प्रयागराज/लखनऊ : संगमनगरी में एक महीने में 29 आत्महत्याएं. देखें तो हर दिन किसी न किसी ने अपनी जान दे दी. वहीं लखनऊ में दो माह में 50 से अधिक खुदकुशी के मामले सामने आए. जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती गई, खुदकुशी की घटनाएं भी इसी अनुपात में होती रहीं. यह आंकड़ा चिंता बढ़ाने वाला है, लेकिन इसके पीछे के जो कारण मनोचित्सक बताते हैं, वह भी चौंकाता है. मनोचिकित्सक आत्महत्या की वजहों में से एक गर्मी को भी बताते हैं. उनका कहना है कि गर्मी सीधे तौर पर मनुष्य के दिमाग पर असर डालती है. इसका असर हमारे व्यवहार और मनोदशा पर भी गहरा पड़ता है. आइए जानते हैं गर्मी और सुसाइड के बीच का क्या है कनेक्शन और मनोचिकित्सकों व डॉक्टरों की नजर में बढ़ता तापमान कैसे हमें करता है प्रभावित.
प्रकृति का मनुष्य के दिल-दिमाग पर यह होता है असर
मनोचिकित्सक डॉ. इशान्याराज का कहना है कि कई शोध से यह पता चला है कि इंसान का प्रकृति के साथ गहरा रिश्ता है. जिस तरह का बाहर का मौसम होता है, उसका असर मनुष्य के दिल-दिमाग पर भी पड़ता है. यही कारण है कि जब ज्यादा गर्मी पड़ती है तो बहुत से लोग ठंडे स्थानों पर छुट्टियां बिताने चले जाते हैं और वहां जाने पर उन्हें सुकून व राहत मिलती है.जबकि भीषण गर्मी के दौरान धूप में निकलने के दौरान तमाम तरह की दिक्कतों का सामना लोगों को करना पड़ता है. कड़ी धूप में आने जाने के दौरान गर्मी से लोगों के स्वभाव में चिड़चिड़ापन गुस्सा और सोचने-समझने की शक्ति पर भी असर पड़ता है. अक्सर धूप से आने के बाद व्यक्ति गुस्से में रहता है और उसके दिमाग को गर्मी प्रभावित करती है.
ब्रेन फॉग छीन लेता है सहनशक्ति, लोग उठाते हैं आत्मघाती कदम
मनोचिकित्सक डॉ. इशान्याराज कहती हैं कि तापमान बढ़ने का सीधा असर दिमाग और शरीर पर पड़ता है. गर्मी की वजह से ही ब्रेन फॉग भी हो जाता है, जिससे कि दिमाग कम काम करने लगता है. उसकी सोचने-समझने की शक्ति प्रभावित होने की वजह से लोग बातें भूलने भी लगते हैं. इसी के साथ चिड़चिड़ापन और गुस्से की वजह से लोगों की सहन शक्ति कमजोर हो जाती है. वे छोटी-छोटी बातों पर भी सामने वाले लड़ जाते हैं. मामूली बातों पर कहासुनी या झगड़े में आवेश में आकर आत्मघाती कदम उठा लेते हैं.
सीजनल इफेक्टिव डिसऑर्डर सुसाइड का एक अहम कारण
डॉक्टर देवाशीष शुक्ला कहते हैं कि सीजनल इफेक्टिव डिसऑर्डर सुसाइड का एक अहम कारण है. मौसम बदलने पर खासकर गर्मियों में, जब बहुत गर्मी पड़ती है तो न्यूरोट्रांसमीटर गड़बड़ाता है और सेरेटोनिन व एचआईआईए लेवल कम हो जाता है, जबकि कॉर्टिसोल हार्मोन बढ़ता है, जिससे व्यक्ति का स्ट्रेस लेवल बढ़ता है और सुसाइडल थॉट्स आने लगते हैं. दूसरा कारण जब व्यक्ति धूप में अधिक समय तक रहता है तो सूरज की तेज किरने सबसे पहले व्यक्ति के सिर पर पड़ती है, स्वाभाविक है कि उससे ब्रेन में विपरीत प्रभाव पड़ेगा। यही कारण है कि व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है, जिससे छोटी छोटी बातों पर वह गुस्सा होता है.
गर्मी में होता है कैमकिल डिसबैलेंस
आत्महत्याओं पर शोध कर रहे बलरामपुर अस्पताल के मानसिक रोग विशेषज्ञ अभय सिंह कहते हैं, आमतौर पर जब व्यक्ति की बॉडी उच्च तापमान में आती है तो पसीने का उत्पादन कर व खून की वाहिकाओं को चौड़ा करके खुद को ठंडा करने की कोशिश करती है, लेकिन जब गर्मी 44 डिग्री के ऊपर जा रही है, यानि कि यह ब्यालिंग स्टेज पर पहुंच रही है तो यह ब्रेन के रसायनों जैसे सेरोटोनिन व डोपामाइन के काम करने के तरीके को भी बदल देती है. जो व्यक्ति के मूड को प्रभावित करती है. यही कारण है कि गर्मियों में लोगों में चिड़चिड़ापन, गुस्सा आने, डिप्रेशन के मामले काफी बढ़ जाते हैं.
