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कोरोना के साइड इफेक्ट: बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के डाॅक्टर की रिसर्च को मिली अंतर्राष्ट्रीय मान्यता - Doctor Research Corona Side Effect

बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के माइक्रोबायलाॅजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ सुमित रावत रिसर्च को American Society for Microbiology (ASM) ने मान्यता दे दी है और उसके प्रेजेंटेशन के लिए उन्हें जून माह में अटलांटा आमंत्रित किया है. उनकी ये रिसर्च कोरोना के साइड इफेक्ट को लेकर है और उन्होंने 5 साल तक के 400 बच्चों पर रिसर्च कर पाया कि उनमें मीजल्स(खसरा) का प्रकोप बढ़ रहा है.

RESEARCH INTERNATIONAL RECOGNITION
रिसर्च को American Society for Microbiology (ASM) ने दी मान्यता (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 10, 2024, 10:48 PM IST

कोरोना के साइड इफेक्ट डाॅक्टर की रिसर्च को मिली अंतर्राष्ट्रीय मान्यता (ETV Bharat)

सागर। कोरोना महामारी से तबाही और बाद में उसके असर का सिलसिला अभी भी जारी है. खासकर मानव स्वास्थ्य को लेकर कोरोना काल के कई साइड इफेक्ट देखने मिल रहे हैं. तरह-तरह की बीमारियों के अलावा मीजल्स ( खसरा) की वापसी ने चिकित्सा और विज्ञान जगत को चिंता में डाल दिया है. बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के माइक्रोबायलाॅजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ सुमित रावत की एक रिसर्च ने भी इस खतरे से दुनिया को आगाह किया है. 2023 में उनके द्वारा 400 बच्चों पर की गई रिसर्च में सामने आया है कि 5 साल तक के बच्चों में खसरे का प्रकोप देखने मिल रहा है. खास बात ये है कि उनकी इस रिसर्च को American Society for Microbiology (ASM) ने मान्यता दे दी है और उसके प्रेजेंटेशन के लिए उन्हें जून माह में अटलांटा आमंत्रित किया है. जहां दुनिया भर के वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के सामने अपनी रिसर्च को प्रस्तुत करेंगे. उनकी इस उपलब्धि पर भारत सरकार ने उन्हें अनुदान भी दिया है.

डाॅ सुमित रावत की रिसर्च से खुले राज

बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के माइक्रोबायलाॅजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ सुमित रावत को 2023 में देखने में आया कि बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज में श्वांस की बीमारियों से पीड़ित काफी बच्चे आ रहे हैं. एक ही तरह की बीमारी के लक्षण वाले बच्चों को देखकर उन्होंने इन बच्चों पर एक शोध शुरू किया और श्वांस की बीमारी से पीड़ित 400 बच्चों पर रिसर्च की. इस रिसर्च में कई तरह के वायरस के लक्षण देखने को मिले. उन्होंने देखा कि 400 बच्चों में से 96 बच्चे किसी ना किसी तरह के वायरस से पीड़ित थे और कुछ बच्चों में मीजल्स के लक्षण भी देखने को मिले थे. लंबे समय से व्यवस्थित टीकाकरण के कारण खसरे का प्रकोप काफी कम हो गया था. अस्पतालों में भी मीजल्स के बच्चे आसानी से नहीं मिलते थे.

डाॅ सुमित रावत कहते हैं कि "इस रिसर्च के निष्कर्ष में हमने ये बताया कि कितने श्वांस की बीमारी से पीड़ित बच्चों को हमने देखा और कितने बच्चों में मीजल्स के लक्षण पाए गए. इस रिसर्च को American Society for Microbiology (ASM) में भेजा, तो इस रिसर्च को अटंलाटा में होने वाली इंटरनेशनल सेमीनार के लिए स्वीकृत किया गया है."

