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उत्तराखंड मलिन बस्ती मामले पर चिंतित BJP विधायक, कांग्रेस ने उड़ाई नींद, जानिए क्या है पूरा माजरा - Slum Demolition Case - SLUM DEMOLITION CASE

Slum Demolition Case उत्तराखंड में मलिन बस्तियों का मामला अब लगातार तूल पकड़ता जा रहा है. एक तरफ जहां मलिन बस्तियों पर सरकार के अध्यादेश का समय पूरा होने वाला है तो वहीं अचानक कई लोगों को नोटिस जारी होने के बाद भाजपा विधायक भी चिंतित हो गए हैं. वहीं कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमलावर है.

Slum Demolition Case
उत्तराखंड मलिन बस्ती मामले पर चिंतित BJP विधायक (PHOTO- ETV Bharat GRAPHICS)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : May 22, 2024, 8:20 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड में पिछले एक सप्ताह में मलिन बस्तियों के मामले ने तेज रफ्तार से तूल पकड़ा है. इसके पीछे का कारण, देहरादून नगर निगम, एमडीडीए और मसूरी नगर पालिका द्वारा शहर के मालिन बस्तियों को जारी किए गए तकरीबन 500 से ज्यादा ध्वस्तीकरण के नोटिस है. देहरादून की मलिन बस्तियों में कल 504 कार्रवाई के नोटिस भेजे गए हैं. मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण द्वारा 403 नोटिस, देहरादून नगर निगम द्वारा 87 नोटिस और मसूरी नगर पालिका द्वारा 14 नोटिस भेजे गए हैं.

दूसरी तरफ उत्तराखंड मलिन बस्ती विकास परिषद के केंद्रीय अध्यक्ष और कांग्रेस नेता सूर्यकांत धस्माना ने इस मामले पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. सूर्यकांत धस्माना का कहना है, कांग्रेस की सरकार ने 2016 में मलिन बस्तियों के नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू की थी. जैसे ही मालिकाना हक देना शुरू किया, उसके बाद प्रदेश में सरकार बदल गई. इसके बाद भाजपा ने इस मामले को ठंडा बस्ते में डाल दिया.

धस्माना ने बताया, साल 2019 में सरकार द्वारा अध्यादेश लाकर इसे एक बार फिर से ठंडा बस्ते में डाल दिया. उसके बाद मुख्यमंत्री बदले लेकिन मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को लेकर सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया. उन्होंने कहा कि अब एक बार फिर से मलिन बस्तियों के लोगों को डराने, धमकाने और उनको नोटिस जारी करने का काम किया जा रहा है, जिसके खिलाफ वह लगातार खड़े रहेंगे.

मलिन बस्ती मामले पर कब क्या हुआ: साल 2012 से शुरू हुए मलिन बस्तियों के मामले में एनजीटी के सख्त रुख और हाईकोर्ट द्वारा अवैध अतिक्रमण हटाने को लेकर दिए गए निर्देशों के बाद कांग्रेस सरकार ने मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को प्रक्रिया शुरू की. कुछ लोगों को मालिकाना हक भी दिया गया. लेकिन उसके बाद 2017 में भाजपा सरकार आई. भाजपा सरकार ने मलिन बस्तियों के ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया पर रोक लगाई और 21 अक्टूबर 2018 को अध्यादेश लेकर आई, जिसकी अवधि 3 साल की थी.

21 अक्टूबर 2021 को इस अध्यादेश की अवधि पूरी होने वाली थी. लेकिन प्रदेश में मुख्यमंत्री बदल चुके थे. और एक बार फिर से इस अध्यादेश को अगले 3 सालों के लिए बढ़ाया गया, जिसकी अवधि अब 21 अक्टूबर 2024 को खत्म हो रही है. एक तरफ अध्यादेश खत्म होने की अवधि तो दूसरी तरफ न्यायालय में दायर हुई याचिका के तहत एक बार फिर से 2016 के बाद मलिन बस्तियों में हुए निर्माण को लेकर याचिका दायर की गई. जिसके तहत साल 2016 के बाद तकरीबन 525 निर्माण चिन्हित किए गए हैं. इनमें से अब 504 निर्माण को ध्वस्तीकरण के नोटिस भेजे गए हैं.

भाजपा विधायक भी परेशान: इस पूरे मामले पर देहरादून शहर की पांच विधानसभाओं के पांचों विधायक जो कि भाजपा के हैं, सभी चिंता में हैं. देहरादून के राजपुर रोड विधानसभा से विधायक खजानदास और धर्मपुर से विधायक विनोद चमोली ने शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल से मुलाकात की और अपनी चिंता जाहिर की. बता दें कि मलिन बस्तियों में सबसे ज्यादा परिवार राजपुर रोड विधानसभा और रायपुर विधानसभा के तहत आते हैं. रायपुर विधानसभा से विधायक भाजपा के उमेश शर्मा काऊ हैं.

