देहरादून: चुनाव के दौरान प्रत्याशी वोटरों को रिझाने के लिए लोक लुभावने वादे करते हैं. इसके साथ ही कई तरह के पैंतरे आजमाते हैं ताकि, उनका वोट किसी तरह पक्का हो जाए. देवभूमि उत्तराखंड की कई जगहों पर तो इसको लेकर बकायदा एक ऐसी अनोखी प्रथा चली आ रही है, जिस पर शायद यकीन करना थोड़ा मुश्किल हो जाए. दरअसल, यहां प्रत्याशी वोट हासिल करने के लिए आज भी 'लोटा नूण' यानी 'नमक लोटा' से कसम दिलाते हैं. लोटा और नमक की कसम मजबूत कसम मानी जाती है, जिसे वोट की गारंटी भी माना जाता है. इस कसम को खाने के बाद प्रत्याशी भी वोट को लेकर बेफिक्र हो जाता है.
क्या होती है नमक-लोटा कसम: नमक और लोटे की कसम की प्रथा को पहाड़ में नूण-लोटा प्रथा कहते हैं. इसके तहत लोटे में नमक डालकर कसम दिलाई जाती है. कसम लेने वाला शख्स अपने ईष्ट देवता को साक्षी मानकर पानी से भरे लोटे में नमक डालता है. कसम दिलाने वाले के वादे को पूरा न करने या झूठा साबित होने पर पानी में नमक की तरह गलने की बात कहता है.
कहा जाता है कि यह प्रथा आज से नहीं बल्कि उस वक्त से चल रही है, जब राजा महाराजाओं का शासन हुआ करता था. ये भी दिलचस्प है कि सिर्फ चुनाव में इसका इस्तेमाल नहीं होता था. बल्कि, कोर्ट कचहरी और पहाड़ों में बड़े-बड़े फैसले इसी नमक और लोटे से निपटा दिए जाते थे. कहा जाता है कि हिमाचल से सटे गांवों और टिहरी रियासत में इस प्रथा का बड़ा चलन था.
जब गांव में कोई झगड़ा, चोरी, दंगा फसाद या किसी भी तरह का विवाद होता था तो दोनों पक्षों को एक साथ बैठा दिया जाता था. फिर नमक और लोट के अंदर जल रखकर उनसे कसम खिलाई जाती थी. मान्यता है कि उस वक्त भी लोग इस कसम के इतने पक्के थे कि आरोपी अपना जुर्म कबूल लेता था और इस तरह से किसी भी विवाद का फैसला हो जाता था. आज भी देहरादून के चकराता, जौनसार बावर और उत्तरकाशी में पुरोला आदि क्षेत्रों में इस प्रथा का प्रचलन देखा जाता है.
इस प्रथा के बाद नेता जी हो जाते हैं बेफिक्र: यह प्रथा चुनाव में सबसे बड़ा हथियार बनती थी. प्रधान के चुनाव हों, विधानसभा या फिर लोकसभा के चुनाव, इस प्रथा को सभी राजनीतिक दल ग्रामीण क्षेत्रों में आजमाते हैं. इसके तहत गांव का प्रधान या मुखिया एक जगह पर सभी घरों के मुखिया को बुलाता है. समय और स्थान तय किया जाता है. कहा जाता है कि उस वक्त सभी को वहां पहुंचना होता है. वहां पहुंचने के बाद नमक और लोटे के साथ सभी को यह वादा करना होता है कि वो उस व्यक्ति के प्रति समर्पित हैं.
यह वादा कर एक-एक व्यक्ति नमक को लेकर उसे लोटे में डालता है और यह बात सुनिश्चित करता है कि वो जो कह रहा है उस पर वो पूरी तरह से अडिग रहेगा. इसी तरह से नेता संतुष्ट हो जाते हैं कि इस गांव या इस पट्टी से या इस घर से वोट उसको ही पड़ने वाला है. एक बार किसी व्यक्ति ने इस प्रथा का पालन कर लिया, वो दोबारा किसी भी लोभ लालच में नहीं आता.
सालों से चली आ रही है यह परंपरा: टिहरी गढ़वाल क्षेत्र के ही पुराने जानकार और नेता जोत सिंह बिष्ट कहते हैं कि उन्होंने एक बार चुनाव लड़ा था. उस वक्त एक और उम्मीदवार खड़ा था जो दूसरे गांव का था. ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती उनके लिए लोटा और नमक ही थी. उनके खिलाफ उस वक्त पूरे गांव में लोटा और नमक घुमा दिया गया था. इसके बाद उन्होंने अपने प्रचार को दूसरी तरीके से गति दी थी. उनका मानना है कि आज भी पहाड़ों में यह प्रथा चली आ रही है. इतना जरूर है कि कुछ कमी आई है.
विधायक बोले- बहुत कारगर है ये सौगंध: उधर, बीजेपी विधायक खजान दास की मानें तो यह प्रथा आदि काल से चली आ रही है. इसका कोई रिकॉर्ड तो नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि इस प्रथा की मान्यता बहुत है. आज भी लोग जनजातीय क्षेत्र और पहाड़ी क्षेत्रों में इस सौगंध को खाकर वोट देते हैं. कोई भी खुद को झूठ या सच्चा साबित करना चाहता है तो वो इस प्रथा से गुजर कर इस क्षेत्र में दोषी या निर्दोष और किसी के प्रति समर्पित साबित करता है.
इस प्रथा के तहत व्यक्ति लोटे में नमक डालता है और यह कसम खाता है कि, 'अगर मैं तुम्हारे प्रति समर्पित नहीं रहूंगा तो जिस तरह से यह नमक पानी में घुल गया है, इसी तरह से मेरी जवानी, मेरा रंग रूप और मेरा शरीर गल जाए.' यह सौगंध बहुत कारगर मानी जाती थी. वहीं, कई लोग इसे डराने और एक तरह से बंधन में बांधने की श्रेणी में भी गिनते हैं.
NOTE- ईटीवी भारत इस तरह की प्रथा को बढ़ावा नहीं देता है. ये वोटर की इच्छा है कि वो किसे अपना वोट देना चाहता है.
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