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1991 की वो चुनावी फाइट जब पटना लोकसभा में आमने सामने थे IK गुजराल और यशवंत सिन्हा, लालू यादव ने तब किया खेल - Lok Sabha Election 2024

बिहार में पाटलिपुत्र सीट लालू यादव के लिए काफी प्रतिष्ठा का सवाल रहती है. यही वजह है कि इस सीट पर लालू यादव अपना कब्जा बरकरार रखना चाहते हैं. 1991 में एक ऐसा भी चुनाव लड़ा गया जब लालू यादव की जिद के आगे दूसरे नेता पस्त हो गए और ना चाहते हुए भी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री आईके गुजराल को पटना से चुनाव लड़ना पड़ा. लेकिन इसका नतीजा ये हुआ कि न गुजराल जीते और न ही दूसरे प्रतिद्वंदी यशवंत सिन्हा. पढ़ें पूरी खबर-

LOK SABHA ELECTION 2024
LOK SABHA ELECTION 2024
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Apr 8, 2024, 7:33 PM IST

पटना : देश में जब चुनाव का दौर चलता है तो कुछ ऐसे चुनाव होते हैं जो जेहन में याद रह जाते हैं, उसकी हर बात आपको परत दर परत याद रहती है. कुछ ऐसा ही चुनाव हुआ था बिहार के पटना लोकसभा सीट पर. यह वह वक्त था जब बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव बन चुके थे. महज एक ही साल हुआ था लालू यादव अपनी राजनीति के चरम पर थे. जी हां, हम बात कर रहे हैं 1991 लोकसभा चुनाव की.

1991 की बिग फाइट : उस समय पटना साहिब और पाटलिपुत्र दोनों सीटें एक ही थी. जिसका नाम पटना लोकसभा क्षेत्र था. पटना शहरी इलाके से लेकर ग्रामीण इलाके तक एक ही लोकसभा क्षेत्र में आता था. यह वह वक्त भी था जब संयुक्त झारखंड और बिहार की राजधानी पटना हुआ करती थी. तब यह देश का सबसे हॉट सीट मानी जाती थी. इस सीट पर दो दिग्गज नेताओं की टक्कर हुई थी. एक तरफ बीजेपी के कद्दावर नेता पूर्व आईएएस अधिकारी यशवंत सिन्हा थे तो, दूसरी तरफ इंद्र कुमार गुजराल थे. दोनों का यह चुनाव कई मायनों में खास था.

लालू की जिद पर गुजराल लड़े चुनाव : जब 1991 के लोकसभा का चुनाव शुरू हुआ और पटना लोकसभा क्षेत्र से इंद्र कुमार गुजराल और यशवंत सिन्हा ने अपना पर्चा भरा तो सब की निगाहें पटना लोकसभा क्षेत्र के इस चुनाव पर टिक गईं थीं. यह चुनाव इसलिए भी खास था क्योंकि, बिहार प्रदेश में लालू यादव की नई-नई सरकार बनी थी. लालू यादव अपने नए-नए कारनामों के लिए देश में प्रचलित हो रहे थे. उस समय लालू यादव की पैठ जनता दल में काफी हद तक बढ़ गई थी.

लालू का ओवर कॉन्फिडेंस : यही वजह थी कि पटना लोकसभा क्षेत्र का चुनाव उनके लिए प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ था. इसलिए उन्होंने पंजाब के इंद्र कुमार गुजराल को पटना लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाने का फैसला लिया. इस फैसले से जनता दल के कुछ नेता हैरान परेशान जरूर थे लेकिन, लालू यादव ने इतना कॉन्फिडेंस दिखाया कि सब लालू यादव से सहमत हो गए.

