पटना : आम बोलचाल की भाषा में एक कहावत है, जिसका कोई नहीं होता उसके भगवान होते हैं. भगवान को किसी ने देखा नहीं है, सिर्फ हृदय से महसूस किया है. लेकिन इस अवधारणा को यदि किसी ने मूर्त रूप दिया है तो वह हैं कटिहार के वीरेंद्र कुमार. उच्च शिक्षा प्राप्त कर अच्छी कंपनी में नौकरी करने वाले वीरेंद्र के जीवन का एक ही मकसद है, कि वैसे लावारिस बच्चों को पालना. आज 32 वर्ष की अवस्था में वीरेंद्र कुंवारा रहते हुए 120 अनाथ बच्चों के पिता की भूमिका निभा रहे हैं.
वीरेंद्र का बचपन और शिक्षा : वीरेंद्र कुमार का जन्म कटिहार जिला के मनिया गांव में एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में हुआ. उनके पिताजी प्रकाश महतो का मुख्य पेशा खेती था. वीरेंद्र ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सरकारी प्राथमिक स्कूल से शुरू किया. इसके बाद गांव के ही हाई स्कूल से होने मैट्रिक की परीक्षा 2009 प्रथम श्रेणी से पास की. इसके बाद उनका दाखिला कटिहार के सरकारी प्लस टू स्कूल में हुई जहां से उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की.
बी-टेक की डिग्री के बाद नौकरी : 2011 इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उनका दाखिला बी-टेक में BIT बेंगलुरु के कॉलेज में हुआ. 2015 में B.Tech की डिग्री मिलने के बाद उनका कैंपस सिलेक्शन ऑटोमोबाइल कंपनी होंडा में हुआ. 60 हजार वेतन पर उन्होंने नौकरी शुरू कर दी. 2 वर्षों तक उन्होंने नौकरी की. लेकिन पिता के निधन के बाद पूरे परिवार की जवाब देही उन पर आ गई थी, इसलिए उन्होंने 2017 में नौकरी छोड़ने का फैसला लिया और बेंगलुरु से फिर कटिहार शिफ्ट करके घर की जिम्मेवारी वीरेंद्र ने अपने कंधों पर ले ली.
पिता के मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी : पिता प्रकाश महतो का 2014 में निधन हो गया. पिता के निधन के बाद वीरेंद्र नौकरी छोड़कर मां और 2 छोटी बहन की जिम्मेदारी विरेंद्र के कंधों पर आ गयी थी. इसी कारण वह होंडा कंपनी की नौकरी को छोड़कर कटिहार वापस आ गए. जीवन यापन के लिए उन्होंने कटिहार में रहकर नौकरी शुरू की. PHED विभाग के तरफ से बिहार के जिलों में पानी के क्वालिटी की जांच का कॉन्ट्रैक्ट राजू पांडे की कंपनी को मिला था. उन्हीं की कंपनी में वह नौकरी करने लगे.
जिंदगी में अचानक नया मोड़ : 2019 में अचानक वीरेंद्र की जिंदगी में नया मोड़ आया. एक दिन ऑफिस से वह शाम को कटिहार से अपना घर वापस आ रहे थे. रास्ते में बसटोल के पास एक कार्टन में छोटा सा बच्चा रोता हुआ उसे सड़क किनारे मिला. कार्टन में रखा हुआ बच्चा ट्रांसजेंडर था, जिस कारण जन्म देने वाली मां ने उसे सड़क किनारे फेंक दिया था. वहीं से वीरेंद्र ने अपने जीवन का लक्ष्य चेंज किया.
ट्रांसजेंडर बच्चे को अपनाकर की शुरूआत : सड़क किनारे फेंके हुए बच्चे को वह उठकर अपने घर लाया. मां और बहन उसको समझा कर अस्पताल में रख देने की सलाह दी. लेकिन वीरेंद्र ने उसे बच्चों को पालने का फैसला किया. इसके साथ ही वीरेंद्र का बच्चा बचाने का मिशन शुरू हो गया. वीरेंद्र ने पहला बच्चा जो ट्रांसजेंडर था उसका नाम सोनू रखा. धीरे-धीरे जहां भी वैसे बच्चे जिनके मां-बाप नहीं हैं और भीख मांग कर अपना गुजारा कर रहा हैं, वैसे बच्चों को वह अपने घर पर लाकर पालना पोषणा शुरू किया.
परिवार के लोग हुए नाखुश : वीरेंद्र के इस काम को देखकर उनके परिवार वाले नाराज हो गए और उनकी मां और उनके चाचा का यही कहना था कि पढ़ा लिखा कर इंजीनियर बनाया और आज यह इस तरीके का काम कर रहा है. वीरेंद्र की मां और दो बहन उसे इस तरीके के काम में ध्यान न देने की सलाह देने लगीं. उन लोगों का कहना था कि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, तो फिर इन बच्चों का परवरिश कैसे होगा?
