ETV Bharat / bharat

शाम होते ही ढोल की थाप पर नाचने लगता है पूरा गांव, जानिए क्यों सीख रहे चेंडा मेलम - CHENDA MELAM

CHENDA MELAM: केरल के कोक्कल में लोग चेंडा मेलम (ढोल की थाप, तालवाद्य) की शिक्षा ले रहे है. विभिन्न आयु वर्ग के 80 से अधिक लोग केरल में बजाए जाने वाले बेलनाकार ताल वाद्य यंत्र चेंडा की बारीकियों को लगन से सीख रहे हैं. इस बाबत लोगों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया शेयर की है. पढ़ें पूरी खबर...

author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jul 10, 2024, 7:20 PM IST

Updated : Jul 11, 2024, 8:35 PM IST

CHENDA MELAM
चेंडा मेलम (ETV Bharat)

कासरगोड: केरल के कासरगोड में लोग इन दिनों चेंदा मेलम (ढोल की थाप, तालवाद्य) की कला को घरेलू कौशल के रूप में अपना रहे हैं. जिले के लगभग सभी गांव के लोग अब चेंडा मेलम सीखने की जद्दोजहद में है. उडुमा कोकल गांव में विभिन्न आयु वर्ग के 80 से अधिक व्यक्ति चेंडा मेलम की बारीकियों को लगन से सीख रहे हैं. इसमें लड़के, लड़कियां, माताएं, बुजुर्ग और युवा शामिल हैं. बता दें, उदमा में कोक्कल के गांव में चेंडा मेलम की फ्री क्लास दी जाती है.

चेंडा मेलम (ETV Bharat)

जहां गृहणियां, दिहाड़ी मजदूर और स्कूली छात्र इस कला को सीखने के लिए एकत्रित होते हैं. शुरुआत में सभी छात्र इमली के पेड़ की लकड़ियों से बनी छड़ियों से अभ्यास करते हैं. वह ग्रेनाइट स्लैब पर ताल ठोकते हैं. यह तब तक चलता है जब तक कि वे इस कला में निपुण नहीं हो जाते. इसके बाद, वे चेंडा बजाना शुरू कर देते हैं. सप्ताहांत, सार्वजनिक छुट्टियों और यहां तक कि गर्मियों की छुट्टियों के दौरान भी कक्षाएं शाम 7 से 9:30 बजे तक आयोजित की जाती है.

तीन महीने की पढ़ाई के बाद वे पंचारी के पांचवें चरण में पहुंचे, जिसमें गणपतिकाई, थकिता, थारिकिता, चेम्पाडा और त्रिपाटा शामिल हैं, जो ढोल की विभिन्न गतियां हैं. शाम सात बजे तक पूरा कोकल चेंडा मेलम (ढोल की थाप) की आवाज से गूंज उठता है. ​​पहले यह प्रशिक्षण सिर्फ बच्चों के लिए था. फिर अपने बच्चों को लेने आने वाली माताओं ने चेंडा मेलम सीखने में अपनी रुचि दिखाई. जिसके बाद बच्चे के साथ-साथ उनकी माताओं ने भी इसकी पढ़ाई शुरू कर दी.

इस बाबत पूछे जाने पर 45 वर्षीय छात्रा रिनिथा ने कहा कि उन्हें बड़ी उम्र में पढ़ाई का मौका मिलने पर खुशी है. यह पहली बार है जब हमें अवसर मिला है. मैं इसका आनंद ले रही हूं. एक अन्य छात्रा अनुषा ने कहा कि हम शिक्षक से अनुरोध कर रहे थे कि वे हमें चेंडा मेलम सिखाएं. हम अवसर की तलाश में थे. हमें अवसर मिला, अब हम इसे आसानी से सीख रहे हैं. इसे सीखते हुए 3 महीने हो गए हैं.

