राजसमंद. 28 जून, 2022 को हुए कन्हैयालाल हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर दिया था. निर्मम हत्याकांड को अंजाम देने वाले आतंकियों को पकड़वाकर सलाखों के पीछे भिजवाने में अहम भूमिका निभाने वाले राजसमंद जिले के दाे जांबाज युवा आज भी सरकार की बेरुखी के चलते डर व दहशत में जीने को मजबूर हैं. जांच के बाद जयपुर की स्पेशल एनआईए कोर्ट में सुनवाई जारी है. खुद की जान की परवाह किए बगैर 30 किलोमीटर तक पीछा कर हत्याकांड के आरोपी रियाज और गौस मोहम्मद को पकड़वाया, तो पुलिस, प्रशासन ही नहीं, बल्कि गहलोत सरकार ने भी त्वरित कार्रवाई के लिए वाहवाही लूटी थी. आज वो दोनों जांबाज असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.
प्रशासन से उन्हें हथियार का लाइसेंस न मिलने की टीस है, तो जघन्य हत्याकांड के आरोपियों को फांसी की सजा मुकर्रर होने की न्यायालय से आस भी है. कन्हैया का परिवार आज भी पुलिस सुरक्षा के घेरे में है, मगर इन युवाओं को पुलिस सुरक्षा तो दूर हथियार लाइसेंस तक नहीं मिल पाए. यह दर्दभरी दास्तां है राजसमंद जिले में ताल ग्राम पंचायत के थड़ी निवासी प्रह्लाद सिंह पुत्र मनोहरसिंह चुंडावत और सुरतपुरा, ग्राम पंचायत काकरोद निवासी शक्ति सिंह पुत्र गोविंद सिंह चुंडावत की.
दोनों को मिली सरकारी नौकरी : जब दोनों ने आतंकियों को पकड़वाया, तब पुलिस, प्रशासन के साथ तत्कालीन सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी पीठ थपथपाई थी. उन्हें सरकारी नौकरी दिलाने, सुरक्षा के लिए हथियार लाइसेंस का वादा भी किया था. इसके बाद 1 मार्च 2024 को प्रह्लाद सिंह चुंडावत को उपखंड कार्यालय देवगढ़ में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पद पर और 12 मार्च 2024 को शक्ति सिंह चुंडावत को तहसील कार्यालय देवगढ़ में कनिष्ठ लिपिक के पद पर ज्वाइनिंग मिल गई, लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से हथियार के लाइसेंस दोनों को अब तक नहीं मिल पाए. आज दोनों को सरकारी नौकरी मिलने से आर्थिक संबल तो मिला है, मगर मन में अज्ञात डर आज भी बना हुआ है.
सरकार ने याचक बनाया : शक्ति सिंह चुंडावत ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि कन्हैयालाल के हत्यारों को पकड़वाने का उन्हें गर्व है, क्योंकि वह देशहित का कार्य था. इसके बाद प्रशासन और राज्य सरकार स्तर पर याचक जैसे हालात उत्पन्न हो गए. सरकार की ही सुरक्षा एजेंसियों ने यह माना कि मुझे व मेरे साथ प्रह्लाद को सुरक्षा मिलनी चाहिए. हथियार लाइसेंस भी आवश्यक बताया, फिर तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सुरक्षा, हथियार लाइसेंस के वादे किए. मगर आज तक उन्हें सुरक्षा के लिहाज से कुछ नहीं मिला.
सरकार को नहीं हमारी फिक्र : प्रह्लाद सिंह चुंडावत ने कहा कि आतंकी रियाज और गौस मोहम्मद को पकड़वाने के लिए हमने हमारी जान की परवाह नहीं की, मगर इसके बाद प्रशासन या सरकार तक को हमारी कोई फिक्र नहीं है. तभी तो न सुरक्षा मिली न ही हथियार लाइसेंस. सरकारी नौकरी मिलने से आर्थिक संबल मिला, मगर अज्ञात डर हमेशा मन में रहता है. अब भी प्रशासन व सरकार हमें हथियार लाइसेंस दिलाए, ताकि सुरक्षा रहे.
