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बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार, किशनगंज में चिंतित हैं रिश्तेदार, हरे हो गये 1965 के जख्म - BANGLADESH VIOLENCE - BANGLADESH VIOLENCE

BANGLADESHI HINDU FAMILY CONCERNED: बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के गठन के बाद भी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा जारी है. वहीं हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार ने किशनगंज में रह रहे बांग्लादेशी हिंदू परिवारों के जख्मों को हरा कर दिया है. उन्हें वो दर्दभरी दास्तां फिर याद आ रही है जब उन्हें मजबूर होकर अपना देश छोड़ना पड़ा था और भारत में शरण लेनी पड़ी थी, पढ़िये पूरी खबर,

हिंसा के दौर से याद आ गयी खौफनाक दास्तां
हिंसा के दौर से याद आ गयी खौफनाक दास्तां (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 9, 2024, 6:15 PM IST

किशनगंजः नाम बदल गये, लेकिन अत्याचार नहीं रुका. नाम जब पूर्वी पाकिस्तान था तब भी हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार होता था. 1971 में भारत की मदद से अस्तित्व में आने के बाद पूर्वी पाकिस्तान भले बांग्लादेश हो गया लेकिन हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार बदस्तूर जारी है. 5 अगस्त को शेख हसीना के तख्ता पलट के बाद बांग्लादेश में हिंदू एक बार फिर निशाने पर हैं. बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार से किशनगंज में रह रहे बांग्लादेशी हिंदू परिवारों को अपने दर्दभरे दिन तो याद आ ही रहे हैं अपने रिश्तेदारों की चिंता भी सता रही है.

याद आयी दर्द भरी दास्तांः किशनगंज के नेपालगढ़ कॉलोनी में आज भी वैसे कई बांग्लादेशी हिंदू परिवारों का बसेरा है जिन्हें 1965 में भारत-पाकिस्तान की जंग के वक्त पूर्वी पाकिस्तान में अपने बसे-बसाए संसार को छोड़कर दर-दर भटकना पड़ा था. तब हिंदुओं के खिलाफ भड़की हिंसा के बाद आज के बांग्लादेश यानी पूर्वी पाकिस्तान से कई हिंदू परिवारों ने पलायन कर भारत में शरण ली थी. ऐसे ही 67 हिंदू परिवारों को विभिन्न कैंपों में रखने के बाद भारत सरकार ने किशनगंज के रिफ्यूजी कॉलोनी यानी वर्तमान में नेपालगढ़ कॉलोनी में पुनर्वासित किया था.

नेपालगढ़ कॉलोनी में बांग्लादेशी परिवार पुनर्वासित हैं
नेपालगढ़ कॉलोनी में बांग्लादेशी परिवार पुनर्वासित हैं (ETV BHARAT)

जमीन के साथ-साथ रोजगार की व्यवस्था भी की गयी थीः बांग्लादेश से आए 67 हिंदू परिवारों को करीब 18-18 डिस्मिल जमीन देकर बसाया गया और साथ ही रोजगार के लिए ऋण भी मुहैया कराया गया था. आज सभी लोगों को भारत की नागरिकता मिल चुकी है और सभी अमन-चैन से रह रहे हैं लेकिन बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के दौर ने उनकी पेशानी पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं.

आज भी बांग्लादेश में रहते हैं कई रिश्तेदारः दरअसल नेपालगढ़ कॉलोनी में रहनेवाले बांग्लादेशी हिंदू परिवारों के कई रिश्तेदार आज भी बांग्लादेश में रहते हैं. जाहिर है बांग्लादेश के खराब हालात ने उन परिवारों के लिए भी मुश्किलें बढ़ा दी हैं और नेपालगढ़ कॉलोनी के इन हिंदू परिवारों की चिंता का सबब भी यही है.

नेपालगढ़ कॉलोनी के लोग चिंतित
नेपालगढ़ कॉलोनी के लोग चिंतित (ETV BHARAT)

कई लोगों से नहीं हो रहा है संपर्कः 82 साल की शोलोबाला भट्टाचार्य का कहना है कि मेरे कई रिश्तेदार बांग्लादेश में रहते हैं.पहले चिट्ठियों आना-जाना होता था, कभी-कभी फोन पर बात होती थी लेकिन काफी समय से संपर्क नहीं हुआ है. अब उनलोगों की चिंता हो रही है. वहीं चितरंजन शर्मा के फुफेरे भाई बांग्लादेश के रतनपुर हबीबगंज सबडिवीजन के सिलेट जिले में रहते हैं. कुछ दिनों पहले बात हुई थी लेकिन अभी संपर्क नहीं हो रहा है.

