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EXCLUSIVE: देश को ओलंपिक पदक दिलाने वाली पहली भारतीय महिला कर्णम मल्लेश्वरी का इंटरव्यू - Paris Olympics 2024

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jul 26, 2024, 6:32 PM IST

Updated : Jul 26, 2024, 10:15 PM IST

भारत को ओलंपिक पदक दिलाने वाली पहली भारतीय महिला वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी ने ईटीवी भारत को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कहा है कि, 'ओलंपिक में वेटलिफ्टिंग में दूसरा पदक पाने में 20 साल लगने का कारण ग्रामीण लोगों के लिए सुविधाओं का अभाव है'. पढे़ं पूरी खबर.

Karnam Malleswari
कर्णम मल्लेश्वरी (Getty Images)

हैदराबाद : 'ओलंपिक में पदक जीतना बहुत मुश्किल है'... यही उनसे कहा गया था! लेकिन उनका मानना ​​था कि अगर आप कड़ी मेहनत करें तो कुछ भी संभव है. इसलिए, उनके द्वारा देश को ओलंपिक पदक दिलाया गया. कर्णम मल्लेश्वरी इसे हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. जब 'ईटीवी भारत' ने इस तेलुगु दिग्गज का अभिवादन किया, तो उन्होंने अपने अनुभव बताए.

Karnam Malleswari
कर्णम मल्लेश्वरी (Getty Images)

मल्लेश्वरी ने कहा, 'मैं श्रीकाकुलम जिले में पैदा हुई और पली-बढ़ी. मेरी बड़ी बहन और कुछ लड़कियां वेटलिफ्टिंग कर रही थीं और मैं सीखना चाहती थी. लेकिन कोच ने मेरी तरफ देखा और कहा, 'तुम वेटलिफ्टिंग के लिए फिट नहीं हो, और बेहतर होगा कि तुम घर के कामों में अपनी मां की मदद करो' उस शब्द ने मुझे गुस्सा दिलाया. दूसरे कैसे तय करते हैं कि मैं क्या कर सकती हूं और क्या नहीं? मेरे पास अच्छा अभ्यास करने और पदक जीतने का दृढ़ संकल्प था. कोई कोच नहीं है. मैंने 12 साल की उम्र में दूसरों को देखना सीखा. पुराने उपकरणों से मिट्टी में अभ्यास किया'.

कोच ने पहचानी प्रतिभा
उन्होंने कहा, '1990 के एशियाई खेलों के ट्रायल एनआईए सेंटर, बैंगलोर में हुए थे. मेरी बड़ी बहन कैंप में थी और मैं अपने चाचाओं के साथ गई थी. मैं कैंप के एक कोने में बैठी खिलाड़ियों को देख रही थी. मैं सुबह 8 बजे आई रात के 9 बज चुके थे, फिर भी मैं खाना खाए बिना देख रही थी. रूसी कोच नादी रेबाकन जो तब विदेशी कोच थे, ने यह देखा. उन्होंने मुझे बुलाया और कहा 'क्या तुम्हें वेटलिफ्टिंग पसंद है? क्या तुमने अभ्यास किया है? मुझे अपने बारे में और बताओ. उन्होंने लड़कियों को पोशाक दी और मुझसे कहा कि मैं कितना स्नैच कर सकती हूं. मैंने किया. उन्होंने मेरी प्रतिभा को पहचाना और मुझे इंडिया कैंप में शामिल करने के लिए कहा, जहां केवल राष्ट्रीय स्तर के पदक जीतने वालों को ही लिया जाता है. उन्होंने मुझे मौका दिया, जो कभी जिले स्तर पर भी नहीं खेली थी. इसके बाद उन्होंने 10 महीने तक कोचिंग दी'.

Karnam Malleswari
कर्णम मल्लेश्वरी (Getty Images)

पूरी टीम ने मिलकर गाया राष्ट्रगान
मल्लेश्वरी ने बताया कि, '1991 उदयपुर जूनियर नेशनल चैंपियनशिप... मेरी पहली प्रतियोगिता थी. इसमें मैंने 3 स्वर्ण पदक जीते. उसके बाद 1992 और 93 की विश्व चैंपियनशिप में मैंने रजत और कांस्य पदक जीते. 1994 में मैं एकल विश्व चैंपियन बनी. कोचों के बीच एक राय थी कि 'हमारी लड़कियां स्वर्ण पदक नहीं ला पाएंगी'.