कोरोना के कारण बढ़ा मीजल्स का खतरा

डाॅ सुमित रावत कहते हैं कि जिस अवधि में मीजल्स पीडित बच्चों के केस सामने आए हैं उसे हम कोरोना काल से जोड़कर देख रहे हैं. 2020 और 2021 में कोरोना के कारण लाॅकडाउन लगाया गया और तमाम तरह के कार्य प्रभावित हुए. दरअसल दो लाॅकडाउन के दौरान बच्चों के टीकाकरण अभियान पर विपरीत असर पड़ा. भारत ही नहीं पूरी दुनिया में टीकाकरण के चलते मीजल्स पर काफी हद तक नियंत्रण पा लिया गया था क्योंकि ये एक ऐसी खतरनाक बीमारी है, जिसमें बच्चों की मौत की संभावना बढ़ जाती है. आज विश्व के कई देशों में देखा गया है कि मीजल्स के केस सामने आ रहे हैं. हालांकि इनकी संख्या काफी ज्यादा नहीं है लेकिन ये चिंता का विषय भी है, कहीं ये बहुत ज्यादा ना बढ़ जाए.

अब ये रखना होगा ध्यान

डाॅ सुमित रावत कहते हैं कि "मीजल्स के खतरे को भांपते हुए खासकर 4 से 5 साल के बच्चों को लेकर हमें ये ध्यान रखना होगा कि बच्चों का खान पान अच्छा हो, ताकि उनका वजन कम ना हो, उनको बार बार दस्त ना लगे, क्योकिं डायरिया से भी वजन कम हो जाता है. इसके अलावा स्वस्थ बच्चों के लिए भी डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन कहती है कि उनको एक बूस्टर डोज लगना चाहिए. मीजल्स के लिए 12 से 15 महीने की उम्र में बच्चों को वैक्सीन दी जाती है. इसके अलावा जब बच्चा 5 साल का होता है, तो एक बूस्टर डोज लगवा लें क्योकिं ये इन्फेक्शन ज्यादातर बच्चों को चौथे और पांचवे साल में होता है."

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अंतर्राष्ट्रीय उपलब्धि देखकर भारत सरकार ने दिया अनुदान

डाॅ सुमित रावत बताते हैं कि सूक्ष्मजीवों पर शोध और अध्ययन के मामले में American Society for Microbiology (ASM) ने मान्यता दी है और जून माह में अटलांटा में होने जा रही इंटरनेशनल सेमीनार में पेपर प्रजेंटेशन के लिए आमंत्रित किया है. 13 जून से ये इंटरनेशनल सेमीनार शुरू होगी, जिसमें दुनिया भर के डाॅक्टर और वैज्ञानिक जुटेंगे. 15 जून को मुझे पेपर प्रंजेटेशन का मौका दिया गया है. इस उपलब्धि के बाद भारत सरकार के साइंस एंड इंजीनियरिंग बोर्ड ने मुझे अनुदान दिया है और सेमीनार में शामिल होने का खर्चा भारत सरकार उठाएगी.

कोरोना के साइड इफेक्ट डाॅक्टर की रिसर्च को मिली अंतर्राष्ट्रीय मान्यता (ETV Bharat)

सागर। कोरोना महामारी से तबाही और बाद में उसके असर का सिलसिला अभी भी जारी है. खासकर मानव स्वास्थ्य को लेकर कोरोना काल के कई साइड इफेक्ट देखने मिल रहे हैं. तरह-तरह की बीमारियों के अलावा मीजल्स ( खसरा) की वापसी ने चिकित्सा और विज्ञान जगत को चिंता में डाल दिया है. बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के माइक्रोबायलाॅजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ सुमित रावत की एक रिसर्च ने भी इस खतरे से दुनिया को आगाह किया है. 2023 में उनके द्वारा 400 बच्चों पर की गई रिसर्च में सामने आया है कि 5 साल तक के बच्चों में खसरे का प्रकोप देखने मिल रहा है. खास बात ये है कि उनकी इस रिसर्च को American Society for Microbiology (ASM) ने मान्यता दे दी है और उसके प्रेजेंटेशन के लिए उन्हें जून माह में अटलांटा आमंत्रित किया है. जहां दुनिया भर के वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के सामने अपनी रिसर्च को प्रस्तुत करेंगे. उनकी इस उपलब्धि पर भारत सरकार ने उन्हें अनुदान भी दिया है.

