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सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल हैं ख्वाजा गरीब नवाज, विवाद के बाद भी दरगाह से मोहब्बत का पैगाम - KHWAJA GARIB NAWAZ DARGAH

सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह, सदियों से हर धर्म समाज के लोग टेकते आ रहे हैं मत्था.

Khwaja Garib Nawaz Dargah
सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल हैं ख्वाजा गरीब नवाज (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 6, 2024, 3:54 PM IST

प्रियांक शर्मा, अजमेर : विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह को देश-दुनिया में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल के रूप में देखा जाता है. हर धर्म समाज के लोग दरगाह में सदियों से आते रहे हैं. यहां किसी की जाति या धर्म के बारे में नहीं पूछा जाता है. यही वजह है कि देश-दुनिया में ख्वाजा गरीब नवाज के करोड़ों चाहने वाले हैं, जो ख्वाजा में अकीदा रखते हैं. साथ ही उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं.

सूफियों का सबसे बड़ा मरकज : गरीब नवाज की मजार पर करीब 800 साल से लोग जियारत के लिए आते हैं. हर दिन यहां हजारों की संख्या में जायरीन आते हैं. वहीं, उर्स में लाखों की तादाद में जायरीन ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरबार में पहुंचते हैं. यह सूफियों का सबसे बड़ा मरकज है. यही वजह है कि देश-दुनिया में ख्वाजा के चाहने वालों की कोई कमी नहीं है. दिलों को नफरत से नहीं, बल्कि मोहब्बत से जोड़ना और इंसान को इंसान समझना यही गरीब नवाज की शिक्षा हैं, जो दरगाह में आज भी देखने को मिलती है. यहां दरगाह के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं. यहां किसी तरह का कोई भेदभाव या फिर रोक टोक नहीं है.

विवाद के बाद भी दरगाह से मोहब्बत का पैगाम (ETV BHARAT AJMER)

इसे भी पढ़ें - अजमेर दरगाह : तौकीर रजा का आरोप- खुदाई का मकसद सौहार्द बिगाड़ना, विष्णु गुप्ता ने नया साक्ष्य सार्वजनिक किया

संजर से आए ख्वाजा : दरगाह के खादिम सैयद फखर काजमी बताते हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज का करीब 900 साल पहले ईरान और इराक के बीच स्थित संजर शहर में जन्म हुआ था. हालांकि, वो वहां से चलकर अजमेर पहुंचे. यहां ख्वाजा ने कौमी एकता का पैगाम दिया. उन्होंने कहा कि इंसान जब सूफी संत बनता है, तब उसका कोई धर्म और मजहब नहीं होता है. वह इन सब से ऊपर उठ जाता है. उसका धर्म इंसानियत होता है और वह इंसानियत का ही पैगाम देता है. काजमी बताते हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज जब यहां आए तब कई तरह की प्रथाएं प्रचलित थीं.

बेसहारों को लगाया गले, दिया मोहब्बत का पैगाम : उन्होंने उन प्रथाओं को खत्म करने का प्रयास किया. कोढ़ और चेचक जैसी बीमारियां होने पर रोगी के अपने भी उससे दूरी बना लेते थे, लेकिन ख्वाजा ने ऐसे रोगियों को गले से लगाया. उन्हें अपनी आध्यात्मिक शक्ति से ठीक किया. सबके बीच मोहब्बत का पैगाम फैलाया और भेदभाव को मिटाने का काम किया. उन्होंने बताया कि ख्वाजा गरीब नवाज के साथ उनके 40 अनुयायी भी आए थे और उन्होंने ख्वाजा की शिक्षा को आगे बढ़ाया. काजमी ने बताया कि आज भी दरगाह से कौमी एकता का पैगाम देश-दुनिया में जाता है. दरगाह में आज भी किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं है.

Khwaja Garib Nawaz Dargah
सूफियों का सबसे बड़ा मरकज (ETV BHARAT AJMER)

इसे भी पढ़ें - Ajmer Dargah Dispute : राजेंद्र राठौड़ बोले- हर भारतीय को याचिका दायर करने का है संवैधानिक अधिकार

अलग-अलग समय में बादशाहों और हिंदू राजाओं बनवाई इमारतें : काजमी बताते हैं कि यहां सभी इमारतें अलग-अलग समय में बादशाहों और हिंदू राजाओं द्वारा बनवाई गई. हैदराबाद के प्राइम मिनिस्टर कृष्ण प्रसाद ने आस्ताने में चांदी के कमल चढ़ाए. उस पर आज भी मोमबत्तियां जलाई जाती हैं. जयपुर के महाराजा जयसिंह ने निजाम गेट पर संगमरमर की फर्श बनवाई थी. ग्वालियर के महाराजा सिंधिया परिवार ने गुंबद पर कलश चढ़वाया. रामपुर के नवाब ने सोने का ताज भेंट किया था. बादशाह अकबर और शाहजहां ने दरगाह परिसर में अकबरी और शाहजहानी मस्जिद बनवाई.

