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एम्स ऋषिकेश में पहली बार किया गया रोबोटिक सर्जरी से लिवर कैंसर का उपचार, सर्जन ने बताया अनुभव

liver cancer treated through robotic surgery एम्स ऋषिकेश के डॉक्टरों ने दुर्लभ बीमारी ''लिवर मैलिग्नेंट मेसेनकाइमल ट्यूमर'' से ग्रसित मरीज का रोबोटिक सर्जरी से उपचार किया है. उत्तराखंड में पहली बार ट्यूमर के इलाज के लिए रोबोटिक सर्जरी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 27, 2024, 4:42 PM IST

ऋषिकेश: मेडिकल के क्षेत्र में एम्स ऋषिकेश नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. ऐसे ही एक और मामले में एम्स ऋषिकेश के डॉक्टरों ने लिवर में कैंसर से ग्रसित 35 साल के मरीज की रोबोटिक तकनीक से सर्जरी की, जो सफल रही है. मरीज को ऑपरेशन के पांच दिन बाद हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई. यह पहला मौका है जब उत्तराखंड में किसी मरीज के लिवर में बने ट्यूमर के इलाज के लिए रोबोटिक सर्जरी तकनीक का उपयोग किया गया है.

लिवर मैलिग्नेंट मेसेनकाइमल ट्यूमर से ग्रसित था लक्ष्मण: एम्स ऋषिकेश से मिली जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के दरमोला गांव निवासी 34 साल के लक्ष्मण सिंह पिछले तीन महीने से बुखार से ग्रसित थे, जिन्होंने एम्स ऋषिकेश के डॉक्टरों को दिखाया. एम्स ऋषिकेश के सर्जिकल गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुनीता सुमन ने बताया कि ओपीडी के माध्यम से हुई विभिन्न जांचों के आधार पर मरीज को पता चला कि वह लिवर कैंसर से संबंधित दुर्लभ बीमारी ''लिवर मैलिग्नेंट मेसेनकाइमल ट्यूमर'' से ग्रसित है.

जरूरी थी लिवर रिसेक्शन सर्जरी: डॉक्टरों ने बताया कि कैंसर का यह रूप खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका था. यह एक जीवनघातक बीमारी होती है और इसकी वजह से लिवर में गांठ बन जाती है. बीमारी की गंभीरता को देखते हुए विभाग के वरिष्ठ सर्जन व हेड डॉ. निर्झर राज ने निर्णय लिया कि मरीज को त्वरित आराम दिलाने के लिए लिवर रिसेक्शन सर्जरी की जानी जरूरी है.

डॉ. राज ने बताया कि पहले रोबोटिक सहायता से मरीज की राइट पोस्टीरियर सेक्शनेक्टॉमी की गई. इस प्रक्रिया द्वारा कैंसर से प्रभावित लिवर के लगभग 35 प्रतिशत हिस्से को सावधानीपूर्वक अलग किया गया. सर्जरी करने वाली टीम के दूसरे सदस्य और विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. लोकेश अरोड़ा ने प्रमुख रक्त वाहिकाओं के आपस में बहुत निकट होने के कारण लिवर रिसेक्शन सर्जरी में आवश्यक सटीकता के बारे में बताया और कहा कि रोबोटिक तकनीक से की जाने वाली सर्जरी द्वारा आस-पास के अंगों को नुकसान पहुंचने की आशंका बहुत कम होती है.

उन्होंने बताया कि यह बहुत कठिन था, लेकिन टीम वर्क से की गई यह सर्जरी पूर्ण रूप से सफल रही. एम्स ऋषिकेश की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर डॉ. मीनू सिंह ने इस सफल सर्जरी के लिए सर्जिकल टीम की दक्षता की सराहना की और कहा कि स्वास्थ्य देखभाल में यह सर्जरी एम्स ऋषिकेश की उत्कृष्टता का प्रमाण है. प्रो. मीनू सिंह ने बताया कि प्रत्येक आयुष्मान कार्डधारक और गरीब व्यक्ति को भी एम्स द्वारा विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं. चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर आरबी कालिया ने कहा कि लिवर रिसेक्शन सर्जरी की सफलता में उनके चिकित्सकों की टीम ने जोखिम की चुनौती को स्वीकार करते हुए असाधारण कौशल और प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया है.

क्या है रोबोटिक सर्जरी: रोबोटिक गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और हेपेटोबिलरी सर्जन डॉ. निर्झर राज ने बताया कि रोबोटिक सर्जरी से रोगी की सुरक्षा और आराम सुनिश्चित करते हुए बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं. सामान्य सर्जरी की विधि द्वारा पेट में लंबे चीरे लगाने पड़ते हैं और मरीज को ऑपरेशन के बाद 10-15 दिनों तक अस्पताल में रहने की आवश्यकता होती है. रोबोटिक तकनीक से की गई सर्जरी द्वारा रोगी जल्द रिकवर होता है. यहीं ही नहीं उसे 5 से 7 दिनों में ही अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है. इसके अलावा रोबोटिक विधि से 10 गुना बेहतर दिखाई देता है. इसकी मदद से जटिलतम स्थानों की सर्जरी भी की जा सकती है.