धीरे-धीरे लोगों ने काम को सराहा : एक महीने के बाद एक दिन अचानक वीरेंद्र कचरा चुनने वाले तीन अनाथ बच्चों को अपने घर लेकर आ गया. मां इस बात को लेकर परेशान थी कि एक तो उनके परिवार का गुजारा किसी तरीके से हो रहा है, दूसरा इस तरीके से यदि बच्चों को घर में लाकर रहने देंगे तो इनका खाने पीने का व्यवस्था कहां से होगा. लेकिन वीरेंद्र अपनी मां को समझने में कामयाब रहा कि वह मेहनत करके ऐसे बच्चों को पालने का काम करेंगे. जिसका इस दुनिया में अब कोई नहीं है या जिसे उनके परिवार वालों ने खुद ठुकरा दिया है. कुछ दिनों के गुस्सा के बाद मां का गुस्सा भी धीरे-धीरे शांत होने लगा. उन्हीं के घर पर रहकर यह बच्चे खुशी पूर्वक रहने लगे.
बच्चा चोर समझकर विरोध : ईटीवी भारत से बातचीत में वीरेंद्र ने बताया कि उनके साथ दो-तीन बार शुरू शुरू में ऐसी घटना हो चुकी है कि लोग उन्हें बच्चा चोर समझ कर मारने लगे थे. कटिहार के शहीद चौक पर उनके साथ इस तरीके की घटना घटी थी, जब लोग उनका बच्चा चोर समझ कर करने के लिए इकट्ठा हो गए थे. जब विरोध कर रहे लोगों को उन्होंने अपनी पूरी कहानी बताई और स्थानीय लोग जब जाकर देखे कि सही में वीरेंद्र ऐसे बच्चों को अपने यहां रखकर न सिर्फ पालन पोषण कर रहा है, बल्कि एक ऐसे बच्चों के माता-पिता की कमी को वह पूरा कर रहा है. इसके बाद समाज में वीरेंद्र के प्रति लोगों की धारणा बदलने लगी.
समाज के लोगों का सहयोग बढ़ा : अनाथ बच्चों को लेकर चलाए जा रहे इस मुहिम का अब समाज के लोगों का खुलकर साथ मिलने लगा. प्रशासन के लोग भी कभी-कभी मदद कर देते हैं. बड़े व्यापारी हों या नेता उनके इस अभियान में जब भी किसी चीज की जरूरत हुई, यह लोग उपलब्ध करवाने का प्रयास करते हैं. उनके गांव के लोग भी और शहर के अन्य लोग भी इन बच्चों की परवरिश के लिए जो भी अनाज की जरूरत होती है, कुछ न कुछ डोनेट करते हैं. इसके अलावा कटिहार के कई ऐसे बड़े डॉक्टर हैं जो इस अनाथालय में रहने वाले बच्चों का फ्री में इलाज कर देते हैं. दवाई भी उपलब्ध करवाते हैं. इस तरह वीरेंद्र के मुहिम का साथ अब समाज के लोग भी देने लगे हैं.
सोनू सूद के नाम पर अनाथ बच्चों का स्कूल : फिल्म स्टार सोनू सूद से वीरेंद्र बहुत ज्यादा प्रभावित हैं. इसीलिए वीरेंद्र ने इन अनाथ बच्चों के लिए अपने ही पुश्तैनी जमीन पर एक स्कूल खोला, जिसका नाम "सोनू सूद अनाथ स्कूल" रखा. जो भी अनाथ बच्चे वीरेंद्र अपने साथ लाते थे, उन सबों को इसी स्कूल के भवन में रखने लगे और वहीं पर इन लोगों के पढ़ाई की व्यवस्था शुरू की गई. अपने चार दोस्तों को उन्होंने यहां आकर स्कूल में पढ़ने का अनुरोध किया. कुछ पुराने दोस्तों ने उनके इस अभियान में प्रति महीना कुछ न कुछ डोनेट करने की बात कही. इस तरीके से इन बच्चों के लिए रहने और पढ़ने की व्यवस्था धीरे-धीरे होने लगी.
मदद को आगे आए लोग : वीरेंद्र के इंजीनियरिंग के अनेक ऐसे दोस्त उनके इस अभियान से प्रभावित होकर उनका हर महीने कुछ ना कुछ मदद देना शुरू किया. उनके दोस्तों के द्वारा हर महीने लगभग 20 हजार रु कलेक्ट करके भेज दिया जाता है, जिससे टीचर का वेतन और इन बच्चों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था में मदद हो जाती है.