दरबार में पूरी होती है सबकी मुराद : उन्होंने बताया कि यहां आने वाले हर शख्स की मुराद पूरी होती रही है. ऐसे में यहां इमारतें और अन्य चीजें लोग नजर करते रहे. मुगल बादशाह अकबर को औलाद होने पर उन्होंने दरगाह में बड़ी देग चढ़ाई थी. वहीं, जहांगीर ने छोटी देग बनवाई. इनके अलावा और भी देग हैं, जिनमें आज भी वही पकता है, जो ख्वाजा गरीब नवाज अपने जीवनकाल में खाया करते थे. उन्होंने बताया कि ख्वाजा ने यहां अपने जीवनकाल में केवल जौ का दलिया ही खाया था. यही वजह है कि आज भी हर रोज इन देगों में जौ का दलिया ही पकाया जाता है और इसे जायरीन बड़ी श्रद्धा से प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.

देग में नहीं पकता गोश्त : उन्होंने बताया कि दरगाह में किसी भी देग में गोश्त नहीं पकता है. इसका कारण यह है कि ख्वाजा गरीब नवाज के चाहने वालों में हर जाति धर्म के लोग शामिल हैं. इनमें कई लोग शाकाहारी भी होते हैं. ऐसे में गोश्त या फिर लहसुन-प्याज का इस्तेमाल नहीं होता है.

Khwaja Garib Nawaz Dargah
देग में नहीं पकता गोश्त (ETV BHARAT AJMER)

इसे भी पढ़ें - मदन दिलावर का बड़ा बयान, बोले-भारत में अधिकांश मस्जिदें मंदिर तोड़कर बनाई गईं

विवाद के बाद भी जारी है जायरीनों का आना : उन्होंने कहा कि वर्तमान में अजमेर दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा किया जा रहा है. इसको लेकर काफी बयानबाजी भी हो रही है. सोशल मीडिया पर कई तरह की अफवाहें हैं, लेकिन हकीकत इससे परे है. दरगाह की सीढ़ियों से कटरपंथी बयान और भड़काऊ नारे भी अजमेर के लोग सुन चुके हैं और फिर से बयानों का दौर जारी है. ऐसे में ख्वाजा की शिक्षाएं दिलों में दूरियां बढ़ा रहे बयानों पर हावी है. लोगों का दरगाह में आना कम नहीं हुआ है.

अगले माह से शुरू होगा उर्स : हालांकि, अगले माह से ख्वाजा गरीब नवाज का 813 वां उर्स शुरू होने जा रहा है. ऐसे में व्यापारी भी मानते हैं कि उर्स मेले से पहले जायरीन की आवक हमेशा से कम होती रही है. मेले के दौरान जायरीनों की संख्या बढ़ जाएगी और व्यापार भी अच्छा होगा. दरगाह बाजार में रेडीमेड कपड़ों की दुकानदार चलाने वाले प्रदीप जैन ने बताया कि उनकी 80 साल से यहां दुकान है. हमेशा से यहां कौमी एकता का माहौल रहा है. दरगाह वाद प्रकरण के बाद भी यहां लोगों के बीच वही प्यार है, जो बरसों से रहा है.

इसे भी पढ़ें - पूर्व सीएम अशोक गहलोत बोले- पीएम मोदी चढ़ाते हैं अजमेर दरगाह में चादर, उनकी पार्टी के लोग केस कर फैला रहे भ्रम

दरगाह से भाईचारे का पैगाम : दरगाह में कई फिल्में सितारों और कलाकारों को जियारत करवाने वाले दुआगो सैयद कुतुबुद्दीन सखी बताते हैं कि ख्वाजा के दर पर 800 साल से लोग आ रहे हैं. शहर के कई दुकानदार ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह की सीढ़ियों पर चाबियां रखकर बरकत की दुआ करते हैं. यह पाक दर सभी धर्म जाति के लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है. दुनिया के कोने-कोने से लोग अजमेर आते हैं.