तुर्की में एक प्रतियोगिता में मुझे स्वर्ण पदक मिला क्योंकि मेरी प्रतिद्वंद्वी लड़की ने ड्रग्स लिया था. उन्होंने कहा कि तुम्हें स्वर्ण पदक उस लड़की के ड्रग्स लेने के कारण मिला है. यह कहते हुए दुख होता है कि यह मेरी मेहनत से नहीं बल्कि किस्मत से मिला है. मैंने उस राय को बदलने के लिए एक साल तक कड़ी मेहनत की. चीन में मैंने उस देश की लड़की को हराकर स्वर्ण पदक जीता. यह एक विश्व रिकॉर्ड भी है. उस समय आमतौर पर राष्ट्रगान बजाया जाता है. लेकिन हमें विश्वास नहीं था कि हम जीत जाएंगे, इसलिए हम इसे अपने साथ नहीं लाए. लेकिन पूरी टीम ने मिलकर राष्ट्रगान गाया. उन यादों को याद करके आज भी खुशी होती है'.

हमें ठीक से खाना नहीं मिल पाता था
उन्होंने कहा, 'दूसरे देशों में प्रतियोगिताओं में जाने पर कई मुश्किलें आती थीं. मैंने हमेशा प्रतियोगिताओं और अपने प्रदर्शन पर ही ध्यान केंद्रित किया. तब ठीक से खाना मिलना बहुत मुश्किल था. हमारे प्रबंधन को हम पर भरोसा नहीं था. लंबे समय तक इंतजार करने के बाद 2000 में ओलंपिक का मौका आया. तब ओलंपिक में भाग लेने के बारे में ज़्यादा सोचा जाता था. 'इन 100 सालों में किसी लड़की ने पदक नहीं जीता' कहकर बहुतों ने हमें हतोत्साहित किया. मैंने अपनी राय से छुटकारा पाने की बहुत कोशिश की. लेकिन 2 किलो के अंदर ही सोना फिसल गया और कांस्य पदक जीत लिया. तब की तुलना में अब सुविधाएं ज़्यादा हैं. वे हमें एक दिन पहले जाने और दूसरे दिन वापस आने के लिए कहते थे. सिर्फ़ एक कोच था. लेकिन अब वे विदेश में प्रशिक्षण दे रहे हैं. डॉक्टर, फिजियोथेरेपिस्ट, मसाजर... एथलीट के साथ 10 लोग जा रहे हैं. उस समय सरकार ने मुझे 6 लाख रुपए दिए थे, अब वे विजेताओं को करोड़ों रुपए दे रहे हैं.

Karnam Malleswari
कर्णम मल्लेश्वरी (ETV Bharat)

अकादमी स्थापित करने के लिए कहा
मल्लेश्वरी ने बताया, 'जब किंजरापु अच्चेन्नायडू खेल मंत्री थे, तब आंध्र प्रदेश में एक अकादमी स्थापित की गई थी. इसके लिए श्रीकाकुलम, अमादलावलासा और विजयनगरम के आसपास के गांवों का दौरा किया गया. मुझे लगा कि अगर अकादमी बनेगी तो खिलाड़ियों को निखारा जा सकेगा. लेकिन सरकार बदलने के बाद यह आगे नहीं बढ़ पाया. मैंने हरियाणा में अकादमी बनाई. यहां तेलुगू राज्यों के 300 बच्चे हैं. देश में कई लोग वेटलिफ्टिंग को करियर के तौर पर अपना रहे हैं. उनके लिए एनआईए संगठनों से राष्ट्रीय स्तर के पदक जीतने वाले ही इन कैंपों में शामिल हो सकते हैं. अगर बाकी लोगों को उचित प्रशिक्षण और सुविधाएं दी जाएं तो वे भी बेहतर प्रदर्शन करेंगे'.