'गुजराल' को 'गुर्जर' बताकर मैदान में उतारा : वरिष्ठ पत्रकार कुमार राघवेंद्र बताते हैं कि 1991 का वह चुनाव लालू यादव की वजह से काफी चर्चित हो गया था. क्योंकि लालू यादव ने उस चुनाव में पंजाब के रहने वाले इंद्र कुमार गुजराल, जो बाद में चलकर देश के प्रधानमंत्री बने थे उनको उम्मीदवार बनाया था. गुजराल का परिचय लालू यादव ने बहुत ही चुटीले अंदाज में लोगों से करवाते थे. वह भोजपुरी में कहते थे कि इंद्र कुमार गुजराल गुर्जर हैं, पंजाब मैं गुर्जर यादव जैसा ही जात होता हैं.

लालू के फार्मूले से सभी हैरान : लालू यादव गुजराल को बाहरी नहीं बताते थे, वह कहते थे कि यह यादव हैं और यादव जाति की भलाई के लिए, किसानों की भलाई के लिए काम करेंगे. इनको ज्यादा से ज्यादा वोट से जीतना है. कुमार राघवेंद्र बताते हैं कि इस फार्मूले से विरोधी दल के नेता भी हंसने लगे थे. लेकिन, लालू यादव को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि, उनके लिए यह सीट प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ था. आईके गुजराल कांग्रेस के कद्दावर नेता थे. इंदिरा गांधी के कार्यकाल में मंत्री भी थे. लेकिन, उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर जनता दल का दामन थाम लिया था.

चुनाव में कई बूथ लूट लिए गए थे : उधर, जनता पार्टी के तरफ से यशवंत सिन्हा चुनावी दंगल में उतरे थे यशवंत सिन्हा इससे पहले चंद्रशेखर की सरकार में केंद्रीय वित्त मंत्री थे. चूंकि, यशवंत सिन्हा का पटना से पहले से जुड़ाव था. उनका जन्म पटना में हुआ था और उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई भी की थी और तीसरी सबसे बड़ी वजह यह थी कि पटना लोकसभा क्षेत्र में कायस्थ मतदाताओं की संख्या काफी थी.

लालू यादव ने किया फोकस : ऐसे में इस चुनाव के लिए जनता पार्टी की तरफ से यशवंत सिन्हा को सबसे फिट उम्मीदवार माना गया था. कुमार राघवेंद्र बताते हैं कि यह मध्यावधि चुनाव था. जिसमें तमाम पार्टियां जी-जान से अपने उम्मीदवार को जिताने में लगी थीं. लेकिन, लालू यादव सिर्फ पटना लोकसभा क्षेत्र को लेकर काफी मेहनत कर रहे थे. चुनाव के दिन कई बूथ पर हंगामा हुए, कई जगह तोड़फोड़ हुई.

आयोग ने मतदान किया रद्द : मतदान में हंगामे और तोड़फोड़ के बाद सूचना यह भी थी कि कई बूथों को लूट लिया गया था. इसकी शिकायत जब चुनाव आयोग के पास दी गई थी तो चुनाव आयोग ने त्वरित कार्रवाई करते हुए, जांच किया और फिर उस चुनाव को रद्द कर दिया. इस तरह पटना लोकसभा चुनाव 1991 में ना तो इंद्र कुमार गुजराल जीते और ना ही यशवंत सिन्हा विजयी हुए.

उप-चुनाव में रामकृपाल बने सांसद : चुनाव आयोग ने फिर पटना में दोबारा चुनाव कराया. 1993 में यहां उपचुनाव कराया गया था. जिसमें ना तो इंद्र कुमार गुजराल ने चुनाव लड़ा और ना ही यशवंत सिन्हा ने चुनाव लड़ा. तब लालू यादव के सबसे खास नेता रामकृपाल यादव ने चुनाव लड़ा और उनके खिलाफ डॉ एसएन आर्या भाजपा की तरफ चुनाव लड़े थे. जिसमें रामकृपाल यादव ने जीत हासिल की थी.