बांग्लादेश के हालात ने हरे कर दिए जख्मःनेपालगढ़ कॉलोनी के रहने वाले 70 वर्षीय शक्ति दत्त पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि उनका जन्मस्थान बांग्लादेश के कोमिल्ला जिले में है. वो जब 10 साल के थे तो उनके पिता धीरेष चंद्र दत्त और मां हेमा प्रभा दत्त अपने पूरे परिवार के साथ 1964 में बांग्लादेश से भाग कर भारत में शरणार्थी के तौर पर आ गए थे. भारत में प्रवेश करने के बाद वे त्रिपुरा के फूल कुमारी कैंप में शरणार्थी के तौर पर रह रहे थे. वहां से 1965 में उन्हें सहरसा के शरणार्थी कैंप में भेज दिया गया.

बांग्लादेश की हिंसा ने बढ़ाई चिंता
बांग्लादेश की हिंसा ने बढ़ाई चिंता (ETV BHARAT)

"सहरसा शरणार्थी कैंप में 2 साल तक रहने के बाद उन्हें 1967 में पूर्णिया कैंप में भेज दिया गया. पूर्णिया से 1969 में किशनगंज के नेपालगर कॉलोनी में शरणार्थी के तौर पर आए.परिवार को सरकार ने 18-20 डेसिमल जमीन देकर पुनर्वास कराया और आज सभी भारतीय नागरिकता प्राप्त कर चुके हैं."- शक्ति दत्ता, निवासी, नेपालगढ़ कॉलोनी

'पिताजी सुनाते थे अत्याचार की कहानी':शक्ति दत्ता ने बताया उनके पिताजी कहानी सुनाते थे कि उस समय पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश में हिंदुओं पर खूब अत्याचार होता था. तब ढाका में किसी बात को लेकर पूरे पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं को टारगेट किया जा रहा था. जिसके बाद कई हिंदू परिवार देश छोड़ने के लिए मजबूर हो गये.

किशनगंज की नेपालगढ़ कॉलोनी
किशनगंज की नेपालगढ़ कॉलोनी (ETV BHARAT)

चितरंजन को भी याद आए वो खौफनाक दिनः वहीं चितरंजन शर्मा बताते हैं कि उनके दादा सूर्यकांत शर्मा 1965 में पूर्वी पाकिस्तान से भागकर त्रिपुरा आए थे. वहां शरणार्थी कैंप में रहने के बाद उन्हें मध्य प्रदेश के कैंप में भेज दिया गया. फिर वहां से पूर्णिया के मरंगा कैंप भेजा गया और आखिरकार किशनगंज में उन्हें पुनर्वासित किया गया. इसके अलावा नीलेश चंद्र घोष के पिता सुधीर चंद्र घोष 1965 में बांग्लादेश से भाग कर भारत आए थे और कोई कैंप में रहने के बाद 1969 में किशनगंज के नेपालगढ़ कॉलोनी में जगह मिली थी.

बूढ़ी आंखों के सामने फिर घूमा खौफनाक मंजरः शोलोबाला भट्टाचार्य 82 साल की हो चुकी हैं लेकिन बांग्लादेश की ताजा हिंसा के बाद उनकी बूढ़ी आंखों में आज भी वो खौफनाक मंजर घूम जाता है जब हिंदुओं के खिलाफ भड़की हिंसा के बाद अपना बसा-बसाया संसार छोड़कर उन्हें भारत आना पड़ा था.

बांग्लादेश के हालात पर चिंतित हैं शोलोबाला
बांग्लादेश के हालात पर चिंतित हैं शोलोबाला (ETV BHARAT)

"मेरा जन्म पूर्वी पाकिस्तान में हुआ था. भारत-पाकिस्तान के युद्ध के समय पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार चरम पर पहुंच गया था. जिसके बाद मेरे पिता पूरे परिवार के साथ भारत आ गए. बांग्लादेश बनने से पहले पूर्वी पाकिस्तान पर पश्चिमी पाकिस्तान का शासन था और उस समय हिंदुओं की स्थिते बेहद दयनीय थी. सरेआम मारपीट की जाती थी और घरों में आग लगा दी जाती थी."-शोलोबाला भट्टाचार्य, निवासी, नेपालगढ़ कॉलोनी

किशनगंज की नेपालगढ़ कॉलोनी
किशनगंज की नेपालगढ़ कॉलोनी (ETV BHARAT)

शेख हसीनाा पर गुस्सा, हिंदुओं पर अत्याचारः बांग्लादेश में गुस्सा तो शेख हसीना के खिलाफ था, तख्ता पलट तो शेख हसीना का हुआ लेकिन हसीना के विरोधियों और कट्टरपंथियों के गुस्से के शिकार बांग्लादेश के हिंदू परिवार हो रहे हैं. उनके घरों-दुकानों में लूटपाट हो रही है और जलाया जा रहा है. धार्मिक स्थलों को भी नुकसान पहुंचाया जा रहा है तो कई लोगों की अपनी जान भी गंवानी पड़ी है. ऐसे में किशनगंज के नेपालगढ़ कॉलोनी में रह रहे इन परिवारों को वो दर्द भरी दास्तां फिर याद आ रही है.

