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हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला; एससी-एसटी का अपराध तभी, जब आरोपी पीड़ित को पहचानता हो - High Court

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट अनजाने में की गई जातिसूचक टिप्पणी पर एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराध नहीं बनता है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 18, 2024, 10:59 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि अनुसूचित जाति के व्यक्ति के विरुद्ध अनजाने में की गई जातिसूचक टिप्पणी पर एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)(5) का अपराध नहीं बनता. ऐसा अपराध तभी माना जाएगा, जब टिप्पणी करने वाला जानता हो, जिसके खिलाफ जातिसूचक अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहा है, वह अनुसूचित जाति का है. कोर्ट ने अनजाने में की गई जातिसूचक टिप्पणी पर एससी-एसटी एक्ट के तहत चल रही केस कार्यवाही रद्द कर दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने देहरादून निवासी अलका सेठी की याचिका पर उसके अधिवक्ता अवनीश त्रिपाठी, सरकारी वकील और विपक्षी के अधिवक्ता को सुनकर दिया है.

एससी/एसटी एक्ट के मामले में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका की पोषणीयता मामले में विपक्षी के अधिवक्ता की ओर से कोई आपत्ति न करने पर कोर्ट ने मामले में सुनवाई की. साथ ही टिप्पणी की कि एससी/एसटी कानून कमजोर को अत्याचार से संरक्षण देने के लिए बनाया गया है. लेकिन व्यक्तिगत प्रतिशोध या हित या खुद को बचाने के लिए इस कानून का बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है.

कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भजनलाल केस में सीआरपीसी की धारा 482 की अंतर्निहित शक्ति के इस्तेमाल करने की गाइडलाइन जारी की है. इसके अनुसार यदि प्रथमदृष्टया अपराध नहीं बनता तो कोर्ट केस कार्यवाही में हस्तक्षेप कर सकती है.

याची के इस आरोप कि भू-माफिया व राजस्व अधिकारियों और तत्कालीन एसएचओ की मिलीभगत से बैनामे से खरीदी उसकी जमीन की पैमाइश कराने के लिए उसे आफिस के चक्कर लगाने को मजबूर किया गया. दोनों पक्षों की मौजूदगी में पैमाइश करने के एसडीएम के आदेश के विपरीत लेखपाल की मनमानी पैमाइश का विरोध करने पर उसे झूठे केस में फंसाया गया है. थानेदार ने उसकी शिकायत नहीं सुनी और एक दिन बाद लेखपाल की झूठी एफआईआर दर्ज कर ली गई.

इस पर कोर्ट ने डीजीपी को निर्देश दिया कि आईजीआरएस व डैशबोर्ड पर की गई याची की शिकायतों की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से जांच कराएं और यह जांच चार माह में पूरी की जाए. कोर्ट ने सहारनपुर के बिहारीगढ़ थाने में दर्ज एससी/एसटी के मामले को निरस्त कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट बहुत ही यांत्रिक तरीके से दाखिल की गई है. ट्रायल कोर्ट ने संज्ञान लेकर सम्मन भी जारी कर दिया.

कोर्ट ने एफआईआर को याची के साथ हुई हाथापाई से बचने के लिए जवाबी हमला माना. साथ ही आश्चर्य जताया कि राजस्व अधिकारियों को बांधकर रखा और वरिष्ठ अधिकारियों के मौके पर आने पर छोड़ा. कोर्ट ने कहा कि यह अविश्वसनीय है कि कैसे एक पुरुष व एक महिला इतने सारे लोगों को काबू में कर सकते हैं और उन्हें बांध सकते हैं और वरिष्ठ अधिकारियों के आने पर छोड़ते है. निःसंदेह यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है.

यह था मामलाः मामले के अनुसार, 18 अगस्त 2023 को दोपहर सतपुरा गांव के लेखपाल निरीक्षण कर रहे थे. उसी समय विवाद हुआ. याची देहरादून की निवासी है. उसने लोकेश मित्तल से जमीन का बैनामा कराया था. दाखिल खारिज कराने के बाद सीमांकन की मांग की, जिसमें देरी की जा रही थी. भू माफिया उस जमीन पर कब्जा करने की फिराक में थे, जिसकी प्राथमिकी भी दर्ज है. एसडीएम बेहट ने दोनों पक्षों की मौजूदगी में सीमांकन का आदेश दिया था लेकिन लेखपाल बिना बताए अकेले सीमांकन कर रहा था, जिसके कारण विवाद हुआ.

