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केले के कचरे से खड़ा किया करोड़ों का बिजनेस, जानिए 3 बिहारी दोस्तों की कहानी - SUCCESS STORY

केले के वेस्टेज से तीन दोस्त करोड़ों की कमाई कर रहे हैं. पढ़ें हाजीपुर से आदित्य झा की रिपोर्ट

Earning crores from banana waste
तीन दोस्तों ने केले के कचरे को करोड़ों के कारोबार में बदला (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : 3 hours ago

Updated : 3 hours ago

हाजीपुर: "हमारा लक्ष्य बिहार के लिए कुछ अच्छा करना है, ताकि देश और विश्व में पहचान बन सके. साथ ही लोगों को रोजगार के लिए बाहर ना जाना पड़े इसकी कोशिश है. भविष्य में जिन प्रोडक्ट्स की जरूरत पड़ेगी, उसे लोगों के लिए उपलब्ध कराना भी हमारे लक्ष्य में शुमार है." ये कहना है बिहार के उन तीन युवाओं का जिन्होंने कचरे से लाखों और अब करोड़ों की कमाई कर रहे हैं. विस्तार से जानें तीन दोस्तों की सक्सेस स्टोरी.

बिहार में स्टार्टअप कंपनी: कहावत है कि करने का जज्बा हो तो सफलता कदम चूमती है. कुछ ऐसा ही बिहार के मैनेजमेंट के तीन छात्रों सत्यम जतिन और नीतीश ने कर दिखाया है. तीनों ने मैनेजमेंट की पढ़ाई के बाद कुछ नया करने का सोचा और नौकरी नहीं करने का फैसला किया. तीनों दोस्तों ने बिहार में ही स्टार्टअप की योजना बनाई.

देखें रिपोर्ट (ETV Bharat)

तीन दोस्तों की सफलता की कहानी: ईटीवी भारत से बातचीत में इन लोगों ने अपने नए स्टार्टअप की पूरी जानकारी साझा की. बिहार के तीन लड़के सत्यम कुमार, जतिन कल्याण और नीतीश वर्मा की दोस्ती जयपुर के तक्षशिला बिजनेस स्कूल में हुई. सत्यम दरभंगा, जतिन कटिहार, और नीतीश नालंदा का रहने वाला है. मैनेजमेंट की पढ़ाई के दौरान तीनों बिहार के लड़कों के बीच दोस्ती हुई. मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक कंपनी में तीनों दोस्तों ने एक साथ इंटर्नशिप किया.

नौकरी का मिला ऑफर: ईटीवी भारत से बातचीत में सत्यम ने बताया कि मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनको नौकरी का ऑफर आया, लेकिन तीनों दोस्त कुछ दिन के लिए अपने घर आये थे. इस दौरान हमने अपना खुद का कुछ शुरू करने का फैसला किया. केला के पेड़ के वेस्टेज से नया स्टार्टअप की योजना पर काम शुरू किया.

Earning crores from banana waste
केले के रेशा से प्रोडक्ट हो रहा तैयार (ETV Bharat)

2021 में तरुवर एग्रो की शुरुआत: तीनों दोस्तों ने अपनी पूंजी लगाकर 2021 में तरुवर एग्रो नाम से अपने स्टार्टअप की शुरुआत की. जतिन ने बताया कि तीनों ने अपने घर से कुल 15 लाख रुपये की पूंजी लगाने का फैसला किया. इस नई योजना को लेकर परिवार वालों का भी साथ मिला. आज स्थिति ऐसी है कि यह (कंपनी) अपने आप में अब ऑटो मोड पर चलना शुरू कर चुकी है.

