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सीरिया में तख्तापलट के बाद चीन की बढ़ी टेंशन, 'पुराने दुश्मन' से मिली चुनौती - CHINA AFTER FALL OF ASAD IN SYRIA

सीरिया में बसद की सरकार गिरने के बाद चीन की टेंशन बढ़ गई है. झिंजियांग प्रांत में जिहाद फैलने का खतरा बढ़ गया है.

Xi Xinping
चीन के राष्ट्रपति शि जिनपिंग (IANS)
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By IANS

Published : 6 hours ago

बीजिंग : सीरिया में बशर अल असद की सत्ता का जाना, चीन के लिए एक बड़ी परेशानी की वजह बन सकता है. उइगर बहुल उग्रवादी समूह तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी (टीआईपी) ने सीरिया से चीन के झिंजियांग क्षेत्र तक ‘जिहाद’ फैलाने की घोषणा की है. 8 दिसंबर को जारी एक भड़काऊ वीडियो में ग्रुप ने पहले से कहीं ज्यादा तीखी चीन विरोधी बयानबाजी की.

समूह के 'पूर्वी तुर्किस्तान' पर ध्यान केंद्रित करने की संभावना है. बता दें उइगर अलगाववादी और उनके समर्थक चीन के झिंजियांग या झिंजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र (एक्सयूएआर) को 'पूर्वी तुर्किस्तान' कहते हैं. टीआईपी के नए वीडियो के बाद से क्षेत्र में सुरक्षा और रणनीतिक चिंताएं बढ़ गई हैं.

सुरक्षा पर्यवेक्षकों के अनुसार, 1990 के दशक में झिंजियांग से भागकर टीआईपी ने सीरियाई गृह युद्ध को ट्रेनिंग के मैदान के रूप में इस्तेमाल किया. इसने तबाह देश में प्रमुख इस्लामी विद्रोही गुट हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के साथ गठबंधन किया. पिछले दशक में, टीआईपी के लड़ाकों ने सीरिया में युद्ध का अनुभव प्राप्त किया. उन्होंने अपदस्थ सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद के प्रति वफादार बलों के खिलाफ प्रमुख हमलों में भाग लिया.

ऐसा माना जाता है कि लताकिया और टार्टस जैसे रणनीतिक सीरियाई शहरों पर कब्जा करने में टीआईपी लड़ाकों ने बड़ी भूमिका निभाई. बशर अल-असद शासन के अचानक पतन के साथ, टीआईपी ने पूर्वी तुर्किस्तान (झिंजियांग) को 'आजाद' करने की कसम खाई है, जो राजधानी उरुमकी, काशगर और अक्सू जैसे प्रमुख एक्सयूएआर शहरों के लिए सीधा खतरा है.

समूह के प्रचार वीडियो, जिसमें युद्ध-कौशल वाले लड़ाके और उनकी उन्नत रणनीतियां दिखाई गई हैं, अंतरराष्ट्रीय हमलों को अंजाम देने की उनकी क्षमता के बारे में आशंकाओं को बढ़ाते हैं. इससे बीजिंग के लिए चिंता और बढ़ गई है. हालांकि जानकार ऐसा मानते हैं कि टीआईपी का फिर से उभरना क्षेत्रीय स्थिरता के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. यह एक ऐसा मुद्दा है जो नई दिल्ली के लिए भी मुश्किलें खड़ी सकता है.

झिंजियांग पर टीआईपी का ध्यान संभावित रूप से चीन की पश्चिमी सीमा को अस्थिर कर सकता है, जो मध्य एशिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से सटी हुई है. इस क्षेत्र में अस्थिरता दक्षिण एशिया में सक्रिय चरमपंथी समूहों को प्रभावित करके पूरे क्षेत्र में हलचल पैदा कर सकती है.

पाकिस्तान द्वारा आतंकी समूहों को समर्थन और झिंजियांग से इसकी रणनीतिक निकटता इसे टीआईपी की गतिविधियों का सहायक बना सकती है. जानकारों का कहना है कि भारत के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद में पाकिस्तान की गहरी संलिप्तता को देखते हुए, इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस्लामाबाद टीआईपी की गतिविधियों को मौन समर्थन दे रहा है या इस पर आंखें मूंद रहा है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, टीआईपी वीडियो में उरुमकी, अक्सू और काशगर को निशाना बनाने की बात की गई है. समूह के मुख्य नेता अब्दुल हक अल-तुर्किस्तानी ने उइगरों के साथ चीन के ‘व्यवहार’ को लेकर बदला लेने की बात कही है.

टीआईपी की विचारधारा इस्लामी कट्टरवाद के साथ-साथ चीनी विरोधी भावना पर आधारित है. समूह अपने विरोध को जायज ठहराने के लिए ऐतिहासिक रूप से उइगरों के कथित चीनी दमन का हवाला देता है. टीआईपी नेतृत्व पूर्वी तुर्किस्तान को ‘चीनी कब्जे’ से ‘मुक्त’ कराने की प्रतिबद्धता पर जोर देता है. हालांकि कुछ एक्सपर्ट समूह की वास्तविक सैन्य क्षमताओं पर शक करते हैं.

