भी करेंगे अलर्ट - Automatic Weather Station

Automatic Weather Station,What is a rain gauge system? Cloudburst in Uttarakhand उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में अतिवृष्टि और बादल फटने की घटनाएं दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में इसकी सटीक जानकारी के लिए इन इलाकों में रेन गेज सिस्टम स्थापित कारगर हो सकता है. इसके लिए हर जिले में ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन स्थापित करने की आवश्यकता है. जिससे इस तरह की घटनाओं की जानकारी मिल सके.

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ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 7, 2024, 3:37 PM IST

Updated : Aug 7, 2024, 5:44 PM IST

ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन (Etv Bharat)

श्रीनगर: पर्वतीय इलाकों में बढ़ता तापमान बादल फटने की घटनाओं को भी बढ़ा रहा है. ये घटनाएं इतनी तेजी के साथ हो रही हैं कि यहां स्थापित डॉप्लर रडार से भी मौसम में त्वरित हो रहे बदलाव का अनुमान नहीं लग पा रहा है. ऐसे में रेन गेज सिस्टम व ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन से मॉनिटरिंग कारगर साबित हो सकती है. इससे तहसील स्तर और जिला स्तर पर स्थापित करके आसमानी आफत का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. इनकी स्थापना का खर्च भी लागत में नाम मात्र का ही होता है.

उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं: उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. उत्तराखंड में 2013 में केदारनाथ, 2016 में पिथौरागढ़ व चमोली, 2018 में रुद्रप्रयाग और टिहरी, 2022 में रायवाला देहरादून के आस-पास अतिवृष्टि से भारी नुकसान की घटनाएं सामने आई. इसके बाद 2024 में टिहरी व केदारनाथ में फ्लैश फ्लड से भारी नुकसान हुआ.

रेन गेज सिस्टम/ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन कारगर: गढ़वाल विवि के भौतिक विज्ञानी डॉ आलोक सागर गौतम ने कहा मध्य हिमालय से उच्च हिमालयी क्षेत्रों की ओर तेजी से बढ़ रहा तापमान, वायु में प्रदूषण अतिवृष्टि का कारण हो सकता है. उन्होंने कहा विश्व मौसम संगठन ने भी स्वीकारा है कि 2025 तक अतिवृष्टि की घटनाएं तेजी से बढ़ेंगी. डॉप्लर रडार से अत्यधिक बारिश का अनुमान तो लगाया जा सकता है, लेकिन पर्वतीय इलाकों में तेजी से मौसम बदलने में रडार से अनुमान लगाना मुश्किल होता है. ऐसे में उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों से लेकर दूरस्थ इलाकों में रेन गेज सिस्टम स्थापित किया जाना चाहिए. साथ ही प्रत्येक जिले में अगर ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन स्थापित किया जाये. इससे बादल फटने या अतिवृष्टि जैसी घटनाओं की जानकार मिल सकती है.

ऐसे फटते हैं बादल: हिमालयन वातावरणीय एवं अंतरिक्ष प्रयोगशाला के को ऑर्डिनेटर डॉ आलोक सागर गौतम बताते हैं जब नमी युक्त बादल आसमान में विचरण करते हैं उस दौरान नीचे की ओर से आने वाली गर्म हवाएं बारिश की बूंदों को गिरने से रोकती हैं, तो बादल का आकार बढ़ जाता है. इस बीच पहाड़ों की ऊंचाई अधिक होने से बादल पहाड़ों के बीच फंस जाते हैं. जिसके बाद वह एकाएक बरस जाते हैं. पहाड़ों पर ढलान वाले रास्ते होते हैं, ऐसे में पानी रुक नहीं पाता बल्कि तेजी से नीचे की ओर बहता है.

बादल फटने से होता है भारी नुकसान: डॉ गौतम कहते हैं पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने की घटना से नुकसान की संभावना भी इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि यहां अतिवृष्टि के कारण गाड़, गदेरे उफान पर आ जाते हैं. बोल्डर गिरने लगते हैं. ऐसे में नदियों के मुहाने, किनारों पर हुए निर्माण सबसे अधिक नुकसान का कारण बनते हैं. 100 एमएम प्रति घंटा अगर बारिश हो तो उसे बादल फटने की घटना में शामिल किया जाता है.

