सागर। कई लोगों के शौक ऐसे होते हैं, जो जुनून बन जाते हैं और इतिहास रच देते हैं. करीब 20 साल तक सागर कलेक्ट्रेट में सेवाएं देने वाले राजेन्द्र अग्रवाल ने नौकरी के साथ और नौकरी के बाद अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा दुनिया भर के 70 देशों की मुद्राएं और सिक्के इकट्ठा करने में लगा दिया. इतना ही नहीं इनके संग्रह में मुगलकाल और ब्रिटिश काल के सिक्के भी मिल जाएंगे. इसके अलावा यूनिक नंबर वाले नोट भी राजेन्द्र अग्रवाल ने इकट्ठा किया है.
इतिहास व संस्कृति की जानकारी देते सिक्के-नोट
करीब 40 साल की अथक मेहनत से इकट्ठा किए ये नोट और सिक्के संबंधित देश के इतिहास की जानकारी तो देते ही हैं और इन देशों की कला संस्कृति के बारे में भी बहुत कुछ बताते हैं. अगर इनकी कीमत का अंदाजा लगाने की कोशिश की जाए, तो गिनती में ही काफी समय लग जाएगा. खास बात ये है कि इन नोट और सिक्के को इकट्ठा करने में खर्च हुए पैसे के बारे में आज तक उन्होंने हिसाब भी नहीं लगाया कि वो कितना पैसा खर्च कर चुके हैं.
बचपन से था शौक
अपने बेशकीमती संग्रह को लेकर राजेन्द्र अग्रवाल बताते है कि ''करीब 40-42 साल की मेहनत से उन्होंने ये संग्रह तैयार किया है. मुझे बचपन से ही इस तरह के नोट और सिक्के इकट्ठा करने का शौक था. जब घर में पिताजी या माता जी खर्च के लिए पैसे देते थे और उनमें नोट या सिक्का हटकर होता था, तो मैं उसे अपने पास संभाल कर रख लेता था. मुझे काफी बाद पता चला कि कई लोग इस तरह के नोट और सिक्कों का संग्रह करते हैं, तो नौकरी के दौरान ही मैंने ये काम शुरू कर दिया और आज मेरे पास इतना बडा संग्रह है.''
70 से ज्यादा देशों के नोट और सिक्के है संग्रह में
राजेन्द्र कुमार अग्रवाल के नोट और सिक्कों के संग्रह में करीब 70 से 75 देशों के कागज वाले नोट हैं. साथ ही भारत में आजादी के बाद 2023 तक जितने नोट जारी हुए हैं, उनका संग्रह भी राजेन्द्र कुमार अग्रवाल के पास है. इन नोटों में कई काफी खूबसूरत और मन को मोहने वाले हैं. खास बात ये है कि इन नोटों में
ईरान की मुद्रा जिसे रियाल करते हैं, एक पांच लाख रियाल का नोट है. कई नोट ऐसे हैं, जो दोनों तरफ अलग-अलग तरीके से प्रिंट किए जाते हैं. एक तरफ से नोट सामान्य नोट की तरह होता है, जिसे आड़ा देखा जाता है और पलटने पर खडा देखा जाता है. इस संग्रह में 50-50 हजार के चार नोट हैं, जिनमें एक प्लास्टिक से बना नोट भी है. इसके अलावा सिक्कों की बात करें, तो मुगलकाल के तांबे और चांदी के सिक्के भी उनके संग्रह में हैं. ब्रिटिश काल में भारत में जो सिक्के चलते थे, वो भी राजेंद्र अग्रवाल के पास हैं.
परिजनों ने एतराज नहीं मदद की
सिक्के और नोट इकट्ठा करने में राजेन्द्र कुमार अग्रवाल का काफी पैसा खर्च हुआ है. दूसरी बात ये है कि संग्रह के कारण इन नोट और सिक्कों को राजेन्द्र कुमार अग्रवाल खर्च नहीं करते हैं. राजेन्द्र अग्रवाल बताते हैं कि ''मेरे इस शौक में मेरे परिवार के किसी भी सदस्य ने कभी कोई एतराज नहीं किया और ना ही किसी तरह की दिक्कत पैदा की कि क्यों इतना पैसा खर्च कर रहे हो, या सर्दी, गरमी और बरसात में रात-रात भर जागकर क्या कर रहे हो. मेरे इस संग्रह में मेरे चार भाईयों ने भरपूर मदद की. मेरी पत्नी, बेटा और बहू सब मदद करते हैं. कहीं बाहर जाते हैं और उन्हें कोई नोट या सिक्का संग्रह लायक मिलता है, तो लेकर आते हैं.'' जहां तक संग्रह में खर्च हुए पैसे का सवाल है, तो राजेन्द्र अग्रवाल बताते हैं कि ''पैसे का मैंने आज तक हिसाब नहीं लगाया है.''
35 सिक्कों की तलाश में शुरू किया नोटो और सिक्कों का प्रदर्शन
राजेन्द्र अग्रवाल ने पहली बार अपने संग्रह का सागर शहर में सार्वजनिक प्रदर्शन किया और लोगों को इन सिक्कों और नोटों की जानकारी दी. उनका कहना है कि ''मेरे संग्रह में फिलहाल 35 ऐसे सिक्के रह गए हैं, जिनकी में तलाश में जुटा हुआ है. जब मेरी तलाश पूरी हो जाएगी, तब मैं इस संग्रह का क्या करना है, इसके लिए विचार करूंगा. अभी तक मैंने अपने संग्रह को लेकर कोई दावा या रिकार्ड बनाने का काम नहीं किया. पहली बार मैं इनका सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शन कर रहा हूं.''