तेल अवीव: ईरान ने हमला करते हुए इजराइल पर लगभग 200 बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं. शायद ईरान इजराइल समेत दुनिया को अपनी ताकत का एहसास करना चाहता है. इजराइल भले ही यह दावा कर रहा है कि, उसने ईरानी मिसाइलें मार गिराया है लेकिन इसके लिए उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी है.
बता दें कि, पिछले साल 7 अक्टूबर से पश्चिम एशिया तनाव के कारण दहक रहा है. इजराइल, हमास, हिजबुल्लाह, हौथी, इराक और सीरिया में फैले ईरान के कई संगठनों से जूझ रहा है. 7 अक्टूबर को हमास की ओर से इजराइली नागरिकों पर किए गए हमलों ने इस आग को भड़का दिया. इजराइल ने शुरू में गाजा में हमास से निपटने की कोशिश की, लेकिन हिजबुल्लाह के समर्थन ने उसे संघर्ष को आगे ले जाते हुए इसमें लेबनान को भी धकेल दिया.
हिज्बुल्लाह के सर्वोच्च नेता हसन नसरल्ला की हत्या का बदला लेने के लिए ईरान ने मंगलवार की रात को 200 के करीब मिसाइलों की बारिश करके दुनिया को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि वह भी ताकत के मामले में किसी से कम नहीं है. वहीं दूसरी तरफ इन ईरानी मिसाइलों को रोकने के लिए इजराइल, जार्डन और अमेरिका को बड़े पैमाने पर इंटरसेप्टर मिसाइलों का सहारा लेना पड़ा. इजराइल ने अपने आयरन डोम, एरो और डेविड स्लिंग एयर डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल ईरान के खिलाफ किया. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इजराइल को ईरानी मिसाइलों को मार गिराने में भारी कीमत चुकानी पड़ी है.दरअसल, किसी भी देश के लिए रक्षा करना हमला करने से अधिक आसान होता है. इसी से इजरायल और अमेरिका को वर्तमान में जूझना पड़ रहा है.
यरुशलम पोस्ट की रिपोर्ट माने तो, इजराइल और हमास के बीच जंग से यह भी साबित हो गया है कि मिसाइल और बम रखना काफी नहीं है. किसी भी दुश्मन देश से तनाव की स्थिति में हथियारों का एक बड़ा जखीरा अपने साथ लेकर चलना होता है, जिससे दुश्मन को टक्कर दिया जा सके. हालांकि, इसके लिए भारी रकम खर्च करने पड़ते हैं. इंटरसेप्टर मिसाइल पर दुश्मन की मिसाइल से ज्यादा खर्च आता है. ठीक इसी तरह की परिस्थितियों से अमेरिका को 1991 में जूझना पड़ा था.
खाड़ी युद्ध के दौरान अमेरिका को स्कड मिसाइलों से निपटने के लिए बहुत महंगी पैट्रियाट मिसाइलों का सहारा लेना पड़ा था. वहीं, इजराइल को हमास और हिज्बुल्लाह के रॉकेट को रोकने के लिए आयरन डोम पर काफी खर्च करना पड़ रहा है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इसी भारी खर्च से निपटने के लिए इजराइल आयरन बीम सिस्टम बना रहा है जो एक लेजर हथियार है. ऐसा कहा जा रहा है कि, पहला आयरन बीम साल 2025 में दुश्मनों से लोहा लेने के लिए मैदान में आ जाएगा. खबरों की माने तो दुश्मन की एक मिसाइल को जमीदोज करने में इजराइल को करीब 1 लाख डॉलर का खर्च आ रहा है. आयरन बीम के तैयार होते ही कम खर्च में ही दुश्मनों के मिसाइलें और ड्रोन के छक्के छूट जाएंगे.
जैसा की इजराइल का दावा है कि, उसने हाल में ईरान की ओर से दागी गई कई सारी मिसाइलों को मार गिराया. अमेरिका ने भी कई मिसाइलों को खत्म किया. ऐसा करके इजराइल और अमेरिका ने मिलकर करीब 200 मिसाइलों को इंटरसेप्ट किया. खबरों के मुताबिक, ईरान को एक मिसाइल बनाने में 10 लाख डॉलर का खर्च आया है. ईरान के पास खैबर, इमाद और फतह जैसी खतरनाक मिसाइलें थीं,जो दुश्मनों को चकमा देने के लिए तैयार की गई थी. वहीं, ईरान ने शायद इन मिसाइलों को बनाने में 20 करोड़ डॉलर खर्च किया होगा. वैसे ईरान तमाम प्रतिबंधों के बाद भी हर साल 35 अरब डॉलर का तेल बिक्री करता है. शायद इससे वह अपनी सैन्य शक्ति को मजबूती देता है.
वहीं, इजराइल ने ईरान के मिसाइलों को मार गिराने के लिए एरो सिस्टम का इस्तेमाल किया. हालांकि, इजराइल ने यह नहीं बताया कि उसने कितनी एरो, आयरन डोम, डेविड स्लिंग मिसाइलों का इस्तेमाल किया. जानकारों की माने तो एक एरो मिसाइल पर 20 लाख डॉलर से अधिक का खर्च आता है. ऐसे में 180 एरो मिसाइल का इस्तेमाल किया गया तो इजराइल को 45 करोड़ डॉलर से ज्यादा का खर्च आया होगा. यह ईरानी मिसाइलों को बनाने में आए खर्च से कई गुना अधिक हो सकता है. कुल मिलाकर दुश्मनों से लोहा लेने केलिए किसी भी देश को अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करने के लिए भारी रकम खर्च करना पड़ता है और साथ ही भारी कीमत भी चुकानी पड़ती है.
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