मुंबई: साल 2014 में शिवसेना ने बीजेपी के साथ अपना 25 साल पुराना गठबंधन खत्म कर दिया. इसके बाद 2019 में बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा. लेकिन सरकार गठन के समय उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ महाविकास अघाड़ी बनाकर सरकार बनाई.
इस बीच कोरोना काल के बाद जून 2022 में एकनाथ शिंदे ने बगावत कर दी. उन्होंने 40 विधायकों और 13 सांसदों वाली बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली. तब से लेकर अब तक पार्टी में क्या-क्या हुआ, एक नजर.
शिव सेना की स्थापना 19 जून 1966 को शिवाजी पार्क में प्रबोधनकार ठाकरे की साक्षी से 'हिंदू हृदय' सम्राट बाला साहब ठाकरे ने की थी. मराठी लोगों को न्याय दिलाने और मराठी लोगों को एक साथ लाने के लिए 'शिवसेना' संगठन का गठन किया गया था. मराठी लोगों के एक साथ आने के बाद शिव सेना का संगठन बढ़ने लगा. मराठी आदमी को मुंबई में निजी कंपनी, सरकारी कंपनी, बैंकों में नौकरी कैसे मिल सकती है? संगठन ने इस पर जोर दिया. 1995 में शिव सेना के वरिष्ठ नेता मनोहर जोशी शिव सेना के पहले मुख्यमंत्री बने, जिसके बाद शिवसेना की राजनीतिक यात्रा स्थानीय स्वशासन निकायों, विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों के साथ जारी रही.
आज शिव सेना की 58वीं सालगिरह है. इस देश के लोगों ने, महाराष्ट्र के लोगों ने दिखा दिया है कि असली शिवसेना किसकी है. शिव सेना उद्धव बाला साहेब ठाकरे, सभी शिव सैनिक, युवा, किसान, मजदूर, वंचित इस देश में मजबूती से खड़े हैं. यही कारण है कि इस देश की राजनीति में शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे की पार्टी का झंडा शान से लहरा रहा है - शिवसैनिक प्रवीण ताम्हणकर की प्रतिक्रिया
बाला साहेब ठाकरे ने 1966 में शिव सेना की स्थापना की थी. कुछ लोग सोचते हैं कि शिवसेना उनकी है. लेकिन मैं उन्हें बताता हूं कि हम कट्टर शिवसैनिक हैं - शिवसैनिक महेश गवनकर
शिंदे की बगावत किस वजह से?
2019 में महाविकास अघाड़ी सरकार बनने के बाद जनवरी 2020 में कोरोना महामारी आई. जिसके बाद मार्च महीने में लॉकडाउन लगाया गया. उस दौरान सब कुछ ठप हो गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे फेसबुक लाइव पर लोगों से बातचीत करने में बिजी थे. इस बीच शिवसेना में एक गुट नाराज चल रहा था. महामारी काल के दौरान महाविकास अघाड़ी दल में एकनाथ शिंदे नाखुश थे. तब उन्होंने कहा था कि हम अपनी विचारधारा के विरोधी लोगों के साथ सरकार में हैं. एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे यह कहना चाहते थे कि वे अब उनके साथ अब और नहीं रह सकते. वे विभाजन चाहते है, लेकिन उद्धव ठाकरे ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया.
दोनों के बीच मनमुटाव इतना ज्यादा बढ़ गया कि जून 2022 में एकनाथ शिंदे के विद्रोह के बाद शिवसेना में विभाजन की स्थिति बन गई. उस वक्त एकनाथ शिंदे ने दावा किया था कि उद्धव ठाकरे उन्हें समय नहीं दे रहे हैं. विधायकों को बंगले पर घंटों रोककर रखा जाता है. विधायकों को फंड नहीं दिया जाता. विभाजन के बाद बागी विधायकों ने दावा किया था कि उद्धव ठाकरे शिवसेना विधायकों से मिलते नहीं हैं.
एकनाथ शिंदे के लिए मुख्यमंत्री पद
शुरुआत में 40 विधायकों और 13 सांसदों के साथ सूरत, गुवाहाटी, गोवा और मुंबई की यात्रा करते हुए शिंदे गुट ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई. उस समय एकनाथ शिंदे को अप्रत्याशित रूप से मुख्यमंत्री पद मिल गया. इस पर सभी हैरान रह गए. एकनाथ शिंदे ने दावा किया कि यह उनकी बगावत नहीं, बल्कि विद्रोह था. बालासाहेब जिन्होंने जीवन भर कांग्रेस का विरोध किया. उसी कांग्रेस की गोद में बैठना हमारे सिद्धांतों में नहीं है, विद्रोह के बाद एकनाथ शिंदे ने अपनी स्थिति स्पष्ट की. आज भी शिंदे बार-बार कहते हैं कि बालासाहेब के विचारों की असली शिवसेना उनके साथ है.
