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उत्तराखंड में तेजी से खत्म हो रही कृषि भूमि, 24 सालों में दो लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन 'खा' गया 'विकास'! - Uttarakhand agricultural land

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 2 hours ago

Strict land laws Uttarakhand, uttarakhand bhu kanoon, Uttarakhand agricultural land, Uttarakhand Latest News, Dehradun Latest News: उत्तराखंड में एक चौकाने वाला आंकड़ा सामने आया है, जो भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं कर रहा है. उत्तराखंड कृषि विभाग से मिली जानकारी के आधार पर बीते 24 सालों में प्रदेश के अंदर दो लाख हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि विकास की भेंट चढ़ गई. इसी पर ईटीवी भारत की विस्तृत रिपोर्ट पढ़ें...

Uttarakhand agricultural land
उत्तराखंड में कम हो रही कृषि भूमि. (ETV Bharat)

देहरादून: उत्तराखंड में इन दिनों भू-कानून का मामला काफी चर्चाओं में है. प्रदेश में कृषि भूमि का घटता दायरा इसकी एक बड़ी वजह है इसलिए प्रदेश के तमाम समाजिक संगठन हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड में भी भू-कानून की मांग कर रहे हैं. वहीं लोगों की मांगों को देखते हुए सरकार ने भी इस दिशा में कदम उठाया है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद घोषणा की है कि उनकी सरकार आगामी बजट सत्र में वृहद भू-कानून लागू करेगी.

वहीं, उत्तराखंड की बदलती तस्वीर का चिंताजनक आंकड़ा सामने आया है. आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में दो लाख हेक्टयर से ज्यादा कृषि भूमि कंक्रीट के जंगलों में तब्दील हो चुकी है, जो चिंता का विषय है. उत्तराखंड में तेजी से घटती कृषि भूमि के कई कारण बताए जा रहे हैं.

राज्य गठन के बाद से लेकर अभीतक हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि या तो विकास की भेंट चढ़ गई, इसके अलावा आपदा और भू-कटाव भी कृषि भूमि का घटने का बड़ा कारण बताया जा रहा है. वहीं गलत तरीके से निजी फायदे के लिए भी उत्तराखंड में जमीनों की काफी खरीद-फरोख्त की गई. जांच में इस तरह की कई धांधलियां सामने आई हैं.

सबसे पहले उत्तराखंड में घटती कृषि भूमि के आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं. उत्तराखंड कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार-

  • राज्य गठन के दौरान यानी साल 2000-01 में प्रदेश में कुल 7 लाख 69 हजार 944 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • साल 2022-23 में ये कृषि भूमि घटकर करीब 5 लाख 68 हजार 488 हो गई.
  • कुल मिलाकर कहा जाए तो सालों में करीब दो लाख एक हजार 456 हेक्टेयर कृषि भूमि घट गई.

वहीं पिछले कुछ सालों से आंकड़ों पर नजर डालें तो-

  • प्रदेश में साल 2015-16 में 6,98,413 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • इसी तरह 2016-17 में 6,90,562 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • 2017-18 में 6,72,530 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • 2018-19 में 6,47,788 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • 2019-20 में 6,37,978 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • 2020-21 में 6,20,629 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • 2021-22 में 5,93,686 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • साल दर साल कृषि योग्य भूमि घटती जा रही है.

साल 2019-20 के जिलेवार भी आंकड़े सामने आए है-

  • 2019-20 के दौरान प्रदेश में 637978 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि थी.
  • चमोली जिले में 30008 हेक्टेयर
  • देहरादून जिले में 34382 हेक्टेयर
  • हरिद्वार जिले में 114062 हेक्टेयर
  • पौड़ी गढ़वाल जिले में 44237 हेक्टेयर
  • रुद्रप्रयाग जिले में 19216 हेक्टेयर
  • टिहरी गढ़वाल जिले में 50152 हेक्टेयर
  • उत्तरकाशी जिले में 28734 हेक्टेयर
  • अल्मोड़ा जिले में 68233 हेक्टेयर
  • बागेश्वर जिला में 21996 हेक्टेयर
  • चंपावत जिले में 15408 हेक्टेयर
  • नैनीताल जिले में 40040 हेक्टेयर
  • पिथौरागढ़ जिले में 37094 हेक्टेयर
  • उधमसिंह नगर जिले में 134416 हेक्टेयर.