रिश्ते में भी बाधक बना अज्ञात डर : आतंकी को पकड़वाने के बाद एक बार तो शक्त सिंह व प्रह्लाद सिंह के रिश्तेदार तो क्या मित्रों ने भी दूरी बना ली. उनकी शादी के रिश्ते में भी बाधा उत्पन्न हो गई. समाज के साथ खड़े रहने और सरकारी नौकरी की कार्रवाई होने के बाद प्रह्लाद की जनवरी में शादी हुई, जबकि शक्ति सिंह की अब नवंबर में शादी प्रस्तावित है. आतंकियों को पकड़वाने की वजह से उनके मित्रों ने भी दूरी बना ली थी, क्योंकि उन्हें भी भय था. हालांकि, अब वक्त के साथ हालात सामान्य होने लगे हैं, मगर फिर भी उनके दिल में डर बरकरार है.
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आतंकी को पकड़ने की कहानी : उदयपुर में कन्हैयालाल की नृशंस हत्या की सूचना सोशल मीडिया पर फैलने से मेवाड़ ही नहीं, बल्कि प्रदेश व देशभर में घटना को लेकर आक्रोश व दहशत का माहौल बन गया था. इसके ऑडियो, वीडियो और खबर देखकर लसानी चौराहे पर चाय पीते वक्त दोनों युवा बातचीत कर रहे थे. तभी देवगढ़ थाने से परिचित पुलिसकर्मी बाबूसिंह का फोन आया कि उदयपुर हत्याकांड के आरोपी बाइक लेकर लसानी की तरफ आ रहे हैं. कांस्टेबल बाबूसिंह के लिए उस क्षेत्र में पुलिसकर्मी नहीं थे और आम लोगों की मदद ही एकमात्र विकल्प था. उन्होंने बाइक नंबर और आरोपियों का हुलिया फोन पर ही बताया.
दोनों युवा सूरजपुरा बस स्टैंड पहुंच गए, जो 40 मील चौराहे वाला रास्ता है. सूरजपुरा बस स्टैंड पर आते-जाते वाहनों पर निगाह रखने लगे. तभी उसी हुलिए से मिलते जुलते दो लोग बाइक लेकर गुजरे तो वे चौंक गए और बाइक का नंबर भी वही था जो पुलिस ने बताया था. इस पर शक्ति सिंह ने पुलिस को फोन को सूचना देते हुए उनका पीछा करना शुरू कर दिया. फिर आगे पुलिसकर्मी वीरेंद्र सिंह व पुलिस उप अधीक्षक राजेंद्र सिंह भी अलर्ट थे. पुलिस उप अधीक्षक खुद 40 मील के रास्ते आगे बढ़ गए. शक्ति सिंह और प्रह्लाद पीछा करते हुए जब बाइक के नजदीक पहुंचे, तो बाइक सवार बदमाशों ने उन्हें डराने का प्रयास किया. इस पर शक्ति और प्रह्लाद ने बाइक धीमी कर ली और सुरक्षित दूरी बना कर पीछा करने लगे.
उन्हें अंदाजा था कि आरोपी उनकी भी कन्हैयालाल की तरह हत्या कर सकते हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. इस दौरान पुलिसकर्मी भी उन्हें हिम्मत देते रहे. फिर 40 मील चौराहे पर पुलिस के आने से पहले ही आरोपी बाइक से भीम की तरफ आगे निकल गए. फिर भी दोनों भाइयों ने पीछा करना जारी रखा. करीब 30 किलोमीटर तक पीछा करने के बाद हाईवे आठ पर टोगी के पास बाइक सवार दोनों बदमाशों को पुलिस ने घेराबंदी कर पकड़ लिया. तब उन्होंने राहत की सांस ली. जब आतंकियों को पुलिस ने पकड़ लिया, तब से उनके मन में एक अज्ञात डर आ गया, जो आज तक नहीं निकल पाया. सरकार, पुलिस व प्रशासनिक अफसरों ने आश्वासन जरूर दिए, मगर सुरक्षा नहीं मिली और हथियार लाइसेंस का दो साल से इंतजार है.