"बिहार के लोगों का सपना होता है कि पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी करें. लेकिन हमने हमेशा एक बात को लेकर आगे बढ़ने का फैसला किया कि बिहार में रहकर बिहार के लोगों के लिए काम करना है. अपने पूरे प्रोजेक्ट के बारे में अपने परिवार वालों को समझाया कि यदि हम लोग बाहर जाकर नौकरी करेंगे तो फिर हमारे आगे की पीढ़ी भी बाहर जाकर नौकरी करने की सोचेगी. हमारे प्रोजेक्ट से परिवार के लोग संतुष्ट हुए और हमने अपना नया स्टार्टअप शुरू किया."- नीतीश वर्मा, उद्यमी

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बीच में सत्यम कुमार बाईं ओर जतिन कल्याण और दाईं ओर नीतीश वर्मा (ETV Bharat)

हाजीपुर में यूनिट की शुरुआत: बिहार ही नहीं पूरे देश में हाजीपुर की पहचान केले के उन्नत फसल के रूप की जाती है. इसलिए इन तीनों ने तरुवर एग्रो का यूनिट हाजीपुर में लगाने का फैसला किया. हाजीपुर के जरुआ में लीज पर जमीन ली. 15 हजार रु प्रतिमाह की लीज पर जमीन ली. वहां पर प्रोसेसिंग प्लांट लगाया.

तीन यूनिट में काम कर रही कंपनी: तीनों दोस्तों ने केले का रेशा निकालने की 2 मशीन खरीदी, लेकिन बाद में खुद ही अपने हिसाब से मशीन असेंबल करवा कर कुछ और मशीन यहां लगवाया. आज तरुवर एग्रो का तीन यूनिट काम कर रहा है. एक में बनाना फैब्रिक का काम होता है. दूसरे यूनिट में वर्मी कंपोस्ट तैयार किया जाता है और तीसरी यूनिट में ड्राई फ्रूट्स प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग की यूनिट लगाई गई है.

Earning crores from banana waste
2021 में तरुवर एग्रो की शुरुआत (ETV Bharat)

किसानों से वेस्टेज की खरीद: हाजीपुर में हजारों एकड़ में केले की खेती होती है. केला के फसल में एक चीज होती है कि पेड़ से फल निकलने के बाद उस पेड़ में दुबारा फल नहीं निकलता है. इसलिए केले के पेड़ को काट कर फेंक दिया जाता है. इन लोगों ने केला की खेती करने वाले किसानों से पेड़ के कटे भागों को उनके हाथों बेचने की बात की. किसान भी केले के तनों को उनको बेचने को तैयार हो गए.

"केले के पेड़ के निचले हिस्से का वजन 60 से 100 किलो तक का होता है. हम किसानों की 1 थंब के लिए 18 से 20 रु देते हैं. 1 ट्रैक्टर पर 100 केले के थंब आते हैं. इस तरह जिस चीज को किसान फेंक देते थे. उसके बदले उनको प्रति टेलर 2000 रु मिलने लगे. आज हाजीपुर के 2 दर्जन से अधिक किसान हमारे यहां केले के कटे पेड़ की सप्लाई करते हैं."- जतिन, उद्यमी

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लोगों को मिल रहा रोजगार (ETV Bharat)

तरुवर एग्रो के प्रोडक्ट: ईटीवी भारत से बातचीत में सत्यम कुमार ने बताया कि आज तरुवर एग्रो के कई प्रोडक्ट तैयार हो रहे हैं. तरुवर एग्रो में पहले केवल केले के तना के रेशे से धागा का निर्माण होता था, लेकिन धीरे धीरे कई प्रोडक्ट तैयार होने लगे. केले के फाइबर के अलावे केले के पौधे के रस से पोषक तत्वों और पोटेशियम से भरपूर होता है.

खेतों के लिए उपयोगी पोटेशियम लिक्विड: इसका लैब टेस्ट भागलपुर स्थित सबौर कृषि विश्वविद्यालय में हुआ. इसलिए केले के पेड़ रस से उन लोगों ने खेतों के लिए उपयोगी पोटेशियम का लिक्विड तैयार किया. इस लिक्विड को खेतों में डालने से खेतों में पोटेशियम की कमी दूर हो जाती है.

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केले के पेड़ के वेस्टेज से कई प्रोडक्ट्स हो रहे तैयार (ETV Bharat)

फाइल फोल्डर और पर्स भी हो रहा तैयार: तीनों दोस्तों ने बताया कि केले के वेस्टेज से उन लोगों ने वर्मी कंपोस्ट की यूनिट तैयार की. केले के पेड़ के वेस्टेज से तैयार वर्मी कंपोस्ट खेतों के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हो रहा है. तरुवर एग्रो विभिन्न स्वादों में बेक्ड मखाना स्नैक्स भी बना रहा है. केले के रेशे से फाइल, फोल्डर और पर्स भी बनाया जा रहा है. इसके अलावा केले का धागा भी है जिसका इस्तेमाल मंदिरों में उपयोग होने वाले फूलों के माला एवं अन्य आर्टिफिशियल माला के धागे के रूप में किया जा रहा है.

