हैदराबाद: लोकसभा चुनाव में इस बार आधुनिक तकनीक के जरिए विकसित तीसरी पीढ़ी की ईवीएम का इस्तेमाल होगा. इस ईवीएम की टेम्परिंग या हैकिंग नहीं हो सकती है. भारत निर्वाचन आयोग ने साल 2018 में तीसरी पीढ़ी की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पेश की थी. इसे मार्क-3 ईवीएम नाम दिया गया था. चुनाव आयोग के मुताबिक, तीसरी पीढ़ी की ईवीएम में किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है. मार्क-थ्री ईवीएम में एक ऐसी चिप लगी है, जिसकी प्रोग्रामिंग दोबारा संभव नहीं है.
आयोग के मुताबिक, अगर कोई ईवीएम से छेड़छाड़ की कोशिश करेगा तो यह खुद ब खुद लॉक हो जाएगी. साथ ही चिक की कोडिंग को न तो पढ़ा जा सकता है और न ही दोबारा लिखा जा सकता है. मार्क-थ्री ईवीएम को इंटरनेट या किस अन्य नेटवर्क से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. अगर कोई ईवीएम को पेच से खोलने की कोशिश करेगा तो भी यह लॉक हो जाएगी.
इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लि. और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लि. द्वारा बनाई गई इस उन्नत ईवीएम में डायनेमिक कोडिंग और रियल टाइम क्लॉक जैसे खास फीचर हैं. इसलिए इसे हैक नहीं किया जा सकता है. इसके कंट्रोल यूनिट और बैलेट यूनिट खास सॉफ्टवेयर से निर्दिष्ट होते हैं. इसमें कोई दूसरी कंट्रोल यूनिट लगाने पर डिजिटल सिग्नेचर मैच नहीं होंगे और मशीन निष्क्रिय हो जाएगी.
मार्क-थ्री ईवीएम की विशेषताएं
चुनाव आयोग के मुताबिक, मार्क-थ्री ईवीएम में 24 बैलेट यूनिट और 384 उम्मीदवारों की जानकारी होगी. पुरानी ईवीएम में सिर्फ चार बैलेट यूनिट और 64 उम्मीदवारों की जानकारी आती थी. किसी निर्वाचन क्षेत्र में उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने पर कोई समस्या नहीं होगा. पहले अगर किसी निर्वाचन क्षेत्र में उम्मीदवारों की संख्या 64 से ज्यादा हो जाती थी तो उस सीट पर बैलेट पेपर से चुनाव कराना पड़ता था.
आयोग के मुताबिक, मामूली खराबी आने पर यह ईवीएम खुद उसे ठीक कर लेती है. कोई खराबी आने पर सॉफ्टवेयर खुद उसे डिस्प्ले स्क्रीन पर दिखाता है. छेड़छाड़ करने पर टेंपर डिटेक्ट फीचर मार्क-थ्री ईवीएम को लॉक कर देता है.
भारत में ईवीएम का इतिहास
वर्ष 1979 में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने मिलकर ईवीएम विकसित की थी. 1989 से 2006 के बीच पहली पीढ़ी की ईवीएम मार्क-1 विकसित की गई थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में आखिरी बार इसका इस्तेमाल हुआ था. 2006 से 2012 के बीच दूसरी पीढ़ी की ईवीएम मार्क-2 को तैयार किया गया था. ईवीएम के दूसरे संस्करण में रियल टाइम क्लॉक और डायनमिक कोडिंग जैसे फीचर जोड़े गए थे. इसके बाद 2018 में ईवीएम मार्क-3 को लॉन्च किया गया. आयोग ने 2019 के लोकसभा चुनाव में ही इसके इस्तेमाल की योजना बनाई थी.
1982 में पहली बार हुआ ईवीएम का ट्रायल
चुनाव आयोग ने देश में 1977 में पहली बार ईवीएम बनाने का प्रस्ताव दिया. 1979 में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने मिलकर ईवीएम विकसित की. 1980 में चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को ईवीएम दिखाई. सभी पक्षों पर गौर करने के बाद पार्टियों ने सकारात्मक फीडबैक दिया. इसके बाद 1982 में केरल की उत्तरी पैरावूर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वोटिंग के लिए पहली बार सीमित संख्या में ईवीएम का इस्तेमाल किया गया. फिर राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली के कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव के लिए ईवीएम का उपयोग किया गया. चुनाव आयोग ने 1999 में पहली बार गोवा विधानसभा चुनाव में पूरे राज्य में ईवीएम से वोटिंग कराई. फिर 2003 में हुए सभी उपचुनाव और विधानसभा चुनावों में ईवीएम का उपयोग किया गया. अब तक की सफलता के बाद चुनाव आयोग ने साल 2004 के लोकसभा चुनाव में ईवीएम का उपयोग करने का फैसला किया.
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