पटना : बिहार के लिए राज्यसभा की 6 सीटें खाली हुई थी. इन 6 सीटों पर उम्मीदवारों का चयन किया जा चुका है. इस बार राज्यसभा के 6 सीटों के लिए 243 विधायकों के मुताबिक एक सीट के लिए 35 विधायकों का समर्थन चाहिए. ऐसे में जिन दलों के पास 35 विधायक हैं या उनसे अधिक हैं उनके लिए राज्यसभा के लिए सीट आरक्षित हो सकती है. लेकिन, जिनके विधायक 35 से कम है उनके लिए यह मुश्किल हो सकता है. ऐसे में जिन दलों के पास 35 विधायक से कम संख्या है उन्हें अपने सहयोगी दलों का सहारा लेना पड़ेगा.
चुनाव की स्थिति नहीं बनेगी : इस गणित के मुताबिक बिहार बीजेपी की तरफ से दो उम्मीदवार, राजद की तरफ से दो उम्मीदवार, जदयू की तरफ से एक उम्मीदवार तो आसानी से राज्यसभा के लिए चले जाएंगे. लेकिन, एक सीट के लिए सहयोगी दलों का सहारा लेना पड़ेगा और वह सीट है कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह का. हालांकि अखिलेश प्रसाद सिंह ने अपना नॉमिनेशन कर दिया है तो उम्मीद जताई जा रही है कि उन्होंने अपना सभी समीकरण जोड़कर ही राज्यसभा के लिए पर्चा भरा है. ऐसे बिहार में चुनाव होने की कोई गुंजाईश नहीं दिख रही है.
कांग्रेस को गणित बैठाना पड़ा : एक नजर डालते हैं बिहार के सीटों के समीकरण पर. बीजेपी के 78 विधायक हैं इनके दो उम्मीदवार आसानी से राज्यसभा के लिए जा सकते हैं. राष्ट्रीय जनता दल के 76 विधायक (3 विधायक बागी) हैं तो इनके भी दो उम्मीदवार आसानी से राज्यसभा के लिए जा सकते हैं. जदयू के 45 विधायक हैं तो इनका एक उम्मीदवार राज्यसभा के लिए आसानी से जा सकता है लेकिन, कांग्रेस के 19 विधायक हैं तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को अपने सहयोगी पार्टी राजद के बाकी बचे 6 विधायकों का सहयोग लेना होगा. वहीं सीपीआई, सीपीएम और माले के 16 विधायकों का समर्थन लेना होगा तब जाकर अखिलेश सिंह आसानी से राज्यसभा के सदस्य बन सकते हैं.
कांग्रेस का समीकरण सेट : कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने नॉमिनेशन किया तो उनके नेता और कार्यकर्ता खुशी से लबरेज थे. जाहिर सी बात है, तमाम समीकरणों को देखते हुए अखिलेश सिंह ने यह कदम उठाया है. कांग्रेस के प्रवक्ता असितनाथ तिवारी बताते हैं कि, ''भले उनकी संख्या 19 हो लेकिन, उनके सहयोगी दलों का पूरा समर्थन कांग्रेस के साथ है. आरजेडी, सीपीआई, सीपीएम, माले, सभी ने भरपूर सहयोग देने की बात कही है.'' जब उनसे पूछा गया कि दीपांकर भट्टाचार्य को भी राज्यसभा जाना था तो उन्होंने इस बात से इनकार किया कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि दीपांकर भट्टाचार्य राज्यसभा जाना चाहते हैं. फिलहाल अखिलेश सिंह सहयोगी दलों के समर्थन से राज्यसभा के लिए नॉमिनेट हो चुके हैं.
लेफ्ट का महागठबंधन को समर्थन : वहीं सीपीआई एमएल के प्रदेश सचिव कामरेड कुणाल ने बताया कि, ''इस बार के राज्यसभा चुनाव के लिए उनके दल का पूरा समर्थन महागठबंधन के दलों को है. महागठबंधन की तरफ से जो उम्मीदवार तय होंगे उनको सीपीआई एमएल का वोट जाएगा.'' जब उनसे पूछा गया कि आपके दल की तरफ से दीपांकर भट्टाचार्य का राज्यसभा के लिए आगे आ रहे थे तो उन्होंने बताया कि ऐसी चर्चा पार्टी के अंदर कभी नहीं हुई है लेकिन, इस बार महागठबंधन की तरफ से जो उम्मीदवार राज्यसभा के लिए चयनित हुए हैं उन्हीं को माले का समर्थन जाएगा.
दीपांकर भट्टाचार्य का छलका दर्द : हालांकि राज्यसभा सीट नहीं मिलने पर दीपांकर भट्टाचार्य का छलका दर्द है. उन्होंने कहा कि ''माले को राज्यसभा में मिलना चाहिए था, हमारे पास भी 16 विधायक हैं, हमने विधानसभा चुनाव में भी समझौता किया था, इसबार भी समझौता करना पड़ा है. मल्लिकार्जुन खड़गे का तेजस्वी यादव को फोन आया उसके बाद हमें समझौता करना पड़ा. गठबंधन धर्म को निभाने के लिए समझौता करना पड़ता है. लोकसभा में सम्मानजनक सीटें मिलने की उम्मीद है.''
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