हार या जीत की हैट्रिक? : हालांकि रामकृपाल यादव ने 2014 में लालू यादव का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया. 2014 में पटना ग्रामीण क्षेत्र से यानी कि पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से रामकृपाल यादव ने लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती को चुनाव हराया फिर, 2019 में रामकृपाल यादव ने फिर से मीसा भारती को पटखनी दी. एक बार फिर से 2024 में रामकृपाल यादव के सामने लालू यादव की बेटी मीसा भारती चुनाव लड़ने को तैयार हैं. इस चुनाव में या तो रामकृपाल यादव जीत की हैट्रिक मारेंगे या फिर मीसा भारती हार की हैट्रिक लगाएंगी.

पटना : देश में जब चुनाव का दौर चलता है तो कुछ ऐसे चुनाव होते हैं जो जेहन में याद रह जाते हैं, उसकी हर बात आपको परत दर परत याद रहती है. कुछ ऐसा ही चुनाव हुआ था बिहार के पटना लोकसभा सीट पर. यह वह वक्त था जब बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव बन चुके थे. महज एक ही साल हुआ था लालू यादव अपनी राजनीति के चरम पर थे. जी हां, हम बात कर रहे हैं 1991 लोकसभा चुनाव की.

1991 की बिग फाइट : उस समय पटना साहिब और पाटलिपुत्र दोनों सीटें एक ही थी. जिसका नाम पटना लोकसभा क्षेत्र था. पटना शहरी इलाके से लेकर ग्रामीण इलाके तक एक ही लोकसभा क्षेत्र में आता था. यह वह वक्त भी था जब संयुक्त झारखंड और बिहार की राजधानी पटना हुआ करती थी. तब यह देश का सबसे हॉट सीट मानी जाती थी. इस सीट पर दो दिग्गज नेताओं की टक्कर हुई थी. एक तरफ बीजेपी के कद्दावर नेता पूर्व आईएएस अधिकारी यशवंत सिन्हा थे तो, दूसरी तरफ इंद्र कुमार गुजराल थे. दोनों का यह चुनाव कई मायनों में खास था.

लालू की जिद पर गुजराल लड़े चुनाव : जब 1991 के लोकसभा का चुनाव शुरू हुआ और पटना लोकसभा क्षेत्र से इंद्र कुमार गुजराल और यशवंत सिन्हा ने अपना पर्चा भरा तो सब की निगाहें पटना लोकसभा क्षेत्र के इस चुनाव पर टिक गईं थीं. यह चुनाव इसलिए भी खास था क्योंकि, बिहार प्रदेश में लालू यादव की नई-नई सरकार बनी थी. लालू यादव अपने नए-नए कारनामों के लिए देश में प्रचलित हो रहे थे. उस समय लालू यादव की पैठ जनता दल में काफी हद तक बढ़ गई थी.

लालू का ओवर कॉन्फिडेंस : यही वजह थी कि पटना लोकसभा क्षेत्र का चुनाव उनके लिए प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ था. इसलिए उन्होंने पंजाब के इंद्र कुमार गुजराल को पटना लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाने का फैसला लिया. इस फैसले से जनता दल के कुछ नेता हैरान परेशान जरूर थे लेकिन, लालू यादव ने इतना कॉन्फिडेंस दिखाया कि सब लालू यादव से सहमत हो गए.

'गुजराल' को 'गुर्जर' बताकर मैदान में उतारा : वरिष्ठ पत्रकार कुमार राघवेंद्र बताते हैं कि 1991 का वह चुनाव लालू यादव की वजह से काफी चर्चित हो गया था. क्योंकि लालू यादव ने उस चुनाव में पंजाब के रहने वाले इंद्र कुमार गुजराल, जो बाद में चलकर देश के प्रधानमंत्री बने थे उनको उम्मीदवार बनाया था. गुजराल का परिचय लालू यादव ने बहुत ही चुटीले अंदाज में लोगों से करवाते थे. वह भोजपुरी में कहते थे कि इंद्र कुमार गुजराल गुर्जर हैं, पंजाब मैं गुर्जर यादव जैसा ही जात होता हैं.

