आगराः सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिनों आगरा के बहुचर्चित गांव तुरकिया में सगे भाई, भाभी और चार बच्चों की हत्या में मौत की सजा पाने वाले गंभीर सिंह को बरी कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बुधवार को आगरा सेंट्रल जेल से गंभीर सिंह को रिहा कर दिया गया है. जेल से बाहर आने पर गंभीर सिंह ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि भगवान पर भरोसा था.
गंभीर सिंह ने कहा कि नए सिरे से जीवन शुरू करूंगा. अब कहां जाउंगा, ये मुझे खुद मालूम नहीं है. जेल से बाहर आने पर गंभीर ने अपनी जान का खतरा बताया और सुरक्षा की मांग की है. इधर, गंभीर सिंह को बरी किए जाने से वादी और उसका परिवार भी दहशत में हैं. आगरा सेंट्रल जेल की जेलर दीपांकर भारती ने बताया कि मंगलवार देर रात सुप्रीम कोर्ट से बंदी गंभीर सिंह की रिहाई का परवाना आया था. जिस पर उसे बुधवार को उसे रिहा किया है.
बता दें कि 9 मई 2012 की रात अछनेरा थाना के गांव तुरकिया में एक बीघा जमीन के विवाद में किसान सत्यभान, भाभी पुष्पा, चार बच्चे आरती (6), कन्हैया (4), मछला (3) और गुड़िया (2) की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी गई थी. इस सनसनीखेज हत्याकांड चंद घंटे में आगरा पुलिस ने खुलासा कर दिया था. पुलिस ने किसान सत्यभान के छोटे भाई गंभीर सिंह को गिरफ्तार किया था. पूरी साजिश में गंभीर सिंह के बिहार निवासी साथी अभिषेक शामिल किया था. पुलिस ने आरोपी को उसकी बहन गायत्री की सूचना पर पकड़ा था. तब पुलिस ने दावा किया था कि आरोपी गंभीर ने कबूला है कि भाई सत्यभान मेरे हिस्से की एक बीघा जमीन नहीं दे रहा था. इसलिए, भाई और उसका पूरा परिवार कुल्हाड़ी से सोते काट कर हत्या कर दी.
मां की हत्या में दोनों भाई गए थे जेल
बता दें कि 2007 में गंभीर और सत्यभा ने जमीन के लिए अपनी ही मां की हत्या की थी. जिसमें गंभीर और सत्यभान जेल गए. इस मामले में पहले सत्यभान जमानत पर रिहा हुआ और फिर मुख्य आरोपी गंभीर को जमानत मिली थी. जेल से रिहा होने पर गंभीर ने भाई सत्यभान से अपना जमीन में हिस्सा मांगा. इस पर सत्यभान ने जमानत कराने के लिए रकम जुटाने में उसके हिस्से की जमीन बेचने की कही. जिस पर दोनों में झगड़ा हुआ था. सत्यभान ने जमीन में हिस्सा देने से इनकार किया तो 9 मई 2012 में गंभीर में दोस्त अभिषेक के साथ दिल्ली से घर आया और रात में भाई सत्यभान, भाभी पुष्पा और भतीजा और भतीजी की हत्या करने का आरोप लगा था.
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और निचली अदालत के निर्णय को पलटा
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने आरोपी गंभीर सिंह की अपील को स्वीकार करके कहा कि अभियोजन पक्ष के मामले में बहुत सी खामियां हैं. जो सुधारना असंभव है. इलाहाबाद हाईकोर्ट अभियोजन पक्ष के मामले में अंतर्निहित असंभवताओं और कमजोरियों पर ध्यान देने में विफल रहा है. तीन जजों की पीठ ने फैसले में कहा कि यह मामला जांच एजेंसी और अभियोजन पक्ष की ओर से पूरी तरह से उदासीन दृष्टिकोण वाला है. छह निर्दोष की जघन्य हत्याओं से जुड़े मामले की जांच पुलिस ने बड़ी लापरवाही बरती. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2019 में ट्रायल कोर्ट के सन 2017 में आरोपी गंभीर सिंह के मृत्युदंड के आदेश को बरकरार रखा था. लेकिन, अपीलकर्ता आरोपी को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में जेल से रिहा कर दिया.
नहीं पता चला मकसद, न कुछ हुआ बरामद
अभियोजन पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में दावा है कि अपीलकर्ता गंभीर सिंह ने संपत्ति विवाद को लेकर अपने ही भाई सत्यभान और उसके परिवार की हत्या कर दी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ता आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए तथाकथित अपराधजनक परिस्थितियों यानी 'मकसद', 'अंतिम बार देखा गया' और 'बरामदगी' में से एक को भी साबित करने में विफल रहा है.
दहशत में आया वादी का परिवार
बता दें कि तुरकिया हत्याकांड में वादी अरदाया निवासी महावीर है. जो सत्यभान का साला है. जब महावीर को आरोपी गंभीर सिंह के बरी किए जाने की जानकारी मिली तो उसका दहशत में आ गया है. महावीर ने बताया कि घटना के बाद 10 साल तक परिवार के साथ गांव से चला गया था. मैं और मेरा परिवार महाराष्ट्र में रहा था. अभी तीन साल पहले ही गांव लौटा हूं. इस मामले में मेरा भाई पैरवी कर रहा था. इसको लेकर मैंने पुलिस कमिश्नर से जान की सुरक्षा की गुहार लगाई है. इस मामले में कोर्ट ने पहले ही आरोपी गंभीर सिंह के साथी अभिषेक को घटना के समय नाबालिग पाए जाने पर बरी कर दिया था.
जानें कब-क्या हुआ?
• 9 मई 2012 को तुरकिया गांव में एक ही परिवार के छह सदस्यों की सामूहिक हत्या की गई थी.
• 2017 में इस हत्याकांड में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी गंभीर सिंह को मृत्युदंड की सजा सुनाई थी.
• 2019 में हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखा.
• 2020 में मृत्युदंड की सजा के विरुद्ध आरोपी गंभीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में अपील.
• 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में आरोपी बरी किए हैं.
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