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115 साल पहले दादा साहेब फाल्के ने रखी थी भारतीय सिनेमा की नींव, समाज के खिलाफ जाकर महिलाओं को दिया फिल्मों में मौका - DADASHAEB PHALKE

भारतीय सिनेमा के पितामह कहे जाने वाले दादा साहेब फाल्के की आज 16 फरवरी को डेथ एनिवर्सी है. जानें उनके बारे में कुछ जरूरी बातें.

Dadasaheb Phalke
दादा साहेब फाल्के (Getty Images)
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By ETV Bharat Entertainment Team

Published : Feb 16, 2025, 5:36 PM IST

हैदराबाद: भारतीय सिनेमा में हर साल प्रतिभाशाली हस्तियों को दादा साहेब अवॉर्ड से सम्मानित किया जाता है. आज दादा साहेब हमारे बीच नहीं है लेकिन इस चमकती हुई फिल्म इंडस्ट्री की नींव उन्हीं ने रखी थी. दादा साहेब ने ही भारतीय सिनेमा की पहली स्क्रिप्ट लिखी और आर्थिक स्थिति मजबूत ना होने के बावजूद उन्होंने फिल्म बनाने का सपना देखा और उसे पूरा भी किया. इसीलिए उन्हें भारतीय सिनेमा के जनक की उपाधि दी गई है.

'राजा हरिश्चंद्र' थी पहली फिल्म

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को आकार देने में दादा साहेब ने अतुलनीय योगदान दिया है, उन्होंने ही भारतीय सिनेमा की नींव रखी. वे एक बेहतरीन डायरेक्टर, राइटर और प्रोड्यूसर थे. उन्होंने अपने 19 साल के करियर में 94 फीचर फील्म्स और 27 शॉर्ट फिल्में बनाईं. उनकी पहली फिल्म 'राजा हरिशचंद्र' थी जो 1913 में रिलीज हुई. जिसके बाद उन्होंने 'मोहिनी भस्मासुर', 'सत्यवान सावित्री', 'लंका दहन', 'श्री कृष्ण जन्म' जैसी फिल्में इंडियन सिनेमा को दी. उन्हीं के नाम पर भारत सरकार ने 1969 में दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड की शुरुआती की.

समाज के खिलाफ जाकर महिलाओं को दिए रोल

उस समय भारतीय समाज में महिलाओं को फिल्मों में काम करना समाज को स्वीकार्य नहीं था. अपनी फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' में उन्होंने हरिश्चंद्र की पत्नी रानी तारामती का रोल प्ले करने के लिए भी एक मेल एक्टर को रखा था. लेकिन उन्होंने ठान लिया था कि अपनी दूसरी फिल्म मोहिनी भस्मासुर में वे फीमेल एक्टर को ही कास्ट करेंगे. तब उन्होंने दुर्गाबाई कामत को पार्वती की भूमिका दी और इस तरह भारतीय सिनेमा में उन्होंने फीमेल एक्ट्रेस को पहचान दिलाई. इसी फिल्म में उन्होंने कमलाबाई गोखले को मोहिनी का किरदार भी दिया. कुछ सालों बाद उन्होंने फिल्म लंका दहन और श्री कृष्ण जन्म में अपनी बेटी मंदाकिनी फाल्के को भी कास्ट किया. इसके अलावा उनकी पत्नी सरस्वती बाई भारत की पहली महिला थी जिन्होंने राजा हरिश्चंद्र जैसी फिल्म में संपादक का काम किया था. इस तरह दादा साहेब फाल्के ने भारतीय सिनेमा में महिलाओं के लिए अवसर प्रदान किए.

दादा साहेबा फाल्के के लिए भारतीय सिनेमा को इतना आगे तक पहुंचाना इतना आसान नहीं था. उन्होंने आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद अपना सपना पूरा किया यहां तक उन्हें फिल्म बनाने के लिए अपनी पत्नी के गहने तक बेचने पड़े लेकिन उन्होंने अपने पैर पीछे नहीं किए. हर स्थिति से लड़कर उन्होंने भारतीय सिनेमा को विश्व में एक मुकाम दिलाया और आज इंडियन सिनेमा में दादा साहेब फाल्के का नाम गर्व से लिया जाता है और उनके योगदान को हमेशा याद किया जाता है.

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'राजा हरिश्चंद्र' थी पहली फिल्म

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को आकार देने में दादा साहेब ने अतुलनीय योगदान दिया है, उन्होंने ही भारतीय सिनेमा की नींव रखी. वे एक बेहतरीन डायरेक्टर, राइटर और प्रोड्यूसर थे. उन्होंने अपने 19 साल के करियर में 94 फीचर फील्म्स और 27 शॉर्ट फिल्में बनाईं. उनकी पहली फिल्म 'राजा हरिशचंद्र' थी जो 1913 में रिलीज हुई. जिसके बाद उन्होंने 'मोहिनी भस्मासुर', 'सत्यवान सावित्री', 'लंका दहन', 'श्री कृष्ण जन्म' जैसी फिल्में इंडियन सिनेमा को दी. उन्हीं के नाम पर भारत सरकार ने 1969 में दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड की शुरुआती की.

समाज के खिलाफ जाकर महिलाओं को दिए रोल

उस समय भारतीय समाज में महिलाओं को फिल्मों में काम करना समाज को स्वीकार्य नहीं था. अपनी फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' में उन्होंने हरिश्चंद्र की पत्नी रानी तारामती का रोल प्ले करने के लिए भी एक मेल एक्टर को रखा था. लेकिन उन्होंने ठान लिया था कि अपनी दूसरी फिल्म मोहिनी भस्मासुर में वे फीमेल एक्टर को ही कास्ट करेंगे. तब उन्होंने दुर्गाबाई कामत को पार्वती की भूमिका दी और इस तरह भारतीय सिनेमा में उन्होंने फीमेल एक्ट्रेस को पहचान दिलाई. इसी फिल्म में उन्होंने कमलाबाई गोखले को मोहिनी का किरदार भी दिया. कुछ सालों बाद उन्होंने फिल्म लंका दहन और श्री कृष्ण जन्म में अपनी बेटी मंदाकिनी फाल्के को भी कास्ट किया. इसके अलावा उनकी पत्नी सरस्वती बाई भारत की पहली महिला थी जिन्होंने राजा हरिश्चंद्र जैसी फिल्म में संपादक का काम किया था. इस तरह दादा साहेब फाल्के ने भारतीय सिनेमा में महिलाओं के लिए अवसर प्रदान किए.

दादा साहेबा फाल्के के लिए भारतीय सिनेमा को इतना आगे तक पहुंचाना इतना आसान नहीं था. उन्होंने आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद अपना सपना पूरा किया यहां तक उन्हें फिल्म बनाने के लिए अपनी पत्नी के गहने तक बेचने पड़े लेकिन उन्होंने अपने पैर पीछे नहीं किए. हर स्थिति से लड़कर उन्होंने भारतीय सिनेमा को विश्व में एक मुकाम दिलाया और आज इंडियन सिनेमा में दादा साहेब फाल्के का नाम गर्व से लिया जाता है और उनके योगदान को हमेशा याद किया जाता है.

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