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विवाद के बाद भी जारी है जायरीनों का आना (ETV BHARAT AJMER)

तहजीब का शहर अजमेर : सखी ने कहा कि अजमेर तहजीब का शहर है. इसकी खूबसूरती यहां की गंगा-जमुनी तहजीब है. यहां लोगों के बीच दिलों के रिश्ते हैं, जो बहुत मजबूत हैं. खैर, आज भी यहां सब कुछ वैसा ही है, जैसा पहले से चला आ रहा है. यहां व्यापारियों को चिंता उन बयानबाजी और अफवाहों से है, जिसके कारण यहां आने वाले जायरीनों की संख्या कम होने की संभावना जताई जा रही है.

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कारोबारियों की चिंता : दिल्ली से 8 साल पहले यहां आकर एक खास तरह की रोटी का कारोबार करने शाकिर बताते हैं कि अजमेर में जायरीन का आना-जाना लगा रहता है. इस कारण कारोबार भी काफी अच्छे से चलता है, लेकिन जब जायरीन का आना जाना कम हो गया है तो व्यापार पर भी इसका असर पड़ना तय है. उन्होंने कहा कि अजमेर ऐसा शहर है, जहां सांप्रदायिक सौहार्द का पैगाम दुनिया में जाता है. यहां लोगों के दिलों में एक-दूसरे के लिए प्यार और सम्मान है.

दरगाह में नहीं कोई भेदभाव : वहीं, उत्तराखंड के नैनीताल से पुष्कर दर्शन के लिए आए आरआर अग्रवाल और संगीता अग्रवाल ने अजमेर दरगाह के बारे में काफी सुना था. लिहाजा दोनों पहली बार दरगाह पहुंचे. हालांकि, लोगों ने उन्हें हिदायत दी थी कि दरगाह में भीड़भाड़ रहती है. लिहाजा पर्स और मोबाइल संभाल कर रखें. दोनों बताते हैं कि दरगाह में उन्हें दो युवक मिले और वो उन्हें जियारत के लिए आस्ताने ले गए. दरगाह में वो पहली बार आए थे, लिहाजा यहां के तौर तरीकों और परंपराओं के बारे में नहीं जानते थे.

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हर धार्मिक स्थल की है अपनी परंपराएं : उन्होंने बताया कि दोनों युवकों ने दरगाह की हर इमारत और यहां के महत्व के बारे में उन्हें बताया. साथ ही जियारत करवाई. उन्होंने दरगाह में चादर और फूल पेश करने के लिए कहा, जो उन्होंने किया. दर्शन के बाद उनके मन को सुकून मिली. ऐसा इसलिए भी हुआ, क्योंकि यहां किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं है. उन्होंने बताया कि सभी धार्मिक स्थलों की अपनी-अपनी परंपराएं हैं, जो वहां आने वाले श्रद्धालुओं को भी माननी पड़ती है.

प्रियांक शर्मा, अजमेर : विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह को देश-दुनिया में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल के रूप में देखा जाता है. हर धर्म समाज के लोग दरगाह में सदियों से आते रहे हैं. यहां किसी की जाति या धर्म के बारे में नहीं पूछा जाता है. यही वजह है कि देश-दुनिया में ख्वाजा गरीब नवाज के करोड़ों चाहने वाले हैं, जो ख्वाजा में अकीदा रखते हैं. साथ ही उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं.

सूफियों का सबसे बड़ा मरकज : गरीब नवाज की मजार पर करीब 800 साल से लोग जियारत के लिए आते हैं. हर दिन यहां हजारों की संख्या में जायरीन आते हैं. वहीं, उर्स में लाखों की तादाद में जायरीन ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरबार में पहुंचते हैं. यह सूफियों का सबसे बड़ा मरकज है. यही वजह है कि देश-दुनिया में ख्वाजा के चाहने वालों की कोई कमी नहीं है. दिलों को नफरत से नहीं, बल्कि मोहब्बत से जोड़ना और इंसान को इंसान समझना यही गरीब नवाज की शिक्षा हैं, जो दरगाह में आज भी देखने को मिलती है. यहां दरगाह के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं. यहां किसी तरह का कोई भेदभाव या फिर रोक टोक नहीं है.

