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भारतीय राजदूत के तौर पर अमेरिका भेजे गए क्वात्रा? मोदी सरकार ने पहली बार किया यह काम - Vinay Mohan Kwatra - VINAY MOHAN KWATRA

Vinay Mohan Kwatra: जानकारी के मुताबिक पूर्व विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा का नाम अमेरिका में भारत के नए राजदूत के रूप में वाशिंगटन भेजा गया है. क्वात्रा आईएफएस अधिकारी तरनजीत सिंह संधू की जगह लेंगे.

Kwatra
पूर्व विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा (ANI)
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By Aroonim Bhuyan

Published : Jul 18, 2024, 3:47 PM IST

Updated : Jul 19, 2024, 9:27 AM IST

नई दिल्ली: ऐसी खबरें आ रही हैं कि पूर्व विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा का नाम अमेरिका में भारत के नए राजदूत के रूप में वाशिंगटन भेजा गया है. यह पहली मौका होगा जब नरेंद्र मोदी सरकार किसी राजनीतिक नियुक्ति के जरिए पश्चिमी शक्ति के साथ शीर्ष स्तर पर कूटनीतिक जुड़ाव स्थापित करेगी.1988 बैच के भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारी क्वात्रा इस महीने की शुरुआत में विदेश सचिव के पद से रिटायर हुए थे.

15 जुलाई को उनकी जगह विक्रम मिसरी ने ली, जो उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में काम कर चुके हैं. क्वात्रा की नियुक्ति मौजूदा मोदी सरकार की उस परंपरा से अलग है, जिसमें किसी सेवारत आईएफएस अधिकारी को अमेरिका में राजदूत नियुक्त किया जाता है. क्वात्रा उस पद को भरेंगे जो 1988 बैच के एक अन्य आईएफएस अधिकारी तरनजीत सिंह संधू के सेवानिवृत्त होने के बाद से खाली पड़ा है.

सेवानिवृत्ति के बाद अमेरिका में शीर्ष भारतीय राजनयिक के पद पर क्वात्रा की नियुक्ति को राजनीतिक रूप से देखा जा रहा है. हालांकि, राजनयिक पदों पर राजनीतिक नियुक्तियां असामान्य नहीं हैं, लेकिन यह पहली बार है कि मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता में आने के बाद से अमेरिका के लिए यह विकल्प चुना है, जिसके साथ भारत एक व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी साझा करता है.

रिटायर होने के बाद निरुपमा राव बनी थीं राजदूत
इससे पहले 2011 में भी भारत सरकार ने निरुपमा राव को विदेश सचिव के पद से रिटायर होने के बाद इस प्रतिष्ठित पद के लिए नामित किया था. हालांकि, उनके बाद वर्तमान विदेश मंत्री एस जयशंकर, अरुण कुमार सिंह, नवतेज सरना, हर्षवर्धन श्रृंगला और तरनजीत सिंह संधू ने कार्यभार संभाला, जो सभी सेवारत आईएफएस अधिकारी थे.

कंवल सिब्बल और रंजन मथाई भी बने राजदूत
वैसे रिटायर आईएफएस अधिकारियों की महत्वपूर्ण राजदूत पदों पर नियुक्ति कोई नई बात नहीं है. निरुपमा राव के अलावा कंवल सिब्बल और रंजन मथाई को भी राददूत नियुक्त किया गया था . 1966 बैच के आईएफएस अधिकारी सिब्बल नवंबर 2003 में विदेश सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए. इसके बाद, वे 2004 में रूस में भारत के राजदूत रहे, जहां उन्होंने 2007 तक काम किया.

कंवल सिब्बल का शानदार कैरियर
सिब्बल का भारतीय विदेश सेवा में लंबा और शानदार कैरियर रहा है, वे 1966 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए और उन्होंने तुर्की, मिस्र और फ्रांस में राजदूत सहित विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. सिब्बल को रूस-भारत संबंधों की गहरी जानकारी थी, जो भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू है.

रूस भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है, खासकर रक्षा, ऊर्जा और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति जैसे क्षेत्रों में. ऐसे में कंवल सिब्बल जैसे अनुभवी राजनयिक का होना इस रिश्ते को संभालने और बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण था. उनकी बातचीत की स्किल और अंतरराष्ट्रीय समकक्षों के साथ प्रभावी ढंग से जुड़ने की क्षमता उनकी नियुक्ति में अहम फैक्टर थे.

वहीं, 1974 बैच के आईएफएस अधिकारी मथाई 2013 में विदेश सचिव के पद से रिटायर हुए. उन्होंने अपने शानदार करियर के दौरान इजरायल, कतर और फ्रांस में भारत के राजदूत और यूके में उप उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया. जुलाई 2013 में विदेश सचिव के रूप में रिटायर होने के बाद उन्हें उसी साल दिसंबर में यूके में भारतीय उच्चायुक्त नियुक्त किया गया.

