डूंगरपुर. होली का त्योहार देशभर में रंग गुलाल के साथ खेला जाता है, लेकिन आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में होली की अनूठी और खतरनाक परंपराएं आज भी निभाई जा रही हैं. भीलूड़ा में आज धुलंडी के दिन पत्थरमार होली खेली गई. यहां लोगों ने एक दूसरे को रंग गुलाल की बजाय पत्थर बरसाए. चिकित्सक युवराज सिंह चौहान ने बताया कि 30 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. घायलों का नजदीकी अस्पताल में इलाज करवाया गया.
एक दूसरे पर पत्थर बरसाए : होली को लेकर वागड़ में भीलुड़ा की पत्थरमार होली को देखने आसपास के गांवों के हजारों लोग एकजुट होते हैं. शाम ढलते ही भीलुड़ा समेत आसपास के गांवों के लोग ढोल कुंडी की थाप पर गैर नृत्य करते हुए निकले. लोग गांव के रघुनाथजी मंदिर के पास एकत्रित हो गए. एक साथ कई ढोल की आवाज के साथ लोगों ने जमकर गैर खेली. मंदिर के पास मैदान में आकर युवा दो टोलियों में बंट गए और फिर शुरू हुई खूनी होली. लोगों ने एक दूसरे पर पत्थर बरसाने शुरू किए. पत्थरों के हमले में कई लोगों को हाथ, पैर और सिर पर चोटें आईं. पत्थरमार होली में कई लोग लहूलुहान हो गए.
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100 साल से निभाई जा रही परम्परा : पत्थर बरसाने के दौरान कई लोग पेड़ों की ओट में छुपकर बचने का प्रयास करते रहे. पत्थरमार होली में 30 से ज्यादा लोग घायल हो गए, जिन्हें नजदीकी अस्पताल में ले जाकर इलाज करवाया गया. वहीं, पत्थरमार होली को देखने कई गांवों के लोग दूर दूर तक बैठे रहे. स्थानीय निवासी दिनेश भट्ट के अनुसार पत्थरमार होली की ये परम्परा 100 साल पहले से निभाई जा रही है, जिसे गांव के लोग आज भी कायम रखे हुए हैं. मान्यता है कि पत्थर लगने से घायल व्यक्ति का खून जमीन पर गिरने से गांव पर किसी तरह का कोई संकट नहीं आता है. गांव में खुशहाली रहती है.