पटना : सारण में 5 वें चरण के चुनाव के दौरान बीजेपी और राजद समर्थकों के बीच विवाद हाथापाई से शुरू हुई और गोलीबारी में तब्दील हो गई. छपरा के भिखारी ठाकुर चौक पर राजद 3 कार्यकर्ता को गोली लगी जिसमें 1 की मौत और 2 लोग घायल हुए. मारने वाले यादव समुदाय के थे. गोली चलाने वाले बीजेपी समर्थक राजपूत समुदाय के थे. इस निंदनीय घटना के बाद इस पर सियासत शुरू हो गई है. इस सियासत का प्रभाव बाकी बचे 2 चरण के चुनाव पर पड़ने की संभावना है.
सारण गोलीकांड के साइडइफेक्ट : सारण के बूथ संख्या 318 एवं 319 पर विवाद शुरू हुआ. इस घटना के लिए बीजेपी और राजद के नेता एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं. इस घटना को लेकर रोहिणी आचार्य सीधा आरोप लगा रही हैं कि बीजेपी के गुंडे उनके साथ दुर्व्यवहार किया. जान से मारने का प्रयास किया. वहीं इस गोलीबारी की घटना को राजीव प्रताप रूडी ने सेल्फ डिफेंस में गोली चलाने की बात कही. राजनीतिक दलों की बयानबाजी से यह लग रहा है कि अगले 2 चरण के चुनाव तक इसे मुद्दा बनाने की कोशिश हो रही है.
महाराजगंज चुनाव पर असर : छठे चरण के चुनाव में सारण से सटे महाराजगंज लोकसभा सीट पर इस घटना का असर देखने को मिल सकता है. सिवान और सारण जिले के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र को बनाया गया है. यहां कुल छह विधानसभा सीटें हैं. इसमें सारण जिले की चार और सिवान की दो विधानसभा सीटें शामिल हैं. सारण जिले का तरैया, बनियापुर, एकमा और मांझी विधानसभा क्षेत्र जबकि सीवान जिले का गोरियाकोठी और महाराजगंज विधानसभा क्षेत्र इसमें शामिल है.
महाराजगंज का जातीय समीकरण : जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां सबसे अधिक राजपूत मतदाता हैं. जिनकी संख्या करीब 4 लाख 38 हजार है. इसके बाद दूसरे नंबर पर भूमिहार मतदाता हैं. इनकी संख्या 3.50 लाख के करीब है. 2 लाख 75 हजार ब्राह्मण और करीब ढाई लाख यादव मतदाता हैं.
महराजगंज का मुकाबला : महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र में बीजेपी के निवर्तमान सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल का मुकाबला कांग्रेस के प्रत्याशी आकाश सिंह से है. आकाश सिंह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह के पुत्र हैं. भूमिहार समाज से आते हैं और महाराजगंज में भूमिहारों की संख्या अच्छी खासी है. यहां पर कांग्रेस को उम्मीद थी कि भूमिहार मतों के साथ यदि MY समीकरण जुड़ जाता है तो जीत पक्की हो जाएगी. लेकिन सारण की घटना के बाद यदि वहां जातीय गोलबंदी होती है, तब कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
कहां बाकी है चुनाव : लोकसभा चुनाव में 5 चरणों का चुनाव संपन्न हो गया है. बाँकी बचे 2 चरणों में 16 सीटों पर मतदान होना बाकी है. छठे चरण में 25 मई को 8 सीटों पर मतदान होगा. जिसमें वाल्मीकि नगर, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर, वैशाली, गोपालगंज, महाराजगंज और सिवान की सीट है. जबकि सातवें चरण में भी 8 सीटों पर वोटिंग होगी जिसमें नालंदा, पटना साहिब, पाटलिपुत्र, आरा, बक्सर, सासाराम, काराकाट और जहानाबाद की सीट है.