ये भी पढ़ेंः बांग्लादेश के हालात पर बगहा में चिंता, बांग्लादेशी शरणार्थियों ने भारत सरकार से की हस्तक्षेप की मांग - BANGLADESH VIOLENCE

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किशनगंजः नाम बदल गये, लेकिन अत्याचार नहीं रुका. नाम जब पूर्वी पाकिस्तान था तब भी हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार होता था. 1971 में भारत की मदद से अस्तित्व में आने के बाद पूर्वी पाकिस्तान भले बांग्लादेश हो गया लेकिन हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार बदस्तूर जारी है. 5 अगस्त को शेख हसीना के तख्ता पलट के बाद बांग्लादेश में हिंदू एक बार फिर निशाने पर हैं. बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार से किशनगंज में रह रहे बांग्लादेशी हिंदू परिवारों को अपने दर्दभरे दिन तो याद आ ही रहे हैं अपने रिश्तेदारों की चिंता भी सता रही है.

याद आयी दर्द भरी दास्तांः किशनगंज के नेपालगढ़ कॉलोनी में आज भी वैसे कई बांग्लादेशी हिंदू परिवारों का बसेरा है जिन्हें 1965 में भारत-पाकिस्तान की जंग के वक्त पूर्वी पाकिस्तान में अपने बसे-बसाए संसार को छोड़कर दर-दर भटकना पड़ा था. तब हिंदुओं के खिलाफ भड़की हिंसा के बाद आज के बांग्लादेश यानी पूर्वी पाकिस्तान से कई हिंदू परिवारों ने पलायन कर भारत में शरण ली थी. ऐसे ही 67 हिंदू परिवारों को विभिन्न कैंपों में रखने के बाद भारत सरकार ने किशनगंज के रिफ्यूजी कॉलोनी यानी वर्तमान में नेपालगढ़ कॉलोनी में पुनर्वासित किया था.

नेपालगढ़ कॉलोनी में बांग्लादेशी परिवार पुनर्वासित हैं
नेपालगढ़ कॉलोनी में बांग्लादेशी परिवार पुनर्वासित हैं (ETV BHARAT)

जमीन के साथ-साथ रोजगार की व्यवस्था भी की गयी थीः बांग्लादेश से आए 67 हिंदू परिवारों को करीब 18-18 डिस्मिल जमीन देकर बसाया गया और साथ ही रोजगार के लिए ऋण भी मुहैया कराया गया था. आज सभी लोगों को भारत की नागरिकता मिल चुकी है और सभी अमन-चैन से रह रहे हैं लेकिन बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के दौर ने उनकी पेशानी पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं.

आज भी बांग्लादेश में रहते हैं कई रिश्तेदारः दरअसल नेपालगढ़ कॉलोनी में रहनेवाले बांग्लादेशी हिंदू परिवारों के कई रिश्तेदार आज भी बांग्लादेश में रहते हैं. जाहिर है बांग्लादेश के खराब हालात ने उन परिवारों के लिए भी मुश्किलें बढ़ा दी हैं और नेपालगढ़ कॉलोनी के इन हिंदू परिवारों की चिंता का सबब भी यही है.

नेपालगढ़ कॉलोनी के लोग चिंतित
नेपालगढ़ कॉलोनी के लोग चिंतित (ETV BHARAT)

कई लोगों से नहीं हो रहा है संपर्कः 82 साल की शोलोबाला भट्टाचार्य का कहना है कि मेरे कई रिश्तेदार बांग्लादेश में रहते हैं.पहले चिट्ठियों आना-जाना होता था, कभी-कभी फोन पर बात होती थी लेकिन काफी समय से संपर्क नहीं हुआ है. अब उनलोगों की चिंता हो रही है. वहीं चितरंजन शर्मा के फुफेरे भाई बांग्लादेश के रतनपुर हबीबगंज सबडिवीजन के सिलेट जिले में रहते हैं. कुछ दिनों पहले बात हुई थी लेकिन अभी संपर्क नहीं हो रहा है.

बांग्लादेश के हालात ने हरे कर दिए जख्मःनेपालगढ़ कॉलोनी के रहने वाले 70 वर्षीय शक्ति दत्त पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि उनका जन्मस्थान बांग्लादेश के कोमिल्ला जिले में है. वो जब 10 साल के थे तो उनके पिता धीरेष चंद्र दत्त और मां हेमा प्रभा दत्त अपने पूरे परिवार के साथ 1964 में बांग्लादेश से भाग कर भारत में शरणार्थी के तौर पर आ गए थे. भारत में प्रवेश करने के बाद वे त्रिपुरा के फूल कुमारी कैंप में शरणार्थी के तौर पर रह रहे थे. वहां से 1965 में उन्हें सहरसा के शरणार्थी कैंप में भेज दिया गया.