मथाई भी बने राजदूत
मथाई को यूके सहित दुनिया की प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ भारत के संबंधों का काफी अनुभव और समझ थी. बहुआयामी भारत-यूके संबंधों के प्रबंधन में उनकी विशेषज्ञता महत्वपूर्ण थी, जिसमें व्यापार, निवेश, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और रणनीतिक सहयोग शामिल हैं. यूके व्यापार, शिक्षा, रक्षा और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति जैसे कई क्षेत्रों में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार है. लंदन में मथाई जैसे अनुभवी राजनयिक का होना इन संबंधों को आगे बढ़ाने में सहायक था. रिटायर राजनयिकों को महत्वपूर्ण राजदूत पदों पर नियुक्त करना एक ऐसी प्रथा है, जो उनके बहुमूल्य योगदान को मान्यता देती है और यह सुनिश्चित करती है कि उनकी विशेषज्ञता से देश को लाभ मिलता रहे.

फ्रांस और नेपाल में पूर्व राजदूत क्वात्रा विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव के रूप में कार्य कर चुके हैं. उन्होंने मई 2010 से जुलाई 2013 तक वाशिंगटन में भारतीय दूतावास में वाणिज्य मंत्री के रूप में भी कार्य किया है. जुलाई 2013 से अक्टूबर 2015 के बीच क्वात्रा विदेश मंत्रालय के नीति नियोजन और रिसर्च डिवीजन के प्रमुख रहे और बाद में विदेश मंत्रालय में अमेरिका डिविजन के हेड के रूप में कार्य किया, जहां उन्होंने अमेरिका और कनाडा के साथ भारत के संबंधों को देखा.

वाशिंगटन में क्वात्रा की संभावित नियुक्ति अमेरिका में नए राष्ट्रपति के चुनाव से कुछ महीने पहले होगी. हालांकि, पिछले कुछ दशकों में भारत-अमेरिका संबंधों में सुधार हुआ है, फिर भी नई दिल्ली ने एक देश के साथ तीसरे देश से स्वतंत्र राजनयिक संबंध बनाए रखने की अपनी पुरानी स्थिति को बनाए रखा है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बावजूद, नई दिल्ली ने मॉस्को के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे हैं, जोकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हाल ही में हुई वार्षिक द्विपक्षीय शिखर वार्ता के दौरान स्पष्ट हुआ.

वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास में काम करने का अनुभव रखने वाले क्वात्रा को यदि राजदूत नियुक्त किया जाता है तो उनके सामने कई काम होंगे. इनमें शीर्ष अमेरिकी लोगों के साथ बातचीत करना और अगले वर्ष जनवरी में पदभार ग्रहण करने वाले नए राष्ट्रपति के अधीन भारत-अमेरिका संबंधों के भविष्य को आकार देना.

यह भी पढ़ें- चागोस द्वीपसमूह दावे पर मॉरीशस को भारत का समर्थन

नई दिल्ली: ऐसी खबरें आ रही हैं कि पूर्व विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा का नाम अमेरिका में भारत के नए राजदूत के रूप में वाशिंगटन भेजा गया है. यह पहली मौका होगा जब नरेंद्र मोदी सरकार किसी राजनीतिक नियुक्ति के जरिए पश्चिमी शक्ति के साथ शीर्ष स्तर पर कूटनीतिक जुड़ाव स्थापित करेगी.1988 बैच के भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारी क्वात्रा इस महीने की शुरुआत में विदेश सचिव के पद से रिटायर हुए थे.

15 जुलाई को उनकी जगह विक्रम मिसरी ने ली, जो उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में काम कर चुके हैं. क्वात्रा की नियुक्ति मौजूदा मोदी सरकार की उस परंपरा से अलग है, जिसमें किसी सेवारत आईएफएस अधिकारी को अमेरिका में राजदूत नियुक्त किया जाता है. क्वात्रा उस पद को भरेंगे जो 1988 बैच के एक अन्य आईएफएस अधिकारी तरनजीत सिंह संधू के सेवानिवृत्त होने के बाद से खाली पड़ा है.

सेवानिवृत्ति के बाद अमेरिका में शीर्ष भारतीय राजनयिक के पद पर क्वात्रा की नियुक्ति को राजनीतिक रूप से देखा जा रहा है. हालांकि, राजनयिक पदों पर राजनीतिक नियुक्तियां असामान्य नहीं हैं, लेकिन यह पहली बार है कि मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता में आने के बाद से अमेरिका के लिए यह विकल्प चुना है, जिसके साथ भारत एक व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी साझा करता है.

रिटायर होने के बाद निरुपमा राव बनी थीं राजदूत
इससे पहले 2011 में भी भारत सरकार ने निरुपमा राव को विदेश सचिव के पद से रिटायर होने के बाद इस प्रतिष्ठित पद के लिए नामित किया था. हालांकि, उनके बाद वर्तमान विदेश मंत्री एस जयशंकर, अरुण कुमार सिंह, नवतेज सरना, हर्षवर्धन श्रृंगला और तरनजीत सिंह संधू ने कार्यभार संभाला, जो सभी सेवारत आईएफएस अधिकारी थे.

