पटना : बिहार में बाढ़ से हाहाकार है. बिहार के आपदा मंत्री संतोष सुमन की मानें तो बिहार के 29 जिले बाढ़ की चपेट में हैं. नेपाल में भारी बारिश के कारण कोसी और गंडक नदी के जलस्तर में काफी वृद्धि हो रही है. रविवार को कोसी में 6.61 लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने का रिकॉर्ड टूट गया. सुपौल के वीरपुर में कोसी बराज के 56 गेट खोल दिए गए जिससे बिहार में सैलाब आ गया. कोसी क्षेत्र के सुपौल, मधुबनी, दरभंगा, कटिहार, अररिया, किशनगंज, फारबिसगंज और पूर्णिया जिले में पानी घुस गया.
नेपाल में बारिश बड़ा कारणः नेपाल से पानी छोड़े जाने के कारण कोसी के साथ-साथ कमला, बागमती, गंडक, महानंदा समेत उत्तर बिहार की तमाम छोटी-बड़ी नदियों में बाढ़ आ गयी है. इसके चपेट में आसपास के जिले के गांव जलमग्न हो गए हैं, लेकिन हर साल कोसी की तबाही चर्चा में रहती है. बिहार में सबसे ज्यादा तबाही कोसी ही मचाती है. इस कारण इसे बिहार का शोक भी कहा जाता है. इसका सबसे बड़ा कारण नेपाल में बारिश है.
कोसी बराज से नहीं रुकी तबाहीः हालांकि कोसी की तहाबी से बचने के लिए ही कोसी बराज बनाया गया था. 1965 में इसका उद्घाटन किया गया था लेकिन तब से लेकर हर साल कोसी की बाढ़ से उत्तर बिहार डूबता है. अब एकबार कोसी-मेची लिंक परियोजना चर्चा में है. इस परियोजना का उद्येश्य कोसी की बाढ़ की तबाही से मुक्ति और बिहार में सिंचाई परियोजना मजबूत करना है.
नेपाल में नहीं बन सका डैमः हालांकि इससे पहले बिहार में बाढ़ से बचाव के लिए कई चर्चा की गयी है. 11 सितंबर, 1954 लोकसभा में एन.वी. गाडगिल ने बराहक क्षेत्र बांध की चर्चा की थी. 22 सितंबर 1954 को इसको लेकर बिहार विधानसभा में अप्रोप्रिएशन बिल पर बहस भी हुआ. 1937 में नेपाल में हाई डैम बनाने का प्रस्ताव रखा गया लेकिन यह सफल नहीं हुआ. सीएम नीतीश कुमार ने भी इसको लेकर बहुत जोर लगाया लेकिन नेपाल में जहां डैम का निर्माण होना है, वह भूकंप क्षेत्र होने के कारण डैम नहीं बन सका.
चर्चा में कोसी-मेची लिंक परियोजना: अब एक बार कोसी-मेची लिंक परियोजना चर्चा है. इसको लेकर केंद्रीय बजट 2024 में 11, 500 करोड़ की घोषणा की गयी. लेकिन इसका विरोध भी हो रहा है. लोगों का कहना है कि यह परियोजना बाढ़ से निपटने के लिए नहीं है जो हर साल बिहार में तबाही मचाती है. इस परियोजना में बाढ़ नियंत्रण की कोई योजना नहीं है.
क्या है कोसी-मेची लिंक परियोजना?: दरअसल, कोसी-मेची लिंक परियोजना भारत की महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना है. इसका उद्येश्य बिहार में सिंचाई प्रणाली में सुधार लाना है. इस परियोजना से कोसी में आने वाली बाढ़ को भी कुछ हद तक नियंत्रण किया जा सकेगा. इस परियोजना के तहत कोसी और नदी के बीच एक नहर बनाया जाएगा.