विधायक खदान दास ने कहा, मलिन बस्तियों को लेकर लगातार उनके द्वारा चिंता जाहिर की गई है. जिसको लेकर उन्होंने विधानसभा में भी नियम 310 के तहत इसे उठाया था. वह लगातार शहरी विकास मंत्री से भी मिल रहे हैं और यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर सरकार इस मामले में क्या हल निकाल रही है?

वहीं इस पूरे मामले पर धर्मपुर से विधायक विनोद चमोली का कहना है, अध्यादेश की अवधि पूरी होने से पहले कुछ ना कुछ सरकार जरूर मलिन बस्तियों पर स्थायी समाधान लेकर आ जाएगी.

सरकार दिख रही निश्चित: इस पूरे मामले पर शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने विपक्ष पर ठीकरा फोड़ते हुए कहा, इस मामले पर कांग्रेस ने लगातार आम लोगों को गुमराह करने का काम किया है. लेकिन सरकार द्वारा मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों के हितों को संरक्षित करते हुए अध्यादेश लाया गया. अब जब अध्यादेश की अवधि खत्म होगी, उससे पहले सरकार कुछ ना कुछ इस पर ठोस रणनीति बनाएगी. हालांकि, क्या रणनीति होगी और कैसे इस विषय पर रणनीति तैयार की जाएगी? इसको लेकर अभी सरकार के पास कोई जवाब नहीं है.

नोटिस पर आपत्ति: देहरादून नगर निगम ने रिस्पना के किनारे स्थित 27 बस्तियों में सरकारी भूमि पर बने 525 मकान चिन्हित किए हैं. जिसमें नगर निगम द्वारा 89 मकानों को नोटिस भेजा गया है. इनमें से करीब 35 आपत्तियां भी आ चुकी हैं. जिस पर कमेटी ने निर्णय लिया है. वहीं अब एमडीडीए ने भी रिस्पना नदी के किनारे साल 2016 के बाद किए गए अवैध निर्माण को लेकर नोटिस जारी करना शुरू कर दिया है. एमडीडीए उपाध्यक्ष बंशीधर तिवारी ने बताया, एनजीटी ने 30 जून तक अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए हैं. नोटिस भेजने के बाद संयुक्त अभियान चलाकर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जाएगी.

ये भी पढ़ेंः मलिन बस्तियों को उजाड़े जाने के खिलाफ कांग्रेस ने बनाई रणनीति, नगर निगम कूच को लेकर भरी हुंकार

देहरादूनः उत्तराखंड में पिछले एक सप्ताह में मलिन बस्तियों के मामले ने तेज रफ्तार से तूल पकड़ा है. इसके पीछे का कारण, देहरादून नगर निगम, एमडीडीए और मसूरी नगर पालिका द्वारा शहर के मालिन बस्तियों को जारी किए गए तकरीबन 500 से ज्यादा ध्वस्तीकरण के नोटिस है. देहरादून की मलिन बस्तियों में कल 504 कार्रवाई के नोटिस भेजे गए हैं. मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण द्वारा 403 नोटिस, देहरादून नगर निगम द्वारा 87 नोटिस और मसूरी नगर पालिका द्वारा 14 नोटिस भेजे गए हैं.

दूसरी तरफ उत्तराखंड मलिन बस्ती विकास परिषद के केंद्रीय अध्यक्ष और कांग्रेस नेता सूर्यकांत धस्माना ने इस मामले पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. सूर्यकांत धस्माना का कहना है, कांग्रेस की सरकार ने 2016 में मलिन बस्तियों के नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू की थी. जैसे ही मालिकाना हक देना शुरू किया, उसके बाद प्रदेश में सरकार बदल गई. इसके बाद भाजपा ने इस मामले को ठंडा बस्ते में डाल दिया.

धस्माना ने बताया, साल 2019 में सरकार द्वारा अध्यादेश लाकर इसे एक बार फिर से ठंडा बस्ते में डाल दिया. उसके बाद मुख्यमंत्री बदले लेकिन मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को लेकर सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया. उन्होंने कहा कि अब एक बार फिर से मलिन बस्तियों के लोगों को डराने, धमकाने और उनको नोटिस जारी करने का काम किया जा रहा है, जिसके खिलाफ वह लगातार खड़े रहेंगे.