विवाद के बाद भी दरगाह से मोहब्बत का पैगाम (ETV BHARAT AJMER)

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संजर से आए ख्वाजा : दरगाह के खादिम सैयद फखर काजमी बताते हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज का करीब 900 साल पहले ईरान और इराक के बीच स्थित संजर शहर में जन्म हुआ था. हालांकि, वो वहां से चलकर अजमेर पहुंचे. यहां ख्वाजा ने कौमी एकता का पैगाम दिया. उन्होंने कहा कि इंसान जब सूफी संत बनता है, तब उसका कोई धर्म और मजहब नहीं होता है. वह इन सब से ऊपर उठ जाता है. उसका धर्म इंसानियत होता है और वह इंसानियत का ही पैगाम देता है. काजमी बताते हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज जब यहां आए तब कई तरह की प्रथाएं प्रचलित थीं.

बेसहारों को लगाया गले, दिया मोहब्बत का पैगाम : उन्होंने उन प्रथाओं को खत्म करने का प्रयास किया. कोढ़ और चेचक जैसी बीमारियां होने पर रोगी के अपने भी उससे दूरी बना लेते थे, लेकिन ख्वाजा ने ऐसे रोगियों को गले से लगाया. उन्हें अपनी आध्यात्मिक शक्ति से ठीक किया. सबके बीच मोहब्बत का पैगाम फैलाया और भेदभाव को मिटाने का काम किया. उन्होंने बताया कि ख्वाजा गरीब नवाज के साथ उनके 40 अनुयायी भी आए थे और उन्होंने ख्वाजा की शिक्षा को आगे बढ़ाया. काजमी ने बताया कि आज भी दरगाह से कौमी एकता का पैगाम देश-दुनिया में जाता है. दरगाह में आज भी किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं है.

Khwaja Garib Nawaz Dargah
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अलग-अलग समय में बादशाहों और हिंदू राजाओं बनवाई इमारतें : काजमी बताते हैं कि यहां सभी इमारतें अलग-अलग समय में बादशाहों और हिंदू राजाओं द्वारा बनवाई गई. हैदराबाद के प्राइम मिनिस्टर कृष्ण प्रसाद ने आस्ताने में चांदी के कमल चढ़ाए. उस पर आज भी मोमबत्तियां जलाई जाती हैं. जयपुर के महाराजा जयसिंह ने निजाम गेट पर संगमरमर की फर्श बनवाई थी. ग्वालियर के महाराजा सिंधिया परिवार ने गुंबद पर कलश चढ़वाया. रामपुर के नवाब ने सोने का ताज भेंट किया था. बादशाह अकबर और शाहजहां ने दरगाह परिसर में अकबरी और शाहजहानी मस्जिद बनवाई.

दरबार में पूरी होती है सबकी मुराद : उन्होंने बताया कि यहां आने वाले हर शख्स की मुराद पूरी होती रही है. ऐसे में यहां इमारतें और अन्य चीजें लोग नजर करते रहे. मुगल बादशाह अकबर को औलाद होने पर उन्होंने दरगाह में बड़ी देग चढ़ाई थी. वहीं, जहांगीर ने छोटी देग बनवाई. इनके अलावा और भी देग हैं, जिनमें आज भी वही पकता है, जो ख्वाजा गरीब नवाज अपने जीवनकाल में खाया करते थे. उन्होंने बताया कि ख्वाजा ने यहां अपने जीवनकाल में केवल जौ का दलिया ही खाया था. यही वजह है कि आज भी हर रोज इन देगों में जौ का दलिया ही पकाया जाता है और इसे जायरीन बड़ी श्रद्धा से प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.

देग में नहीं पकता गोश्त : उन्होंने बताया कि दरगाह में किसी भी देग में गोश्त नहीं पकता है. इसका कारण यह है कि ख्वाजा गरीब नवाज के चाहने वालों में हर जाति धर्म के लोग शामिल हैं. इनमें कई लोग शाकाहारी भी होते हैं. ऐसे में गोश्त या फिर लहसुन-प्याज का इस्तेमाल नहीं होता है.

Khwaja Garib Nawaz Dargah
देग में नहीं पकता गोश्त (ETV BHARAT AJMER)

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विवाद के बाद भी जारी है जायरीनों का आना : उन्होंने कहा कि वर्तमान में अजमेर दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा किया जा रहा है. इसको लेकर काफी बयानबाजी भी हो रही है. सोशल मीडिया पर कई तरह की अफवाहें हैं, लेकिन हकीकत इससे परे है. दरगाह की सीढ़ियों से कटरपंथी बयान और भड़काऊ नारे भी अजमेर के लोग सुन चुके हैं और फिर से बयानों का दौर जारी है. ऐसे में ख्वाजा की शिक्षाएं दिलों में दूरियां बढ़ा रहे बयानों पर हावी है. लोगों का दरगाह में आना कम नहीं हुआ है.

