ETV Bharat / bharat

महाकुंभ में कल्पवास की क्या है प्रक्रिया-महत्व, जानिए एक माह में कितने वर्षों का मिलता है पुण्य - MAHA KUMBH MELA 2025

सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होता है एक मास का कल्पवास, इसकी अवधि भी अलग-अलग

महाकुंभ में कल्पवास का महत्व.
महाकुंभ में कल्पवास का महत्व. (Photo Credit; ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 12, 2025, 3:48 PM IST

Updated : Jan 12, 2025, 5:16 PM IST

प्रयागराज: क्या है संगम पर कल्पवास की कहानी? क्यों रखते हैं यह व्रत? बिना कुंभ के भी हर वर्ष संगम नगरी में लाखों श्रद्धालु कैसे करते हैं कल्पवास? क्या है इसकी विधि और क्या करना और क्या नहीं करना होता है इसमें? कल्पवासियों और इसके विषय में बताती ईटीवी भारत की यह रिपोर्ट...

महाकुंभ में कल्पवास का महत्व. (Video Credit; ETV Bharat)

एक माह में ही मिल जाता है करोड़ों वर्षों का पुण्य: ऐसा माना जाता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होने वाले एक मास के कल्पवास से एक कल्प जो ब्रह्मा के एक दिन के बराबर होता है, जितना पुण्य प्राप्त होता है. मान्यता के अनुसार कल्पवास मनुष्य के लिए आध्यात्मिक विकास का माध्यम है. संगम पर माघ के पूरे महीने निवास कर पुण्य फल प्राप्त करने की इस साधना को ही कल्पवास कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि कल्पवास करने वाले को इच्छित फल प्राप्त होने के साथ जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति भी मिल जाती है. महाभारत के अनुसार 100 साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करने के फल के बराबर ही माघ मास में कल्पवास करने से पुण्य प्राप्त हो जाता है. कल्पवास के समय साफ-सुथरे सफेद या पीले रंग के वस्त्र धारण किए जाते हैं. शास्त्रों की मान्यता के मुताबिक कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि हो सकती है, वहीं तीन रात्रि, तीन माह, छह माह, छह वर्ष, 12 वर्ष या जीवनभर भी कल्पवास किया जा सकता है. महाकुंभ की अवधि में कल्पवास का महत्व और ज्यादा हो जाता है. इसका जिक्र वेदों और पुराणों में भी है.

आसान नहीं है कल्पवास की प्रक्रिया: कल्पवास की प्रक्रिया आसान बिल्कुल भी नहीं है. जाहिर है मोक्षदायनी की ये विधि एक बेहद कठिन साधना है. इसमें पूरे नियंत्रण और संयम की जरूरत होती है. पद्म पुराण में इसका जिक्र करते हुए महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास के नियमों के बारे में विस्तार से वर्णन किया है. 45 दिन तक कल्पवास करने वाले को 21 नियमों का पालन करना होता है. पहला नियम सत्यवचन, दूसरा अहिंसा, तीसरा इन्द्रियों पर नियंत्रण, चौथा सभी प्राणियों पर दयाभाव, पांचवां ब्रह्मचर्य का पालन, छठा व्यसनों का त्याग, सातवां ब्रह्म मुहूर्त में जागना, आठवां नित्य तीन बार पवित्र नदी में स्नान, नवां त्रिकाल संध्या, दसवां पितरों का पिण्डदान, 11वां दान, बारहवां अन्तर्मुखी जप, तेरहवां सत्संग, चौदहवां संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, पंद्रहवां किसी की भी निंदा न करना, सोलहवां साधु सन्यासियों की सेवा, सत्रहवां जप और संकीर्तन, अठाहरवां एक समय भोजन, उन्नीसवां भूमि शयन, बीसवां अग्नि सेवन न कराना, इक्कीसवां देव पूजन. इनमें सबसे अधिक महत्व ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, देव पूजन, सत्संग और दान का माना गया है.

