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टेलीफोन विभाग के क्लर्क से CM तक का सफर, सियासत में जीतन राम मांझी सबके रहे, वाकई में दिलचस्प है सफरनामा - Gaya candidate Jitan Ram Manjhi - GAYA CANDIDATE JITAN RAM MANJHI

Jitan Ram Manjhi: अस्सी के दशक में राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले जीतन राम मांझी कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू की राज्य सरकारों में मंत्री का पद संभाल चुके हैं. गया से चुनाव लड़ने वाले जीतन राम मांझी सबके रहे हैं, अब यह अपनी हम पार्टी को लेकर एनडीए के साथ है. गया लोकसभा (आरक्षित) से एनडीए के प्रत्याशी हैं.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 28, 2024, 8:49 PM IST

गया: बिहार में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी मजदूरी से जिंदगी के सफर की शुरुआत कर टेलीफोन विभाग में क्लर्क बने और राजनीति के मैदान में उतरकर सूबे की सत्ता के सिंहासन पर काबिज रहे. जीतन राम मांझी बिहार में दलित चेहरे के तौर जाने जाते हैं. बिहार की सियासत की धुरी में जीतन राम मांझी पिछले 44 सालों से अहम भूमिका में है. पिछले 44 सालों से तकरीबन हर दल के साथ जीतन राम मांझी रह चुके हैं.

मांझी ने कांग्रेस से शुरू की राजनीतिक सफर: जीतन राम मांझी विधायक से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया है. उनके राजनीतिक जीवन में आने की कहानी हैरान करने वाली है. किसी फिल्म की पटकथा की तरह वे सियासत करने आए और फिर इस महादलित लीडर के इर्द-गिर्द हमेशा सत्ता की डोर घूमती रही.

36 वर्ष की उम्र में सीखने लगे सियासत के दांव पेच: जीतन राम मांझी का जन्म महकार गांव में 1944 में हुआ था. जीतन राम मांझी की कहानी को 80 के दशक में ले जाते हैं, तब यह गया में टेलीफोन विभाग में क्लर्क हुआ करते थे. जीतन राम मांझी ग्रेजुएट थे. उस समय उनकी उम्र करीब 36 वर्ष के आसपास रही होगी. पढ़े-लिखे होने के कारण और टेलीफोन विभाग में नौकरी के कारण नेताओं के साथ इनका उठना-बैठना होता था. तब यह अपने गांव महकार से आते थे.

जगन्नाथ मिश्रा ने काबिलियत को परखा: बताया जाता है कि वे गया शहर स्थित राजेंद्र आश्रम जाते थे जो कांग्रेस का कार्यालय था. यहां उनकी मुलाकात गया जिला कांग्रेस के तत्कालीन जिलाध्यक्ष अनंतदेव मिश्रा से हुई. तब आरक्षित सीट पर योग्य उम्मीदवार खोजे नहीं मिलते थे. ऐसे में अनंतदेव मिश्र जीतन राम मांंझी को जगन्नाथ मिश्रा के पास ले गए. जगन्नाथ मिश्रा ने जीतन राम मांंझी की काबिलियत को परखा और उन्हें कांग्रेस से गया के फतेहपुर विधानसभा के चुनाव के लिए टिकट दिया.

नौकरी छोड़ी और राजनीति को आजमाया: राजनीति की एबीसीडी से अनजान जीतन राम मांझी के लिए यह एकदम नया था. उन्होंने नौकरी छोड़ी और राजनीति को आजमाया और 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर ली. इसके बाद मांझी का राजनीतिक सफरनामा लगातार बढ़ता चला गया. इस दौरान वे तकरीबन हर दलों के साथ जुड़ने और हटते रहे.

