बगहा : इंडो नेपाल सीमा पर अवस्थित वाल्मीकीनगर के पिपराकुट्टी मोड़ पर एक लुप्तप्राय कछुआ देखने को मिला. स्थानीय लोगों का कहना है कि इतना बड़ा कछुआ इससे पहले हमने नहीं देखा था. इसकी लंबाई और वजन काफी ज्यादा है. यह तकरीबन 35 किलो का होगा.
35 किलो का कछुआ का रेस्क्यू : भारत के अधिकांश नदियों में पाया जाने वाला यह कछुआ विलुप्त होता जा रहा है. ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि नेपाल से बाढ़ के पानी में बहकर यह गंडक नदी में पहुंचा होगा और फिर वहां से रिहायशी इलाके में जा पहुंचा. जहां लोग विशालकाय कछुआ देख उसके ऊपर चढ़ कर फोटो खिंचवाते नजर आए. जिसे WTI के लोगों ने आकर रेस्क्यू किया.
गंडक नदी में छोड़ा गया : WTI की रेस्क्यू टीम के सदस्य सुनील कुमार ने बताया कि मैंने और हमारे सहकर्मी मुकेश ने इस कछुआ का रेस्क्यू किया और वनरक्षी शशि कुमार के साथ कछुआ को ले जाकर सुरक्षित गंडक नदी में छोड़ दिया. वन संरक्षक सह वन निदेशक नेशामणि के ने बताया कि यह गंडक और गंगा समेत उसके सहायक नदियों में पाया जाने वाला कछुआ है. हाल के दिनों में विलुप्त होता जा रहा है. लिहाजा अतिसंरक्षित जलीय जीव के तहत रखा गया है.
''अमूमन इतने बड़ा कछुआ समुद्र में पाए जाते हैं. समुद्री कछुए 200 से 300 किलो के होते हैं. वाल्मीकीनगर में इतना बड़ा कछुआ मैंने भी पहले कभी नहीं देखा है. इसे लेदर टर्टल कहा जा सकता है, क्योंकि इसकी खाल काफी मोटी है और यह बिल्कुल काला रंग का बड़ा और लंबा कछुआ है. वाल्मिकी टाइगर रिजर्व के लिए यह गौरव की बात है कि यहां की जलवायु किसी भी तरह के जीव जंतुओं को काफी सूट कर रहा है और नए नए जीव जंतु देखने को मिल रहे हैं.''- वी. डी. संजू, वाल्मिकी वसुधा परिवार, जीव जंतुओं के जानकार
इंडियन सॉफ्टशेल टर्टल : इस कछुआ का वैज्ञानिक नाम निलसोनिया हरम या गंगेटिक है. इसको इंडियन सॉफ्टशेल टर्टल अथवा इंडियन पीकॉक सॉफ्टशेल टर्टल कहा जाता है. यह प्रायः भारत, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान में पाया जाता है. गंगा, नर्मदा और गंडक इत्यादि नदियों में पाया जाता है, जो विशेषतः लुप्तप्राय प्रजाति का कछुआ है.
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