8-9 बार यूज कर सकते हैं एक सेनेटरी पैड: केले के फाइबर से बने सेनेटरी पैड भी बनाई जा रही है. इससे 2 तरह का सेनेटरी पैड बनते हैं. पहले इको फ्रेंडली जो एक बार में यूज करके फेंक देते हैं. दूसरा हाई क्वालिटी का वॉशेबल सेनेटरी पैड जिसका उपयोग 8 से 9 बार तक किया जाता है.

बिहार के बाहर भी सप्लाई: ईटीवी भारत से बातचीत में जतिन ने बताया कि वे लोग जिस चीज का उत्पादन करते हैं, उसकी सप्लाई बिहार के बाहर के कई राज्यों में हो रही है. जतिन ने बताया कि गुजरात बंगाल कर्नाटक और केरल के टेक्सटाइल से जुड़े हुए कारोबारी उन लोगों के संपर्क में है. जहां-जहां फाइबर पर काम हो रहा है, वहां के व्यापारी हमसे माल मंगवाते हैं. देश के बाहर भी हमारे प्रोडक्ट का सैंपल मंगवाया गया है. जापान और फ्रांस में प्रोडक्ट का सैंपल मंगवाया गया है. यदि सब कुछ सही रहा तो देश के बाहर भी अब अपना प्रोडक्ट भेज सकेंगे.

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फाइल फोल्डर और पर्स भी हो रहा तैयार (ETV Bharat)

लोकल फॉर वोकल पर जोर: ईटीवी भारत बातचीत में जतिन ने बताया कि वह लोग बिहार में इसको लेकर लोगों को जागरुक कर रहे हैं. उनके यहां तैयार फैब्रिक को भागलपुर के बुनकरों को भेजा जा रहा है. इसके अलावा हाजीपुर और स्थानीय लोगों को हैंडीक्राफ्ट के क्षेत्र में सक्षम बनाने के लिए वह अपने प्रोडक्ट यहां के स्थानीय लोगों एवं कलाकारों को दे रहे हैं ताकि उनको यहीं पर सभी चीज की आपूर्ति हो सके.

स्थानीय लोगों में उत्सुकता: ईटीवी भारत से बातचीत में सत्यम कुमार ने बताया कि उनके यहां जितने माल तैयार होते हैं, वह बड़े व्यापारी को यह लोग खुद सप्लाई कर देते हैं. सेफेक्स ,डीएचएल और गति से क्लाइंट के पास प्रोडक्ट आसानी से भेज देते हैं. सत्यम ने बताया कि उन लोगों को देखने के बाद स्थानीय लोग भी अब इस क्षेत्र में काम करने को उत्सुक हुए हैं.

"कई अन्य जगहों पर भी लोगों ने इसकी शुरुआत की है. बनाना फाइबर के कंज्यूमर बिहार में भी अच्छे होने लगे हैं. पटना कटिहार भागलपुर के इलाके में इसके कंज्यूमर अब दिखने लगे हैं. बिहार सरकार से मांग है कि इसको बढ़ावा दे और इसके लिए सरकार आगे आए."- सत्यम कुमार, उद्यमी

वर्मी कंपोस्ट की मांग: नीतीश वर्मा ने कहा कि उनके वर्मी कंपोस्ट की लोकप्रियता किसानों के बीच बढ़ रही है. हाजीपुर एवं अन्य जिलों के नर्सरी के व्यापारी उनके वर्मी कंपोस्ट को खरीद कर ले जा रहे हैं.

स्थानीय लोगों को रोजगार: सत्यम कुमार ने बताया कि तरुवर एग्रो की 4 मजदूरों के साथ शुरुआत की गई थी, लेकिन आज इनके यूनिट में 30 के करीब स्थाई एवं दैनिक मजदूर काम कर रहे हैं. उनके यहां काम करने वाले लोगों में महिलाओं की संख्या अधिक है. इनके वेतन के मद में हर महीने करीब 4 लाख रु खर्च हो रहा है.