क्या करते हैं कल्पवास करने वाले: कल्पवास के पहले दिन तुलसी और शालिग्राम की स्थापना और पूजन किया जाता है. कल्पवास करने वाला अपने रहने के स्थान के पास जौ के बीज रोपता है. जब ये अवधि पूरी हो जाती है तो वे इस पौधे को अपने साथ ले जाते हैं, जबकि तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं. पुराणों में बताया गया है कि देवता भी मनुष्य का दुर्लभ जन्म लेकर प्रयाग में कल्पवास करें. महाभारत के एक प्रसंग में जिक्र है कि मार्कंडेय ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा कि प्रयाग तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है. एक महीना कोई भी इंद्रियों को वश में करके यहां पर स्नान, ध्यान और कल्पवास करता है, वह स्वर्ग में स्थान प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है.

क्या कहते हैं संत सुभाषदास : प्रयागराज महाकुंभ में पहुंचे अयोध्या तपस्वी छावनी के संत सुभाष दास का कल्पवास को लेकर कहना है कि पहले ये जानिए कि कल्पवास का अर्थ होता है. एक कल्प होता है चार अरब 32 करोड़ वर्ष का. तो जो एक महीना प्रयागराज में रहकर और अपना खाकर सत्यता के साथ हर दिन कुछ दान करे, छल कपट को त्याग दे, निश्छल मन से यहां पर वास करे, एक माह लगातार स्नान करेगा, उसको चार अरब 32 करोड़ वर्ष का पुण्य मिल जाएगा. यह सिर्फ एक महीने में ही संभव हो जाएगा.

देवलोक में भी होता है महाकुंभ: सुभाष दास इसके पीछे पौराणिक कथा बताते हैं. कहते है- राक्षसों और देवताओं में जब अमृत को लेकर मंथन हुआ और खूब झगड़ा हुआ तब विष्णु भगवान विश्व मोहिनी के रूप में अमृत लेकर आए. राक्षस विश्व मोहिनी मूरत पर ही रीझ गए. इसके बाद राक्षसों ने सोचा कि यह सुंदरी मिल जाए. तब तक माताजी ने देवताओं को अमृत परोस दिया. राहु केतु समझ गए और उन्होंने कहा कि यह छल किया गया है. उसके बाद जयंत राक्षस अमृत लेकर भागा था तो देवताओं ने उसका पीछा किया और छीनाझपटी में भारत में चार जगह अमृत गिरा. आखिर 12 वर्ष बाद कुंभ क्यूं होता है, इसकी वजह है कि राक्षसों और देवताओं में 12 दिन का युद्ध चला और 12 दिन के युद्ध का अर्थ हो जाता है कि पृथ्वी का 12 बरस, इसलिए 12 वर्ष में महाकुंभ होता है. चार जगह यहां और आठ जगह देवलोक में भी हैं, वहां भी महाकुंभ आयोजित होता है.

कल से 10 लाख श्रद्धालु करेंगे संगम तट पर कल्पवास, लगे 1.6 लाख टेंट

त्रिवेणी संगम तट पर सनातन आस्था के महापर्व महाकुम्भ का कल से शुभारंभ हो रहा है. 40 से 45 करोड़ श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम में अमृत स्नान करेंगे. इसके साथ ही लाखों की संख्या में श्रद्धालु संगम तट पर महाकुम्भ की प्राचीन परंपरा कल्पवास का निर्वहन करेंगे. पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रद्धालु एक माह तक नियमपूर्वक संगम तट पर कल्पवास करेंगे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में प्रयागराज मेला प्राधिकरण ने विशेष इंतजाम किए हैं. कल्पवास पौष पूर्णिमा से शुरू होगा. महाकुम्भ 2025 में लगभग 10 लाख श्रद्धालुओं के कल्पवास करने का अनुमान है. शास्त्रीय मान्यता के मुताबिक कल्पवास, पौष पूर्णिमा की तिथि से शुरू हो कर माघ पूर्णिमा की तिथि तक पूरे एक माह तक किया जाता है. इस महाकुम्भ में कल्पवास 13 जनवरी से शुरू होकर 12 जनवरी तक संगम तट पर किया जाएगा. शास्त्रों के मुताबिक कल्पवास में श्रद्धालु नियमपूर्वक, संकल्पपूर्वक एक माह तक संगम तट पर निवास करते हैं. कल्पवास के दौरान श्रद्धालु तीनों काल गंगा स्नान कर, जप, तप, ध्यान, पूजन और सत्संग करते हैं.