महिलाओं का कहना है कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे इस उम्र में चेंडा मेलम सीख पाएंगी. वहीं, प्रशिक्षक सी. विश्वनाथन ने ईटीवी भारत को बताया कि सभी बड़े लोगों ने भी इसे आसानी से सीख लिया. हम पंचारी शैली का पालन कर रहे हैं, जिसका पारंपरिक रूप से मंदिरों में उपयोग किया जाता है. एक और शैली है जिसका आमतौर पर जुलूस और त्योहारों में उपयोग किया जाता है. सभी तेजी से सीख रहे हैं.

ये भी पढ़ें-

कासरगोड: केरल के कासरगोड में लोग इन दिनों चेंदा मेलम (ढोल की थाप, तालवाद्य) की कला को घरेलू कौशल के रूप में अपना रहे हैं. जिले के लगभग सभी गांव के लोग अब चेंडा मेलम सीखने की जद्दोजहद में है. उडुमा कोकल गांव में विभिन्न आयु वर्ग के 80 से अधिक व्यक्ति चेंडा मेलम की बारीकियों को लगन से सीख रहे हैं. इसमें लड़के, लड़कियां, माताएं, बुजुर्ग और युवा शामिल हैं. बता दें, उदमा में कोक्कल के गांव में चेंडा मेलम की फ्री क्लास दी जाती है.

चेंडा मेलम (ETV Bharat)

जहां गृहणियां, दिहाड़ी मजदूर और स्कूली छात्र इस कला को सीखने के लिए एकत्रित होते हैं. शुरुआत में सभी छात्र इमली के पेड़ की लकड़ियों से बनी छड़ियों से अभ्यास करते हैं. वह ग्रेनाइट स्लैब पर ताल ठोकते हैं. यह तब तक चलता है जब तक कि वे इस कला में निपुण नहीं हो जाते. इसके बाद, वे चेंडा बजाना शुरू कर देते हैं. सप्ताहांत, सार्वजनिक छुट्टियों और यहां तक कि गर्मियों की छुट्टियों के दौरान भी कक्षाएं शाम 7 से 9:30 बजे तक आयोजित की जाती है.

तीन महीने की पढ़ाई के बाद वे पंचारी के पांचवें चरण में पहुंचे, जिसमें गणपतिकाई, थकिता, थारिकिता, चेम्पाडा और त्रिपाटा शामिल हैं, जो ढोल की विभिन्न गतियां हैं. शाम सात बजे तक पूरा कोकल चेंडा मेलम (ढोल की थाप) की आवाज से गूंज उठता है. ​​पहले यह प्रशिक्षण सिर्फ बच्चों के लिए था. फिर अपने बच्चों को लेने आने वाली माताओं ने चेंडा मेलम सीखने में अपनी रुचि दिखाई. जिसके बाद बच्चे के साथ-साथ उनकी माताओं ने भी इसकी पढ़ाई शुरू कर दी.

इस बाबत पूछे जाने पर 45 वर्षीय छात्रा रिनिथा ने कहा कि उन्हें बड़ी उम्र में पढ़ाई का मौका मिलने पर खुशी है. यह पहली बार है जब हमें अवसर मिला है. मैं इसका आनंद ले रही हूं. एक अन्य छात्रा अनुषा ने कहा कि हम शिक्षक से अनुरोध कर रहे थे कि वे हमें चेंडा मेलम सिखाएं. हम अवसर की तलाश में थे. हमें अवसर मिला, अब हम इसे आसानी से सीख रहे हैं. इसे सीखते हुए 3 महीने हो गए हैं.

महिलाओं का कहना है कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे इस उम्र में चेंडा मेलम सीख पाएंगी. वहीं, प्रशिक्षक सी. विश्वनाथन ने ईटीवी भारत को बताया कि सभी बड़े लोगों ने भी इसे आसानी से सीख लिया. हम पंचारी शैली का पालन कर रहे हैं, जिसका पारंपरिक रूप से मंदिरों में उपयोग किया जाता है. एक और शैली है जिसका आमतौर पर जुलूस और त्योहारों में उपयोग किया जाता है. सभी तेजी से सीख रहे हैं.

ये भी पढ़ें-

Last Updated : Jul 11, 2024, 8:35 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.