कंवल सिब्बल और रंजन मथाई भी बने राजदूत
वैसे रिटायर आईएफएस अधिकारियों की महत्वपूर्ण राजदूत पदों पर नियुक्ति कोई नई बात नहीं है. निरुपमा राव के अलावा कंवल सिब्बल और रंजन मथाई को भी राददूत नियुक्त किया गया था . 1966 बैच के आईएफएस अधिकारी सिब्बल नवंबर 2003 में विदेश सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए. इसके बाद, वे 2004 में रूस में भारत के राजदूत रहे, जहां उन्होंने 2007 तक काम किया.

कंवल सिब्बल का शानदार कैरियर
सिब्बल का भारतीय विदेश सेवा में लंबा और शानदार कैरियर रहा है, वे 1966 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए और उन्होंने तुर्की, मिस्र और फ्रांस में राजदूत सहित विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. सिब्बल को रूस-भारत संबंधों की गहरी जानकारी थी, जो भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू है.

रूस भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है, खासकर रक्षा, ऊर्जा और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति जैसे क्षेत्रों में. ऐसे में कंवल सिब्बल जैसे अनुभवी राजनयिक का होना इस रिश्ते को संभालने और बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण था. उनकी बातचीत की स्किल और अंतरराष्ट्रीय समकक्षों के साथ प्रभावी ढंग से जुड़ने की क्षमता उनकी नियुक्ति में अहम फैक्टर थे.

वहीं, 1974 बैच के आईएफएस अधिकारी मथाई 2013 में विदेश सचिव के पद से रिटायर हुए. उन्होंने अपने शानदार करियर के दौरान इजरायल, कतर और फ्रांस में भारत के राजदूत और यूके में उप उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया. जुलाई 2013 में विदेश सचिव के रूप में रिटायर होने के बाद उन्हें उसी साल दिसंबर में यूके में भारतीय उच्चायुक्त नियुक्त किया गया.

मथाई भी बने राजदूत
मथाई को यूके सहित दुनिया की प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ भारत के संबंधों का काफी अनुभव और समझ थी. बहुआयामी भारत-यूके संबंधों के प्रबंधन में उनकी विशेषज्ञता महत्वपूर्ण थी, जिसमें व्यापार, निवेश, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और रणनीतिक सहयोग शामिल हैं. यूके व्यापार, शिक्षा, रक्षा और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति जैसे कई क्षेत्रों में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार है. लंदन में मथाई जैसे अनुभवी राजनयिक का होना इन संबंधों को आगे बढ़ाने में सहायक था. रिटायर राजनयिकों को महत्वपूर्ण राजदूत पदों पर नियुक्त करना एक ऐसी प्रथा है, जो उनके बहुमूल्य योगदान को मान्यता देती है और यह सुनिश्चित करती है कि उनकी विशेषज्ञता से देश को लाभ मिलता रहे.

फ्रांस और नेपाल में पूर्व राजदूत क्वात्रा विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव के रूप में कार्य कर चुके हैं. उन्होंने मई 2010 से जुलाई 2013 तक वाशिंगटन में भारतीय दूतावास में वाणिज्य मंत्री के रूप में भी कार्य किया है. जुलाई 2013 से अक्टूबर 2015 के बीच क्वात्रा विदेश मंत्रालय के नीति नियोजन और रिसर्च डिवीजन के प्रमुख रहे और बाद में विदेश मंत्रालय में अमेरिका डिविजन के हेड के रूप में कार्य किया, जहां उन्होंने अमेरिका और कनाडा के साथ भारत के संबंधों को देखा.

वाशिंगटन में क्वात्रा की संभावित नियुक्ति अमेरिका में नए राष्ट्रपति के चुनाव से कुछ महीने पहले होगी. हालांकि, पिछले कुछ दशकों में भारत-अमेरिका संबंधों में सुधार हुआ है, फिर भी नई दिल्ली ने एक देश के साथ तीसरे देश से स्वतंत्र राजनयिक संबंध बनाए रखने की अपनी पुरानी स्थिति को बनाए रखा है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बावजूद, नई दिल्ली ने मॉस्को के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे हैं, जोकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हाल ही में हुई वार्षिक द्विपक्षीय शिखर वार्ता के दौरान स्पष्ट हुआ.

वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास में काम करने का अनुभव रखने वाले क्वात्रा को यदि राजदूत नियुक्त किया जाता है तो उनके सामने कई काम होंगे. इनमें शीर्ष अमेरिकी लोगों के साथ बातचीत करना और अगले वर्ष जनवरी में पदभार ग्रहण करने वाले नए राष्ट्रपति के अधीन भारत-अमेरिका संबंधों के भविष्य को आकार देना.

यह भी पढ़ें- चागोस द्वीपसमूह दावे पर मॉरीशस को भारत का समर्थन

Last Updated : Jul 19, 2024, 9:27 AM IST
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