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नहीं रुकेगा 'बुलडोजर', मंदिर-दरगाह सब होंगे ध्वस्त, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी- हटना चाहिए सड़कों से अवैध अतिक्रमण - Bulldozer

Supreme Court: बुलडोजर केस में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि सड़कों से अवैध अतिक्रमण हटना चाहिए, फिर चाहे मंदिर हो या दरगाह, अगर ये अवैध हैं, तो इसे नहीं होना चाहिए. कोर्ट ने जोर देकर कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और बुलडोजर कार्रवाई और अतिक्रमण विरोधी अभियान के लिए उसके निर्देश सभी नागरिकों के लिए होंगे, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 1, 2024, 12:36 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और सड़क, जल निकायों या रेल पटरियों पर अतिक्रमण करने वाले किसी भी धार्मिक ढांचे को हटाया जाना चाहिए. कोर्ट ने जोर देकर कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और बुलडोजर कार्रवाई और अतिक्रमण विरोधी अभियान के लिए उसके निर्देश सभी नागरिकों के लिए होंगे, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो.

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच अपराध के आरोपी लोगों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. कई राज्यों में इस चलन को अक्सर 'बुलडोजर न्याय' कहा जाता है. राज्य के अधिकारियों ने अतीत में कहा है कि ऐसे मामलों में केवल अवैध संरचनाओं को ही ध्वस्त किया जाता है.

कोर्ट में क्या बोले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता?
एनडीटीवी के मुताबिक सुनवाई के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता तीन राज्यों - उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश की ओर से पेश हुए. उन्होंने यह पूछे जाने पर कि क्या आपराधिक मामले में आरोपी होना बुलडोजर कार्रवाई का सामना करने का आधार हो सकता है?

इस मेहता ने जवाब दिया, "नहीं, बिल्कुल नहीं, रेप या आतंकवाद जैसे जघन्य अपराधों के लिए भी नहीं. यह भी नहीं हो सकता कि जारी किया गया नोटिस एक दिन पहले ही अटका हो, इसे पहले से ही जारी किया जाना चाहिए."

'ऑनलाइन पोर्टल भी बने'
पीठ ने कहा कि इसके लिए एक ऑनलाइन पोर्टल भी होना चाहिए ताकि लोग जागरूक हों, एक बार जब आप इसे डिजिटल कर देंगे तो रिकॉर्ड भी मौजूद रहेगा. इस पर सॉलिसिटर जनरल कहा कि उन्हें चिंता है कि अदालत कुछ उदाहरणों के आधार पर निर्देश जारी कर रही है ,जिसमें आरोप लगाया गया है कि एक समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है.

'हम एक धर्मनिरपेक्ष देश'
अदालत ने कहा,"हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं और हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म या समुदाय के हों. अगर ये सार्वजनिक सड़क, फुटपाथ, जल निकाय या रेलवे लाइन क्षेत्र पर हैं, तो इसे हटाया जाना चाहिए, सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है. अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक स्ट्रक्चर है, चाहे वह गुरुद्वारा हो या दरगाह या मंदिर, यह सार्वजनिक बाधा नहीं बन सकती."

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, "अनधिकृत निर्माण के लिए एक कानून होना चाहिए, यह धर्म या आस्था या विश्वास पर निर्भर नहीं है."

वहीं, संयुक्त राष्ट्र के प्रतिवेदक की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने आवास उपलब्धता पर तर्क दिए, जिसपर सॉलिसिटर जनरल ने आपत्ति जताई. उन्होंने कहा, "मुझे पता है कि वे किसके लिए हैं, हम नहीं चाहते कि इसका अंतरराष्ट्रीयकरण हो. हमारी संवैधानिक अदालतें काफी शक्तिशाली हैं और हमारी सरकार बिना किसी विरोध के सहायता कर रही है. हमें किसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी की जरूरत नहीं है."

याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने कहा कि उनका एकमात्र तर्क यह है कि बुलडोजर का इस्तेमाल अपराध से निपटने के उपाय के रूप में नहीं किया जाना चाहिए. मेहता ने कहा कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ बुलडोजर की कार्रवाई बहुत कम और विरल होगी. पीठ ने जवाब दिया, "यह कुछ या दो व्यक्तियों का मामला नहीं है, यह आंकड़ा 4.45 लाख है."

अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट किया जाएगा कि किसी अपराध में आरोपी होना संपत्ति के विध्वंस का आधार नहीं हो सकता है और यह केवल नागरिक नियमों के उल्लंघन के मामलों में ही किया जा सकता है.

यह भी पढ़ें- कोलकाता रेप मर्डर केस: SC ने CCTV लगाने और अन्य कार्य में धीमी गति पर बंगाल सरकार की खिंचाई की

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और सड़क, जल निकायों या रेल पटरियों पर अतिक्रमण करने वाले किसी भी धार्मिक ढांचे को हटाया जाना चाहिए. कोर्ट ने जोर देकर कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और बुलडोजर कार्रवाई और अतिक्रमण विरोधी अभियान के लिए उसके निर्देश सभी नागरिकों के लिए होंगे, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो.

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच अपराध के आरोपी लोगों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. कई राज्यों में इस चलन को अक्सर 'बुलडोजर न्याय' कहा जाता है. राज्य के अधिकारियों ने अतीत में कहा है कि ऐसे मामलों में केवल अवैध संरचनाओं को ही ध्वस्त किया जाता है.

कोर्ट में क्या बोले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता?
एनडीटीवी के मुताबिक सुनवाई के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता तीन राज्यों - उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश की ओर से पेश हुए. उन्होंने यह पूछे जाने पर कि क्या आपराधिक मामले में आरोपी होना बुलडोजर कार्रवाई का सामना करने का आधार हो सकता है?

इस मेहता ने जवाब दिया, "नहीं, बिल्कुल नहीं, रेप या आतंकवाद जैसे जघन्य अपराधों के लिए भी नहीं. यह भी नहीं हो सकता कि जारी किया गया नोटिस एक दिन पहले ही अटका हो, इसे पहले से ही जारी किया जाना चाहिए."

'ऑनलाइन पोर्टल भी बने'
पीठ ने कहा कि इसके लिए एक ऑनलाइन पोर्टल भी होना चाहिए ताकि लोग जागरूक हों, एक बार जब आप इसे डिजिटल कर देंगे तो रिकॉर्ड भी मौजूद रहेगा. इस पर सॉलिसिटर जनरल कहा कि उन्हें चिंता है कि अदालत कुछ उदाहरणों के आधार पर निर्देश जारी कर रही है ,जिसमें आरोप लगाया गया है कि एक समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है.

'हम एक धर्मनिरपेक्ष देश'
अदालत ने कहा,"हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं और हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म या समुदाय के हों. अगर ये सार्वजनिक सड़क, फुटपाथ, जल निकाय या रेलवे लाइन क्षेत्र पर हैं, तो इसे हटाया जाना चाहिए, सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है. अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक स्ट्रक्चर है, चाहे वह गुरुद्वारा हो या दरगाह या मंदिर, यह सार्वजनिक बाधा नहीं बन सकती."

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, "अनधिकृत निर्माण के लिए एक कानून होना चाहिए, यह धर्म या आस्था या विश्वास पर निर्भर नहीं है."

वहीं, संयुक्त राष्ट्र के प्रतिवेदक की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने आवास उपलब्धता पर तर्क दिए, जिसपर सॉलिसिटर जनरल ने आपत्ति जताई. उन्होंने कहा, "मुझे पता है कि वे किसके लिए हैं, हम नहीं चाहते कि इसका अंतरराष्ट्रीयकरण हो. हमारी संवैधानिक अदालतें काफी शक्तिशाली हैं और हमारी सरकार बिना किसी विरोध के सहायता कर रही है. हमें किसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी की जरूरत नहीं है."

याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने कहा कि उनका एकमात्र तर्क यह है कि बुलडोजर का इस्तेमाल अपराध से निपटने के उपाय के रूप में नहीं किया जाना चाहिए. मेहता ने कहा कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ बुलडोजर की कार्रवाई बहुत कम और विरल होगी. पीठ ने जवाब दिया, "यह कुछ या दो व्यक्तियों का मामला नहीं है, यह आंकड़ा 4.45 लाख है."

अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट किया जाएगा कि किसी अपराध में आरोपी होना संपत्ति के विध्वंस का आधार नहीं हो सकता है और यह केवल नागरिक नियमों के उल्लंघन के मामलों में ही किया जा सकता है.

यह भी पढ़ें- कोलकाता रेप मर्डर केस: SC ने CCTV लगाने और अन्य कार्य में धीमी गति पर बंगाल सरकार की खिंचाई की

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