मेला प्राधिकरण ने कल्पवासियों के लिए किए विशेष इंतजाम : कल्पवास का निर्वहन करने के लिए प्रयागराज मेला प्राधिकरण ने सभी जरूरी इंतजाम किए हैं. मेला क्षेत्र में गंगा तट पर झूंसी से लेकर फाफामऊ तक लगभग 1.6 लाख टेंट कल्पवासियों के लिए लगवाए गए हैं. इन सभी कल्पवासियों के टेंटों के लिए बिजली, पानी के कनेक्शन के साथ शौचालयों का निर्माण करवाया गया है. कल्पवासियों को अपने टेंट तक आसानी से पहुंचने के लिए चेकर्ड प्लेटस् की लगभग 650 किलोमीटर की अस्थाई सड़कों और 30 पांटून पुलों का निर्माण किया गया है. कल्पवासियों को महाकुम्भ में सस्ती दर पर राशन और सिलेंडर भी उपल्ब्ध करवाया जाएगा. गंगा स्नान के लिए घाटों का निर्माण किया गया है. सुरक्षा के लिए जल पुलिस और गंगा नदी में बैरीकेड़िंग भी की गई है. ठंड से बचाव के लिए अलाव और स्वास्थ संबंधी समस्या दूर करने के लिए मेला क्षेत्र में अस्पतालों का भी निर्माण किया गया है.

यह भी पढ़ें : महाकुंभ में 27 जनवरी को धर्म संसद; सनातन बोर्ड का तय होगा प्रारूप, देवकी नंदन ठाकुर ने PM-CM से मांगा मंजूरी का दान - MAHA KUMBH MELA 2025

प्रयागराज: क्या है संगम पर कल्पवास की कहानी? क्यों रखते हैं यह व्रत? बिना कुंभ के भी हर वर्ष संगम नगरी में लाखों श्रद्धालु कैसे करते हैं कल्पवास? क्या है इसकी विधि और क्या करना और क्या नहीं करना होता है इसमें? कल्पवासियों और इसके विषय में बताती ईटीवी भारत की यह रिपोर्ट...

महाकुंभ में कल्पवास का महत्व. (Video Credit; ETV Bharat)

एक माह में ही मिल जाता है करोड़ों वर्षों का पुण्य: ऐसा माना जाता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होने वाले एक मास के कल्पवास से एक कल्प जो ब्रह्मा के एक दिन के बराबर होता है, जितना पुण्य प्राप्त होता है. मान्यता के अनुसार कल्पवास मनुष्य के लिए आध्यात्मिक विकास का माध्यम है. संगम पर माघ के पूरे महीने निवास कर पुण्य फल प्राप्त करने की इस साधना को ही कल्पवास कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि कल्पवास करने वाले को इच्छित फल प्राप्त होने के साथ जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति भी मिल जाती है. महाभारत के अनुसार 100 साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करने के फल के बराबर ही माघ मास में कल्पवास करने से पुण्य प्राप्त हो जाता है. कल्पवास के समय साफ-सुथरे सफेद या पीले रंग के वस्त्र धारण किए जाते हैं. शास्त्रों की मान्यता के मुताबिक कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि हो सकती है, वहीं तीन रात्रि, तीन माह, छह माह, छह वर्ष, 12 वर्ष या जीवनभर भी कल्पवास किया जा सकता है. महाकुंभ की अवधि में कल्पवास का महत्व और ज्यादा हो जाता है. इसका जिक्र वेदों और पुराणों में भी है.

