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ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का 813वां उर्स, रस्मों का कार्यक्रम घोषित, अंजुमन कमेटी ने प्रशासन पर लगाए ये आरोप - AJMER DARGAH URS

ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 813वें उर्स को लेकर अंजुमन कमेटी ने रस्मों का विस्तृत कार्यक्रम जारी किया.

Ajmer dargah urs
अजमेर उर्स 2024 (ETV Bharat AJmer)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 7 hours ago

अजमेर : विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 813वां उर्स अगले माह की शुरुआत से आयोजित होगा. इस संबंध में दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन कमेटी ने रस्मों का विस्तृत कार्यक्रम जारी किया है. सोमवार को आयोजित प्रेसवार्ता में अंजुमन कमेटी के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने उर्स की रस्मों और दरगाह की व्यवस्थाओं पर चर्चा की. अंजुमन कमेटी के पन्नीग्राम चौक स्थित कार्यालय में आयोजित इस प्रेसवार्ता में सदर सैयद गुलाम किबरिया, सचिव सैयद सरवर चिश्ती समेत कई पदाधिकारी मौजूद रहे. कमेटी के पदाधिकारियों ने उर्स से संबंधित रस्मों और प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर विस्तार से जानकारी दी.

उर्स की परंपरा और महत्व : सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने उर्स के महत्व को समझाते हुए बताया कि सूफी संत के निधन के दिन को उर्स के रूप में मनाया जाता है. इसे "अल्लाह वाले का अल्लाह से मिलन" भी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का निधन छठी रजब को हुआ था. उनकी पुण्यतिथि को आध्यात्मिक श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, जिसे उर्स कहा जाता है. इस दौरान देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु दरगाह पर जियारत के लिए आते हैं.

813वें उर्स की रस्मों का कार्यक्रम घोषित (ETV Bharat Ajmer)

इसे भी पढ़ें- मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 813वां उर्स मेला, व्यापारी उत्साहित, अच्छे बिजनेस की उम्मीद

उर्स की रस्में : उर्स की पहली रस्म "छड़ी का जुलूस" है. यह जुलूस महरौली स्थित बाबा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह से प्रारंभ होकर अजमेर दरगाह तक आता है. सचिव ने बताया कि यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसे आज भी पूरी श्रद्धा के साथ निभाया जाता है. इस जुलूस का स्वागत दरगाह के निजाम गेट पर खादिमों द्वारा किया जाता है. उर्दू तारीख 25 जुमादा उल थानी (28 दिसंबर) से दरगाह में खिदमत का समय बदल दिया जाता है. इसी दिन ख्वाजा गरीब नवाज की मजार से सालाना संदल उतारा जाता है और इसे जायरीन में बांटा जाता है. 29 दिसंबर को चांद रात के साथ उर्स की रस्में शुरू होती हैं. इस रात दरगाह में दो गुस्ल किए जाते हैं. पहला गुस्ल मगरिब की नमाज के बाद होता है और दूसरा रात 1 बजे के बाद. इसमें दरगाह दीवान, 7 खादिम और एक बारीदार शामिल होते हैं.

छठी रजब का महत्व : छठी रजब (9 जनवरी) को मुख्य रस्में निभाई जाती हैं. इसमें ख्वाजा गरीब नवाज के सभी मुर्शिदों (गुरुओं) का नाम लिया जाता है और सलातो-सलाम पढ़ा जाता है. मुल्क, इंसानियत और श्रद्धालुओं के लिए विशेष दुआएं की जाती हैं. इसे ही असल उर्स और छोटा कुल कहा जाता है. बड़ा कुल 9 रजब (10 जनवरी) को होता है. इस दिन आखिरी गुस्ल के साथ उर्स का समापन होता है. दरगाह में स्थित जन्नती दरवाजा वर्ष में चार बार खोला जाता है. दो बार ईद के मौके पर, एक बार ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के पीर उस्मान हारूनी के उर्स पर और एक बार ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स के दौरान.

इसे भी पढ़ें- 813वां उर्स की तैयारी शुरू, दरगाह कमेटी के कार्यक्रम पर आपत्ति, जानिए पूरा मामला

प्रशासनिक अव्यवस्थाओं पर सवाल : अंजुमन कमेटी ने उर्स के दौरान दरगाह से जुड़ी अव्यवस्थाओं पर प्रशासन को घेरते हुए आरोप लगाए. सचिव चिश्ती ने कहा कि दरगाह संपर्क सड़कें टूटी हुई हैं और दरगाह के अंदर रंग-रोगन तक नहीं किया गया है. तीन वर्षों से दरगाह कमेटी में नाजिम की नियुक्ति नहीं हुई है. उन्होंने बताया कि जायरीन मुख्यतः खादिमों के घरों में ठहरते हैं, क्योंकि विश्राम स्थलों और होटलों की व्यवस्था हाल ही के वर्षों में शुरू हुई है. दरगाह के आसपास नालियों और लाइटों की स्थिति पर भी चिश्ती ने नाराजगी जाहिर की. उन्होंने कहा कि प्रशासन को खादिमों की ताकत और जिम्मेदारी का एहसास नहीं है. उन्होंने मांग की कि पुलिस जवानों को दरगाह के 4 और 5 नंबर गेट से सुरक्षा के लिए लगाया जाए.