अप्रैल से जून तक खुदकुशी के मामले बढ़े
विशेषज्ञ इन आत्महत्याओं का कारण तपते मौसम को बता रहे हैं. उनके मुताबिक, अप्रैल, मई और जून में आत्महत्या की दर बढ़ जाती है और यह सबसे अधिक होती है. ये संख्या दिसंबर की तुलना में दो से तीन गुना अधिक हो सकती है, जब आत्महत्या की दर सबसे कम होती है, लेकिन इस बार यह दर अन्य वर्षों में अप्रैल, मई और जून से भी दोगुनी है क्योंकि इस बार की गर्मी व्यक्ति मां मानसिक संतुलन बिगाड़ रहा है.
प्रयागराज में थम नहीं रहा जान देने का सिलसिला
गर्मी बढ़ने के साथ जहां मई में सुसाइड करने वालों की संख्या 29 रही है, वहीं जून में भी मौतों का सिलसिला जारी है. इसी मंगलवार प्रेमी-प्रेमिका ने आत्महत्या कर ली थी. इससे पहले सोमवार को एक वकील ने पत्नी से फोन पर झगड़ने के बाद घर में ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. मनोचिकित्सकों का मानना है कि गर्मी इसकी वजह है. क्योंकि बढ़ता तापमान लोगों की सहनशक्ति को कम कर रहा है.
लखनऊ में डराते हैं खुदकुशी के आंकड़े
बीते दिनों दुबग्गा की रहने वाली 11 वर्षीय बच्ची ने अपनी मां की डांट से नाराज होकर नदी में आत्महत्या करने के उद्देश्य से छलांग लगा दी, हालांकि उसे एक युवक ने बचा तो लिया लेकिन वह खुद डूबने से अपनी जान से हाथ धो बैठा. बीते हफ्ते चिनहट की रहने वाली 19 वर्षीय बच्ची ने पढ़ाई को लेकर घर में पड़ी डांट से नाराज होकर गोमती नदी में छलांग लगा दी और उसकी मौत हो गई. बीते दो माह में हुई करीब 50 से अधिक लोगों ने आत्महत्या कर ली है.
धूप में कम निकलें और गर्मी से करें बचाव
मनोचिकित्सक का कहना है कि जब पारा ज्यादा ऊपर चला जाए तो धूप में निकलने से लोगों को परहेज करना चाहिए. क्योंकि सीधे धूप के संपर्क में आने का प्रभाव शरीर के साथ ही दिमाग पर भी पड़ता है. कड़ी धूप में निकलने पर मस्तिष्क पर भी गर्मी का असर पड़ता है, उस दौरान बहुत से लोग अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाते हैं, जिसके बाद वो आत्मघाती कदम उठा लेते हैं. कई बार वो अपने साथ ही दूसरों के लिए भी घातक हो जाते हैं.
यह एहतियात भी जरूरी
डॉक्टर देवाशीष शुक्ला कहते हैं कि, इस भीषण गर्मी में ऐसे व्यक्ति के परिवार वालों को अधिक सतर्क होना होगा, जो शॉर्ट टेंपर होते हैं. जिन्हें छोटी-छोटी बातों पर जल्द गुस्सा आता है. उन्हें इस वक्त बहुत देखभाल की जरूरत है. ऐसे व्यक्तियों से किसी भी बात पर बहस न करें, किसी काम के लिए ज्यादा टोका टोकी और चिल्लाएं नहीं. गर्मियों में मानसिक विकार के लिए नींद एक बड़ी समस्या है. ऐसे में कोशिश करें कि नींद को प्राथमिकता दें और रोजाना 6 से 8 घंटे जरूर सोएं. इसके अलावा तरल पदार्थ जरूर पीते रहे यह व्यक्ति के शरीर को ठंडा बनाए रहता है, जिसमें दिमाग भी शामिल है.
ऐसे रहें कूल-कूल
⦁ अधिक से अधिक पानी पीयें.
⦁ पसीना सोखने वाले पतले व हल्के रंग के वस्त्र ही पहने.
⦁ तेज धूप में निकलने से बचे, अगर धूप में निकलना जरूरी है, तो निकलते वक्त छाता लगा लें, टोपी पहन लें और ऐसे कपड़े पहने जिससे शरीर अधिक से अधिक ढका रहे.
⦁ यदि खुले में कार्य करते हैं तो सिर, चेहरा, हाथ-पैर को गीले कपडे से ढके रहें.
⦁ यात्रा करते समय अपने साथ पर्याप्त मात्रा में पीने का स्वच्छ पानी रखें.
⦁ यदि मूर्छा या बीमारी का अनुभव करते हैं, तो तुरन्त चिकित्सक की सलाह लें.
⦁ अपने घरों को ठंडा रखें, दरवाजे और खिडकियों पर पर्दे लगवाना उचित होता है.
⦁ श्रमसाध्य कार्यो को ठंडे समय में करने का प्रयास करें.