उत्तराखंड में तेजी से घटती कृषि भूमि पर सरकार ने भी चिंता जताई है. धामी सरकार में कृषि मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि उत्तराखंड बनने के बाद करीब दो लाख हेक्टेयर कृषि भूमि खत्म हो गई है. अगर किसी योग्य भूमि के घटने का सिलसिला ऐसे ही जारी रहा तो प्रदेश में कृषि भूमि ही नहीं बचेगी. लिहाजा कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त पर तत्काल रोक लगनी चाहिए. साथ ही नगर निकाय क्षेत्र से बाहर 250 वर्ग मीटर भूमि खरीदे जाने के प्रावधान की भी समीक्षा होनी चाहिए. फिलहाल एक ही परिवार के तमाम सदस्यों की ओर से 250 वर्ग मीटर की भूमि खरीदे जाने की मामले पर जांच की जा रही है. लिहाजा जो उत्तराखंड के हित और राज्य की बेहतरीन के लिए ठीक होगा, वो किया जाएगा.

वहीं उत्तराखंड के वन मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि कृषि भूमि खरीदे जाने को लेकर ही भू-कानून में प्रावधान किया गया है. प्रदेश में टूरिस्ट से लेकर इंडस्ट्रीज सेक्टर तक की जो संभावनाएं हैं, उसको देखते हुए ही तमाम लोगों ने प्रदेश में कृषि भूमि को खरीदा, लेकिन तमाम ऐसे मामले सामने आए हैं कि किसी व्यक्ति ने जिस लैंड यूज के नाम पर कृषि भूमि खरीदी थी, उसके इतर उस पर कोई दूसरा काम करने लग गए. लिहाजा सरकार ऐसे सभी मामलों की जांच करने के बाद जिन जमीनों का लैंड यूज बदलने का प्रयास किया गया है, उन जमीनों को राज्य सरकार में निहित किया जाएगा.

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देहरादून: उत्तराखंड में इन दिनों भू-कानून का मामला काफी चर्चाओं में है. प्रदेश में कृषि भूमि का घटता दायरा इसकी एक बड़ी वजह है इसलिए प्रदेश के तमाम समाजिक संगठन हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड में भी भू-कानून की मांग कर रहे हैं. वहीं लोगों की मांगों को देखते हुए सरकार ने भी इस दिशा में कदम उठाया है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद घोषणा की है कि उनकी सरकार आगामी बजट सत्र में वृहद भू-कानून लागू करेगी.

वहीं, उत्तराखंड की बदलती तस्वीर का चिंताजनक आंकड़ा सामने आया है. आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में दो लाख हेक्टयर से ज्यादा कृषि भूमि कंक्रीट के जंगलों में तब्दील हो चुकी है, जो चिंता का विषय है. उत्तराखंड में तेजी से घटती कृषि भूमि के कई कारण बताए जा रहे हैं.

राज्य गठन के बाद से लेकर अभीतक हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि या तो विकास की भेंट चढ़ गई, इसके अलावा आपदा और भू-कटाव भी कृषि भूमि का घटने का बड़ा कारण बताया जा रहा है. वहीं गलत तरीके से निजी फायदे के लिए भी उत्तराखंड में जमीनों की काफी खरीद-फरोख्त की गई. जांच में इस तरह की कई धांधलियां सामने आई हैं.