120 बच्चों का कुँवारा पिता : वीरेंद्र का बचपन बचाने का अभियान धीरे-धीरे ओर ज्यादा होने लगा. अब वीरेंद्र के घर मे 125 बच्चे रह रहे हैं. कुछ दिन पहले 5 वैसे बच्चे जिनके माता-पिता बच्चों को छोड़ दिये थे, वे उस अनाथालय आकर अपने बच्चों को वापस ले गए. अभी की स्थिति है कि उनके इस घर में 120 वैसे बच्चे रह रहे हैं, जिनके परिजनों ने उन बच्चों का साथ छोड़ दिया. आज वीरेंद्र वैसे 120 मासूम अनाथ बच्चों के पिता की भूमिका में है, जिन्हें इन बच्चों में अपनत्व दिखता है. यूं कहें कि वीरेंद्र आज इन 120 बच्चों का कुंवारा बाप हैं जो इन बच्चों का भरण पोषण कर रहे हैं.
लड़कीवाले शादी को तैयार नहीं : 120 बच्चे की परवरिश की जिम्मेवारी वीरेंद्र के कंधों पर है. लेकिन वीरेंद्र के सामने एक और समस्या है कि कोई भी लकड़ी वाला अपनी बेटी की शादी वीरेंद्र से इसी कारण नहीं करना चाहता क्योंकि सबों को लग रहा है कि 100 से ज्यादा बच्चों की जिम्मेदारी जो आदमी कुंवारा में उठाए हुए हैं, वह उसकी बेटी का ठीक ढंग से देखभाल कर सकेगा या नहीं.
''कई लड़की वाले आए लेकिन जैसे ही उनको इस बात की जानकारी होती है कि 100 से ऊपर बच्चों के जीवन यापन की जिम्मेदारी इस लड़के पर है, तो वह वहां से बिना बात किए ही चले जाते हैं. अब अपनी शादी की इच्छा नहीं हो रही है. मेरी दो छोटी बहनें हैं. उन दोनों छोटी बहनों की शादी के बाद मैं इन्हीं बच्चों के जीवन यापन को अपने जीवन का मूल आधार बनाउंगा.''- वीरन्द्र, अनाथालय चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता
भोजन का प्रबंध चुनौती बना : इन 120 बच्चों का भरण पोषण वीरेंद्र के लिए किसी चुनौती से काम नहीं है. 120 बच्चों के लिए प्रतिदिन 25 किलो चावल और 20 किलो आटा की जरूरत होती है. इसके अलावा दाल और सब्जी की भी जरूरत होती है. नाश्ते में भुजा एवं चना का व्यवस्था रहता है. अब वीरेंद्र को समाज के लोगों का भी धीरे-धीरे समर्थन मिलने लगा है. हर घर से कुछ न कुछ अनाज के रूप में उनके अनाथालय तक लोग पहुंचने लगे हैं. जिससे इन बच्चों का रोज के भोजन की व्यवस्था हो जाती है. वीरेंद्र ने बताया कि महीने में 5-6 दिन ऐसे होते हैं, जब किसी बड़े घर के बच्चों का जन्मदिन होता है, तो वह लोग इन बच्चों के लिए यहां आकर भोजन की व्यवस्था कर देते हैं.
अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित : वीरेंद्र के कामों को देखते हुए अनेक लोग और उनसे प्रभावित हुए हैं. वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और बिहार में यूथ आइकॉन चलने वाले विकास वैभव वीरेंद्र को सम्मानित कर चुके हैं. वीरेंद्र के कामों की जानकारी जब फिल्म अभिनेता सोनू सूद को पता चला था तो उन्होंने वीरेंद्र को मुंबई बुलाया था. इसके अलावा सोनू सूद एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए पूर्णिया आए थे तो वहां भी उन्होंने वीरेंद्र को सम्मानित किया. इसके अलावा कटिहार एवं सीमांचल के अन्य जिलों में जिला प्रशासन के द्वारा भी उनके इस सराहनीय कार्य के लिए कई बार प्रशस्ति पत्र दिए गए.
जीवन का लक्ष्य कोई बच्चा अनाथ न रहे : अनाथ बच्चों के लिए विजेंद्र ने एक बड़ा कदम उठाया. अपनी पुश्तैनी दो बीघा जमीन इन अनाथ बच्चों के लिए ट्रस्ट बना कर दे दी. 2023 में मानव सेवा संस्थान के नाम से उन्होंने ट्रस्ट बनाया है और अपनी सभी पुश्तैनी जमीन इसी ट्रस्ट के नाम कर दी है. ताकि ऐसे बच्चे यहां आकर यदि रहते हैं, तो भविष्य में भी उनको किसी तरीके की परेशानी ना हो. वीरेंद्र ने बताया की जब कोई जन्म लेता है तो वह बड़ा होता ही है. लेकिन उनका मकसद है कि ऐसे अनाथ बच्चे को शिक्षा से वंचित न रहना पड़े. इसीलिए उन्होंने एक छोटा स्कूल भी खोला है. उनका कहना है कि यदि बच्चे पढ़ लेंगे तो अपने जीवन यापन के बारे में वह सोचना शुरू कर देंगे और उनका भविष्य ठीक हो जाएगा.
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