"यहां काम करने वाले लोगों को इसके बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे इन लोगों को ट्रेंड किया जा रहा है. ट्रेंड मजदूरों को उनके काम के हिसाब से वेतन में वृद्धि कर रहे हैं. बनाना फाइबर के अलावा ड्राई फ्रूट्स सेक्टर में भी काम शुरू किए हैं. 8 फ्लेवर का मखाना का आइटम यहां तैयार हो रहा है."-सत्यम कुमार, उद्यमी

कितना है कंपनी का सालाना टर्नओवर?: सत्यम कुमार ने बताया कि उन लोगों ने बहुत छोटे स्केल पर इस स्टार्टअप की शुरुआत की थी. 2024 में इन लोगों का सालाना टर्नओवर 1.50 करोड़ के आसपास है, लेकिन उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले वर्ष उनके कंपनी का सालाना टर्नओवर 5 से 6 करोड़ प्रतिवर्ष का होगा.

'बिहार के प्रोडक्ट को देश स्तर तक लाना कोशिश' : जतिन ने बताया कि उन लोगों ने इसकी शुरुआत की थी, तब लक्ष्य ही था कि इस क्षेत्र में वह बिहार के प्रोडक्ट को देश स्तर तक ले जाएं. बिहार के लोगों को बिहार में रोजगार मिले उसको लेकर काम करने का सपना है. जतिन ने बताया कि उन लोगों का लक्ष्य है कि कुछ ऐसे प्रोडक्ट की शुरुआत की जाए जिसका फ्यूचर में डिमांड हो.

"बिहार के साथ-साथ सभी का भी ग्रोथ हो सके. हमें देखकर बिहार के और भी लोग इस क्षेत्र में उतरे क्योंकि एग्रीकल्चर के क्षेत्र में बहुत ज्यादा संभावना है. लोगों को बहुत चीजों की जानकारी नहीं है. ऐसी चीजों से भी हम आगे बढ़ सकते हैं, जिसे हम अपने जिंदगी में कोई महत्व नहीं देते. एग्रीकल्चर के क्षेत्र में यूथ आगे आएं और इसमें अपना करियर बनाएं.- जतिन, उद्यमी

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हाजीपुर: "हमारा लक्ष्य बिहार के लिए कुछ अच्छा करना है, ताकि देश और विश्व में पहचान बन सके. साथ ही लोगों को रोजगार के लिए बाहर ना जाना पड़े इसकी कोशिश है. भविष्य में जिन प्रोडक्ट्स की जरूरत पड़ेगी, उसे लोगों के लिए उपलब्ध कराना भी हमारे लक्ष्य में शुमार है." ये कहना है बिहार के उन तीन युवाओं का जिन्होंने कचरे से लाखों और अब करोड़ों की कमाई कर रहे हैं. विस्तार से जानें तीन दोस्तों की सक्सेस स्टोरी.

बिहार में स्टार्टअप कंपनी: कहावत है कि करने का जज्बा हो तो सफलता कदम चूमती है. कुछ ऐसा ही बिहार के मैनेजमेंट के तीन छात्रों सत्यम जतिन और नीतीश ने कर दिखाया है. तीनों ने मैनेजमेंट की पढ़ाई के बाद कुछ नया करने का सोचा और नौकरी नहीं करने का फैसला किया. तीनों दोस्तों ने बिहार में ही स्टार्टअप की योजना बनाई.

देखें रिपोर्ट (ETV Bharat)

तीन दोस्तों की सफलता की कहानी: ईटीवी भारत से बातचीत में इन लोगों ने अपने नए स्टार्टअप की पूरी जानकारी साझा की. बिहार के तीन लड़के सत्यम कुमार, जतिन कल्याण और नीतीश वर्मा की दोस्ती जयपुर के तक्षशिला बिजनेस स्कूल में हुई. सत्यम दरभंगा, जतिन कटिहार, और नीतीश नालंदा का रहने वाला है. मैनेजमेंट की पढ़ाई के दौरान तीनों बिहार के लड़कों के बीच दोस्ती हुई. मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक कंपनी में तीनों दोस्तों ने एक साथ इंटर्नशिप किया.