इन दलों में रहकर कई बार बने विधायक: मांझी को सबसे पहले गया के फतेहपुर विधानसभा से टिकट मिला था. 1980 में वह पहली बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने. 1980 से लेकर 85 और फिर 1985 से लेकर 1990 तक दो टर्म कांग्रेस के एमएलए रहे. इसी दौरान एक बार कांग्रेस के जिलाध्यक्ष भी रहे. इसके बाद 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल के प्रत्याशी रामनरेश पासवान से महज 120 वोटो से हार गए. इसके बाद वे जनता दल में चले गए.

ईटीवी भारत GFX.
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2004 में छोड़ दी राजद: जीतन राम मांझी 1996 में राजद में शामिल हुए. 1996 से लेकर वर्ष 2004 तक राजद में रहे. 2004 के बाद राजद छोड़ दी और 2005 से जदयू का दामन थाम लिया. 2014 का जब लोकसभा चुनाव हुआ तो जदयू का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था. ऐसे में नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया. किंतु 9 महीने के कार्यकाल के बाद ही उनसे सीएम की कुर्सी छीन ली गई.

2015 में हम पार्टी बनाई: राजनीति के माहिर खिलाड़ी मांझी ने 2015 में हम पार्टी का गठन किया. उसके बाद अपनी पार्टी को चला रहे हैं. जीतन मांझी गया जिले के फतेहपुर, बाराचट्टी, इमामगंज और जहानाबाद जिले के मखदुमपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं. आधा दर्जन बार ये विधायक बन चुके हैं.

एनडीए की नाव पार लगाएंगे मांझी! : जीतन राम मांझी लगभग 79 साल के हो चुके हैं, लेकिन उनमें अभी काफी दमखम है. 44 साल की राजनीति में इस बार मांझी एनडीए की नाव पार लगाने में जुटे हैं. अपनी गया लोकसभा सीट के साथ-साथ बिहार की सभी 40 सीटों पर एनडीए की जीत की बात मांझी कर रहे हैं. अब देखना होगा कि मांझी किस तरह से एनडीए की नैया पार लगाएंग.

राजद कंडिडेट से मुकाबला: मांझी गया लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए की ओर से हम के प्रत्याशी हैं. उनके सामने इंडिया गठबंधन से राजद के कंडिडेट कुमार सर्वजीत है. वह भी कम नहीं है और मैदान में मजबूती से हैं, लेकिन गया लोकसभा सीट पर मांझियों के जीतने का लंबा रिकॉर्ड रहा है. ऐसे में जीतन राम मांझी के लिए यह सीट मुश्किल नहीं है, लेकिन आसानी से जीत पक्की करने वाली भी नहीं है.

19 अप्रैल को होगा मतदान: गया लोकसभा के लिए पहले चरण के चुनाव के तहत 19 अप्रैल को मतदान होना है. गया लोकसभा क्षेत्र से सबसे ज्यादा मतदाता यादव जाति के हैं, उसके बाद मांझी, वैश्य, ब्राह्मण, कुर्मी कुशवाहा वोट है. करीब साढे़ 18 लाख वोटों की संख्या है. जिसमें से ढाई लाख यादव मतदाता है. इससे थोड़ा कम महादलित और फिर दो लाख से ज्यादा वैश्य व अन्य जातियों के वोट है. इस लोकसभा सीट के अंतर्गत अल्पसंख्यक मतदाता 10% के करीब है.

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मांझी ने कांग्रेस से शुरू की राजनीतिक सफर: जीतन राम मांझी विधायक से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया है. उनके राजनीतिक जीवन में आने की कहानी हैरान करने वाली है. किसी फिल्म की पटकथा की तरह वे सियासत करने आए और फिर इस महादलित लीडर के इर्द-गिर्द हमेशा सत्ता की डोर घूमती रही.

