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5 दशकों के कार्यकाल में BJP के लिए 'गेम चेंजर' साबित हुए सुशील मोदी, चारों सदनों के सदस्य बनने का मिला सौभाग्य - SUSHIL MODI

Sushil Modi Death: बिहार बीजेपी के वरिष्ठ नेता सह पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी का निधन हो गया है. उनकी मौत के बाद बिहार के साथ-साथ पूरे देश में शोक की लहर है. सुशील मोदी का राजनीतिक सफर लगभग पांच दशकों का रहा. इन पांच दशक में उन्होंने भाजपा को फर्श से अर्श पर ले जाने का काम किया है.

सुशील मोदी का निधन
सुशील मोदी का निधन (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 14, 2024, 10:32 AM IST

पटना: बिहार भाजपा के कर्ताधर्ता सुशील मोदी दुनिया में नहीं रहे. 72 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली. कैंसर से पीड़ित होने के चलते उनका असमय निधन हो गया, जिससे सभी की आंखें नम हैं. बिहार भाजपा के चाणक्य के कहे जाने वाले सुशील मोदी ने पार्टी को फर्श से अर्श पर लाने का काम किया. वह फूल टाइमर राजनीतिज्ञ थे, राजनीति के अलावा उनका कोई दूसरा व्यवसाय नहीं था.

भाजपा के प्रति समर्पित थे मोदी: सुशील मोदी आजीवन भाजपा के साथ रहे. अपने राजनीतिक जीवन में उतार-चढ़ाव के बावजूद उन्होंने कभी भी दल बदल की नहीं सोची और पार्टी के सच्चे सिपाही बने रहे. सुशील मोदी ऐसे नेता थे, जिन्हें चारों सदनों का सदस्य बनने का गौरव प्राप्त हुआ. आज पीएम मोदी से लेकर सभी छोटे-बड़े नेता और कार्यकर्ता उनके कार्यकाल को याद कर रहे हैं.

जेल भी जा चुके हैं सुशील मोदी: सुशील मोदी का जुड़ाव अखिल विद्यार्थी परिषद से रहा. छात्र जीवन के दौरान वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में सक्रिय रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े रहे. राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान सुशील मोदी 10 दिनों तक जेल में रहे. जेल में रहने के दौरान उन्हें बांकीपुर, फुलवारी, बक्सर, हजारीबाग, दरभंगा, भागलपुर और पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के कैदी वार्ड में रखा गया.

चारों सदनों का सदस्य बनने का गौरव: सुशील मोदी तीन बार बिहार विधानसभा के सदस्य के रूप में चुने गए. पहली बार पटना मध्य से 1990 में वह विधायक चुने हुए. उसके बाद 1995 और 2000 में भी वह विधायक बने, 2004 में पहली बार वह भागलपुर से लोकसभा सदस्य के रूप में चुने गए. इसके बाद लगातार वह विधान परिषद के सदस्य रहे. 2020 में उन्हें राज्यसभा भेजा गया.
2005 से लेकर 2013 तक और फिर 2017 से लेकर 2020 तक सुशील मोदी बिहार के उपमुख्यमंत्री बन रहे.

भाजपा की भी संभाली जिम्मेदारी: सुशील मोदी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे और 1990 में उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने बिहार विधानमंडल दल का मुख्य सचिव तक बनाया. 1996 से लेकर 2004 तक वह विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे. सुशील मोदी जितने अच्छे संगठन करते थे, उतनी कुशलता से वह सरकार भी चलाते थे. नीतीश कुमार से उनका बेहतर सामंजस्य था.

2017 में गेम चेंजर की निभाई भूमिका: 2015 में नीतीश कुमार ने एनडीए का साथ छोड़ दिया और वह महागठबंधन का हिस्सा हो गए थे. जिसके बाद 2017 में सुशील मोदी ने गेम चेंजर की भूमिका निभाई और वह जेडीयू, आरजेडी ग्रैंड अलायंस सरकार के पतन के पीछे चाणक्य की भूमिका में रहे. 2017 में बनी ग्रैंड अलायंस की सरकार 2 साल भी नहीं चल पाई, जिसके पीछे की भूमिका सुशील मोदी की बताई गई.

सुशील मोदी के कारण पुन: एनडीए में लौटे नीतीश: सरकार बनने के बाद ही सुशील मोदी ने भ्रष्टाचार को लेकर लालू परिवार को गिराना शुरू कर दिया. उन्होंने कथित तौर पर कई बेनामी संपत्तियों और अनियमित विद्या लेनदेन को लेकर 4 महीने तक चरणबद्ध खुलासा किया. इसका नतीजा यह हुआ कि नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को भ्रष्टाचार को लेकर स्थिति स्पष्ट करने को कहा. ऐसा नहीं करने के बाद नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ दिया था और वह फिर एनडीए का हिस्सा हो गए थे.

हर-कदम पर दिया भाजपा का साथ: साल 2013 में बीजेपी ने प्रधानमंत्री के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को उम्मीदवार घोषित किया था और इसी को आधार बनाकर 1996 से चला आ रहा गठबंधन टूट गया था. 117 सदस्यों के साथ जदयू सबसे बड़ी पार्टी थी. कांग्रेस के चार निर्दलीय विधायक और हम के एक विधायक के समर्थन से जेडीयू ने विश्वास मत हासिल किया और उस दौरान नीतीश कुमार ने भाजपा के सभी मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया था. सुशील मोदी उस समय भी मजबूती से खड़े रहे और लड़ाई को आगे बढ़ाया.