नौकरी का मिला ऑफर: ईटीवी भारत से बातचीत में सत्यम ने बताया कि मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनको नौकरी का ऑफर आया, लेकिन तीनों दोस्त कुछ दिन के लिए अपने घर आये थे. इस दौरान हमने अपना खुद का कुछ शुरू करने का फैसला किया. केला के पेड़ के वेस्टेज से नया स्टार्टअप की योजना पर काम शुरू किया.

Earning crores from banana waste
केले के रेशा से प्रोडक्ट हो रहा तैयार (ETV Bharat)

2021 में तरुवर एग्रो की शुरुआत: तीनों दोस्तों ने अपनी पूंजी लगाकर 2021 में तरुवर एग्रो नाम से अपने स्टार्टअप की शुरुआत की. जतिन ने बताया कि तीनों ने अपने घर से कुल 15 लाख रुपये की पूंजी लगाने का फैसला किया. इस नई योजना को लेकर परिवार वालों का भी साथ मिला. आज स्थिति ऐसी है कि यह (कंपनी) अपने आप में अब ऑटो मोड पर चलना शुरू कर चुकी है.

"बिहार के लोगों का सपना होता है कि पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी करें. लेकिन हमने हमेशा एक बात को लेकर आगे बढ़ने का फैसला किया कि बिहार में रहकर बिहार के लोगों के लिए काम करना है. अपने पूरे प्रोजेक्ट के बारे में अपने परिवार वालों को समझाया कि यदि हम लोग बाहर जाकर नौकरी करेंगे तो फिर हमारे आगे की पीढ़ी भी बाहर जाकर नौकरी करने की सोचेगी. हमारे प्रोजेक्ट से परिवार के लोग संतुष्ट हुए और हमने अपना नया स्टार्टअप शुरू किया."- नीतीश वर्मा, उद्यमी

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बीच में सत्यम कुमार बाईं ओर जतिन कल्याण और दाईं ओर नीतीश वर्मा (ETV Bharat)

हाजीपुर में यूनिट की शुरुआत: बिहार ही नहीं पूरे देश में हाजीपुर की पहचान केले के उन्नत फसल के रूप की जाती है. इसलिए इन तीनों ने तरुवर एग्रो का यूनिट हाजीपुर में लगाने का फैसला किया. हाजीपुर के जरुआ में लीज पर जमीन ली. 15 हजार रु प्रतिमाह की लीज पर जमीन ली. वहां पर प्रोसेसिंग प्लांट लगाया.

तीन यूनिट में काम कर रही कंपनी: तीनों दोस्तों ने केले का रेशा निकालने की 2 मशीन खरीदी, लेकिन बाद में खुद ही अपने हिसाब से मशीन असेंबल करवा कर कुछ और मशीन यहां लगवाया. आज तरुवर एग्रो का तीन यूनिट काम कर रहा है. एक में बनाना फैब्रिक का काम होता है. दूसरे यूनिट में वर्मी कंपोस्ट तैयार किया जाता है और तीसरी यूनिट में ड्राई फ्रूट्स प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग की यूनिट लगाई गई है.

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2021 में तरुवर एग्रो की शुरुआत (ETV Bharat)

किसानों से वेस्टेज की खरीद: हाजीपुर में हजारों एकड़ में केले की खेती होती है. केला के फसल में एक चीज होती है कि पेड़ से फल निकलने के बाद उस पेड़ में दुबारा फल नहीं निकलता है. इसलिए केले के पेड़ को काट कर फेंक दिया जाता है. इन लोगों ने केला की खेती करने वाले किसानों से पेड़ के कटे भागों को उनके हाथों बेचने की बात की. किसान भी केले के तनों को उनको बेचने को तैयार हो गए.