सप्ताह में 3 दिन है गैस्ट्रोएंटरोलॉजी की ओपीडी: एम्स में सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग की ओपीडी मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को सुबह 9 बजे से दोपहर 2 बजे तक संचालित होती है. कैंसर रोगियों के लिए प्रत्येक बृहस्पतिवार को अपराह्न 2 से 4 बजे तक चिकित्सा और रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभागों के साथ संयुक्त रूप से एक विशेष क्लीनिक संचालित किया जाता है. डॉ. निर्झर राज ने बताया कि विभाग ने पिछले एक वर्ष के दौरान हेपेटेक्टॉमी, एसोफेजेक्टॉमी, पैनक्रिएक्टोमी, कोलोरेक्टल सर्जरी और अन्य जटिल जीआई सर्जरी जैसी विभिन्न रोबोटिक चिकित्सीय प्रक्रियाएं संपन्न की हैं.
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ऋषिकेश: मेडिकल के क्षेत्र में एम्स ऋषिकेश नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. ऐसे ही एक और मामले में एम्स ऋषिकेश के डॉक्टरों ने लिवर में कैंसर से ग्रसित 35 साल के मरीज की रोबोटिक तकनीक से सर्जरी की, जो सफल रही है. मरीज को ऑपरेशन के पांच दिन बाद हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई. यह पहला मौका है जब उत्तराखंड में किसी मरीज के लिवर में बने ट्यूमर के इलाज के लिए रोबोटिक सर्जरी तकनीक का उपयोग किया गया है.

लिवर मैलिग्नेंट मेसेनकाइमल ट्यूमर से ग्रसित था लक्ष्मण: एम्स ऋषिकेश से मिली जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के दरमोला गांव निवासी 34 साल के लक्ष्मण सिंह पिछले तीन महीने से बुखार से ग्रसित थे, जिन्होंने एम्स ऋषिकेश के डॉक्टरों को दिखाया. एम्स ऋषिकेश के सर्जिकल गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुनीता सुमन ने बताया कि ओपीडी के माध्यम से हुई विभिन्न जांचों के आधार पर मरीज को पता चला कि वह लिवर कैंसर से संबंधित दुर्लभ बीमारी ''लिवर मैलिग्नेंट मेसेनकाइमल ट्यूमर'' से ग्रसित है.

जरूरी थी लिवर रिसेक्शन सर्जरी: डॉक्टरों ने बताया कि कैंसर का यह रूप खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका था. यह एक जीवनघातक बीमारी होती है और इसकी वजह से लिवर में गांठ बन जाती है. बीमारी की गंभीरता को देखते हुए विभाग के वरिष्ठ सर्जन व हेड डॉ. निर्झर राज ने निर्णय लिया कि मरीज को त्वरित आराम दिलाने के लिए लिवर रिसेक्शन सर्जरी की जानी जरूरी है.

डॉ. राज ने बताया कि पहले रोबोटिक सहायता से मरीज की राइट पोस्टीरियर सेक्शनेक्टॉमी की गई. इस प्रक्रिया द्वारा कैंसर से प्रभावित लिवर के लगभग 35 प्रतिशत हिस्से को सावधानीपूर्वक अलग किया गया. सर्जरी करने वाली टीम के दूसरे सदस्य और विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. लोकेश अरोड़ा ने प्रमुख रक्त वाहिकाओं के आपस में बहुत निकट होने के कारण लिवर रिसेक्शन सर्जरी में आवश्यक सटीकता के बारे में बताया और कहा कि रोबोटिक तकनीक से की जाने वाली सर्जरी द्वारा आस-पास के अंगों को नुकसान पहुंचने की आशंका बहुत कम होती है.

उन्होंने बताया कि यह बहुत कठिन था, लेकिन टीम वर्क से की गई यह सर्जरी पूर्ण रूप से सफल रही. एम्स ऋषिकेश की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर डॉ. मीनू सिंह ने इस सफल सर्जरी के लिए सर्जिकल टीम की दक्षता की सराहना की और कहा कि स्वास्थ्य देखभाल में यह सर्जरी एम्स ऋषिकेश की उत्कृष्टता का प्रमाण है. प्रो. मीनू सिंह ने बताया कि प्रत्येक आयुष्मान कार्डधारक और गरीब व्यक्ति को भी एम्स द्वारा विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं. चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर आरबी कालिया ने कहा कि लिवर रिसेक्शन सर्जरी की सफलता में उनके चिकित्सकों की टीम ने जोखिम की चुनौती को स्वीकार करते हुए असाधारण कौशल और प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया है.

क्या है रोबोटिक सर्जरी: रोबोटिक गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और हेपेटोबिलरी सर्जन डॉ. निर्झर राज ने बताया कि रोबोटिक सर्जरी से रोगी की सुरक्षा और आराम सुनिश्चित करते हुए बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं. सामान्य सर्जरी की विधि द्वारा पेट में लंबे चीरे लगाने पड़ते हैं और मरीज को ऑपरेशन के बाद 10-15 दिनों तक अस्पताल में रहने की आवश्यकता होती है. रोबोटिक तकनीक से की गई सर्जरी द्वारा रोगी जल्द रिकवर होता है. यहीं ही नहीं उसे 5 से 7 दिनों में ही अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है. इसके अलावा रोबोटिक विधि से 10 गुना बेहतर दिखाई देता है. इसकी मदद से जटिलतम स्थानों की सर्जरी भी की जा सकती है.

सप्ताह में 3 दिन है गैस्ट्रोएंटरोलॉजी की ओपीडी: एम्स में सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग की ओपीडी मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को सुबह 9 बजे से दोपहर 2 बजे तक संचालित होती है. कैंसर रोगियों के लिए प्रत्येक बृहस्पतिवार को अपराह्न 2 से 4 बजे तक चिकित्सा और रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभागों के साथ संयुक्त रूप से एक विशेष क्लीनिक संचालित किया जाता है. डॉ. निर्झर राज ने बताया कि विभाग ने पिछले एक वर्ष के दौरान हेपेटेक्टॉमी, एसोफेजेक्टॉमी, पैनक्रिएक्टोमी, कोलोरेक्टल सर्जरी और अन्य जटिल जीआई सर्जरी जैसी विभिन्न रोबोटिक चिकित्सीय प्रक्रियाएं संपन्न की हैं.
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