अगले माह से शुरू होगा उर्स : हालांकि, अगले माह से ख्वाजा गरीब नवाज का 813 वां उर्स शुरू होने जा रहा है. ऐसे में व्यापारी भी मानते हैं कि उर्स मेले से पहले जायरीन की आवक हमेशा से कम होती रही है. मेले के दौरान जायरीनों की संख्या बढ़ जाएगी और व्यापार भी अच्छा होगा. दरगाह बाजार में रेडीमेड कपड़ों की दुकानदार चलाने वाले प्रदीप जैन ने बताया कि उनकी 80 साल से यहां दुकान है. हमेशा से यहां कौमी एकता का माहौल रहा है. दरगाह वाद प्रकरण के बाद भी यहां लोगों के बीच वही प्यार है, जो बरसों से रहा है.

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दरगाह से भाईचारे का पैगाम : दरगाह में कई फिल्में सितारों और कलाकारों को जियारत करवाने वाले दुआगो सैयद कुतुबुद्दीन सखी बताते हैं कि ख्वाजा के दर पर 800 साल से लोग आ रहे हैं. शहर के कई दुकानदार ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह की सीढ़ियों पर चाबियां रखकर बरकत की दुआ करते हैं. यह पाक दर सभी धर्म जाति के लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है. दुनिया के कोने-कोने से लोग अजमेर आते हैं.

Khwaja Garib Nawaz Dargah
विवाद के बाद भी जारी है जायरीनों का आना (ETV BHARAT AJMER)

तहजीब का शहर अजमेर : सखी ने कहा कि अजमेर तहजीब का शहर है. इसकी खूबसूरती यहां की गंगा-जमुनी तहजीब है. यहां लोगों के बीच दिलों के रिश्ते हैं, जो बहुत मजबूत हैं. खैर, आज भी यहां सब कुछ वैसा ही है, जैसा पहले से चला आ रहा है. यहां व्यापारियों को चिंता उन बयानबाजी और अफवाहों से है, जिसके कारण यहां आने वाले जायरीनों की संख्या कम होने की संभावना जताई जा रही है.

इसे भी पढ़ें - दरगाह दीवान बोले- कच्ची कब्र के नीचे मंदिर कहां से आ गया ? संभल हिंसा पर कही बड़ी बात

कारोबारियों की चिंता : दिल्ली से 8 साल पहले यहां आकर एक खास तरह की रोटी का कारोबार करने शाकिर बताते हैं कि अजमेर में जायरीन का आना-जाना लगा रहता है. इस कारण कारोबार भी काफी अच्छे से चलता है, लेकिन जब जायरीन का आना जाना कम हो गया है तो व्यापार पर भी इसका असर पड़ना तय है. उन्होंने कहा कि अजमेर ऐसा शहर है, जहां सांप्रदायिक सौहार्द का पैगाम दुनिया में जाता है. यहां लोगों के दिलों में एक-दूसरे के लिए प्यार और सम्मान है.

दरगाह में नहीं कोई भेदभाव : वहीं, उत्तराखंड के नैनीताल से पुष्कर दर्शन के लिए आए आरआर अग्रवाल और संगीता अग्रवाल ने अजमेर दरगाह के बारे में काफी सुना था. लिहाजा दोनों पहली बार दरगाह पहुंचे. हालांकि, लोगों ने उन्हें हिदायत दी थी कि दरगाह में भीड़भाड़ रहती है. लिहाजा पर्स और मोबाइल संभाल कर रखें. दोनों बताते हैं कि दरगाह में उन्हें दो युवक मिले और वो उन्हें जियारत के लिए आस्ताने ले गए. दरगाह में वो पहली बार आए थे, लिहाजा यहां के तौर तरीकों और परंपराओं के बारे में नहीं जानते थे.

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हर धार्मिक स्थल की है अपनी परंपराएं : उन्होंने बताया कि दोनों युवकों ने दरगाह की हर इमारत और यहां के महत्व के बारे में उन्हें बताया. साथ ही जियारत करवाई. उन्होंने दरगाह में चादर और फूल पेश करने के लिए कहा, जो उन्होंने किया. दर्शन के बाद उनके मन को सुकून मिली. ऐसा इसलिए भी हुआ, क्योंकि यहां किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं है. उन्होंने बताया कि सभी धार्मिक स्थलों की अपनी-अपनी परंपराएं हैं, जो वहां आने वाले श्रद्धालुओं को भी माननी पड़ती है.

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