भागलपुर : बिहार में कुपोषण एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जिससे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. राष्ट्रीय पोषण संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की लगभग 14 प्रतिशत आबादी कुपोषण का शिकार है, जिसमें विशेष रूप से 0-6 वर्ष के बच्चे शामिल हैं. कुपोषण बाल मृत्यु और विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है, जो समाज की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा बन कर उभरता है. यह न केवल बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास को भी थामता है.
भागलपुर जिले में कुपोषण की स्थिति : भागलपुर जिले में कुपोषण की स्थिति काफी गंभीर थी, जहां 10957 बच्चे कुपोषण के शिकार थे. यह स्थिति प्रशासन और समाज के लिए एक बड़ी चुनौती बन कर सामने आई. कुपोषण से प्रभावित बच्चों के स्वास्थ्य में गिरावट और जीवन की गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ रहा था. ऐसे में इस समस्या से निपटने के लिए प्रशासन ने एक नया प्रयास शुरू किया.
क्या है मिशन 45? : भागलपुर जिले में कुपोषण को खत्म करने के लिए प्रशासन ने 'मिशन 45' की शुरुआत की. इस मिशन के तहत, 45 दिनों के अंदर जिले भर के कुपोषित बच्चों को चिन्हित कर, उन्हें उचित आहार और चिकित्सा सहायता प्रदान की गई. मिशन का उद्देश्य सिर्फ कुपोषण का उपचार नहीं, बल्कि बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को भी सुनिश्चित करना था.
10000 बच्चे हुए कुपोषण मुक्त : इस अभियान में आशा कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी सेविकाओं और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की मदद से बच्चों के घर-घर जाकर उनके आहार और जीवनशैली में सुधार किया गया. इसके परिणामस्वरूप, महज 35 दिनों में करीब 7500 बच्चों में शारीरिक और मानसिक बदलाव देखने को मिले.
''भागलपुर जैसे पुराने जिले में 10957 बच्चे कुपोषण के शिकार हैं यह सुनकर अजीब लगा. जिसको लेकर हमने एक अभियान चलाया 'मिशन 45' डोर टू डोर. जिसके तहत हमने 45 दिन के अंदर सभी चिन्हित बच्चें को अपने अधिकारी और विभिन्न विभागों से मदद लेकर सुपोषण की ओर अग्रसर कराया और अब बड़ी खुशी की बात है कि अब महज 200 से कम बच्चे कुपोषित हैं. जिनका इलाज भी जारी है और उसे देखने के लिए अधिकारी को लगाया है.''- डॉ. नवल किशोर चौधरी, भागलपुर, डीएम
कुपोषण से जूझते बच्चों के लिए हेल्थ सपोर्ट सिस्टम : इस अभियान में विशेष ध्यान दिया गया कि कुपोषित बच्चों को मेडिकल देखरेख, पौष्टिक आहार, और मानसिक समर्थन मिले. 1110 बच्चों को अस्पतालों में भर्ती कर उनके इलाज की व्यवस्था की गई, जहां स्पेशल बेड और एंबुलेंस जैसी सेवाएं उपलब्ध कराई गईं. इसके अलावा, कुपोषित बच्चों के अभिभावकों के लिए मुफ्त रहने और खाने की व्यवस्था भी की गई.
''जन्म से ही मेरे बच्चे कमजोर थे, वजन भी उम्र के हिसाब से कम था. इसलिए इसका देखरेख आशा कर्मी और जीविका दीदी करती थीं, अब मेरे बच्चे पहले से स्वस्थ हैं. दीदी लोग घर पर आकर हमारे बच्चे का हाल-चाल जानती थी और खाने पीने का सामान देतीं थीं. खिलाने का तरीका बताती थीं. अब मेरे बच्चे बहुत स्वस्थ हैं, बहुत अच्छा लग रहा है.''- सविता देवी, बच्चे की मां
समाज की जिम्मेदारी और कुपोषण का समाधान : कुपोषण केवल सरकारी प्रयासों से नहीं, बल्कि समाज के हर स्तर पर सहयोग से ही समाप्त किया जा सकता है. समाज के प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना होगा कि स्वस्थ समाज के लिए कुपोषण किसी कलंक से कम नहीं. कुपोषण के खिलाफ उठाए गए कदम समाज के हर वर्ग को प्रभावित करते हैं और इसके समाधान के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है.
कुपोषण के खिलाफ जंग : कुपोषण से लड़ाई एक लंबी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है, लेकिन अगर सही दिशा में प्रयास किए जाएं, तो निश्चित रूप से इसे खत्म किया जा सकता है. भागलपुर जिले का 'मिशन 45' इसका एक बेहतरीन उदाहरण है, जहां सामूहिक प्रयासों और सामाजिक सहयोग से कुपोषण पर काबू पाया गया. कुपोषण के खिलाफ यह सफलता समाज के लिए एक प्रेरणा है, जो हमें यह सिखाती है कि यदि सरकार, समाज और समुदाय मिलकर प्रयास करें तो कोई भी समस्या बड़ी नहीं होती.
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