बांग्लादेश की हिंसा ने बढ़ाई चिंता
बांग्लादेश की हिंसा ने बढ़ाई चिंता (ETV BHARAT)

"सहरसा शरणार्थी कैंप में 2 साल तक रहने के बाद उन्हें 1967 में पूर्णिया कैंप में भेज दिया गया. पूर्णिया से 1969 में किशनगंज के नेपालगर कॉलोनी में शरणार्थी के तौर पर आए.परिवार को सरकार ने 18-20 डेसिमल जमीन देकर पुनर्वास कराया और आज सभी भारतीय नागरिकता प्राप्त कर चुके हैं."- शक्ति दत्ता, निवासी, नेपालगढ़ कॉलोनी

'पिताजी सुनाते थे अत्याचार की कहानी':शक्ति दत्ता ने बताया उनके पिताजी कहानी सुनाते थे कि उस समय पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश में हिंदुओं पर खूब अत्याचार होता था. तब ढाका में किसी बात को लेकर पूरे पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं को टारगेट किया जा रहा था. जिसके बाद कई हिंदू परिवार देश छोड़ने के लिए मजबूर हो गये.

किशनगंज की नेपालगढ़ कॉलोनी
किशनगंज की नेपालगढ़ कॉलोनी (ETV BHARAT)

चितरंजन को भी याद आए वो खौफनाक दिनः वहीं चितरंजन शर्मा बताते हैं कि उनके दादा सूर्यकांत शर्मा 1965 में पूर्वी पाकिस्तान से भागकर त्रिपुरा आए थे. वहां शरणार्थी कैंप में रहने के बाद उन्हें मध्य प्रदेश के कैंप में भेज दिया गया. फिर वहां से पूर्णिया के मरंगा कैंप भेजा गया और आखिरकार किशनगंज में उन्हें पुनर्वासित किया गया. इसके अलावा नीलेश चंद्र घोष के पिता सुधीर चंद्र घोष 1965 में बांग्लादेश से भाग कर भारत आए थे और कोई कैंप में रहने के बाद 1969 में किशनगंज के नेपालगढ़ कॉलोनी में जगह मिली थी.

बूढ़ी आंखों के सामने फिर घूमा खौफनाक मंजरः शोलोबाला भट्टाचार्य 82 साल की हो चुकी हैं लेकिन बांग्लादेश की ताजा हिंसा के बाद उनकी बूढ़ी आंखों में आज भी वो खौफनाक मंजर घूम जाता है जब हिंदुओं के खिलाफ भड़की हिंसा के बाद अपना बसा-बसाया संसार छोड़कर उन्हें भारत आना पड़ा था.

बांग्लादेश के हालात पर चिंतित हैं शोलोबाला
बांग्लादेश के हालात पर चिंतित हैं शोलोबाला (ETV BHARAT)

"मेरा जन्म पूर्वी पाकिस्तान में हुआ था. भारत-पाकिस्तान के युद्ध के समय पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार चरम पर पहुंच गया था. जिसके बाद मेरे पिता पूरे परिवार के साथ भारत आ गए. बांग्लादेश बनने से पहले पूर्वी पाकिस्तान पर पश्चिमी पाकिस्तान का शासन था और उस समय हिंदुओं की स्थिते बेहद दयनीय थी. सरेआम मारपीट की जाती थी और घरों में आग लगा दी जाती थी."-शोलोबाला भट्टाचार्य, निवासी, नेपालगढ़ कॉलोनी

किशनगंज की नेपालगढ़ कॉलोनी
किशनगंज की नेपालगढ़ कॉलोनी (ETV BHARAT)

शेख हसीनाा पर गुस्सा, हिंदुओं पर अत्याचारः बांग्लादेश में गुस्सा तो शेख हसीना के खिलाफ था, तख्ता पलट तो शेख हसीना का हुआ लेकिन हसीना के विरोधियों और कट्टरपंथियों के गुस्से के शिकार बांग्लादेश के हिंदू परिवार हो रहे हैं. उनके घरों-दुकानों में लूटपाट हो रही है और जलाया जा रहा है. धार्मिक स्थलों को भी नुकसान पहुंचाया जा रहा है तो कई लोगों की अपनी जान भी गंवानी पड़ी है. ऐसे में किशनगंज के नेपालगढ़ कॉलोनी में रह रहे इन परिवारों को वो दर्द भरी दास्तां फिर याद आ रही है.

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