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इस अफ्रीकी तकनीक से हुई 500 चीतलों की शिफ्टिंग, घना से आबाद होंगे ये टाइगर रिजर्व - 500 chitals shifted - 500 CHITALS SHIFTED

500 chitals shifted, राजस्थान के तीन टाइगर रिजर्व को आबाद करने में घना अहम भूमिका निभा रहा है. टाइगर रिजर्व में प्रे बेस बढ़ाने के लिए केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से अब तक 500 चीतलों की शिफ्टिंग की जा चुकी है.

500 chitals shifted
अफ्रीकी तकनीक से चीतलों की शिफ्टिंग (ETV BHARAT Bharatpur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 13, 2024, 6:30 AM IST

भरतपुर. प्रदेश के तीन टाइगर रिजर्व को आबाद करने के लिए केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. टाइगर रिजर्व में प्रे बेस बढ़ाने के लिए केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से अब तक 500 चीतलों की शिफ्टिंग की जा चुकी है, जबकि अभी 300 चीतल और शिफ्ट किए जाने हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि चीतलों की शिफ्टिंग में अफ्रीकी तकनीक 'बोमा' का इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे अभी तक एक भी चीतल की कैजुअलिटी नहीं हुई है.

जानें कहां हुई शिफ्टिंग : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक मानस सिंह ने बताया कि उद्यान से अब तक कुल 500 चीतल शिफ्ट किए जा चुके हैं. इनमें 350 चीतल मुकुंदरा टाइगर रिजर्व और 150 चीतल रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में भेजे जा चुके हैं. घना प्रशासन लगातार चीतलों की शिफ्टिंग में जुटा है. हाल ही में करीब 10 दिन के दौरान 170 चीतलों की शिफ्टिंग की गई है.

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बोमा तकनीक से चीतलों की शिफ्टिंग (ETV BHARAT Bharatpur)

इसे भी पढ़ें - केवलादेव से 11 चीतल मुकुंदरा टाइगर रिजर्व भेजे, दो टाइगर रिजर्व में शिफ्ट होंगे 850 चीतल

तीन रिजर्व को 800 चीतल : निदेशक मानस सिंह ने बताया कि घना से कुल 800 चीतलों की तीन टाइगर रिजर्व में शिफ्टिंग की जानी है. इनमें मुकुंदरा में 350, रामगढ़ विषधारी में 150 और कैलादेवी टाइगर रिजर्व में 150 चीतल शिफ्ट होने हैं. इसके लिए घना के कर्मचारियों को अफ्रीकी बोमा तकनीक का विशेष प्रशिक्षण दिलाया गया था.

इसे भी पढ़ें - इको टूरिज्म को बढ़ावा देने पर जोर, 300 किमी का सफर कर रामगढ़ विषधारी पहुंचे घना से आए 19 चीतल

जानें क्या है 'बोमा' तकनीक : निदेशक मानस सिंह ने बताया कि चीतल बहुत ही संवेदनशील वन्यजीव है. इसको जोर जबर्दस्ती पकड़कर शिफ्ट नहीं किया जा सकता है. इसलिए इसके लिए अफ्रीकी बोमा तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इसके तहत घना के अंदर झाड़ियों से ढककर पेड़ों के बीच और जलाशयों के पास बाड़े तैयार किए गए हैं. इनमें चीतलों के लिए चारे की व्यवस्था भी की गई है. धीरे-धीरे चीतल इनमें आते रहते हैं और बिना मैन पावर के आखिरी बाड़े तक पहुंच जाते हैं. आखिरी बाड़े में एक छोटा दरवाजा बनाया गया है, जिस पर रात को पिंजरे वाले ट्रक खड़ा कर दिया जाता है. ट्रक के अंदर भी चारा और झाड़ियां लगाई जाती हैं. इससे चीतल उसमें चढ़ जाते हैं और उनकी आसानी से शिफ्टिंग कर दी जाती है.

भरतपुर. प्रदेश के तीन टाइगर रिजर्व को आबाद करने के लिए केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. टाइगर रिजर्व में प्रे बेस बढ़ाने के लिए केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से अब तक 500 चीतलों की शिफ्टिंग की जा चुकी है, जबकि अभी 300 चीतल और शिफ्ट किए जाने हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि चीतलों की शिफ्टिंग में अफ्रीकी तकनीक 'बोमा' का इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे अभी तक एक भी चीतल की कैजुअलिटी नहीं हुई है.

जानें कहां हुई शिफ्टिंग : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक मानस सिंह ने बताया कि उद्यान से अब तक कुल 500 चीतल शिफ्ट किए जा चुके हैं. इनमें 350 चीतल मुकुंदरा टाइगर रिजर्व और 150 चीतल रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में भेजे जा चुके हैं. घना प्रशासन लगातार चीतलों की शिफ्टिंग में जुटा है. हाल ही में करीब 10 दिन के दौरान 170 चीतलों की शिफ्टिंग की गई है.

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बोमा तकनीक से चीतलों की शिफ्टिंग (ETV BHARAT Bharatpur)

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तीन रिजर्व को 800 चीतल : निदेशक मानस सिंह ने बताया कि घना से कुल 800 चीतलों की तीन टाइगर रिजर्व में शिफ्टिंग की जानी है. इनमें मुकुंदरा में 350, रामगढ़ विषधारी में 150 और कैलादेवी टाइगर रिजर्व में 150 चीतल शिफ्ट होने हैं. इसके लिए घना के कर्मचारियों को अफ्रीकी बोमा तकनीक का विशेष प्रशिक्षण दिलाया गया था.

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जानें क्या है 'बोमा' तकनीक : निदेशक मानस सिंह ने बताया कि चीतल बहुत ही संवेदनशील वन्यजीव है. इसको जोर जबर्दस्ती पकड़कर शिफ्ट नहीं किया जा सकता है. इसलिए इसके लिए अफ्रीकी बोमा तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इसके तहत घना के अंदर झाड़ियों से ढककर पेड़ों के बीच और जलाशयों के पास बाड़े तैयार किए गए हैं. इनमें चीतलों के लिए चारे की व्यवस्था भी की गई है. धीरे-धीरे चीतल इनमें आते रहते हैं और बिना मैन पावर के आखिरी बाड़े तक पहुंच जाते हैं. आखिरी बाड़े में एक छोटा दरवाजा बनाया गया है, जिस पर रात को पिंजरे वाले ट्रक खड़ा कर दिया जाता है. ट्रक के अंदर भी चारा और झाड़ियां लगाई जाती हैं. इससे चीतल उसमें चढ़ जाते हैं और उनकी आसानी से शिफ्टिंग कर दी जाती है.

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