ये भी पढ़ें : LAC पर भारत-चीन की स्थिति बेहतर नहीं होने की संभावना: एक्सपर्ट - INDIA CHINA AGREEMENT

बीजिंग : सीरिया में बशर अल असद की सत्ता का जाना, चीन के लिए एक बड़ी परेशानी की वजह बन सकता है. उइगर बहुल उग्रवादी समूह तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी (टीआईपी) ने सीरिया से चीन के झिंजियांग क्षेत्र तक ‘जिहाद’ फैलाने की घोषणा की है. 8 दिसंबर को जारी एक भड़काऊ वीडियो में ग्रुप ने पहले से कहीं ज्यादा तीखी चीन विरोधी बयानबाजी की.

समूह के 'पूर्वी तुर्किस्तान' पर ध्यान केंद्रित करने की संभावना है. बता दें उइगर अलगाववादी और उनके समर्थक चीन के झिंजियांग या झिंजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र (एक्सयूएआर) को 'पूर्वी तुर्किस्तान' कहते हैं. टीआईपी के नए वीडियो के बाद से क्षेत्र में सुरक्षा और रणनीतिक चिंताएं बढ़ गई हैं.

सुरक्षा पर्यवेक्षकों के अनुसार, 1990 के दशक में झिंजियांग से भागकर टीआईपी ने सीरियाई गृह युद्ध को ट्रेनिंग के मैदान के रूप में इस्तेमाल किया. इसने तबाह देश में प्रमुख इस्लामी विद्रोही गुट हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के साथ गठबंधन किया. पिछले दशक में, टीआईपी के लड़ाकों ने सीरिया में युद्ध का अनुभव प्राप्त किया. उन्होंने अपदस्थ सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद के प्रति वफादार बलों के खिलाफ प्रमुख हमलों में भाग लिया.

ऐसा माना जाता है कि लताकिया और टार्टस जैसे रणनीतिक सीरियाई शहरों पर कब्जा करने में टीआईपी लड़ाकों ने बड़ी भूमिका निभाई. बशर अल-असद शासन के अचानक पतन के साथ, टीआईपी ने पूर्वी तुर्किस्तान (झिंजियांग) को 'आजाद' करने की कसम खाई है, जो राजधानी उरुमकी, काशगर और अक्सू जैसे प्रमुख एक्सयूएआर शहरों के लिए सीधा खतरा है.

समूह के प्रचार वीडियो, जिसमें युद्ध-कौशल वाले लड़ाके और उनकी उन्नत रणनीतियां दिखाई गई हैं, अंतरराष्ट्रीय हमलों को अंजाम देने की उनकी क्षमता के बारे में आशंकाओं को बढ़ाते हैं. इससे बीजिंग के लिए चिंता और बढ़ गई है. हालांकि जानकार ऐसा मानते हैं कि टीआईपी का फिर से उभरना क्षेत्रीय स्थिरता के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. यह एक ऐसा मुद्दा है जो नई दिल्ली के लिए भी मुश्किलें खड़ी सकता है.

झिंजियांग पर टीआईपी का ध्यान संभावित रूप से चीन की पश्चिमी सीमा को अस्थिर कर सकता है, जो मध्य एशिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से सटी हुई है. इस क्षेत्र में अस्थिरता दक्षिण एशिया में सक्रिय चरमपंथी समूहों को प्रभावित करके पूरे क्षेत्र में हलचल पैदा कर सकती है.

पाकिस्तान द्वारा आतंकी समूहों को समर्थन और झिंजियांग से इसकी रणनीतिक निकटता इसे टीआईपी की गतिविधियों का सहायक बना सकती है. जानकारों का कहना है कि भारत के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद में पाकिस्तान की गहरी संलिप्तता को देखते हुए, इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस्लामाबाद टीआईपी की गतिविधियों को मौन समर्थन दे रहा है या इस पर आंखें मूंद रहा है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, टीआईपी वीडियो में उरुमकी, अक्सू और काशगर को निशाना बनाने की बात की गई है. समूह के मुख्य नेता अब्दुल हक अल-तुर्किस्तानी ने उइगरों के साथ चीन के ‘व्यवहार’ को लेकर बदला लेने की बात कही है.

टीआईपी की विचारधारा इस्लामी कट्टरवाद के साथ-साथ चीनी विरोधी भावना पर आधारित है. समूह अपने विरोध को जायज ठहराने के लिए ऐतिहासिक रूप से उइगरों के कथित चीनी दमन का हवाला देता है. टीआईपी नेतृत्व पूर्वी तुर्किस्तान को ‘चीनी कब्जे’ से ‘मुक्त’ कराने की प्रतिबद्धता पर जोर देता है. हालांकि कुछ एक्सपर्ट समूह की वास्तविक सैन्य क्षमताओं पर शक करते हैं.

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