36 वर्ष की उम्र में सीखने लगे सियासत के दांव पेच: जीतन राम मांझी का जन्म महकार गांव में 1944 में हुआ था. जीतन राम मांझी की कहानी को 80 के दशक में ले जाते हैं, तब यह गया में टेलीफोन विभाग में क्लर्क हुआ करते थे. जीतन राम मांझी ग्रेजुएट थे. उस समय उनकी उम्र करीब 36 वर्ष के आसपास रही होगी. पढ़े-लिखे होने के कारण और टेलीफोन विभाग में नौकरी के कारण नेताओं के साथ इनका उठना-बैठना होता था. तब यह अपने गांव महकार से आते थे.

जगन्नाथ मिश्रा ने काबिलियत को परखा: बताया जाता है कि वे गया शहर स्थित राजेंद्र आश्रम जाते थे जो कांग्रेस का कार्यालय था. यहां उनकी मुलाकात गया जिला कांग्रेस के तत्कालीन जिलाध्यक्ष अनंतदेव मिश्रा से हुई. तब आरक्षित सीट पर योग्य उम्मीदवार खोजे नहीं मिलते थे. ऐसे में अनंतदेव मिश्र जीतन राम मांंझी को जगन्नाथ मिश्रा के पास ले गए. जगन्नाथ मिश्रा ने जीतन राम मांंझी की काबिलियत को परखा और उन्हें कांग्रेस से गया के फतेहपुर विधानसभा के चुनाव के लिए टिकट दिया.

नौकरी छोड़ी और राजनीति को आजमाया: राजनीति की एबीसीडी से अनजान जीतन राम मांझी के लिए यह एकदम नया था. उन्होंने नौकरी छोड़ी और राजनीति को आजमाया और 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर ली. इसके बाद मांझी का राजनीतिक सफरनामा लगातार बढ़ता चला गया. इस दौरान वे तकरीबन हर दलों के साथ जुड़ने और हटते रहे.

इन दलों में रहकर कई बार बने विधायक: मांझी को सबसे पहले गया के फतेहपुर विधानसभा से टिकट मिला था. 1980 में वह पहली बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने. 1980 से लेकर 85 और फिर 1985 से लेकर 1990 तक दो टर्म कांग्रेस के एमएलए रहे. इसी दौरान एक बार कांग्रेस के जिलाध्यक्ष भी रहे. इसके बाद 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल के प्रत्याशी रामनरेश पासवान से महज 120 वोटो से हार गए. इसके बाद वे जनता दल में चले गए.

ईटीवी भारत GFX.
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2004 में छोड़ दी राजद: जीतन राम मांझी 1996 में राजद में शामिल हुए. 1996 से लेकर वर्ष 2004 तक राजद में रहे. 2004 के बाद राजद छोड़ दी और 2005 से जदयू का दामन थाम लिया. 2014 का जब लोकसभा चुनाव हुआ तो जदयू का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था. ऐसे में नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया. किंतु 9 महीने के कार्यकाल के बाद ही उनसे सीएम की कुर्सी छीन ली गई.

2015 में हम पार्टी बनाई: राजनीति के माहिर खिलाड़ी मांझी ने 2015 में हम पार्टी का गठन किया. उसके बाद अपनी पार्टी को चला रहे हैं. जीतन मांझी गया जिले के फतेहपुर, बाराचट्टी, इमामगंज और जहानाबाद जिले के मखदुमपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं. आधा दर्जन बार ये विधायक बन चुके हैं.

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19 अप्रैल को होगा मतदान: गया लोकसभा के लिए पहले चरण के चुनाव के तहत 19 अप्रैल को मतदान होना है. गया लोकसभा क्षेत्र से सबसे ज्यादा मतदाता यादव जाति के हैं, उसके बाद मांझी, वैश्य, ब्राह्मण, कुर्मी कुशवाहा वोट है. करीब साढे़ 18 लाख वोटों की संख्या है. जिसमें से ढाई लाख यादव मतदाता है. इससे थोड़ा कम महादलित और फिर दो लाख से ज्यादा वैश्य व अन्य जातियों के वोट है. इस लोकसभा सीट के अंतर्गत अल्पसंख्यक मतदाता 10% के करीब है.

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