पटना: बिहार चुनावी हिंसा और बूथ लूट के लिए देश में सुर्खियों में बना रहता था. लेकिन, चुनाव आयोग के दो अधिकारियों ने बिहार की स्थिति को पूरी तरह से बदल दिया. चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन और चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक रहे के जे राव को बिहार के लोग कभी भूल नहीं सकते हैं. राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि टीएन शेषन और उनके बाद केजे राव के प्रयास से बिहार में न केवल चुनावी हिंसा रुकी, बल्कि बूथ लूट की घटना भी अंकुश लगा.
"पिछले चुनाव के दौरान जो भी संवेदनशील बूथ थे उसे चिह्नित किया. चुनाव के दौरान किसी तरह की गड़बड़ी ना हो इसके लिए खुद मॉनिटरिंग कर रहे थे. चुनाव में सुरक्षा की भी व्यापक व्यवस्था करायी गयी थी. यही कारण था कि लंबे अरसे बाद लोगों ने निडर होकर वोट दिया."- रवि अटल, राजनीतिक विश्लेषक
आरजेडी नेता की हुई थी पिटाईः भाजपा प्रवक्ता डॉ राम सागर सिंह का कहना है कि केजे राव ने टी एन सेशन के अभियान को आगे बढ़ाया. बिहार में ही सबसे पहले बूथ कैप्चरिंग की घटना शुरू हुई थी. लेकिन अब दोनों अधिकारियों के कारण बूथ कैप्चरिंग सपना हो गया है. डॉ राम सागर सिंह का तो यहां तक कहना है कि केजे राव मोटरसाइकिल से खुद घूमते थे. चुनाव के समय और निरीक्षण करते थे. बड़े नेता हो या बड़े अधिकारी किसी की नहीं सुनते थे. एक बार तो आरजेडी के बड़े नेता की उन्होंने पिटाई तक कर दी थी.
"बिहार में आज जिस ढंग से चुनाव हो रहा है उसके लिए पूरा श्रेय चुनाव आयोग के उन दोनों अधिकारियों को ही जाता है. बिहार में चुनाव के समय जातीय हिंसा और बूथ लूट की घटना होती थी. लोग बैलेट बॉक्स लेकर चले जाते थे. बैलेट बॉक्स में स्याही डाल देते थे. सबको टीएन शेषन और केजे राव ने ही खत्म किया."- प्रिय रंजन भारती, राजनीतिक विश्लेषक
बिहार में चुनावी हिंसा का इतिहासः बिहार में 1969 से पहले हिंसा की छिटपुट घटनाएं ही चुनाव के समय होती रही. 1969 के चुनाव में पहली बार पूरे बिहार में हिंसा की कई जगह घटनाएं हुईं. 7 लोगों की जान चली गई थी. उसके बाद हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी दिखने लगा. 1977 में चुनावी में 194 हिंसा की घटनाएं हुईं, जिसमें 26 लोग मारे गए थे. 1985 में सबसे ज्यादा 1370 हिंसक घटनाएं हुई और इसमें 69 लोग मारे गए. 1990 के चुनाव में 520 हिंसा की घटनाओं में 87 लोगों की मौत हुई. वर्ष 1995 में 1270 हिंसा की घटनाएं घटी है जिसमें 54 लोगों की मौत हुई. जबकि 2000 के चुनाव में 61 लोग मारे गए.
चुनावी हिंसा पर लिखी गयी किताबेंः 2005 के चुनाव में 17 लोगों की मौत हुई थी. 2005 के बाद के चुनाव में हिंसा और बूथ लूट की घटनाओं में कमी आना शुरू हो गया. 2010 में पांच लोगों की मौत हुई थी. वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत की किताब 'बिहार में चुनावी जाति हिंसा और बूथ लूट' के अलावा कमलनयन चौबे की किताब 'बिहार की चुनावी राजनीति: जाति वर्ग का समीकरण' में बिहार में चुनावी हिंसा का जिक्र किया गया है. बिहार में हिंसा की घटनाएं पूरी तरह से रुक गई है यह कहना तो अतिशयोक्ति होगा. लेकिन, इतना जरूर है कि चुनाव में अब हिंसा और बूथ लूट की घटना पिछले कई चुनाव से थम गयी है. बड़ी घटनायें अब नहीं हो रही है.
राजनीतिक हत्याएं भी हुई हैंः चुनाव से पहले और चुनाव के बाद भी राजनीतिक हत्याएं हुई. कई विधायकों की हत्या तक की गई. 1965 में कांग्रेस के पूर्व विधायक शक्ति कुमार की हत्या कर दी गई थी. 1972 में भाजपा विधायक मंजूर हसन की हत्या कर दी गई थी. 1978 में भाजपा के ही सीताराम की हत्या कर दी गयी. 1984 में कांग्रेस के नगीना सिंह की हत्या की गई थी. 1990 में जनता दल के विधायक अशोक सिंह की उनके घर में ही हत्या कर दी गई थी. 1998 में तीन विधायक बृज बिहारी प्रसाद, देवेंद्र दुबे और अजीत सरकार की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी.
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