डाॅ सुमित रावत की रिसर्च से खुले राज

बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के माइक्रोबायलाॅजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ सुमित रावत को 2023 में देखने में आया कि बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज में श्वांस की बीमारियों से पीड़ित काफी बच्चे आ रहे हैं. एक ही तरह की बीमारी के लक्षण वाले बच्चों को देखकर उन्होंने इन बच्चों पर एक शोध शुरू किया और श्वांस की बीमारी से पीड़ित 400 बच्चों पर रिसर्च की. इस रिसर्च में कई तरह के वायरस के लक्षण देखने को मिले. उन्होंने देखा कि 400 बच्चों में से 96 बच्चे किसी ना किसी तरह के वायरस से पीड़ित थे और कुछ बच्चों में मीजल्स के लक्षण भी देखने को मिले थे. लंबे समय से व्यवस्थित टीकाकरण के कारण खसरे का प्रकोप काफी कम हो गया था. अस्पतालों में भी मीजल्स के बच्चे आसानी से नहीं मिलते थे.

डाॅ सुमित रावत कहते हैं कि "इस रिसर्च के निष्कर्ष में हमने ये बताया कि कितने श्वांस की बीमारी से पीड़ित बच्चों को हमने देखा और कितने बच्चों में मीजल्स के लक्षण पाए गए. इस रिसर्च को American Society for Microbiology (ASM) में भेजा, तो इस रिसर्च को अटंलाटा में होने वाली इंटरनेशनल सेमीनार के लिए स्वीकृत किया गया है."

कोरोना के कारण बढ़ा मीजल्स का खतरा

डाॅ सुमित रावत कहते हैं कि जिस अवधि में मीजल्स पीडित बच्चों के केस सामने आए हैं उसे हम कोरोना काल से जोड़कर देख रहे हैं. 2020 और 2021 में कोरोना के कारण लाॅकडाउन लगाया गया और तमाम तरह के कार्य प्रभावित हुए. दरअसल दो लाॅकडाउन के दौरान बच्चों के टीकाकरण अभियान पर विपरीत असर पड़ा. भारत ही नहीं पूरी दुनिया में टीकाकरण के चलते मीजल्स पर काफी हद तक नियंत्रण पा लिया गया था क्योंकि ये एक ऐसी खतरनाक बीमारी है, जिसमें बच्चों की मौत की संभावना बढ़ जाती है. आज विश्व के कई देशों में देखा गया है कि मीजल्स के केस सामने आ रहे हैं. हालांकि इनकी संख्या काफी ज्यादा नहीं है लेकिन ये चिंता का विषय भी है, कहीं ये बहुत ज्यादा ना बढ़ जाए.

अब ये रखना होगा ध्यान

डाॅ सुमित रावत कहते हैं कि "मीजल्स के खतरे को भांपते हुए खासकर 4 से 5 साल के बच्चों को लेकर हमें ये ध्यान रखना होगा कि बच्चों का खान पान अच्छा हो, ताकि उनका वजन कम ना हो, उनको बार बार दस्त ना लगे, क्योकिं डायरिया से भी वजन कम हो जाता है. इसके अलावा स्वस्थ बच्चों के लिए भी डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन कहती है कि उनको एक बूस्टर डोज लगना चाहिए. मीजल्स के लिए 12 से 15 महीने की उम्र में बच्चों को वैक्सीन दी जाती है. इसके अलावा जब बच्चा 5 साल का होता है, तो एक बूस्टर डोज लगवा लें क्योकिं ये इन्फेक्शन ज्यादातर बच्चों को चौथे और पांचवे साल में होता है."

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अंतर्राष्ट्रीय उपलब्धि देखकर भारत सरकार ने दिया अनुदान

डाॅ सुमित रावत बताते हैं कि सूक्ष्मजीवों पर शोध और अध्ययन के मामले में American Society for Microbiology (ASM) ने मान्यता दी है और जून माह में अटलांटा में होने जा रही इंटरनेशनल सेमीनार में पेपर प्रजेंटेशन के लिए आमंत्रित किया है. 13 जून से ये इंटरनेशनल सेमीनार शुरू होगी, जिसमें दुनिया भर के डाॅक्टर और वैज्ञानिक जुटेंगे. 15 जून को मुझे पेपर प्रंजेटेशन का मौका दिया गया है. इस उपलब्धि के बाद भारत सरकार के साइंस एंड इंजीनियरिंग बोर्ड ने मुझे अनुदान दिया है और सेमीनार में शामिल होने का खर्चा भारत सरकार उठाएगी.

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