किन किन सीटों पर असर : सारण में हुई घटना का असर बाकी बचे 16 सीटों में से 8 पर असर होने की संभावना है, जिसमें पूर्वी चंपारण, शिवहर, वैशाली, महाराजगंज, सिवान, आरा, बक्सर, और काराकाट की सीट शामिल है. इन 8 सीटों पर राजपूत वोटरों की आबादी अच्छी खासी है. वहीं राजद के परंपरागत वोट बैंक MY समीकरण का भी इन क्षेत्रों में व्यापक प्रभाव है. सारण की घटना के बाद यदि यहां वोटों की गोलबंदी होती है, तो इन सीटों पर कहीं एनडीए को, तो कहीं इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
क्या मानते हैं राजनीतिक जानकार : वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार का कहना है कि इस तरीके की घटना के बाद राजनीतिक ध्रुवीकरण बनने लगती है. इसमें राजनीतिक दल भी शामिल हो जाते हैं. राजनीतिक दलों को लगता है कि इन दोनों के ध्रुवीकरण से उनका राजनीतिक लाभ मिल सकता है. सारण के बगल के महाराजगंज सीट पर इसका असर देखने को मिल सकता है.
''जनार्दन सिंह सिग्रीवाल यहां के सांसद हैं और इस बार भी चुनाव लड़ रहे हैं. यदि चुनाव से पहले उनके प्रति कोई नाराजगी रही होगी तो इस घटना के बाद समाज की नाराजगी दूर हो जाएगी और उनको उनके समाज का वोट मिलेगा. इस घटना का प्रभाव बाकी बचे हुए आठ लोकसभा क्षेत्र पर पड़ सकता है, जिसमें आरा, बक्सर, काराकाट, पूर्वी चंपारण, वैशाली, शिवहर और महाराजगंज की सीट है. अभी भी राजनीतिक दल के नेता बयानबाजी कर रहे हैं.''- डॉ संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
दोनों गठबंधन का समीकरण बिगड़ा : वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि सारण में हुई घटना का राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास और राजनीतिक दल कर रहे हैं. सभी राजनीतिक दल जातीय समीकरण के आधार पर ही अपने प्रत्याशी का चयन करते हैं. ताकि उनको उसे जाति के वोटरों का वोट मिल सके.
''सारण में हुई घटना का बाकी बचे दो चरणों के चुनाव पर असर दिखेगा. इस घटना के बाद दोनों गठबंधन को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी. ताकि यदि जातीय ध्रुवीकरण होता है तो उसको कैसे रोकें. कई ऐसी लोकसभा सीट हैं जहां पर राजपूत की संख्या अच्छी खासी है. जिसमें बक्सर, आरा , वैशाली, काराकाट, मोतिहारी, शिवहर की सीट है. इसलिए इन सीटों पर दोनों गठबंधन की परेशानी बड़ी है. किस सीट पर किसको नुकसान हो जाए यह कहा नहीं जा सकता.''- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
महाराजगंज का इतिहास : कभी इस सीट पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिन्हा की ओर से चैलेंज मिला था कि अगर चंद्रशेखर सिंह बड़े नेता हैं तो महाराजगंज सीट से चुनाव लड़कर दिखाएं. उन्होंने झटपट उनकी चुनौती स्वीकार कर ली और 1989 में चुनावी मैदान में कूद पड़े. उन्होंने न सिर्फ महाराजगंज में चुनाव लड़ा बल्कि लगभग दोगुने मतों से जीत हासिल की. चंद्रशेखर सिंह को तब 382488 वोट मिले जबकि कांग्रेस प्रत्याशी को 165170 वोट मिले. हालांकि बाद में चंद्रशेखर सिंह ने इस सीट को छोड़ दिया. लेकिन इस सीट से चुनाव लड़कर चंद्रशेखर सिंह सुर्खियों में आए और भारत के प्रधानमंत्री भी बने. जब उपचुनाव हुआ तो यहां से रामबहादुर सिंह चुनकर आए.
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