सबसे पहले उत्तराखंड में घटती कृषि भूमि के आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं. उत्तराखंड कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार-

  • राज्य गठन के दौरान यानी साल 2000-01 में प्रदेश में कुल 7 लाख 69 हजार 944 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • साल 2022-23 में ये कृषि भूमि घटकर करीब 5 लाख 68 हजार 488 हो गई.
  • कुल मिलाकर कहा जाए तो सालों में करीब दो लाख एक हजार 456 हेक्टेयर कृषि भूमि घट गई.

वहीं पिछले कुछ सालों से आंकड़ों पर नजर डालें तो-

  • प्रदेश में साल 2015-16 में 6,98,413 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • इसी तरह 2016-17 में 6,90,562 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • 2017-18 में 6,72,530 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • 2018-19 में 6,47,788 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • 2019-20 में 6,37,978 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • 2020-21 में 6,20,629 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • 2021-22 में 5,93,686 हेक्टेयर कृषि भूमि थी.
  • साल दर साल कृषि योग्य भूमि घटती जा रही है.

साल 2019-20 के जिलेवार भी आंकड़े सामने आए है-

  • 2019-20 के दौरान प्रदेश में 637978 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि थी.
  • चमोली जिले में 30008 हेक्टेयर
  • देहरादून जिले में 34382 हेक्टेयर
  • हरिद्वार जिले में 114062 हेक्टेयर
  • पौड़ी गढ़वाल जिले में 44237 हेक्टेयर
  • रुद्रप्रयाग जिले में 19216 हेक्टेयर
  • टिहरी गढ़वाल जिले में 50152 हेक्टेयर
  • उत्तरकाशी जिले में 28734 हेक्टेयर
  • अल्मोड़ा जिले में 68233 हेक्टेयर
  • बागेश्वर जिला में 21996 हेक्टेयर
  • चंपावत जिले में 15408 हेक्टेयर
  • नैनीताल जिले में 40040 हेक्टेयर
  • पिथौरागढ़ जिले में 37094 हेक्टेयर
  • उधमसिंह नगर जिले में 134416 हेक्टेयर.

उत्तराखंड में तेजी से घटती कृषि भूमि पर सरकार ने भी चिंता जताई है. धामी सरकार में कृषि मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि उत्तराखंड बनने के बाद करीब दो लाख हेक्टेयर कृषि भूमि खत्म हो गई है. अगर किसी योग्य भूमि के घटने का सिलसिला ऐसे ही जारी रहा तो प्रदेश में कृषि भूमि ही नहीं बचेगी. लिहाजा कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त पर तत्काल रोक लगनी चाहिए. साथ ही नगर निकाय क्षेत्र से बाहर 250 वर्ग मीटर भूमि खरीदे जाने के प्रावधान की भी समीक्षा होनी चाहिए. फिलहाल एक ही परिवार के तमाम सदस्यों की ओर से 250 वर्ग मीटर की भूमि खरीदे जाने की मामले पर जांच की जा रही है. लिहाजा जो उत्तराखंड के हित और राज्य की बेहतरीन के लिए ठीक होगा, वो किया जाएगा.

वहीं उत्तराखंड के वन मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि कृषि भूमि खरीदे जाने को लेकर ही भू-कानून में प्रावधान किया गया है. प्रदेश में टूरिस्ट से लेकर इंडस्ट्रीज सेक्टर तक की जो संभावनाएं हैं, उसको देखते हुए ही तमाम लोगों ने प्रदेश में कृषि भूमि को खरीदा, लेकिन तमाम ऐसे मामले सामने आए हैं कि किसी व्यक्ति ने जिस लैंड यूज के नाम पर कृषि भूमि खरीदी थी, उसके इतर उस पर कोई दूसरा काम करने लग गए. लिहाजा सरकार ऐसे सभी मामलों की जांच करने के बाद जिन जमीनों का लैंड यूज बदलने का प्रयास किया गया है, उन जमीनों को राज्य सरकार में निहित किया जाएगा.

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