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उधार सीमा मामले में केरल को अंतरिम राहत देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार - SC declines interim relief - SC DECLINES INTERIM RELIEF

SC ON KERALA GOVT BORROWING LIMITS : सुप्रीम कोर्ट ने 1 अप्रैल को उधार सीमा को लेकर केंद्र के खिलाफ मामले में केरल को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया और कहा कि राज्य को पहले ही पर्याप्त राहत मिल चुकी है. हालांकि, अदालत ने इस बड़े सवाल को संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया कि क्या कोई राज्य राजकोषीय मुद्दों पर केंद्र पर मुकदमा कर सकता है.

KERALA GOVT BORROWING LIMITS
प्रतीकात्मक तस्वीर.
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By Sumit Saxena

Published : Apr 1, 2024, 12:20 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केरल सरकार द्वारा राज्यों की उधार लेने की क्षमता पर सीमा लगाने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाले मुकदमे को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया एक बार जब कोई राज्य केंद्र से उधार लेता है तो भारत संघ की ओर से अगले भुगतान में कमी की जा सकती है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सुविधा का संतुलन भारत संघ यानी केंद्र सरकार के पास है.

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र सरकार को अपनी उधार सीमा प्रतिबंधों में ढील देने का निर्देश देने की केरल सरकार की याचिका खारिज कर दी ताकि वह चालू वित्त वर्ष के दौरान अतिरिक्त धन उधार ले सके. न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि पीठ ने स्थिरता और अंतरिम निषेधाज्ञा पर एक सामान्य आदेश पारित किया है. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि यह मुकदमा संवैधानिक व्याख्या पर महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है, जैसे अनुच्छेद 131 की व्याख्या, अनुच्छेद 293 कि क्या राज्य के पास संघ से उधार लेने का प्रवर्तनीय अधिकार है, और न्यायिक समीक्षा का दायरा और सीमा.

पीठ ने कहा कि उसने संवैधानिक व्याख्या के अलावा छह प्रश्न तैयार किए हैं और ये प्रश्न संविधान के अनुच्छेद 145 के अंतर्गत आते हैं और इस मामले पर पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की ओर से विचार किया जाना चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि फिलहाल वह संघ की दलील को स्वीकार करने के लिए इच्छुक है.

22 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार द्वारा राज्य की शुद्ध उधारी की सीमा को चुनौती देने वाले मुकदमे में अंतरिम राहत की मांग करने वाली याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. मामले में विस्तृत सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने केरल सरकार का प्रतिनिधित्व किया और अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एन वेंकटरमण ने केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व किया.

राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत में एक मुकदमा दायर किया है जिसमें केंद्र पर उधार लेने की सीमा लगाकर राज्य के वित्त को विनियमित करने के लिए उसकी 'विशेष, स्वायत्त और पूर्ण शक्तियों' के प्रयोग में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया गया है.

केंद्र ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी थी कि केरल सरकार हाल के वर्षों में 'अत्यधिक उधार' ले रही है, जो उसकी कठिन वित्तीय स्थिति को दर्शाता है. हालांकि, राज्य सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि उसकी वित्तीय स्थिति पिछले वर्षों में अधिक उधार लेने के बोझ को सहन करने के लिए 'पर्याप्त टिकाऊ' है.

12 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि वह थोड़ा उदार हो और केरल को मौजूदा वित्तीय संकट से उबारने के लिए एकमुश्त पैकेज देने पर विचार करे. अगले दिन, केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया कि वह केरल सरकार को 'बहुत विशेष और असाधारण उपाय' के रूप में राज्य के सामने आने वाले वित्तीय मुद्दों से निपटने के लिए कुछ शर्तों के अधीन 5,000 करोड़ रुपये उधार लेने की अनुमति देने को तैयार है. हालांकि, राज्य सरकार ने यह ऑफर यह कहते हुए ठुकरा दिया कि इससे उसकी समस्या का कोई हल नहीं होगा. राज्य सरकार ने जोर देकर कहा कि न्यूनतम आवश्यकता 10,000 करोड़ रुपये है.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केरल सरकार द्वारा राज्यों की उधार लेने की क्षमता पर सीमा लगाने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाले मुकदमे को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया एक बार जब कोई राज्य केंद्र से उधार लेता है तो भारत संघ की ओर से अगले भुगतान में कमी की जा सकती है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सुविधा का संतुलन भारत संघ यानी केंद्र सरकार के पास है.

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र सरकार को अपनी उधार सीमा प्रतिबंधों में ढील देने का निर्देश देने की केरल सरकार की याचिका खारिज कर दी ताकि वह चालू वित्त वर्ष के दौरान अतिरिक्त धन उधार ले सके. न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि पीठ ने स्थिरता और अंतरिम निषेधाज्ञा पर एक सामान्य आदेश पारित किया है. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि यह मुकदमा संवैधानिक व्याख्या पर महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है, जैसे अनुच्छेद 131 की व्याख्या, अनुच्छेद 293 कि क्या राज्य के पास संघ से उधार लेने का प्रवर्तनीय अधिकार है, और न्यायिक समीक्षा का दायरा और सीमा.

पीठ ने कहा कि उसने संवैधानिक व्याख्या के अलावा छह प्रश्न तैयार किए हैं और ये प्रश्न संविधान के अनुच्छेद 145 के अंतर्गत आते हैं और इस मामले पर पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की ओर से विचार किया जाना चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि फिलहाल वह संघ की दलील को स्वीकार करने के लिए इच्छुक है.

22 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार द्वारा राज्य की शुद्ध उधारी की सीमा को चुनौती देने वाले मुकदमे में अंतरिम राहत की मांग करने वाली याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. मामले में विस्तृत सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने केरल सरकार का प्रतिनिधित्व किया और अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एन वेंकटरमण ने केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व किया.

राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत में एक मुकदमा दायर किया है जिसमें केंद्र पर उधार लेने की सीमा लगाकर राज्य के वित्त को विनियमित करने के लिए उसकी 'विशेष, स्वायत्त और पूर्ण शक्तियों' के प्रयोग में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया गया है.

केंद्र ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी थी कि केरल सरकार हाल के वर्षों में 'अत्यधिक उधार' ले रही है, जो उसकी कठिन वित्तीय स्थिति को दर्शाता है. हालांकि, राज्य सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि उसकी वित्तीय स्थिति पिछले वर्षों में अधिक उधार लेने के बोझ को सहन करने के लिए 'पर्याप्त टिकाऊ' है.

12 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि वह थोड़ा उदार हो और केरल को मौजूदा वित्तीय संकट से उबारने के लिए एकमुश्त पैकेज देने पर विचार करे. अगले दिन, केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया कि वह केरल सरकार को 'बहुत विशेष और असाधारण उपाय' के रूप में राज्य के सामने आने वाले वित्तीय मुद्दों से निपटने के लिए कुछ शर्तों के अधीन 5,000 करोड़ रुपये उधार लेने की अनुमति देने को तैयार है. हालांकि, राज्य सरकार ने यह ऑफर यह कहते हुए ठुकरा दिया कि इससे उसकी समस्या का कोई हल नहीं होगा. राज्य सरकार ने जोर देकर कहा कि न्यूनतम आवश्यकता 10,000 करोड़ रुपये है.

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