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सनातन धर्म में क्या है मुंडन संस्कार, जानिए महत्व और जन्म के कितने समय बाद करना चाहिए - Mundan Sanskar

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 6, 2024, 8:25 AM IST

मुंडन संस्कार का महत्व
मुंडन संस्कार का महत्व (Etv Bharat)

हिंदू धर्म में जन्म के बाद बच्चे का मुंडन कराना बहुत जरूरी है. क्योंकि ये उसके पिछले जन्म और स्वास्थ से जुड़ा है. मुंडन को सनातन धर्म पवित्र माना जाता है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. सनातन हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों को बहुत अहम माना जाता है और इन्हें लेकर कई मान्यताएं भी है. ऐसा माना जाता है की मुंडन संस्कार से बच्चे को पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है. पढ़ें पूरी खबर

पटना: सनातन धर्म में जन्म से लेकर अंतिम संस्कार तक अलग-अलग नियम है. 16 संस्कारों में से एक मुंडन का भी महत्व है. मुंडन को सनातन धर्म पवित्र माना जाता है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. कई लोग छठ महापर्व या किसी धार्मिक स्थल पर जाते हैं तो पुत्र प्राप्ति की कामना करते हैं. मन्नत के साथ जब पुत्र की प्राप्ति होती है तो जिस धार्मिक स्थल पर मन्नत मांगा रहता है. उसी स्थान पर जाकर बच्चे का मुंडन कराया जाता है. सनातन धर्म में मुंडन का क्या है. महत्व आपको बताने जा रहे हैं. आचार्य रामशंकर दूबे ने बताया कि भारतीय परंपरा में बच्चों का मुंडन संस्कार और इसके अलावा अंतिम संस्कार के समय में मुंडन कराने का महत्व धर्म शास्त्रों में बताया गया है.

पूर्व जन्म के पाप से मुक्ति दिलाता है मुंडन संस्कार: धार्मिक मान्यता के अनुसार जब बच्चा मां के गर्भ में 9 महीने तक पलता है. जब शिशु गर्भ से बाहर आता है तो उसके सिर के बाल उसके माता-पिता के दिए होते हैं. जब वह दुनिया में आता है तो उसके गर्भ में रहने के दरमियान कई अशुद्धियां रहती है. पिछली जिंदगी की बुराइयों से दूर करने के लिए बच्चों के सिर के पूरे बाल को साफ करवाया जाता है जिसे मुंडन कहते. बच्चे का बल, तेज और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए मुंडन संस्कार को बहुत ही अहम माना गया है.आचार्य रामशंकर दूबे ने बताया कि कई लोग भोजपुरी बोलचाल के भाषा में कहते हैं कि मेरा बच्चा का जन्म उस मंदिर में गई थी मन्नत मांगी थी तो पूरा हुआ है. उसी स्थान पर जाकर मुंडन कराएंगे.

कब कराना चाहिए मंडन: बच्चे के जन्म लेने के बाद 1 साल के अंत या तीसरे, पांचवे या फिर सातवें साल में शुभ मुहूर्त देखकर ही मुंडन संस्कार कराए जाने की प्रथा है. उसी उम्र में मुंडन करने का मन्नत मांगते हैं. जब उनका बच्चा मन्नत के अनुसार उस उम्र में पहुंच जाता है तो उसी स्थान पर जाकर के मुंडन कराया जाता है. पंचांग के अनुसार मुंडन संस्कार के लिए द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी तिथि शुभ मानी जाती है.

चोटी छोड़ने की परम्परा: सनातन धर्म की कुछ परम्पराओं में मुंडन के दौरान एक चोटी छोड़ दी जाती है. इसके पीछे मान्यता है की चोटी मस्तिष्क को सुरक्षा देती है. सनातन धर्म में कई जाति के लोग ऐसा नहीं करते हैं लेकिन ब्राह्मण में यह विधिवत रूप से की जाती है . जब मुंडन संस्कार होता है तो ब्राह्मण के द्वारा पूजा कराया जाता है. जिस बच्चे का मुंडन होना होता है उसकी मां बच्चों को गोद में लेती है फिर संकल्प कराया जाता है. उसके बाद हजाम ठाकुर उसी स्थान पर बच्चों का बाल हटाते हैं.

मां अपने आंचल में रखती हैं बाल: आचार्य रामशंकर दूबे ने बताया कि मुंडन के दौरान उस बाल को मां अपने आंचल में लेती है भगवान को अर्पित करती है. पूजा अर्चना करके घर पर आकर के अपने सगे संबंधी आसपास पड़ोसी को दावत भी देते है. उन्होंने बताया कि बिहार के अधिकांश लोग मुंडन संस्कार के लिए देवघर, सोनपुर हरिहरनाथ, बनारस काशी विश्वनाथ और कई धार्मिक स्थल पर जाकर करते हैं.

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