उन्होंने कहा, 'ओलंपिक में वेटलिफ्टिंग में दूसरा पदक पाने में 20 साल लगने का कारण ग्रामीण लोगों के लिए सुविधाओं का अभाव है! उन्हें प्रोत्साहित करना मिट्टी में माणिक खोदने जैसा है! हमारे खेल विश्वविद्यालय में प्रतिभा ही पुरस्कार है. यहां पढ़ाई और खेल 30:70 के अनुपात में होते हैं. हमारे छात्र राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग ले रहे हैं. भविष्य में वे ओलंपिक पदक लाएंगे, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है'.

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Karnam Malleswari
कर्णम मल्लेश्वरी (Getty Images)

मल्लेश्वरी ने कहा, 'मैं श्रीकाकुलम जिले में पैदा हुई और पली-बढ़ी. मेरी बड़ी बहन और कुछ लड़कियां वेटलिफ्टिंग कर रही थीं और मैं सीखना चाहती थी. लेकिन कोच ने मेरी तरफ देखा और कहा, 'तुम वेटलिफ्टिंग के लिए फिट नहीं हो, और बेहतर होगा कि तुम घर के कामों में अपनी मां की मदद करो' उस शब्द ने मुझे गुस्सा दिलाया. दूसरे कैसे तय करते हैं कि मैं क्या कर सकती हूं और क्या नहीं? मेरे पास अच्छा अभ्यास करने और पदक जीतने का दृढ़ संकल्प था. कोई कोच नहीं है. मैंने 12 साल की उम्र में दूसरों को देखना सीखा. पुराने उपकरणों से मिट्टी में अभ्यास किया'.

कोच ने पहचानी प्रतिभा
उन्होंने कहा, '1990 के एशियाई खेलों के ट्रायल एनआईए सेंटर, बैंगलोर में हुए थे. मेरी बड़ी बहन कैंप में थी और मैं अपने चाचाओं के साथ गई थी. मैं कैंप के एक कोने में बैठी खिलाड़ियों को देख रही थी. मैं सुबह 8 बजे आई रात के 9 बज चुके थे, फिर भी मैं खाना खाए बिना देख रही थी. रूसी कोच नादी रेबाकन जो तब विदेशी कोच थे, ने यह देखा. उन्होंने मुझे बुलाया और कहा 'क्या तुम्हें वेटलिफ्टिंग पसंद है? क्या तुमने अभ्यास किया है? मुझे अपने बारे में और बताओ. उन्होंने लड़कियों को पोशाक दी और मुझसे कहा कि मैं कितना स्नैच कर सकती हूं. मैंने किया. उन्होंने मेरी प्रतिभा को पहचाना और मुझे इंडिया कैंप में शामिल करने के लिए कहा, जहां केवल राष्ट्रीय स्तर के पदक जीतने वालों को ही लिया जाता है. उन्होंने मुझे मौका दिया, जो कभी जिले स्तर पर भी नहीं खेली थी. इसके बाद उन्होंने 10 महीने तक कोचिंग दी'.

Karnam Malleswari
कर्णम मल्लेश्वरी (Getty Images)

पूरी टीम ने मिलकर गाया राष्ट्रगान
मल्लेश्वरी ने बताया कि, '1991 उदयपुर जूनियर नेशनल चैंपियनशिप... मेरी पहली प्रतियोगिता थी. इसमें मैंने 3 स्वर्ण पदक जीते. उसके बाद 1992 और 93 की विश्व चैंपियनशिप में मैंने रजत और कांस्य पदक जीते. 1994 में मैं एकल विश्व चैंपियन बनी. कोचों के बीच एक राय थी कि 'हमारी लड़कियां स्वर्ण पदक नहीं ला पाएंगी'.