भाजपा के सच्चे सिपाही थे सुशील मोदी: 2022 में नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी से फिर गठबंधन तोड़ लिया और वह राष्ट्रीय जनता दल के साथ हो लिए जब नीतीश कुमार ने भाजपा से गठबंधन तोड़ा था तब ड्राइविंग सीट पर सुशील मोदी आए थे और बीजेपी दफ्तर में लगातार संवाददाता सम्मेलन कर सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को बेनकाब किया था. उस समय प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल थे. बावजूद इसके केंद्रीय नेतृत्व ने सुशील मोदी को लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार से एक साथ मुकाबले के लिए सुशील मोदी को आगे किया था, जिसमें उन्होंने अपनी बखूबी भूमिका निभाई थी.

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भाजपा के प्रति समर्पित थे मोदी: सुशील मोदी आजीवन भाजपा के साथ रहे. अपने राजनीतिक जीवन में उतार-चढ़ाव के बावजूद उन्होंने कभी भी दल बदल की नहीं सोची और पार्टी के सच्चे सिपाही बने रहे. सुशील मोदी ऐसे नेता थे, जिन्हें चारों सदनों का सदस्य बनने का गौरव प्राप्त हुआ. आज पीएम मोदी से लेकर सभी छोटे-बड़े नेता और कार्यकर्ता उनके कार्यकाल को याद कर रहे हैं.

जेल भी जा चुके हैं सुशील मोदी: सुशील मोदी का जुड़ाव अखिल विद्यार्थी परिषद से रहा. छात्र जीवन के दौरान वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में सक्रिय रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े रहे. राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान सुशील मोदी 10 दिनों तक जेल में रहे. जेल में रहने के दौरान उन्हें बांकीपुर, फुलवारी, बक्सर, हजारीबाग, दरभंगा, भागलपुर और पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के कैदी वार्ड में रखा गया.

चारों सदनों का सदस्य बनने का गौरव: सुशील मोदी तीन बार बिहार विधानसभा के सदस्य के रूप में चुने गए. पहली बार पटना मध्य से 1990 में वह विधायक चुने हुए. उसके बाद 1995 और 2000 में भी वह विधायक बने, 2004 में पहली बार वह भागलपुर से लोकसभा सदस्य के रूप में चुने गए. इसके बाद लगातार वह विधान परिषद के सदस्य रहे. 2020 में उन्हें राज्यसभा भेजा गया.
2005 से लेकर 2013 तक और फिर 2017 से लेकर 2020 तक सुशील मोदी बिहार के उपमुख्यमंत्री बन रहे.

भाजपा की भी संभाली जिम्मेदारी: सुशील मोदी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे और 1990 में उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने बिहार विधानमंडल दल का मुख्य सचिव तक बनाया. 1996 से लेकर 2004 तक वह विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे. सुशील मोदी जितने अच्छे संगठन करते थे, उतनी कुशलता से वह सरकार भी चलाते थे. नीतीश कुमार से उनका बेहतर सामंजस्य था.

2017 में गेम चेंजर की निभाई भूमिका: 2015 में नीतीश कुमार ने एनडीए का साथ छोड़ दिया और वह महागठबंधन का हिस्सा हो गए थे. जिसके बाद 2017 में सुशील मोदी ने गेम चेंजर की भूमिका निभाई और वह जेडीयू, आरजेडी ग्रैंड अलायंस सरकार के पतन के पीछे चाणक्य की भूमिका में रहे. 2017 में बनी ग्रैंड अलायंस की सरकार 2 साल भी नहीं चल पाई, जिसके पीछे की भूमिका सुशील मोदी की बताई गई.

सुशील मोदी के कारण पुन: एनडीए में लौटे नीतीश: सरकार बनने के बाद ही सुशील मोदी ने भ्रष्टाचार को लेकर लालू परिवार को गिराना शुरू कर दिया. उन्होंने कथित तौर पर कई बेनामी संपत्तियों और अनियमित विद्या लेनदेन को लेकर 4 महीने तक चरणबद्ध खुलासा किया. इसका नतीजा यह हुआ कि नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को भ्रष्टाचार को लेकर स्थिति स्पष्ट करने को कहा. ऐसा नहीं करने के बाद नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ दिया था और वह फिर एनडीए का हिस्सा हो गए थे.

हर-कदम पर दिया भाजपा का साथ: साल 2013 में बीजेपी ने प्रधानमंत्री के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को उम्मीदवार घोषित किया था और इसी को आधार बनाकर 1996 से चला आ रहा गठबंधन टूट गया था. 117 सदस्यों के साथ जदयू सबसे बड़ी पार्टी थी. कांग्रेस के चार निर्दलीय विधायक और हम के एक विधायक के समर्थन से जेडीयू ने विश्वास मत हासिल किया और उस दौरान नीतीश कुमार ने भाजपा के सभी मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया था. सुशील मोदी उस समय भी मजबूती से खड़े रहे और लड़ाई को आगे बढ़ाया.

भाजपा के सच्चे सिपाही थे सुशील मोदी: 2022 में नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी से फिर गठबंधन तोड़ लिया और वह राष्ट्रीय जनता दल के साथ हो लिए जब नीतीश कुमार ने भाजपा से गठबंधन तोड़ा था तब ड्राइविंग सीट पर सुशील मोदी आए थे और बीजेपी दफ्तर में लगातार संवाददाता सम्मेलन कर सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को बेनकाब किया था. उस समय प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल थे. बावजूद इसके केंद्रीय नेतृत्व ने सुशील मोदी को लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार से एक साथ मुकाबले के लिए सुशील मोदी को आगे किया था, जिसमें उन्होंने अपनी बखूबी भूमिका निभाई थी.

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