नई दिल्ली: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा की गई जांच से पता चला है कि भारत में आतंकवादी संगठनों ने सुरक्षा एजेंसियों से बचने के लिए आतंकी हार्डवेयर की आवाजाही के लिए 'डेड ड्रॉप' पद्धति अपनाना शुरू कर दिया है.
देश भर के विभिन्न राज्यों में बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) की गतिविधियों की जांच के बाद आतंकवादी संगठनों की नवीनतम कार्यप्रणाली सामने आई है. 'डेड ड्रॉप' पद्धति से आतंकवादी प्रत्यक्ष बैठकों से बच सकते हैं और आतंकी गतिविधियों में शामिल रह सकते हैं.
एनआईए द्वारा की गई जांच से पता चला है कि बीकेआई की साजिश में आतंकी कृत्यों को अंजाम देने के लिए विदेशी संचालकों द्वारा भारत स्थित सहयोगियों की भर्ती, ऐसे आतंकी कृत्यों के लिए धन मुहैया कराना, भारत में आतंकी हार्डवेयर की तस्करी और 'डेड ड्रॉप' मॉडल के माध्यम से आतंकी हार्डवेयर की आवाजाही शामिल थी.
'डेड ड्रॉप' मॉडल क्या है?
'डेड ड्रॉप' मॉडल का उपयोग आतंकवाद, जासूसी, ड्रग्स व्यापार और कई अन्य अवैध गतिविधियों सहित राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल दो व्यक्तियों के बीच सूचना और वस्तुओं के आदान-प्रदान के लिए किया जाता है. 'डेड ड्रॉप' मॉडल के तहत आतंकी किसी वस्तु को पहले से तय गुप्त स्थान पर छोड़ देता है. दूसरा उसे बाद में एकत्र करता है. यह सीधे संपर्क से बचने और पता लगने के जोखिम को कम करने में मदद करता है.
'डेड ड्रॉप' एक अप्रयुक्त पोस्ट बॉक्स, विशिष्ट पार्क बेंच आदि हो सकते हैं
कई मौकों पर मुख्य रूप से अनाम शेयरिंग पोर्टल और क्लाउड सेवाओं के रूप में फिजिकल 'डेड ड्रॉप' डिजिटल में बदल दिया गया. इस्लामिक स्टेट, अल कायदा जैसे कई वैश्विक आतंकवादी संगठन डिजिटल 'डेड ड्रॉप' के माध्यम से सामग्री संग्रहीत और प्रसारित करते हैं.
इन 'डेड ड्रॉप्स' को ऑनलाइन स्कैन करने पर एक डेटाबेस से कनेक्ट किया जाता है. इसमें वर्चुअल 'डेड ड्रॉप्स' और पोस्ट की गई सामग्री जैसे टेक्स्ट, फोटो, वीडियो, हथियार मैनुअल आदि को निर्देशित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले सभी लिंक होते हैं.
चंडीगढ़ ग्रेनेड हमले के मामले में शामिल बीकेआई ने सूचना देने और सदस्यों को अलर्ट रखने के लिए ड्रॉप बॉक्स पद्धति को अपनाया. एनआईए की टीम ने मामले के सिलसिले में पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और चंडीगढ़ में कई जगहों पर छापेमारी की.
तलाशी अभियान के दौरान मोबाइल/डिजिटल डिवाइस और दस्तावेजों सहित आपत्तिजनक सामग्री जब्त की गई. एनआईए की जांच में पाकिस्तान स्थित बीकेआई आतंकवादियों हरविंदर सिंह संधू उर्फ रिंदा और अमेरिका स्थित हरप्रीत सिंह उर्फ हैप्पी पासियन द्वारा एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी पर हमला करने की साजिश का पर्दाफाश हुआ.
एनआईए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'दोनों आतंकवादियों ने आतंकी हमले को अंजाम देने के लिए एक मॉड्यूल बनाया था. 'डेड ड्रॉप' पद्धति के जरिए जमीनी कार्यकर्ताओं को धन, हथियार और अन्य रसद सहायता प्रदान की थी.' एनआईए के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि सुरक्षा एजेंसियों के लिए ऐसे 'डेड ड्रॉप' का पता लगाना बहुत चुनौतीपूर्ण है.
अधिकारी ने कहा, 'डेड ड्रॉप मॉड्यूल का उपयोग करके राष्ट्र विरोधी तत्व हमेशा कानून प्रवर्तन एजेंसियों से बचने की कोशिश करते हैं. आतंकवादी समूह समय-समय पर ऑनलाइन और ऑफलाइन 'डेड ड्रॉप' पद्धति बदलते रहते हैं.'
एक्सपर्ट से बातचीत
वरिष्ठ सुरक्षा विशेषज्ञ ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) बीके खन्ना ने कहा कि भारत की आतंकवाद निरोधी एजेंसियां भी ऐसे 'डेड ड्रॉप' की पहचान करने और उनका पता लगाने के लिए अपने तरीके बदलती रहती हैं. हमारे साइबर विशेषज्ञ भी ऑनलाइन 'डेड ड्रॉप' का पता लगाने के अपने तरीके खोज लेते हैं. जहां तक ऑफलाइन 'डेड ड्रॉप' का सवाल है कानून लागू करने वाली एजेंसियों के लिए ऐसे स्थानों की पहचान करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण है जहां आतंकवादी सदस्य एक-दूसरे से शारीरिक रूप से मिले बिना अपनी जानकारी साझा कर सकते हैं.'