पढ़ें-अच्छी खबर! एआई से मिलेगी मौसम की सटीक जानकारी, डेटा से डायवर्ट होगी आसमानी 'आफत' - Weather forecast from AI

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श्रीनगर: पर्वतीय इलाकों में बढ़ता तापमान बादल फटने की घटनाओं को भी बढ़ा रहा है. ये घटनाएं इतनी तेजी के साथ हो रही हैं कि यहां स्थापित डॉप्लर रडार से भी मौसम में त्वरित हो रहे बदलाव का अनुमान नहीं लग पा रहा है. ऐसे में रेन गेज सिस्टम व ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन से मॉनिटरिंग कारगर साबित हो सकती है. इससे तहसील स्तर और जिला स्तर पर स्थापित करके आसमानी आफत का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. इनकी स्थापना का खर्च भी लागत में नाम मात्र का ही होता है.

उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं: उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. उत्तराखंड में 2013 में केदारनाथ, 2016 में पिथौरागढ़ व चमोली, 2018 में रुद्रप्रयाग और टिहरी, 2022 में रायवाला देहरादून के आस-पास अतिवृष्टि से भारी नुकसान की घटनाएं सामने आई. इसके बाद 2024 में टिहरी व केदारनाथ में फ्लैश फ्लड से भारी नुकसान हुआ.

रेन गेज सिस्टम/ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन कारगर: गढ़वाल विवि के भौतिक विज्ञानी डॉ आलोक सागर गौतम ने कहा मध्य हिमालय से उच्च हिमालयी क्षेत्रों की ओर तेजी से बढ़ रहा तापमान, वायु में प्रदूषण अतिवृष्टि का कारण हो सकता है. उन्होंने कहा विश्व मौसम संगठन ने भी स्वीकारा है कि 2025 तक अतिवृष्टि की घटनाएं तेजी से बढ़ेंगी. डॉप्लर रडार से अत्यधिक बारिश का अनुमान तो लगाया जा सकता है, लेकिन पर्वतीय इलाकों में तेजी से मौसम बदलने में रडार से अनुमान लगाना मुश्किल होता है. ऐसे में उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों से लेकर दूरस्थ इलाकों में रेन गेज सिस्टम स्थापित किया जाना चाहिए. साथ ही प्रत्येक जिले में अगर ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन स्थापित किया जाये. इससे बादल फटने या अतिवृष्टि जैसी घटनाओं की जानकार मिल सकती है.

ऐसे फटते हैं बादल: हिमालयन वातावरणीय एवं अंतरिक्ष प्रयोगशाला के को ऑर्डिनेटर डॉ आलोक सागर गौतम बताते हैं जब नमी युक्त बादल आसमान में विचरण करते हैं उस दौरान नीचे की ओर से आने वाली गर्म हवाएं बारिश की बूंदों को गिरने से रोकती हैं, तो बादल का आकार बढ़ जाता है. इस बीच पहाड़ों की ऊंचाई अधिक होने से बादल पहाड़ों के बीच फंस जाते हैं. जिसके बाद वह एकाएक बरस जाते हैं. पहाड़ों पर ढलान वाले रास्ते होते हैं, ऐसे में पानी रुक नहीं पाता बल्कि तेजी से नीचे की ओर बहता है.

बादल फटने से होता है भारी नुकसान: डॉ गौतम कहते हैं पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने की घटना से नुकसान की संभावना भी इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि यहां अतिवृष्टि के कारण गाड़, गदेरे उफान पर आ जाते हैं. बोल्डर गिरने लगते हैं. ऐसे में नदियों के मुहाने, किनारों पर हुए निर्माण सबसे अधिक नुकसान का कारण बनते हैं. 100 एमएम प्रति घंटा अगर बारिश हो तो उसे बादल फटने की घटना में शामिल किया जाता है.

पढ़ें-अच्छी खबर! एआई से मिलेगी मौसम की सटीक जानकारी, डेटा से डायवर्ट होगी आसमानी 'आफत' - Weather forecast from AI

Last Updated : Aug 7, 2024, 5:44 PM IST
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