आसान नहीं है कल्पवास की प्रक्रिया: कल्पवास की प्रक्रिया आसान बिल्कुल भी नहीं है. जाहिर है मोक्षदायनी की ये विधि एक बेहद कठिन साधना है. इसमें पूरे नियंत्रण और संयम की जरूरत होती है. पद्म पुराण में इसका जिक्र करते हुए महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास के नियमों के बारे में विस्तार से वर्णन किया है. 45 दिन तक कल्पवास करने वाले को 21 नियमों का पालन करना होता है. पहला नियम सत्यवचन, दूसरा अहिंसा, तीसरा इन्द्रियों पर नियंत्रण, चौथा सभी प्राणियों पर दयाभाव, पांचवां ब्रह्मचर्य का पालन, छठा व्यसनों का त्याग, सातवां ब्रह्म मुहूर्त में जागना, आठवां नित्य तीन बार पवित्र नदी में स्नान, नवां त्रिकाल संध्या, दसवां पितरों का पिण्डदान, 11वां दान, बारहवां अन्तर्मुखी जप, तेरहवां सत्संग, चौदहवां संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, पंद्रहवां किसी की भी निंदा न करना, सोलहवां साधु सन्यासियों की सेवा, सत्रहवां जप और संकीर्तन, अठाहरवां एक समय भोजन, उन्नीसवां भूमि शयन, बीसवां अग्नि सेवन न कराना, इक्कीसवां देव पूजन. इनमें सबसे अधिक महत्व ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, देव पूजन, सत्संग और दान का माना गया है.

क्या करते हैं कल्पवास करने वाले: कल्पवास के पहले दिन तुलसी और शालिग्राम की स्थापना और पूजन किया जाता है. कल्पवास करने वाला अपने रहने के स्थान के पास जौ के बीज रोपता है. जब ये अवधि पूरी हो जाती है तो वे इस पौधे को अपने साथ ले जाते हैं, जबकि तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं. पुराणों में बताया गया है कि देवता भी मनुष्य का दुर्लभ जन्म लेकर प्रयाग में कल्पवास करें. महाभारत के एक प्रसंग में जिक्र है कि मार्कंडेय ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा कि प्रयाग तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है. एक महीना कोई भी इंद्रियों को वश में करके यहां पर स्नान, ध्यान और कल्पवास करता है, वह स्वर्ग में स्थान प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है.

क्या कहते हैं संत सुभाषदास : प्रयागराज महाकुंभ में पहुंचे अयोध्या तपस्वी छावनी के संत सुभाष दास का कल्पवास को लेकर कहना है कि पहले ये जानिए कि कल्पवास का अर्थ होता है. एक कल्प होता है चार अरब 32 करोड़ वर्ष का. तो जो एक महीना प्रयागराज में रहकर और अपना खाकर सत्यता के साथ हर दिन कुछ दान करे, छल कपट को त्याग दे, निश्छल मन से यहां पर वास करे, एक माह लगातार स्नान करेगा, उसको चार अरब 32 करोड़ वर्ष का पुण्य मिल जाएगा. यह सिर्फ एक महीने में ही संभव हो जाएगा.

देवलोक में भी होता है महाकुंभ: सुभाष दास इसके पीछे पौराणिक कथा बताते हैं. कहते है- राक्षसों और देवताओं में जब अमृत को लेकर मंथन हुआ और खूब झगड़ा हुआ तब विष्णु भगवान विश्व मोहिनी के रूप में अमृत लेकर आए. राक्षस विश्व मोहिनी मूरत पर ही रीझ गए. इसके बाद राक्षसों ने सोचा कि यह सुंदरी मिल जाए. तब तक माताजी ने देवताओं को अमृत परोस दिया. राहु केतु समझ गए और उन्होंने कहा कि यह छल किया गया है. उसके बाद जयंत राक्षस अमृत लेकर भागा था तो देवताओं ने उसका पीछा किया और छीनाझपटी में भारत में चार जगह अमृत गिरा. आखिर 12 वर्ष बाद कुंभ क्यूं होता है, इसकी वजह है कि राक्षसों और देवताओं में 12 दिन का युद्ध चला और 12 दिन के युद्ध का अर्थ हो जाता है कि पृथ्वी का 12 बरस, इसलिए 12 वर्ष में महाकुंभ होता है. चार जगह यहां और आठ जगह देवलोक में भी हैं, वहां भी महाकुंभ आयोजित होता है.