"केले के पेड़ के निचले हिस्से का वजन 60 से 100 किलो तक का होता है. हम किसानों की 1 थंब के लिए 18 से 20 रु देते हैं. 1 ट्रैक्टर पर 100 केले के थंब आते हैं. इस तरह जिस चीज को किसान फेंक देते थे. उसके बदले उनको प्रति टेलर 2000 रु मिलने लगे. आज हाजीपुर के 2 दर्जन से अधिक किसान हमारे यहां केले के कटे पेड़ की सप्लाई करते हैं."- जतिन, उद्यमी

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लोगों को मिल रहा रोजगार (ETV Bharat)

तरुवर एग्रो के प्रोडक्ट: ईटीवी भारत से बातचीत में सत्यम कुमार ने बताया कि आज तरुवर एग्रो के कई प्रोडक्ट तैयार हो रहे हैं. तरुवर एग्रो में पहले केवल केले के तना के रेशे से धागा का निर्माण होता था, लेकिन धीरे धीरे कई प्रोडक्ट तैयार होने लगे. केले के फाइबर के अलावे केले के पौधे के रस से पोषक तत्वों और पोटेशियम से भरपूर होता है.

खेतों के लिए उपयोगी पोटेशियम लिक्विड: इसका लैब टेस्ट भागलपुर स्थित सबौर कृषि विश्वविद्यालय में हुआ. इसलिए केले के पेड़ रस से उन लोगों ने खेतों के लिए उपयोगी पोटेशियम का लिक्विड तैयार किया. इस लिक्विड को खेतों में डालने से खेतों में पोटेशियम की कमी दूर हो जाती है.

Earning crores from banana waste
केले के पेड़ के वेस्टेज से कई प्रोडक्ट्स हो रहे तैयार (ETV Bharat)

फाइल फोल्डर और पर्स भी हो रहा तैयार: तीनों दोस्तों ने बताया कि केले के वेस्टेज से उन लोगों ने वर्मी कंपोस्ट की यूनिट तैयार की. केले के पेड़ के वेस्टेज से तैयार वर्मी कंपोस्ट खेतों के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हो रहा है. तरुवर एग्रो विभिन्न स्वादों में बेक्ड मखाना स्नैक्स भी बना रहा है. केले के रेशे से फाइल, फोल्डर और पर्स भी बनाया जा रहा है. इसके अलावा केले का धागा भी है जिसका इस्तेमाल मंदिरों में उपयोग होने वाले फूलों के माला एवं अन्य आर्टिफिशियल माला के धागे के रूप में किया जा रहा है.

8-9 बार यूज कर सकते हैं एक सेनेटरी पैड: केले के फाइबर से बने सेनेटरी पैड भी बनाई जा रही है. इससे 2 तरह का सेनेटरी पैड बनते हैं. पहले इको फ्रेंडली जो एक बार में यूज करके फेंक देते हैं. दूसरा हाई क्वालिटी का वॉशेबल सेनेटरी पैड जिसका उपयोग 8 से 9 बार तक किया जाता है.

बिहार के बाहर भी सप्लाई: ईटीवी भारत से बातचीत में जतिन ने बताया कि वे लोग जिस चीज का उत्पादन करते हैं, उसकी सप्लाई बिहार के बाहर के कई राज्यों में हो रही है. जतिन ने बताया कि गुजरात बंगाल कर्नाटक और केरल के टेक्सटाइल से जुड़े हुए कारोबारी उन लोगों के संपर्क में है. जहां-जहां फाइबर पर काम हो रहा है, वहां के व्यापारी हमसे माल मंगवाते हैं. देश के बाहर भी हमारे प्रोडक्ट का सैंपल मंगवाया गया है. जापान और फ्रांस में प्रोडक्ट का सैंपल मंगवाया गया है. यदि सब कुछ सही रहा तो देश के बाहर भी अब अपना प्रोडक्ट भेज सकेंगे.

Earning crores from banana waste
फाइल फोल्डर और पर्स भी हो रहा तैयार (ETV Bharat)

लोकल फॉर वोकल पर जोर: ईटीवी भारत बातचीत में जतिन ने बताया कि वह लोग बिहार में इसको लेकर लोगों को जागरुक कर रहे हैं. उनके यहां तैयार फैब्रिक को भागलपुर के बुनकरों को भेजा जा रहा है. इसके अलावा हाजीपुर और स्थानीय लोगों को हैंडीक्राफ्ट के क्षेत्र में सक्षम बनाने के लिए वह अपने प्रोडक्ट यहां के स्थानीय लोगों एवं कलाकारों को दे रहे हैं ताकि उनको यहीं पर सभी चीज की आपूर्ति हो सके.