शिंदे की शिव सेना को शिव सेना का नाम और चुनाव चिह्न: एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद जहां एक तरफ ठाकरे की शिव सेना को बड़ी हार का सामना करना पड़ा. पार्टी से नगरसेवक, अधिकारी और नेता उद्धव ठाकरे को छोड़कर शिंदे के पाले में चले गए. इस बीच शिंदे की पार्टी शिव सेना ने भी शिव सेना पार्टी और चुनाव चिह्न पर दावा किया. इसके खिलाफ ठाकरे की शिवसेना कोर्ट चली गई. असली शिव सेना कौन है? मामला अभी भी कोर्ट में चल रहा है. लेकिन चुनाव आयोग ने शिंदे की पार्टी शिव सेना को पार्टी का नाम और तीर-धनुष चुनाव चिह्न देने का फैसला किया. इस फैसले के बाद कई पुराने शिवसैनिक दुखी हो गए.
बाला साहेब की शिव सेना पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न ठाकरे उपनाम से अलग कर दिया गया. अब शिव सेना नाम और तीर-धनुष चुनाव चिह्न एकनाथ शिंदे की शिव सेना का है. वह इसी सिंबल पर लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं. असली शिव सेना कौन है? मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. चुनाव आयोग ने ठाकरे की शिवसेना को 'उद्धव बालासाहेब ठाकरे' नाम और चुनाव चिह्न 'मशाल' दिया है. लोकसभा चुनाव में मशाल चुनाव चिह्न पर ही शिवसेना ठाकरे समूह के नौ सांसद चुने गए हैं.
असली शिव सेना कौन है? : हाल ही में लोकसभा चुनाव हुए हैं. शिवसेना के विभाजन के बाद पहली बार लोकसभा चुनाव में शिंदे गुट और ठाकरे गुट आमने-सामने हुए. शिव सेना शिंदे गुट ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा. उनमें से सात सीटों पर उन्होंने जीत हासिल की. शिवसेना ठाकरे समूह ने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा. इसमें उनके 9 सांसद जीते हैं. इसलिए शिवसैनिकों की प्रतिक्रिया है कि जनता ने वोट दिया है कि असली शिव सेना तो ठाकरे की है. क्योंकि सबसे ज्यादा नौ सांसद शिवसेना के निर्वाचित हुए हैं. शिवसेना ठाकरे ग्रुप के नेता कह रहे हैं कि हमारे लिए चुनाव आयोग और कोर्ट से ज्यादा जनता का फैसला अहम है. शिवसैनिकों ने मुखर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वे कट्टर शिवसैनिक ठाकरे को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे.
दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप: शिवसेना के अलग होने के बाद इन दो सालों में देखा गया कि शिंदे गुट और ठाकरे गुट आक्रामक हो गए. उद्धव ठाकरे ने आलोचना की कि उनके पिता द्वारा स्थापित पार्टी को शिंदे समूह ने चुरा लिया था. एकनाथ शिंदे ने जवाब दिया कि आपने हिंदू धर्म और बाला साहेब के विचारों को छोड़ दिया है. शिंदे गुट ने ठाकरे गुट की आलोचना करते हुए कहा कि वे सत्ता के लिए उसी कांग्रेस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बैठे हैं जिसने बाला साहेब की आलोचना की थी. पिछले दो सालों में राज्य में महंगाई, बेरोजगारी, किसान आत्महत्या, महिला उत्पीड़न, सूखा आदि मुद्दों पर ठाकरे गुट शिंदे गुट पर हमलावर रहा है. लेकिन शिंदे गुट की ओर से भी इसका जवाब दिया जा रहा है. इसलिए इन दो सालों में शिवसेना के अलग होने के बाद दोनों ही गुट आक्रामक और एक-दूसरे पर निशाना साधते रहे हैं.
इस साल दोनों गुटों की ओर से शिवसेना की सालगिरह मनाई जा रही है. लेकिन असली शिव सेना कौन है? ये मामला कोर्ट में है. कट्टर और वफादार शिवसैनिक को एक बड़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
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