76 किमी का लिंक बनेगा : इस नहर की लंबाई 117.50 किमी होगी. इसमें 41.3 किमी लंबा पूर्वी कोसी मुख्य नहर शामिल है, जो पहले से निर्मित है. 76.2 किमी मौजूदा प्रोजेक्ट की लंबाई जिसपर काम होना है. इस 76.2 किमी में 9 नहर साइफन, 28 हेड रेगुलेटर, 14 साइफन एक्वाडक्ट, 42 सड़क पुल, 9 पाइप कल्वर्ट और 9 क्रॉस रेगुलेटर बनाया जाएगा. (साइफन एक्वाडक्ट मतलब एक हाइड्रोलिक संरचना, जिसका इस्तेमाल नहर या नदी के पानी को एक तरफ से दूसरी तरफ पहुंचाने के लिए किया जाता है)
कोसी मेची से बढ़ेगा सिंचाई क्षेत्र : मेची नदी, महानंदा नदी की सहायक है और ये किशनगंज में महानंदा से मिलती है. इसको लेकर 76 किलोमीटर का चैनल बनाया जाएगा. इसके तहत कोसी नदी के अतिरिक्त पानी को महानंदा के बेसिन तक ले जाने की योजना है. सरकार का मानना है कि कोसी-मेची लिंक बनने से सुपौल, सहरसा, मधुबनी, खगड़िया और कटिहार जिले को बाढ़ से राहत मिलेगी. सरकार ये भी तर्क दे रही है कि जिस रास्ते से यह लिंक जाएगा उन जिलों में लगभग 2.14 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में सिंचाई भी हो जाएगी.
कोसी-मेची लिंक नहर का रूट: दरअसल, यह लिंक कोसी के पूर्वी कोसी मुख्य नहर से शुरू किया जाएगा. सुपौल से अररिया होते हुए किशनगंज जिले के महानंदा बेसिन में गिरेगी. इस दौरान नहर कई छोटी नदियां बकरा, घागी, पहाड़ा, नोना, लोहन्द्रा, बलुआ, परमान, टेहरी, सौरा, रतुआ और कनकई को पार करते हुए मेची तक पहुंचेगी.
कई गांवों को जोड़ते हुए होगा निर्माणः इसके बाद यह नहर सुनमानी, खेसरोइल होते हुए अररिया के कुर्साकांटा की तरफ आगे बढ़ते हुए अररिया कुआरी रोड को पार करेगी. आगे अररिया जिले के चरबना गांव की तरफ बढ़ते हुए जोकीहाट टेढ़ागाछ रोह को पार करेगी. यहां से सुइहा गांव से निकल कर बहादुरगंज के लौचा गांव के पास कनकई नदी की तरफ आगे बढ़ेगी.
किशनगंज में मेची नदी में गिरेगी नहरः इसके बाद कनकई नदी को पार करते हुए बहादुरगंज समेसर रोड अररिया गलगलिया एनएच की तरफ बढ़ेगी. यहां डाला गांव के पार फिर से कनकई नदी को पार करेगी और महानंदा बेसिन से पहले किशनगंज के मखनपुर गांव के पास मेची नदी में गिरेगी.
कोसी-मेची परियोजना का विरोध क्यों?: दरअसल, बजट पास होने के समय से ही इस परियोजना का विरोध हो रहा है. किशनगंज के स्थानीय नेता का कहना है इससे सीमांचल की बड़ी आबादी प्रभावित होगी. लोगों की मांग है कि इसके बदले सीमांचल को सालाना 25 हजार करोड़ रुपए मिले ताकि नदी के दोनों ओर कांक्रीट वॉल बनाया जाए. क्योंकि कोसी का पानी मेची में लाया जाएगा तो यहां भी तबाही मचेगी. इससे अच्छा इसका पानी दक्षिण बिहार में ले जाया जाए. कुछ लोग इस योजना को विफल भी मानते हैं.
कोसी मेची योजना विफल क्यों? : कोसी के क्षेत्र में नदियों पर काम करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट महेंद्र यादव बताते हैं कि कोसी-मेची योजना एक विफल योजना है. इससे कोसी नदी से आने वाले पानी का एक परसेंट भी पानी डाइवर्ट नहीं हो पाएगा. जब नदी जोड़ परियोजना के तहत कोसी-मेची को जोड़ा जाएगा तो मात्र 5247 क्यूसेक पानी ही डाइवर्ट हो पाएगा. क्योंकि नेशनल वाटर डेवलपमेंट के साइट पर लिखा है कि भीम नगर बैराज के पूर्वी नहर से पानी निकालने के लिए जो गेट बने हैं उसमें कोई बदलाव नहीं होगा या फिर नया गेट नहीं लगेगा और ना ही उसका आकार-प्रकार में चेंज किया जाएगा. इस साल 6 लाख 61 हजार क्यूसेक पानी कोसी में आया है तो, उसका एक परसेंट पानी भी कोसी-मेची योजना के तहत डाइवर्ट नहीं हो पाएगा.