लालू के फार्मूले से सभी हैरान : लालू यादव गुजराल को बाहरी नहीं बताते थे, वह कहते थे कि यह यादव हैं और यादव जाति की भलाई के लिए, किसानों की भलाई के लिए काम करेंगे. इनको ज्यादा से ज्यादा वोट से जीतना है. कुमार राघवेंद्र बताते हैं कि इस फार्मूले से विरोधी दल के नेता भी हंसने लगे थे. लेकिन, लालू यादव को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि, उनके लिए यह सीट प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ था. आईके गुजराल कांग्रेस के कद्दावर नेता थे. इंदिरा गांधी के कार्यकाल में मंत्री भी थे. लेकिन, उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर जनता दल का दामन थाम लिया था.

चुनाव में कई बूथ लूट लिए गए थे : उधर, जनता पार्टी के तरफ से यशवंत सिन्हा चुनावी दंगल में उतरे थे यशवंत सिन्हा इससे पहले चंद्रशेखर की सरकार में केंद्रीय वित्त मंत्री थे. चूंकि, यशवंत सिन्हा का पटना से पहले से जुड़ाव था. उनका जन्म पटना में हुआ था और उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई भी की थी और तीसरी सबसे बड़ी वजह यह थी कि पटना लोकसभा क्षेत्र में कायस्थ मतदाताओं की संख्या काफी थी.

लालू यादव ने किया फोकस : ऐसे में इस चुनाव के लिए जनता पार्टी की तरफ से यशवंत सिन्हा को सबसे फिट उम्मीदवार माना गया था. कुमार राघवेंद्र बताते हैं कि यह मध्यावधि चुनाव था. जिसमें तमाम पार्टियां जी-जान से अपने उम्मीदवार को जिताने में लगी थीं. लेकिन, लालू यादव सिर्फ पटना लोकसभा क्षेत्र को लेकर काफी मेहनत कर रहे थे. चुनाव के दिन कई बूथ पर हंगामा हुए, कई जगह तोड़फोड़ हुई.

आयोग ने मतदान किया रद्द : मतदान में हंगामे और तोड़फोड़ के बाद सूचना यह भी थी कि कई बूथों को लूट लिया गया था. इसकी शिकायत जब चुनाव आयोग के पास दी गई थी तो चुनाव आयोग ने त्वरित कार्रवाई करते हुए, जांच किया और फिर उस चुनाव को रद्द कर दिया. इस तरह पटना लोकसभा चुनाव 1991 में ना तो इंद्र कुमार गुजराल जीते और ना ही यशवंत सिन्हा विजयी हुए.

उप-चुनाव में रामकृपाल बने सांसद : चुनाव आयोग ने फिर पटना में दोबारा चुनाव कराया. 1993 में यहां उपचुनाव कराया गया था. जिसमें ना तो इंद्र कुमार गुजराल ने चुनाव लड़ा और ना ही यशवंत सिन्हा ने चुनाव लड़ा. तब लालू यादव के सबसे खास नेता रामकृपाल यादव ने चुनाव लड़ा और उनके खिलाफ डॉ एसएन आर्या भाजपा की तरफ चुनाव लड़े थे. जिसमें रामकृपाल यादव ने जीत हासिल की थी.

हार या जीत की हैट्रिक? : हालांकि रामकृपाल यादव ने 2014 में लालू यादव का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया. 2014 में पटना ग्रामीण क्षेत्र से यानी कि पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से रामकृपाल यादव ने लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती को चुनाव हराया फिर, 2019 में रामकृपाल यादव ने फिर से मीसा भारती को पटखनी दी. एक बार फिर से 2024 में रामकृपाल यादव के सामने लालू यादव की बेटी मीसा भारती चुनाव लड़ने को तैयार हैं. इस चुनाव में या तो रामकृपाल यादव जीत की हैट्रिक मारेंगे या फिर मीसा भारती हार की हैट्रिक लगाएंगी.

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