कल से 10 लाख श्रद्धालु करेंगे संगम तट पर कल्पवास, लगे 1.6 लाख टेंट

त्रिवेणी संगम तट पर सनातन आस्था के महापर्व महाकुम्भ का कल से शुभारंभ हो रहा है. 40 से 45 करोड़ श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम में अमृत स्नान करेंगे. इसके साथ ही लाखों की संख्या में श्रद्धालु संगम तट पर महाकुम्भ की प्राचीन परंपरा कल्पवास का निर्वहन करेंगे. पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रद्धालु एक माह तक नियमपूर्वक संगम तट पर कल्पवास करेंगे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में प्रयागराज मेला प्राधिकरण ने विशेष इंतजाम किए हैं. कल्पवास पौष पूर्णिमा से शुरू होगा. महाकुम्भ 2025 में लगभग 10 लाख श्रद्धालुओं के कल्पवास करने का अनुमान है. शास्त्रीय मान्यता के मुताबिक कल्पवास, पौष पूर्णिमा की तिथि से शुरू हो कर माघ पूर्णिमा की तिथि तक पूरे एक माह तक किया जाता है. इस महाकुम्भ में कल्पवास 13 जनवरी से शुरू होकर 12 जनवरी तक संगम तट पर किया जाएगा. शास्त्रों के मुताबिक कल्पवास में श्रद्धालु नियमपूर्वक, संकल्पपूर्वक एक माह तक संगम तट पर निवास करते हैं. कल्पवास के दौरान श्रद्धालु तीनों काल गंगा स्नान कर, जप, तप, ध्यान, पूजन और सत्संग करते हैं.

मेला प्राधिकरण ने कल्पवासियों के लिए किए विशेष इंतजाम : कल्पवास का निर्वहन करने के लिए प्रयागराज मेला प्राधिकरण ने सभी जरूरी इंतजाम किए हैं. मेला क्षेत्र में गंगा तट पर झूंसी से लेकर फाफामऊ तक लगभग 1.6 लाख टेंट कल्पवासियों के लिए लगवाए गए हैं. इन सभी कल्पवासियों के टेंटों के लिए बिजली, पानी के कनेक्शन के साथ शौचालयों का निर्माण करवाया गया है. कल्पवासियों को अपने टेंट तक आसानी से पहुंचने के लिए चेकर्ड प्लेटस् की लगभग 650 किलोमीटर की अस्थाई सड़कों और 30 पांटून पुलों का निर्माण किया गया है. कल्पवासियों को महाकुम्भ में सस्ती दर पर राशन और सिलेंडर भी उपल्ब्ध करवाया जाएगा. गंगा स्नान के लिए घाटों का निर्माण किया गया है. सुरक्षा के लिए जल पुलिस और गंगा नदी में बैरीकेड़िंग भी की गई है. ठंड से बचाव के लिए अलाव और स्वास्थ संबंधी समस्या दूर करने के लिए मेला क्षेत्र में अस्पतालों का भी निर्माण किया गया है.

यह भी पढ़ें : महाकुंभ में 27 जनवरी को धर्म संसद; सनातन बोर्ड का तय होगा प्रारूप, देवकी नंदन ठाकुर ने PM-CM से मांगा मंजूरी का दान - MAHA KUMBH MELA 2025

Last Updated : Jan 12, 2025, 5:16 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.