"कोसी-मेची योजना विफल योजना है. इससे कोसी नदी से आने वाले पानी का एक परसेंट भी पानी डायवर्ट नहीं हो पाएगा. मात्र 5247 क्यूसेक पानी ही उसमें डायवर्ट हो पाएगा. क्योंकि भीम नगर बैराज के पूर्वी नहर से पानी निकालने के जो गेट बने है उसमें कोई बदलाव नहीं होगा या फिर नया गेट नहीं लगेगा और न ही उसका आकार ही बदला जाएगा."- महेन्द्र यादव, आरटीआई एक्टिविस्ट
कोसी को काबू करने का विकल्प ? : महेंद्र यादव बताते हैं कि सरकार कोसी मेची योजना पर पूरा फोकस की हुई है. जबकि इस योजना के तहत कोसी का पानी नहीं निकलने वाला. क्योंकि कोसी नदी से जब मेची नदी तक लिंक बनेगा उसके बीच में तकरीबन 13 नदियां आती हैं. वह नदियां भी प्रभावित होंगी और ऐसे में कई और क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित हो जाएंगे.
''कोसी क्षेत्र का मैंने दौरा किया है. दर्जनों ऐसी नदियां हैं जो कोसी की सहायक नदी है. कई नदियां सूखी हुई है. उन नदियों को कोसी के साथ एक बार फिर से पुनर्जीवित किया जाएगा तो, कोसी के पानी को डायवर्ट किया जा सकता है और ऐसे में कोसी पर पानी का दबाव कम रहेगा और बाढ़ को पूरी तरह से खत्म तो नहीं किया जा सकता है लेकिन कम जरूर किया जा सकता है.''- महेन्द्र यादव, आरटीआई एक्टिविस्ट
कोसी मेची परियोजना के लिए बजट : इस कमेटी के लोग कोसी क्षेत्र का दौरा भी कर चुके हैं. केंद्रीय बजट में 11500 हजार करोड़ रुपए देकर इस पर अपनी सहमति बना दी है. कई बार नीतीश कुमार ने कई मंचों से इस योजना को काफी सफल बताया है. बताते चलें कि कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना 49 साल पहले बनाई गई थी. बाद में अटल बिहारी वाजपेई जब प्रधानमंत्री थे उस समय कुछ काम आगे बढ़े लेकिन, इस पर सब की सहमति नहीं हो पाई थी. 2022 में इस परियोजना को स्वीकृति मिली और इसे पूरा करने के लिए 1397 हेक्टेयर जमीन की जरूरत होगी, जिसे बिहार सरकार अधिग्रहित कर रही है.
बिहार में बाढ़ के जिम्मेदार कारक : बिहार में बाढ़ का एक बड़ा कारण फरक्का बांध है. वजह ये है कि बिहार में नदियों द्वारा कटाव ज्यादा हुआ है जिसकी गाद से गंगा का प्रवाह बाधित हुआ है. इसके चलते नदी का तल उथला हो जाने से पानी फैलने लगा है. ऐसे में नदी में गाद का भारी मात्रा में होना जलप्रवाह की एक बड़ी समस्या बनी हुई है.
बिहार में तटबंधों की संख्या : 1954 में बिहार में 160 तटबंध हुआ करते थे. तब बिहार में 25 लाख हेक्टेयर जमीन बाढ़ से प्रभावित होती थी. अभी यह बढ़कर 3700 किलोमीटर लंबे तटबंध हो चुके हैं जबकि बाढ़ प्रभावित क्षेत्र भी बढ़े हैं. अब बाढ़ प्रभावित क्षेत्र बढ़कर 69 लाख हेक्टेयर हो गए हैं. इस मुकाबले तटबंधों की संख्या बाढ़ प्रभावित एरिया के मुताबिक नहीं है.
नीतीश सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट : कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना को लेकर बिहार सरकार पिछले एक दशक से प्रयास कर रही है. चूंकी यह मामला केंद्र सरकार का भी है तो, ऐसे में इसमें केंद्र सरकार की सहमति जरूरी होती है. पिछले दिनों जब पूर्वी क्षेत्र परिषद की बैठक हुई थी उस समय तत्कालीन जल संसाधन मंत्री संजय झा ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के सामने कोसी मेची योजना नदी को जोड़ने का मामला उठाया था. उसके बाद लगातार संजय झा इस मामले को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, विदेश मंत्री एस जयशंकर से मिल चुके हैं. इसको लेकर एक उच्च स्तरीय कमेटी भी बनाई गई थी.
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