मलिन बस्ती मामले पर कब क्या हुआ: साल 2012 से शुरू हुए मलिन बस्तियों के मामले में एनजीटी के सख्त रुख और हाईकोर्ट द्वारा अवैध अतिक्रमण हटाने को लेकर दिए गए निर्देशों के बाद कांग्रेस सरकार ने मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को प्रक्रिया शुरू की. कुछ लोगों को मालिकाना हक भी दिया गया. लेकिन उसके बाद 2017 में भाजपा सरकार आई. भाजपा सरकार ने मलिन बस्तियों के ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया पर रोक लगाई और 21 अक्टूबर 2018 को अध्यादेश लेकर आई, जिसकी अवधि 3 साल की थी.

21 अक्टूबर 2021 को इस अध्यादेश की अवधि पूरी होने वाली थी. लेकिन प्रदेश में मुख्यमंत्री बदल चुके थे. और एक बार फिर से इस अध्यादेश को अगले 3 सालों के लिए बढ़ाया गया, जिसकी अवधि अब 21 अक्टूबर 2024 को खत्म हो रही है. एक तरफ अध्यादेश खत्म होने की अवधि तो दूसरी तरफ न्यायालय में दायर हुई याचिका के तहत एक बार फिर से 2016 के बाद मलिन बस्तियों में हुए निर्माण को लेकर याचिका दायर की गई. जिसके तहत साल 2016 के बाद तकरीबन 525 निर्माण चिन्हित किए गए हैं. इनमें से अब 504 निर्माण को ध्वस्तीकरण के नोटिस भेजे गए हैं.

भाजपा विधायक भी परेशान: इस पूरे मामले पर देहरादून शहर की पांच विधानसभाओं के पांचों विधायक जो कि भाजपा के हैं, सभी चिंता में हैं. देहरादून के राजपुर रोड विधानसभा से विधायक खजानदास और धर्मपुर से विधायक विनोद चमोली ने शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल से मुलाकात की और अपनी चिंता जाहिर की. बता दें कि मलिन बस्तियों में सबसे ज्यादा परिवार राजपुर रोड विधानसभा और रायपुर विधानसभा के तहत आते हैं. रायपुर विधानसभा से विधायक भाजपा के उमेश शर्मा काऊ हैं.

विधायक खदान दास ने कहा, मलिन बस्तियों को लेकर लगातार उनके द्वारा चिंता जाहिर की गई है. जिसको लेकर उन्होंने विधानसभा में भी नियम 310 के तहत इसे उठाया था. वह लगातार शहरी विकास मंत्री से भी मिल रहे हैं और यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर सरकार इस मामले में क्या हल निकाल रही है?

वहीं इस पूरे मामले पर धर्मपुर से विधायक विनोद चमोली का कहना है, अध्यादेश की अवधि पूरी होने से पहले कुछ ना कुछ सरकार जरूर मलिन बस्तियों पर स्थायी समाधान लेकर आ जाएगी.

सरकार दिख रही निश्चित: इस पूरे मामले पर शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने विपक्ष पर ठीकरा फोड़ते हुए कहा, इस मामले पर कांग्रेस ने लगातार आम लोगों को गुमराह करने का काम किया है. लेकिन सरकार द्वारा मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों के हितों को संरक्षित करते हुए अध्यादेश लाया गया. अब जब अध्यादेश की अवधि खत्म होगी, उससे पहले सरकार कुछ ना कुछ इस पर ठोस रणनीति बनाएगी. हालांकि, क्या रणनीति होगी और कैसे इस विषय पर रणनीति तैयार की जाएगी? इसको लेकर अभी सरकार के पास कोई जवाब नहीं है.

नोटिस पर आपत्ति: देहरादून नगर निगम ने रिस्पना के किनारे स्थित 27 बस्तियों में सरकारी भूमि पर बने 525 मकान चिन्हित किए हैं. जिसमें नगर निगम द्वारा 89 मकानों को नोटिस भेजा गया है. इनमें से करीब 35 आपत्तियां भी आ चुकी हैं. जिस पर कमेटी ने निर्णय लिया है. वहीं अब एमडीडीए ने भी रिस्पना नदी के किनारे साल 2016 के बाद किए गए अवैध निर्माण को लेकर नोटिस जारी करना शुरू कर दिया है. एमडीडीए उपाध्यक्ष बंशीधर तिवारी ने बताया, एनजीटी ने 30 जून तक अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए हैं. नोटिस भेजने के बाद संयुक्त अभियान चलाकर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जाएगी.

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