पटना : चुनाव के समय किसी भी कारणवश यदि किसी की हत्या हो जाती है, तो उसका राजनीतिकरण होता है, या फिर उस हत्या को राजनीति का जामा पहना ही दिया जाता है. बेशक हर्ष राज की हत्या छात्रों के बीच में हुए खूनी संघर्ष की वजह से हुई हो. लेकिन जो वक्त है वह चुनावी है और इस चुनावी मौके पर पॉलिटिकल पार्टियां अपने लिए मौके की तलाश कर ही लेती है. कुछ नहीं तो मरने और मारने वालों की जाति पर राजनीति होनी लाजिमी है. यही सब कुछ हर्ष राज की हत्या के बाद शुरू हो चुका है.
हत्या पॉलिटिकल नहीं : हर्ष राज भले पॉलिटिकल एक्टिव रहा था. लगातार राजनेताओं से उसके संपर्क रहे थे. हाल के दिनों में समस्तीपुर एनडीए प्रत्याशी शांभवी चौधरी के लिए चुनाव प्रचार भी किया था लेकिन, पुलिस के मुताबिक उसकी हत्या पॉलिटिकल नहीं थी. यह पुराना विवाद था जो छात्रों के दो गुट में लगातार चल रहा था.
''मामला दुर्गा पूजा की डांडिया नाइट से शुरू हुआ था और बीच-बीच में एक दूसरे को देख लेने की धमकी दी गई थी. उसके बाद इस घटना को अंजाम दिया गया. हर्ष राज हत्या के मामले में मुख्य आरोपी चंदन यादव ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है. इसके साथ ही उसने हत्या में शामिल 7-8 लोगों की पहचान भी बताई है. जिसकी पुलिस जांच कर छापेमारी कर रही है.''- चंद्र प्रकाश, सिटी एसपी सेंट्रल
हत्या का राजनीतिकरण : इस घटना पर राजनीतिक परत तब चढ़ी जब मुख्य आरोपी गिरफ्तार हुआ और उसकी पहचान चंदन यादव के रूप में हुई. जैसे ही पॉलिटिकल पार्टियों को यह लगा कि हत्या करने वाला यादव समुदाय से है तो उन्होंने मृतक की जाति खोज ली. मृतक हर्ष राज भूमिहार जाति से है और ऐसे में अगड़ा-पिछड़ा और भूमिहार-यादव की राजनीति को बल मिलने लगा.
'जाति पर विशेष टिप्पणी' : ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर दोनों जातियों के संघर्ष को लेकर पोस्ट किए जाने लगे और ऐसे में यह मामला पूरी तरह से पॉलिटिकल हो गया. चुनावी माहौल में नेता चुनाव प्रचार करने से पहले हर्ष राज की हत्या पर सरकार को घेर रहे हैं तो वहीं उनकी जाति पर विशेष टिप्पणी करते हुए अलग-अलग बयान बाजी कर रहे हैं.
हर्ष राज का सियासी कनेक्शन : अब यहां यह समझना होगा कि 1 जून को बिहार के 8 सीटों पर सातवां यानी कि अंतिम चरण का चुनाव होना है. इससे पहले हर्ष राज की हत्या पॉलिटिकल पार्टियों के लिए गेम चेंजर हो सकता है. पॉलिटिकल पार्टियां अपने-अपने तरीके से इस हत्या को डिफाइन कर रही है. साथ ही उनकी जाति को भी प्रभावित करने के लिए इस हत्या को राजनीतिक रंग देना चाह रहे हैं.
5 सीटों पर पड़ेगा प्रभाव! : जिस तरह से हर्षराज का सियासी कनेक्शन था, पॉलिटिकल पार्टियों को इससे ज्यादा बल मिल रहा है. चूंकि, मरने वाला वाला भूमिहार जाति से है और मारने वाला यादव जाति से है, दोनों जातियों की बिहार की राजनीति में एक अलग स्थान रहा है. भूमिहार जाति अगड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व करती है तो वहीं, पिछड़ी जातियों की कमान यादव जाति के हाथ में रही है. ऐसे में यह हत्याकांड अंतिम चरण के आठ सीटों पर पूरी तरह से प्रभाव डालने वाला है और उन 8 सीटों में से भी सबसे ज्यादा असर पाटलिपुत्र, जहानाबाद, बक्सर, काराकाट और आरा में पड़ने वाला है. इन पांच सीटों पर यादव और भूमिहारों का ठीक-ठाक वोट बैंक है.
भूमिहार हो सकते हैं एकजुट : वरिष्ठ पत्रकार कुमार राघवेंद्र बताते हैं कि इस हत्या से राजनीति का कोई लेना देना नहीं है. लेकिन, बिहार की प्रवृति रही है कि हत्या को पहले जाति से जोड़ा जाता है और जाति को राजनीति से जोड़कर उसका फायदा उठाया जाता है. यही वजह है बिहार की राजनीति में जाति का इतना बोलबाला है. 1 जून को होने वाली वोटिंग पर इसका असर जरूर पड़ेगा. इस हत्या का सबसे ज्यादा असर जहानाबाद में पड़ने वाला है.
''जहानाबाद में भूमिहार वोटरों की संख्या 17 फीसदी है और ऐसे में एनडीए की तरफ से भले चंदेश्वर चंद्रवंशी को उम्मीदवार बनाया गया हो लेकिन, इंडिया गांठबंधन की तरफ से सुरेंद्र यादव हैं. वहां भूमिहार एकजुट होकर एनडीए या फिर दूसरे भूमिहार उम्मीदवारों की तरफ अपना रुख कर सकते हैं. वहां से भूमिहारों के नेता आशुतोष और पूर्व सांसद अरुण कुमार भी चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में जहानाबाद लोकसभा में भूमिहार जाति के वोटर काफी एग्रेसिव हो सकते हैं.''- कुमार राघवेंद्र, वरिष्ठ पत्रकार
यादव भी अपने पॉकेट में मजबूत होंगे : कुमार राघवेंद्र बताते हैं कि पाटलिपुत्र सीट पर भी इसका असर ठीक-ठाक देखने को मिलेगा. हालांकि एनडीए और इंडिया गठबंधन की तरफ से दोनों उम्मीदवार यादव हैं. लेकिन, यह माना जाता है कि भाजपा या फिर एनडीए अगड़ी जातियों की राजनीति के करती रही है. ऐसे में यहां की अगड़ी जातियां गोलबंद हो सकती हैं और इसका फायदा एनडीए को मिल सकता है. वहीं, दूसरी तरफ आरा, काराकाट और बक्सर में इसका असर आंशिक रूप से देखने को जरूर मिलेगा. इन तीनों लोकसभा क्षेत्र में भूमिहार और यादवों का वोट ठीक-ठाक है और ऐसे में दोनों जातियों का वोट बैंक अपने-अपने नेताओं के लिए गोलबन्द होंगे. करकट में लगभग 70 हजार वोट भूमिहारों का है तो वही, बक्सर और आरा में यादव जाति का ठीक है तो इन पांचो सीटों पर इस हत्याकांड का असर जरूर दिखेगा.
ये भी पढ़ें :-
हर्ष राज के पिता ने खोला हत्या के पीछे का राज, बोले- उसकी तैयारी पूरी थी - Harsh Raj Murder case