स्थानीय लोगों में उत्सुकता: ईटीवी भारत से बातचीत में सत्यम कुमार ने बताया कि उनके यहां जितने माल तैयार होते हैं, वह बड़े व्यापारी को यह लोग खुद सप्लाई कर देते हैं. सेफेक्स ,डीएचएल और गति से क्लाइंट के पास प्रोडक्ट आसानी से भेज देते हैं. सत्यम ने बताया कि उन लोगों को देखने के बाद स्थानीय लोग भी अब इस क्षेत्र में काम करने को उत्सुक हुए हैं.

"कई अन्य जगहों पर भी लोगों ने इसकी शुरुआत की है. बनाना फाइबर के कंज्यूमर बिहार में भी अच्छे होने लगे हैं. पटना कटिहार भागलपुर के इलाके में इसके कंज्यूमर अब दिखने लगे हैं. बिहार सरकार से मांग है कि इसको बढ़ावा दे और इसके लिए सरकार आगे आए."- सत्यम कुमार, उद्यमी

वर्मी कंपोस्ट की मांग: नीतीश वर्मा ने कहा कि उनके वर्मी कंपोस्ट की लोकप्रियता किसानों के बीच बढ़ रही है. हाजीपुर एवं अन्य जिलों के नर्सरी के व्यापारी उनके वर्मी कंपोस्ट को खरीद कर ले जा रहे हैं.

स्थानीय लोगों को रोजगार: सत्यम कुमार ने बताया कि तरुवर एग्रो की 4 मजदूरों के साथ शुरुआत की गई थी, लेकिन आज इनके यूनिट में 30 के करीब स्थाई एवं दैनिक मजदूर काम कर रहे हैं. उनके यहां काम करने वाले लोगों में महिलाओं की संख्या अधिक है. इनके वेतन के मद में हर महीने करीब 4 लाख रु खर्च हो रहा है.

"यहां काम करने वाले लोगों को इसके बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे इन लोगों को ट्रेंड किया जा रहा है. ट्रेंड मजदूरों को उनके काम के हिसाब से वेतन में वृद्धि कर रहे हैं. बनाना फाइबर के अलावा ड्राई फ्रूट्स सेक्टर में भी काम शुरू किए हैं. 8 फ्लेवर का मखाना का आइटम यहां तैयार हो रहा है."-सत्यम कुमार, उद्यमी

कितना है कंपनी का सालाना टर्नओवर?: सत्यम कुमार ने बताया कि उन लोगों ने बहुत छोटे स्केल पर इस स्टार्टअप की शुरुआत की थी. 2024 में इन लोगों का सालाना टर्नओवर 1.50 करोड़ के आसपास है, लेकिन उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले वर्ष उनके कंपनी का सालाना टर्नओवर 5 से 6 करोड़ प्रतिवर्ष का होगा.

'बिहार के प्रोडक्ट को देश स्तर तक लाना कोशिश' : जतिन ने बताया कि उन लोगों ने इसकी शुरुआत की थी, तब लक्ष्य ही था कि इस क्षेत्र में वह बिहार के प्रोडक्ट को देश स्तर तक ले जाएं. बिहार के लोगों को बिहार में रोजगार मिले उसको लेकर काम करने का सपना है. जतिन ने बताया कि उन लोगों का लक्ष्य है कि कुछ ऐसे प्रोडक्ट की शुरुआत की जाए जिसका फ्यूचर में डिमांड हो.

"बिहार के साथ-साथ सभी का भी ग्रोथ हो सके. हमें देखकर बिहार के और भी लोग इस क्षेत्र में उतरे क्योंकि एग्रीकल्चर के क्षेत्र में बहुत ज्यादा संभावना है. लोगों को बहुत चीजों की जानकारी नहीं है. ऐसी चीजों से भी हम आगे बढ़ सकते हैं, जिसे हम अपने जिंदगी में कोई महत्व नहीं देते. एग्रीकल्चर के क्षेत्र में यूथ आगे आएं और इसमें अपना करियर बनाएं.- जतिन, उद्यमी

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