तुर्की में एक प्रतियोगिता में मुझे स्वर्ण पदक मिला क्योंकि मेरी प्रतिद्वंद्वी लड़की ने ड्रग्स लिया था. उन्होंने कहा कि तुम्हें स्वर्ण पदक उस लड़की के ड्रग्स लेने के कारण मिला है. यह कहते हुए दुख होता है कि यह मेरी मेहनत से नहीं बल्कि किस्मत से मिला है. मैंने उस राय को बदलने के लिए एक साल तक कड़ी मेहनत की. चीन में मैंने उस देश की लड़की को हराकर स्वर्ण पदक जीता. यह एक विश्व रिकॉर्ड भी है. उस समय आमतौर पर राष्ट्रगान बजाया जाता है. लेकिन हमें विश्वास नहीं था कि हम जीत जाएंगे, इसलिए हम इसे अपने साथ नहीं लाए. लेकिन पूरी टीम ने मिलकर राष्ट्रगान गाया. उन यादों को याद करके आज भी खुशी होती है'.

हमें ठीक से खाना नहीं मिल पाता था
उन्होंने कहा, 'दूसरे देशों में प्रतियोगिताओं में जाने पर कई मुश्किलें आती थीं. मैंने हमेशा प्रतियोगिताओं और अपने प्रदर्शन पर ही ध्यान केंद्रित किया. तब ठीक से खाना मिलना बहुत मुश्किल था. हमारे प्रबंधन को हम पर भरोसा नहीं था. लंबे समय तक इंतजार करने के बाद 2000 में ओलंपिक का मौका आया. तब ओलंपिक में भाग लेने के बारे में ज़्यादा सोचा जाता था. 'इन 100 सालों में किसी लड़की ने पदक नहीं जीता' कहकर बहुतों ने हमें हतोत्साहित किया. मैंने अपनी राय से छुटकारा पाने की बहुत कोशिश की. लेकिन 2 किलो के अंदर ही सोना फिसल गया और कांस्य पदक जीत लिया. तब की तुलना में अब सुविधाएं ज़्यादा हैं. वे हमें एक दिन पहले जाने और दूसरे दिन वापस आने के लिए कहते थे. सिर्फ़ एक कोच था. लेकिन अब वे विदेश में प्रशिक्षण दे रहे हैं. डॉक्टर, फिजियोथेरेपिस्ट, मसाजर... एथलीट के साथ 10 लोग जा रहे हैं. उस समय सरकार ने मुझे 6 लाख रुपए दिए थे, अब वे विजेताओं को करोड़ों रुपए दे रहे हैं.

Karnam Malleswari
कर्णम मल्लेश्वरी (ETV Bharat)

अकादमी स्थापित करने के लिए कहा
मल्लेश्वरी ने बताया, 'जब किंजरापु अच्चेन्नायडू खेल मंत्री थे, तब आंध्र प्रदेश में एक अकादमी स्थापित की गई थी. इसके लिए श्रीकाकुलम, अमादलावलासा और विजयनगरम के आसपास के गांवों का दौरा किया गया. मुझे लगा कि अगर अकादमी बनेगी तो खिलाड़ियों को निखारा जा सकेगा. लेकिन सरकार बदलने के बाद यह आगे नहीं बढ़ पाया. मैंने हरियाणा में अकादमी बनाई. यहां तेलुगू राज्यों के 300 बच्चे हैं. देश में कई लोग वेटलिफ्टिंग को करियर के तौर पर अपना रहे हैं. उनके लिए एनआईए संगठनों से राष्ट्रीय स्तर के पदक जीतने वाले ही इन कैंपों में शामिल हो सकते हैं. अगर बाकी लोगों को उचित प्रशिक्षण और सुविधाएं दी जाएं तो वे भी बेहतर प्रदर्शन करेंगे'.

उन्होंने कहा, 'ओलंपिक में वेटलिफ्टिंग में दूसरा पदक पाने में 20 साल लगने का कारण ग्रामीण लोगों के लिए सुविधाओं का अभाव है! उन्हें प्रोत्साहित करना मिट्टी में माणिक खोदने जैसा है! हमारे खेल विश्वविद्यालय में प्रतिभा ही पुरस्कार है. यहां पढ़ाई और खेल 30:70 के अनुपात में होते हैं. हमारे छात्र राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग ले रहे हैं. भविष्य में वे ओलंपिक पदक लाएंगे, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है'.

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Last Updated : Jul 26, 2024, 10:15 PM IST
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