तेजपुर: असम में वन अधिनियम का उल्लंघन कर सोनितपुर जिले के जंगलों में सड़कें, गांव, मतदान केंद्र और स्कूल स्थापित करने को लेकर काफी विवाद चल रहा है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी ने असम सरकार से सोनितपुर जिले में सोनाई रूपाई वन्यजीव अभयारण्य के अंदर अवैध निर्माण के बारे में एक हलफनामा दायर करने को कहा है.
जानकारी सामने आई है कि असम के वन्यजीव अभयारण्यों और निकटवर्ती जंगलों में कई स्कूलों, 5 किमी सड़कों, चाय बागानों, कुओं और मतदान केंद्रों का निर्माण किया गया, जो एक अपराध था. पिछले हफ्ते एनजीटी ने एक आदेश पारित किया, जिसमें एनजीटी ने असम के मुख्य सचिव को उन अधिकारियों का विवरण देते हुए एक हलफनामा दाखिल करने को कहा, जिन्होंने वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के घोर उल्लंघन के साथ इतने व्यापक निर्माण की अनुमति दी थी.
इस घटना से राज्य सरकार के वन विभाग में खलबली मच गई. पूर्व मुख्य वन संरक्षक भी ट्रिब्यूनल के सवालों के घेरे में आ गए हैं. हलफनामे में प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) की निष्क्रियता के बारे में सवाल किए गए हैं, जिन्होंने 2017 से अभयारण्य के अंदर अतिक्रमण के बाद से ऐसी अवैध गतिविधियों की अनुमति दी है.
पिछले साल प्रमुख आरटीआई कार्यकर्ता दिलीप नाथ द्वारा एनजीटी में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें असम के सोनितपुर जिले में सोनाई रूपई वन्यजीव अभयारण्य (एसआरडब्ल्यूएस) में वन (संरक्षण) अधिनियम के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था, जहां सरकारी और अवैध रूप से बड़े निर्माण कार्य का अतिक्रमण किया गया है. चारिदुआर आरक्षित वन में स्थापित अवैध आवास मतदान केंद्रों का भी उल्लेख है.
नाथ ने बताया कि सोनई रूपई वन्यजीव अभयारण्य में पूर्व में 38 स्कूल और 5 किमी कंक्रीट सड़कें बनाई गई हैं, लेकिन उस समय वन विभाग या जिला प्रशासन ने इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की. उन्होंने दोहराया कि, वन अधिनियम का पूर्ण उल्लंघन करते हुए सोनितपुर जिले में दो महत्वपूर्ण वन भूमि अतिक्रमणकारियों को सौंप दी गई है.
सरकार ने राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए जिले में 1,301 अतिक्रमणकारी परिवारों को वन भूमि आवंटित कर दी है, जबकि भूमि आवेदकों ने अपने दस्तावेजों में स्पष्ट रूप से कहा है कि वे अपने दस्तावेजों में अतिक्रमणकारी हैं. वन अधिनियम के अनुसार वन भूमि पर 75 वर्षों से रह रहे लोगों को ही भूमि का अधिकार दिया जाना चाहिए. हालांकि, नाथ ने आरोप लगाया कि सोनितपुर में सोनई रूपई अभयारण्य और चारिडुआर अभयारण्य में जमीन एजेंटों द्वारा प्राप्त राशन कार्ड दस्तावेजों के आधार पर 2012 में आवंटित की गई थी.