जायरीन के लिए संदेश : अंजुमन कमेटी ने देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को संदेश दिया कि अजमेर में अमन-चैन और भाईचारे का माहौल है. उन्होंने सभी से उर्स में शामिल होने का अनुरोध किया. साथ ही, राजनीति से जुड़े व्यक्तियों से अपील की गई कि वे अपनी चादरें भीड़ से पहले, यानी दो-तीन रजब तक दरगाह में पेश कर दें ताकि जायरीन को कोई असुविधा न हो. सचिव चिश्ती ने कहा कि उर्स कोई मेला नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक कार्यक्रम है जो ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की शिक्षाओं और उनके संदेश को आगे बढ़ाता है.

अजमेर : विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 813वां उर्स अगले माह की शुरुआत से आयोजित होगा. इस संबंध में दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन कमेटी ने रस्मों का विस्तृत कार्यक्रम जारी किया है. सोमवार को आयोजित प्रेसवार्ता में अंजुमन कमेटी के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने उर्स की रस्मों और दरगाह की व्यवस्थाओं पर चर्चा की. अंजुमन कमेटी के पन्नीग्राम चौक स्थित कार्यालय में आयोजित इस प्रेसवार्ता में सदर सैयद गुलाम किबरिया, सचिव सैयद सरवर चिश्ती समेत कई पदाधिकारी मौजूद रहे. कमेटी के पदाधिकारियों ने उर्स से संबंधित रस्मों और प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर विस्तार से जानकारी दी.

उर्स की परंपरा और महत्व : सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने उर्स के महत्व को समझाते हुए बताया कि सूफी संत के निधन के दिन को उर्स के रूप में मनाया जाता है. इसे "अल्लाह वाले का अल्लाह से मिलन" भी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का निधन छठी रजब को हुआ था. उनकी पुण्यतिथि को आध्यात्मिक श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, जिसे उर्स कहा जाता है. इस दौरान देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु दरगाह पर जियारत के लिए आते हैं.

813वें उर्स की रस्मों का कार्यक्रम घोषित (ETV Bharat Ajmer)

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उर्स की रस्में : उर्स की पहली रस्म "छड़ी का जुलूस" है. यह जुलूस महरौली स्थित बाबा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह से प्रारंभ होकर अजमेर दरगाह तक आता है. सचिव ने बताया कि यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसे आज भी पूरी श्रद्धा के साथ निभाया जाता है. इस जुलूस का स्वागत दरगाह के निजाम गेट पर खादिमों द्वारा किया जाता है. उर्दू तारीख 25 जुमादा उल थानी (28 दिसंबर) से दरगाह में खिदमत का समय बदल दिया जाता है. इसी दिन ख्वाजा गरीब नवाज की मजार से सालाना संदल उतारा जाता है और इसे जायरीन में बांटा जाता है. 29 दिसंबर को चांद रात के साथ उर्स की रस्में शुरू होती हैं. इस रात दरगाह में दो गुस्ल किए जाते हैं. पहला गुस्ल मगरिब की नमाज के बाद होता है और दूसरा रात 1 बजे के बाद. इसमें दरगाह दीवान, 7 खादिम और एक बारीदार शामिल होते हैं.

छठी रजब का महत्व : छठी रजब (9 जनवरी) को मुख्य रस्में निभाई जाती हैं. इसमें ख्वाजा गरीब नवाज के सभी मुर्शिदों (गुरुओं) का नाम लिया जाता है और सलातो-सलाम पढ़ा जाता है. मुल्क, इंसानियत और श्रद्धालुओं के लिए विशेष दुआएं की जाती हैं. इसे ही असल उर्स और छोटा कुल कहा जाता है. बड़ा कुल 9 रजब (10 जनवरी) को होता है. इस दिन आखिरी गुस्ल के साथ उर्स का समापन होता है. दरगाह में स्थित जन्नती दरवाजा वर्ष में चार बार खोला जाता है. दो बार ईद के मौके पर, एक बार ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के पीर उस्मान हारूनी के उर्स पर और एक बार ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स के दौरान.

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प्रशासनिक अव्यवस्थाओं पर सवाल : अंजुमन कमेटी ने उर्स के दौरान दरगाह से जुड़ी अव्यवस्थाओं पर प्रशासन को घेरते हुए आरोप लगाए. सचिव चिश्ती ने कहा कि दरगाह संपर्क सड़कें टूटी हुई हैं और दरगाह के अंदर रंग-रोगन तक नहीं किया गया है. तीन वर्षों से दरगाह कमेटी में नाजिम की नियुक्ति नहीं हुई है. उन्होंने बताया कि जायरीन मुख्यतः खादिमों के घरों में ठहरते हैं, क्योंकि विश्राम स्थलों और होटलों की व्यवस्था हाल ही के वर्षों में शुरू हुई है. दरगाह के आसपास नालियों और लाइटों की स्थिति पर भी चिश्ती ने नाराजगी जाहिर की. उन्होंने कहा कि प्रशासन को खादिमों की ताकत और जिम्मेदारी का एहसास नहीं है. उन्होंने मांग की कि पुलिस जवानों को दरगाह के 4 और 5 नंबर गेट से सुरक्षा के लिए लगाया जाए.

जायरीन के लिए संदेश : अंजुमन कमेटी ने देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को संदेश दिया कि अजमेर में अमन-चैन और भाईचारे का माहौल है. उन्होंने सभी से उर्स में शामिल होने का अनुरोध किया. साथ ही, राजनीति से जुड़े व्यक्तियों से अपील की गई कि वे अपनी चादरें भीड़ से पहले, यानी दो-तीन रजब तक दरगाह में पेश कर दें ताकि जायरीन को कोई असुविधा न हो. सचिव चिश्ती ने कहा कि उर्स कोई मेला नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक कार्यक्रम है जो ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की शिक्षाओं और उनके संदेश को आगे बढ़ाता है.

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