इसे भी पढ़ें-एक मुकदमे में दो बार गुंडा एक्ट की कार्रवाई करने पर ने जताई नाराजगी, सरकार पर लगाया एक लाख हर्जाना

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि अनुसूचित जाति के व्यक्ति के विरुद्ध अनजाने में की गई जातिसूचक टिप्पणी पर एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)(5) का अपराध नहीं बनता. ऐसा अपराध तभी माना जाएगा, जब टिप्पणी करने वाला जानता हो, जिसके खिलाफ जातिसूचक अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहा है, वह अनुसूचित जाति का है. कोर्ट ने अनजाने में की गई जातिसूचक टिप्पणी पर एससी-एसटी एक्ट के तहत चल रही केस कार्यवाही रद्द कर दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने देहरादून निवासी अलका सेठी की याचिका पर उसके अधिवक्ता अवनीश त्रिपाठी, सरकारी वकील और विपक्षी के अधिवक्ता को सुनकर दिया है.

एससी/एसटी एक्ट के मामले में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका की पोषणीयता मामले में विपक्षी के अधिवक्ता की ओर से कोई आपत्ति न करने पर कोर्ट ने मामले में सुनवाई की. साथ ही टिप्पणी की कि एससी/एसटी कानून कमजोर को अत्याचार से संरक्षण देने के लिए बनाया गया है. लेकिन व्यक्तिगत प्रतिशोध या हित या खुद को बचाने के लिए इस कानून का बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है.

कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भजनलाल केस में सीआरपीसी की धारा 482 की अंतर्निहित शक्ति के इस्तेमाल करने की गाइडलाइन जारी की है. इसके अनुसार यदि प्रथमदृष्टया अपराध नहीं बनता तो कोर्ट केस कार्यवाही में हस्तक्षेप कर सकती है.

याची के इस आरोप कि भू-माफिया व राजस्व अधिकारियों और तत्कालीन एसएचओ की मिलीभगत से बैनामे से खरीदी उसकी जमीन की पैमाइश कराने के लिए उसे आफिस के चक्कर लगाने को मजबूर किया गया. दोनों पक्षों की मौजूदगी में पैमाइश करने के एसडीएम के आदेश के विपरीत लेखपाल की मनमानी पैमाइश का विरोध करने पर उसे झूठे केस में फंसाया गया है. थानेदार ने उसकी शिकायत नहीं सुनी और एक दिन बाद लेखपाल की झूठी एफआईआर दर्ज कर ली गई.

इस पर कोर्ट ने डीजीपी को निर्देश दिया कि आईजीआरएस व डैशबोर्ड पर की गई याची की शिकायतों की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से जांच कराएं और यह जांच चार माह में पूरी की जाए. कोर्ट ने सहारनपुर के बिहारीगढ़ थाने में दर्ज एससी/एसटी के मामले को निरस्त कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट बहुत ही यांत्रिक तरीके से दाखिल की गई है. ट्रायल कोर्ट ने संज्ञान लेकर सम्मन भी जारी कर दिया.

कोर्ट ने एफआईआर को याची के साथ हुई हाथापाई से बचने के लिए जवाबी हमला माना. साथ ही आश्चर्य जताया कि राजस्व अधिकारियों को बांधकर रखा और वरिष्ठ अधिकारियों के मौके पर आने पर छोड़ा. कोर्ट ने कहा कि यह अविश्वसनीय है कि कैसे एक पुरुष व एक महिला इतने सारे लोगों को काबू में कर सकते हैं और उन्हें बांध सकते हैं और वरिष्ठ अधिकारियों के आने पर छोड़ते है. निःसंदेह यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है.

यह था मामलाः मामले के अनुसार, 18 अगस्त 2023 को दोपहर सतपुरा गांव के लेखपाल निरीक्षण कर रहे थे. उसी समय विवाद हुआ. याची देहरादून की निवासी है. उसने लोकेश मित्तल से जमीन का बैनामा कराया था. दाखिल खारिज कराने के बाद सीमांकन की मांग की, जिसमें देरी की जा रही थी. भू माफिया उस जमीन पर कब्जा करने की फिराक में थे, जिसकी प्राथमिकी भी दर्ज है. एसडीएम बेहट ने दोनों पक्षों की मौजूदगी में सीमांकन का आदेश दिया था लेकिन लेखपाल बिना बताए अकेले सीमांकन कर रहा था, जिसके कारण विवाद हुआ.

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